प्रकरण - १४
रईश आज घर आनेवाला था इसलिए हम सब उसका बड़ी बेसबरी से इंतज़ार कर रहे थे। रात का खाना खा लेने के बाद हम अभी घर के आंगन में बैठकर बातें कर रहे थे।
दर्शिनी बात कर रही थी, "रोशनभाई! रईशभाई आज कितने दिनों बाद घर आएंगे नहीं? जब से वे यहां से गए हैं, तब से ये घर बहुत ही सूना सूना सा लगता है। उनके बिना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है।"
दर्शिनी की ये बात सुनते ही मैं भी बोल उठा, "हाँ! तुम ठीक कह रही हो दर्शिनी! घर में केवल एक व्यक्ति की अनुपस्थिति होने पर भी घर सूना सूना लगने लगता है। कभी-कभी घर में बहुत से लोगों की उपस्थिति होने के बावजूद भी मन किसी एक अनुपस्थित व्यक्ति को ही याद करता रहता है और फिर अकेलापन महसूस करने लगता है! मुझे भी रईश के बिना अच्छा तो नहीं लगता है। जब से यह तमस मेरी आंखों में छाया था, मुझे लगातार अपने लिए किसी के साथ की जरूरत महसूस होती है। मैं नहीं जानता हूं की ऐसा क्यों होता है लेकिन यह सोचते सोचते मेरा मन अंदर से पंगु हो जाता है और मैं बहुत ही पीड़ा का अनुभव करता हूं।”
अभी तो मैं इतना ही बोला था तभी मेरी मम्मीने मुझे रोक दिया और तुरंत कहा, "रोशन! तुम फिर से ऐसी बात क्यों कर रहे हो? मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि हमें अब परिस्थिति को स्वीकार करना ही होगा। तुने मुझसे वादा किया था की तुम अब फिर कभी भी हार नहीं मानोगे। फिर भी तुम अपने आपको बार बार कमज़ोर क्यों समझने लगते हो? ईश्वर की कृपा तुम पर है, देखो न बेटा! तुमने ऐसी परिस्थिति में भी संगीत के माध्यम से अन्य लोगों के जीवन में ज्योति जगाना शुरू कर दिया है। ये तुम पर ईश्वर की कृपा नहीं तो और क्या है?"
मैं अनुमान लगा सकता था कि मेरी मम्मी मेरी ये नकारात्मक ऊर्जा से भरी बात सुनकर दु:खी थी इसलिए मैं बोला, "माफ़ करना मम्मी!। मैं अब ऐसी बात फिर कभी नहीं करूंगा।"
जैसे ही मेरे पापाने मेरी और मम्मी की बाते सुनी तो वो भी तुरंत बोल पड़े, "रोशन! मेरा अंतरमन कहता है की, रईश अपने रिसर्च में एक न एक दिन जरूर सफल होगा और तुम्हारी आंखों की रोशनी जरूर वापस आएगी। भगवान पर भरोसा रखो बेटा। अगर हमने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा है तो भगवान भी हमारा अहित नहीं होने देंगे। फिलहाल तुम ये समझो कि ईश्वर हमारी परीक्षा ले रहे है और हमें इस परीक्षा में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होना है बेटा।"
मैंने उदास चेहरे से फिर से कहा, "हा! वैसे भी आशा के अलावा अब हमारे पास दूसरा रास्ता भी कहां है? पता नहीं मैंने ऐसे कौन से अपराध किये होगे की जिसकी भगवानने मुझे इतनी बड़ी सज़ा दी?''
मेरे पिताने मुझे हिम्मत देते हुए कहा, "तुने कोई गुनाह नहीं किया है, बेटा! ऊपरवाले पर भरोसा रखो। वो सब ठीक करेंगे।"
कभी-कभी जब मुझे अपने अंधेपन की स्थिति का एहसास होता था तो मैं बहुत ही दु:खी हो जाता था और मेरा मन बहुत ही नकारात्मक विचार और पीड़ा से भर जाता था। मेरे मम्मी पापा हमेशा मुझे सकारात्मक विचार देने की कोशिश करते थे। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले।
जब हम ये सब बातें कर रहे थे तो अचानक मुझे रईश की आवाज़ सुनाई दी।
वह दूर से ही बोल पड़ा, "रोशन! मैं आ गया। कहाँ हो तुम भाई?" वो तुरंत मेरे पास आ पहुंचा और मुझे खुशी से उसने गले लगा लिया और बोला, "भाई! बहुत जल्द मैं तुम्हारी आंखों की रोशनी वापस लानेवाला हूं। मैं अपने रिसर्च के बहुत करीब पहुंच गया हूं। तुम बिलकुल भी निराश मत होना। मैं तुम्हारी आंखों की रोशनी जरुर वापस लाउंगा। मुझ पर भरोसा रखना।"
रईश को घर आया देख मेरे पापा भी बोले, "अरे रईश! तुम आ गए बेटा! अगर तुमने फोन कर दिया होता तो मैं तुम्हें लेने आ जाता न?"
रईश बोला, "पापा! मुझे लगा की मैं इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए आप सबको परेशान क्यों करूँ? अब मैं बड़ा हो गया हूँ। मैं अब अकेला भी घर तो आ ही सकता हूं। है ना?"
