हीर... - 12 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 12

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये अंकिता ने कहा- इसके बाद तीन दिनों तक यहां भुवनेश्वर में रुक कर राजीव वापस कानपुर चला गया और उसके कुछ दिनों के बाद छुट्टियां खत्म होने पर हम भी वापस दिल्ली लौट गये...
      राजीव का हमारे लिये पजेसिव एटीट्यूड जो हमें अच्छा लगता था वो अब बदलने लगा था, वो छोटी छोटी बातों पर इरिटेट हो जाता था और बार बार हंसी मजाक करते हुये आंख मारकर फ्लैट में चलने के लिये कहते हुये कह देता था "चलो वो काम पूरा कर लिया जाये जो उस दिन अधूरा रह गया था!!"
   वो जिस तरीके से हंसते हुये ये बात बोलता था... हम भी उसी तरीके से हंसते हुये उस बात को टाल देते थे लेकिन कभी भी हम उसकी किसी भी बात में फंसकर उसके फ्लैट में नहीं जाते थे और यही वजह थी कि वो छोटी छोटी बातों पर इरिटेट होने लगा था और बात बात पर झगड़ा करने लगता था लेकिन तब भी हमने उन सब बातों को अपने प्यार के ऊपर इम्पॉरटेंस नहीं दी और उसका साथ निभाते रहे...
     राजीव जानता था कि जो करने के लिये वो पिछली बार भुवनेश्वर आया था वो किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता इसीलिये सेकंड सेमेस्टर के एग्जाम के बाद की छुट्टियों के बाद वो थर्ड सेमेस्टर की छुट्टियों में यहां आया ही नहीं, उल्टा जब हमने उससे कहा कि यहां आ जाओ हमारा तुमसे मिलने का बहुत मन है तो उसने ये कहकर हमारी बात टाल दी कि "यार मम्मी पापा के साथ भी टाइम स्पैंड करना होता है वैसे भी कुछ दिनों की ही तो बात है फिर तो तुम वापस आ ही जाओगी और मैं वहां आकर करूंगा भी क्या सिर्फ साथ में घूमना ही तो है तो वो तो हम तब भी कर सकते हैं जब तुम दिल्ली आ जाओगी!!"... राजीव की ये बात हमें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी लेकिन फिर भी हमने उसे फिर यहां आने के लिये नहीं कहा.... 
     लास्ट सेमेस्टर में हम दो महीने ही दिल्ली में रुक पाये थे कि उन दिनों ही पापा को हार्ट अटैक आ गया और आनन फानन में हमें सितंबर में वापस भुवनेश्वर आना पड़ गया था, उस भारी समय में राजीव ने हमारी बहुत हेल्प करी और ट्रेन की बजाय फ्लाइट का टिकट करा के भी दिया जिसकी वजह से हम दो तीन घंटों में ही यहां आ गये थे.. 
   हम भुवनेश्वर में थे और राजीव को बहुत मिस करते थे, उसका बर्थ डे दिसंबर में होता है और तब तक पापा की तबियत भी ठीक हो गयी थी इसलिये हमने सोचा कि क्यों ना उसके बर्थ डे पर दिल्ली पंहुचकर हम उसे सरप्राइज़ ही दे दें तो वो भी खुश हो जायेगा इसलिये उससे रोज कई कई घंटे फोन पर बात होने के बाद भी हमने उसे ये बिल्कुल जाहिर नहीं होने दिया कि हम उसके बर्थ डे पर दिल्ली आ रहे हैं... 
     
अपनी बात कहते कहते अंकिता ने अजीत से कहा- अजीत आई एम सॉरी लेकिन उस दिन हम ये सोचकर कि आज राजीव का बर्थ डे है और इत्तेफ़ाक से संडे भी है तो राजीव अपने फ्लैट में ही होगा... हम उसे सरप्राइज़ देने के लिये उसके फ्लैट में चले गये थे और उस दिन हम ये मन बनाकर गये थे कि राजीव ने चूंकि हमारा इतना साथ दिया और पापा की तबियत के लिये भी रेगुलर पूछता रहा 
इसलिये अगर वो हमारे साथ कुछ करेगा त...तो इस बार हम उसे नहीं रोकेंगे क्योंकि जब हमें शादी उसी से करनी है तो फिर उसके बर्थ डे वाले दिन उसका दिल दुखाने का क्या मतलब है!! 
   ये सोचकर हम उसके फ्लैट पर गये जरूर थे लेकिन... जब हमने वहां जाकर डोरबेल बजायी और जब राजीव ने गेट खोला तो उसे देखकर हमारे होश उड़ गये...!!! 

अपनी बात कहते कहते अंकिता की आंखों में आंसू आ गये और वो सुबकने लगी... 

अंकिता को ऐसे कमजोर सा होकर सुबकते देख अजीत ने उसकी हथेली पर अपना हाथ रखते हुये बड़े प्यार से कहा- ऐसा क्या देख लिया था तुमने अंकिता? 

अंकिता अपने आंसू पोंछते हुये बोली- राजीव ने जैसे ही गेट खोला तो हमने एक्साइटेड होकर अपने साथ लाये बुके को उसकी तरफ़ बढ़ाते हुये जैसे ही उसे बर्थ डे विश किया... हमने देखा कि राजीव ने सिर्फ एक तौलिया लपेटा हुआ है बाकी उसने कुछ नहीं पहना हुआ था और वो हमें देखकर इतना जादा चौंक गया कि उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी थीं और... और उसकी चेस्ट पर, उसके होंठों पर लिपस्टिक के निशान बने हुये थे!! 
    राजीव को इस हालत में देखकर हमें गुस्सा आ गया और उसे जोर से धक्का देकर जब हम उसके फ्लैट में अंदर गये तब ड्राइंगरूम से लगे उसके कमरे के बिस्तर पर हमने देखा... एक लड़की बिल्कुल नेकेड होकर उसके बिस्तर पर लेटी हुयी थी, वो लड़की... चारू थी!! 

क्रमशः