तमस ज्योति - 13 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

तमस ज्योति - 13

प्रकरण - १३

मेरा नया सफर अब शुरू हो गया था। फातिमा की संस्थाने मुझे घर से स्कूल तक लाने-ले जाने की जिम्मेदारी खुद ही ली थी।

यह मेरी पहली नौकरी थी इसलिए मैं बहुत खुश था। मैं सुबह जल्दी उठ गया और माँ की मदद से जल्दी से तैयार हो गया। सुबह का चाय नाश्ता खत्म करके अब मैं विद्यालय जाने के लिए तैयार होकर बैठा था।

तभी मुझे रिक्शा के आने की आवाज सुनाई दी। आंखो के चले जाने की वजह से अब मेरे कान कुछ ज्यादा ही काम करने लग गए थे। धीरे-धीरे अब मैं अलग-अलग आवाजों को परखने लगा था। अब मुझे धीरे-धीरे ये भी समझ में आने लगा था कि कौन कितनी दूरी पर है। जब ईश्वर हमसे कुछ लेता है तो वह हमें कुछ देता भी है। हालाँकि भगवानने मेरी आँखों की रोशनी छीन ली थी, पर उसके बदले में अब मेरे अंदर धीरे-धीरे इंसान को पहचानने की शक्ति विकसित हो रही थी।

भले ही मैं किसी का चेहरा तो नहीं देख सकता था, लेकिन मैं उनकी उम्र और उनकी ऊर्जा से उनके व्यक्तित्व का अनुमान अब जरुर लगा सकता था। इसके अलावा, अगर वह व्यक्ति मेरे आसपास होता, तो मुझे उस व्यक्ति का दर्द भी महसूस होने लगता था। अब मैं कुछ आवाजे जैसे की क़दमों की आवाज़, वाहन की आवाज़ या यहां तक कि किसी व्यक्ति की विशिष्ट गंध को भी पहचानने लगा था।

रिक्शा में बैठ कर मैं अब विद्यालय आ चुका था। जैसे ही मैं रिक्शे से बाहर निकला फातिमा वहा पर मुझे लेने आई। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ लगते ही मेरे हाथों में मानो एक झनझनाहट सी हुई। इस तरह किसी औरतने पहली बार मेरा हाथ जो पकड़ा था! फिर मुझे समझ आया की उसने केवल मुझे रास्ता दिखाने के लिए ही मेरा हाथ पकड़ा था। मैं कुछ हद तक शांत हो गया और मैं जहां वो मुझे ले गई उसके साथ साथ चलने लगा।

वह मुझे संस्था के ट्रस्टी से मिलवाने के लिए अपने साथ ले गई थी। फातिमाने संस्था के ट्रस्टी ममतादेवी से मेरा परिचय कराते हुए कहा, "मैडम! ये रोशनजी है, जिनके लिए मैंने आपसे बात की थी। यही अब हमारे छात्रों को संगीत सिखाएंगे।"

ममता देवी बोले, "ओह! हाँ...हां...फातिमा! याद आया। मैंने ही तो तुम्हें उन्हें खोजने के लिए कहा था ना!" 

उनकी आवाज़ सुनते ही मुझे उनकी आवाज़ में एक भारीपन महसूस हुआ। उनकी ये आवाज़ बहुत ही कर्कश और पहाड़ी थी, लेकिन फिर भी ये किसी को भी प्रभावित करने के लिए तो काफी ही थी। मैं भी उनकी आवाज़ से थोड़ा तो प्रभावित हुआ था।

फातिमाने मुझे उनका परिचय करवाते हुए कहा, "रोशनजी! ये हमारी संस्था की ट्रस्टी हैं, श्री ममता देवी। ये संस्था उन्हीं के माध्यम से चलती है। ये इस संस्था की संचालिका हैं। इनके प्रयासों से ही इस संस्थाने प्रगति की है। मुझ पर इनका बहुत सारा कर्ज है क्योंकि यह संस्था तब मेरी मदद के लिए आई थी जब मुझे पैसों की बहुत जरूरत थी। मुझे नहीं पता कि मैं कभी भी इनका ये कर्ज चुका पाऊंगी या नहीं!"

फातिमा की ये बात सुनकर ममतादेवी तुरंत बोल पड़ी, "बस, फातिमा! तुम्हें अब मेरी प्रशंसा करने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें पता है कि मुझे यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं है। मुझे ये काम भगवानने करने को दिया है और मैं तो इसमें केवल सहायक हूं। मुझे इतने महान कार्य में लगाने के लिए मैं ईश्वर की बहुत आभारी हूं। इस कार्य के लिए मैं भगवान को जितना धन्यवाद दू उतना कम है।" 

उनकी ये बात सुनने के बाद मैंने महसूस किया की उनकी उस वाणी में गरिमा छलकती थी।

उनकी ये सारी बाते सुनकर मैंने अनुमान लगाया कि उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावशाली रहा होगा। अब तक मैं चुपचाप उसकी और फातिमा की बातें सुन रहा था। 

अब तक वहा चुप खड़ा मैं भी बोल उठा। मैंने कहा, "मैडम! मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपके प्रत्येक छात्र को मैं अच्छी तरह से संगीत सिखा सकूं और उन्हें इस कला में पारंगत बना सकूं। मैं आपको कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा।"