पापा बोले, "तुम बिल्कुल सही कह रहे हो बेटा! वैसे भी जब बेटे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें अपना काम खुद ही करना चाहिए। माता-पिता को भी अपनी संतानों पर भरोसा करना चाहिए। उन्हें कुछ काम अपने आप ही करने देना चाहिए। मूर्ख हैं वो माता-पिता जो अपने संतानों को अपने प्यार के बंधनों में बांध के रखते है और उन्हें कभी ठोकर लगने ही नहीं देते हैं। मैंने ऐसे कई माता-पिता देखे हैं जो अपने बच्चों पर भरोसा ही नहीं करते। अपने बच्चों को कहीं भी अकेले भेजने से डरते हैं। कई माता-पिता तो ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों की अच्छी पढ़ाई हो वो तो चाहते है लेकिन उनको हॉस्टल में नहीं भेजना चाहते। उन्हें डर होता है कि उनके बच्चो पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वे बिगड़ जाएंगे। लेकिन मेरा मानना है कि ये तो हर माता-पिता पर ही निर्भर होता है न कि वे अपने बच्चों को किस तरह के संस्कार देते हैं? कुछ माता-पिता को तो यह भी डर रहता है कि अगर हम अपने बच्चों को अपने पैरो पर खड़ा होने देंगे तो वे हमारे बुढ़ापे में हमें अकेला छोड़ देंगे और हमें वृद्धाश्रम में धकेल देंगे। ज्यादातर ऐसी सोच रखनेवाले माता-पिता की संताने ही उन्हें वृद्धाश्रम में धकेल देती है। जो माता-पिता अपने बच्चों को आज़ादी नहीं दे पाते है वे ही अपने बच्चों को दुःख पहुँचाते हैं और स्वयं भी सदैव दुःखी होते हैं।'' उस दिन मेरे पापाने हमारे सामने अपने अनुभवों की पूरी किताब खोल दी थी।
मेरे पापा की यह बात सुनकर रईश तुरंत बोल उठा, "हां पापा! आप बिल्कुल सही कह रहे है। हम तीनो भाई-बहनों को गर्व है कि हमारे माता-पिता हम पर भरोसा करते हैं।''
मैं भी बोल उठा, "हाँ! पापा! रईश ठीक बोल रहा है। वरना आज मैं जो भी स्थिति में हूं ऐसी स्थिति में भी खुश रह पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। मैं अगर आज खुश रह पा रहा हूं तो इसके लिए कहीं ना कहीं आप और मम्मी ही जिम्मेदार हैं ना?"
दर्शिनी भी बोली, "और मेरा तो आप लोगों के साथ खून का रिश्ता भी नहीं है, फिर भी आप दोनोंने मुझे कभी भी अपने दोनों बेटों से कम नहीं समजा। इसके लिए मैं आपका जितना आभार मानू वो कम है। अन्यथा, मुझ अनाथ को घर कैसा? मेरी मां तो मुझे आप लोगों के भरोसे ही छोड़कर चली गई थी।"
दर्शिनी की यह बात सुनकर मेरी मम्मीने तुरंत कहा, "चुप हो जाओ अब तुम बेटा! तुम हमारी ही बेटी हो। किसी और की बेटी नहीं हो। आज के बाद फिर कभी भी ऐसी बात मत करना।"
दर्शिनीने मेरी माँ से माफ़ी मांगी और बोली, "माफ करना मम्मी! मुझसे गलती हो गई। मैं ऐसी बात अब फिर कभी नहीं करूंगी।"
मेरी मम्मी बोली, "अच्छा ठीक है बेटा! तुम अभी दसवीं कक्षा में हो। अब तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और अंदर जाकर पढ़ाई शुरू करो। अभी तीन महीने बाद तुम्हारी प्रीलिम्स की परीक्षा आनेवाली है तो अंदर जाकर उसकी तैयारी करो।"
मम्मी के इतना कहने पर दर्शिनी पढाई करने के लिए अपने कमरे में चली गई।
जैसे ही दर्शिनी अंदर गई, मैंने रईश से पूछा, "रईश! तुम्हारा पी.एच.डी. का काम कैसा चल रहा है?"
रईशने उत्तर दिया, "वो तो बहुत ही अच्छा चल रहा है। मुझे इस काम में बहुत मजा भी आ रहा है। और अब मैं इस काम में अकेला भी नहीं हूं। मेरी एक दोस्त मुझे कंपनी देने के लिए मेरे साथ जुड़ गई है। फिलहाल हमारे विषय में हम दो ही लोग पी. एच.डी. कर रहे है। एक मैं हूं और दूसरी मेरी दोस्त नीलिमा। वह भी बहुत अच्छी लड़की है।"
मैं भी मज़ाक करते हुए रईश से बोला, "ओह! मतलब तुम्हारे साथ कोई लड़की है! फिर तो तुम थोड़ा ध्यान रखना भाई...कहीं फिसल मत जाना।"
रईश बोला, "और अगर मैं कहूं तो की मैं थोड़ा थोड़ा तो फिसलने लग गया हूं तो?"
रईश का यह जवाब सुनकर मम्मी और पापा थोड़ी देर तक उसे बिना पलक झपकाए देखते ही रहे इसलिए रईशने तुरंत कहा, "अरे! अरे! तुम लोग चिंता मत करो। मुझे पता है, मुझे अभी पढ़ाई पर ध्यान देना है, लेकिन मैं जूठ भी नहीं बोलूंगा। मैं इतना जरूर कहूंगा कि मैं उस लड़की नीलिमा से आकर्षित तो जरूर हुआ हूं, लेकिन मैंने अभी तक उसे अपने दिल की बात नहीं बताई है।"
मुझसे अब रहा नहीं गया इसलिए मैंने तो उसे पूछ ही लिया, "तो फिर तुम उसे अपने दिल की बात कब बताओगे?"
(क्रमश:)