हीर... - 13 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 13

अजीत एक पढ़ा लिखा संभ्रांत परिवार का लड़का था, एक ऐसे परिवार का लड़का जहां की कुछ बहुत मज़बूत सीमायें होती हैं जिन्हें लांघना तो दूर.. लांघने के बारे में सोचना तक एक गुनाह होता है। बचपन से एक अच्छे, स्वस्थ और संस्कारी माहौल में पला बढ़ा और हाई स्टैंडर्ड स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ा तीन भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटा अजीत इन सारे कुचक्रों से हमेशा बहुत दूर रहा जैसे राजीव के कुचक्रों के बारे में वो अंकिता से सुन रहा था इसलिये राजीव के बारे में सुनते सुनते उसे राजीव से जैसे घिन सी आने लगी थी और... अंकिता पर तरस!!

अजीत की नज़रों में अंकिता ने कोई गलती नहीं करी थी उसने सिर्फ राजीव से प्यार किया था और अजीत इस बात को अच्छे से समझता था कि प्यार करना तो किसी भी युग में गलत नहीं है ना!!

अंकिता के प्यार के बदले में राजीव ने उसके साथ जो किया उसके बाद अंकिता तो क्या इस दुनिया की कोई भी लड़की ऐसे लड़के के साथ वो ही करेगी जो अब अंकिता... राजीव के साथ कर रही थी!! 

अंकिता की बातें सुनते हुये उसके लिये अपने दिल में एक अलग तरह का दर्द महसूस कर रहा अजीत अपनी भावुक नजरों से उसे देख ही रहा था कि तभी अंकिता अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये बोली- ड्राइंगरूम में जाने के बाद जब हमने राजीव के खुले हुये कमरे के अंदर उसके बेड पर चारू को नेकेड लेटा हुआ देखा तो हमारा पूरा शरीर कांपने लगा, थोड़ी देर तक तो हमें समझ में ही नहीं आया कि हम सच में ये सब देख रहे हैं या हमने कोई बहुत बुरा और डरावना सपना देख लिया है!! 
    
अपनी बात कहते कहते अंकिता फिर से सुबकने लगी, उसे ऐसे कमजोर पड़ते देख अजीत ने उसे पानी पिलाया और एकटक बस उसे ही देखता रहा... 

पानी पीने के बाद अंकिता ने कहा- हम बुरी तरीके से शॉक्ड होकर वहां खड़े राजीव को एकटक बस देखे जा रहे थे, हमें विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि हमारा राजीव जो पिछले दो सालों से लगातार हमारा ध्यान रख रहा था, हमसे प्यार के वादे कर रहा था... वो राजीव हमारे साथ ऐसा कर सकता है, हम यकीन ही नहीं कर पा रहे थे,  अपनी आंखों से वो सब देखने के बाद भी हमें ऐसा लग रहा था कि काश..!! काश उस कमरे से कोई और लड़का निकलकर बाहर आ जाये और हमसे कह दे कि ये लड़की मेरी गर्लफ्रेंड है और इसके साथ जो भी कर रहा था मैं ही कर रहा था तो हम उसकी बात फौरन मान लें और राजीव को अपने गले से लगा लें लेकिन ऐसा हुआ नहीं... हमारी उम्मीदों के बिल्कुल उलट राजीव हंसते हुये अपने माथे पर हाथ मारकर बोला कि "यार तुम यहां क्यों आयीं..आने से पहले कम से कम एक फोन तो कर देतीं!!" 

हमने अपनी कांपती हुयी आवाज़ में अपने भरे हुये गले से कहा- य.. ये सब क्या है राजीव? क.. कौन है ये लड़की और ये इस हालत में तुम्हारे बिस्तर पर क्यों लेटी है? 
     हमारे सवाल का जवाब देते हुये राजीव ने बहुत कैजुअली बिल्कुल ऐसे जैसे कुछ हुआ ही ना हो वैसे हमसे कहा- अरे ये... तुम्हे बताया था ना कि कानपुर में मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त है चारू तो ये चारू है, आज एक्चुअली मेरा बर्थ डे था ना इसलिये मुझसे मिलने आयी थी.. बस!! 

राजीव ने जिस तरीके से अपनी बात कही थी उसे सुनकर हमें उस पर बहुत गुस्सा आया और हमने गुस्से में कहा- तो ये इस हालत में तुम्हारे बिस्तर पर क्या कर रही है?? 

हम अपनी बात राजीव से बोल ही रहे थे कि तभी एक बेडशीट लपेट कर चारू वहां आ गयी और हमें पीछे कि तरफ़ से हग करते हुये उसने कहा- राजीव से बहुत तारीफ सुनी थी मैंने तुम्हारी.. आज देख भी लिया!! 

"डोंट टच मी... हमसे दूर रहो!!" कहते हुये हम उस गंदी लड़की से दूर हो गये.. इसके बाद वो राजीव के पास गयी और उसकी कमर में हाथ डालते हुये बोली-हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं, हमारे बीच में कुछ भी सीक्रेट नहीं है अंकिता और ये कोई पहला मौका नहीं है जो हम इस तरीके से एक साथ हैं और हां... हमारे बीच में वैसा वाला कोई प्यार नहीं है जैसा इसका तुम्हारे साथ है, राजीव सिर्फ तुमसे प्यार करता है और तुम यहां नहीं थीं इसलिये मैं उसके बर्थ डे पर आयी थी ताकि उसे अकेला ना लगे... 
   चारू लगातार.. लगातार बेहूदा बातें किये जा रही थी और हमें वो सब कुछ जो हमने देखा वो ग्रेसफुली एक्सेप्ट करने के लिये फोर्स किये जा रही थी और राजीव... हमारा राजीव अपनी गलती मानने की बजाय उसी का साथ दिये जा रहा था...!! 
    उस दिन हमें ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनिया में हमारा कोई है ही नहीं.. हम अकेले हो गये हैं!! हम वहां से चले तो आये लेकिन जो हमने अपनी आंखों से देखा वो हमारे दिमाग में इस कदर घर कर गया था कि हम चाहकर भी वो सब भूल नहीं पा रहे थे!! 
    राजीव और हमारे रिश्ते को दो साल हो चुके थे इसलिये अक्सर हमारी बात उसके मम्मी पापा से भी हो जाती थी, हर आठ दस दिनों में या तो हम डायरेक्ट उन लोगों को कॉल कर लेते थे या फिर उन दोनों मे से किसी का कॉल हमारे पास आ जाता था इसी वजह से जब हमसे वो दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ जो राजीव ने हमें दिया था तब हमने उसकी मम्मी को कॉल कर दिया ये सोचकर कि अगर राजीव के कदम बहक गये हैं तो वो उससे बात करें और उसे समझायें लेकिन उन्होंने क्या कहा पता है अजीत!! 

अंकिता की बात ध्यान से सुन रहे अजीत ने अपना गला खखारते हुये कहा- अहम्... क्या कहा था? 

क्रमशः