मेरी ये बात सुनकर ममता देवी बोली, रोशनजी! मैं भी नहीं चाहती कि आप मुझे ऐसा कोई मौका दो। आप शायद मुझे नहीं जानते लेकिन मैं अपने और अपने स्टाफ के काम को लेकर बहुत सख्त हूं।" यह कहते हुए उन्होंने अपने व्यक्तित्व का एक और पहलू मेरे सामने उजागर किया।

मैने कहा, "मेरी ओर से उसकी चिंता मत करो। मैं आपको कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूँगा।" 

ममता देवी बोली,"फिर तो ठीक है। रोशनजी! अब फातिमा तुम्हें हमारे छात्रों से मिलवाएगी। तुम उनके साथ जाओ।" 

मैं अब फातिमा के साथ-साथ चलने लगा। वह शायद मेरा हाथ पकड़कर मुझे एक कक्षा में ले आई थी।

वहां पर पहुंचते ही वह बोली, "मेरे प्यारे बच्चों! क्या तुम जानते हो कि आज मैं तुम्हें किससे मिलवाने जा रही हूं?" 

बच्चे एकसाथ बोल उठे, "नहीं मैडम! किसके साथ?" 

फातिमा बोली, "मैं तुम सबको तुम्हारे संगीत-गुरु से मिलवाने लाई हू। उनका नाम रोशन सर है। आज तो मैं केवल तुमसे उनका परिचय ही करवा रही हूँ, लेकिन कल से वह तुम्हें संगीत की शिक्षा देंगे और तुम्हें संगीत सिखाएंगे। तो बच्चो! क्या तुम लोग संगीत सिखना चाहते हो?" 

एक बार फिर सभी छात्र एक सुर में बोले, "हा हा! सीखना है।"

मैंने भी अब छात्रों को अपना परिचय देते हुए कहा, "दोस्तों! मेरा नाम रोशन है और मैं भी आप सब की तरह ही देख नहीं सकता हूं। लेकिन मैं चाहता हूं कि आप संगीत के सूरों से अपने जीवन में रोशनी भर दे। मैं आपको संगीत सिखाने आया हूं, लेकिन उससे पहले हमें एक-दूसरे को थोड़ा जानना चाहिए। आइए एक-दूसरे को जानते है। आप सभी अपने नाम मुझे बताएं।"

मेरा ऐसा कहते ही एक-एक करके सभीने अपना नाम बताया। फातिमाने मुझे बताया था की उस कक्षा में दस छात्र थे।

विद्यार्थियों से परिचय समारोह समाप्त होने के बाद मैंने कहा, "आज तो मैं केवल आपसे परिचय करने के लिए ही आया हूँ। कल से हम सब संगीत की कक्षाएँ प्रारम्भ करेंगे।"

उसके बाद मैं वहां से वापस घर आ गया। घर आकर मैंने दर्शिनी से रईश को फ़ोन जोड़ने के लिए कहा। मैं रईश से बात करना चाहता था। दर्शिनीने मुझे फ़ोन जोड़कर दिया। जैसे ही मैंने रईश की आवाज सुनी, मैंने उत्साह से कहा, "रईश! तुम्हें पता है मुझे आज नौकरी मिल गई है। मैं आज बहुत खुश हूं।"

मेरी यह बात सुनकर रईश भी बहुत खुश हुआ। वह भी बोल उठा, "वाह! रोशन! ये तो बहुत ही अच्छी बात है। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं। तुम एक दिन जरूर उन्नति करोगे। मुझे तुम पर पूरा यकीन है कि तुम एक दिन अपना नाम रोशन जरूर करोगे।"

मैंने उससे पूछा, "भाई! अब तुम बताओ की जानवरों की आँखों पर तुम्हारा रिसर्च कैसा चल रहा है?" 

रईशने कहा, "बहुत ही अच्छा चल रहा है। और हाँ! एक और अच्छी ख़बर है।" 

मैंने पूछा, "क्या?" 

रईशने कहा, "वो तो जब मैं घर वापस आऊंगा तभी सबको बताऊँगा।" 

मैं भी बोल उठा, "ओह! फिर तो हमें तब तक इंतजार करना पड़ेगा क्यों?"

रईश बोला, "तुम सबको अब ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अगले सप्ताह मेरी दो दिन की छुट्टी है इसलिए मैं अगले सप्ताह घर आ रहा हूँ।"

ये सुनकर मैं खुश होते तुरंत बोल पड़ा, "सच में..?" 

रईश बोला, "तुझे क्या लगता है के मैं झूठ बोल रहा हूँ! नहीं नही मैं सच में अगले सप्ताह घर आ रहा हूँ।" 

हमारे बीच इतनी बातचीत होने के बाद मैंने फोन रख दिया।

घर में हम सभी यह सुनकर बहुत खुश हुए कि रईश घर आ रहा है। पी.एच.डी. में दाखिला लेने के बाद रईश काफी वक्त बाद घर आनेवाला था। वह अपने रिसर्च कार्य में इतना व्यस्त रहता था कि उसे बिलकुल भी समय ही नहीं मिलता था। हम सिर्फ फोन पर ही अब उसके साथ बात कर पाते थे।

हम सब लोग उसका बड़ी बेसबरी से इंतजार कर रहे थे। तब हमें नहीं पता था कि वो यहां आकर हम सभी को एकदम ही चौंका देनेवाला था।

(क्रमश:)