रघु मुझे लगा नही था की तू खेल पाएगा। पर तू आज बहुत अछा खेला। परसों फिर हमारा मैच है इसलिए कल सब आराम करेंगे, पर ऐसा नहीं है की कोई मैदान मे नही आयेगा। मैदान तो सब आयेंगे पर सब बैठकर इस बारे मे बात करेंगे कि अगला मैच कैसे खेलना है ! कोई प्रैक्टिस नही करेंगे।” दिलीप ने सभी खिलाड़ियों को समझाया, उसके बाद रघु को देखते हुए बोला, “रघु...! तू और मंगल किट पहन कर आना, ज्यादा भागा दौड़ी मत करना, बस बोल टच की प्रैक्टिस करना।”
“जी भईया ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे।” रघु और मंगल ने दिलीप से कहा।
थोड़ी देर बाद वो सब गांव पहुंच गए। दिलीप ने रघु और मंगल को घर पर छोड़ा और अपने दोस्तों से मिलने के लिए चला गया। वहीं रघु जैसे ही घर पर पहुंचा तो उसने देखा की उसकी मां, जानकी चाची और शिल्पा आंगन मे बैठे हुए हैं। “वो देखो चाची, रघु आ गया।” शिल्पा ने रघु को आता देख शांतिसे कहा।
“अरे बेटा आ गया तू ! मैच का क्या हुआ? तुझे खिलाया या नही ?” शांति ने अपने बेटे रघु से पूछा।
“अरे मां हम लोग जीत गए, और आज मैं भी खेला था।” रघु ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे रघु तूने गोल मार या नही?” शिल्पा ने पूछा।
“अरे मैने गोल तो नही मारा पर मैने गोल मारने मे दिलीप भईया की मदद की।” शिल्पा रघु की बात सुनकर उसको हैरानी से देखने लगी और फिर बोली, “मदद की ! इसका क्या मतलब हुआ ?”
“अरे मैं जैसे ही खेलने के लिए मैदान मे उतरा तो बोल मेरे पास आ गई, वो बोल मैने आगे ले जाकर दिलीप भईया को दे दी और उन्होंने गोल कर दिया।” रघु ने शिल्पा को समझाते हुए कहा।
“अच्छा तो ऐसे मदद की तूने।” शिल्पा ने रघु को देखते हुए कहा।
“मां हमारा परसों भी मैच है, अगर वो मैच भी जीत गए तो मजा ही आ जायेगा।” रघु ने उत्साह भरे भाव से अपनी मां से कहा।
दिलीप की टीम ने ऐसे ही सभी मैच जीत लिए और फाइनल मैच मे पहुंच गई। गांव मे भी सबको पता चल गया था की उनके गांव की फुटबॉल टीम फाइनल मैच मे पहुंच चुकी है। गांव के बहुत से लोग अपने गांव की टीम का फाइनल मैच देखने के लिए जाने वाले थे। रघु के स्कूल के दोस्त भी मैच देखने जाने वाले थे। वो खासकर रघु का खेल देखने के लिए जाने वाले थे।
दिलीप ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को मैच से पहले अपने घर पर बुलाया। सभी वहां से एक साथ मेच खेलने जाने वाले थे। दिलीप ने सभी खिलाड़ियों को मेच के बारे मे समझाते हुए कहा– “देखो दोस्तों...! आज हम सबके लिए बहुत बड़ा दिन है, हमने इस टूर्नामेंट को जीतने के लिए बहुत मेहनत की है, और आज वो दिन आ ही गया जब हमें अपनी मेहनत का फल मिल सकता है। आज अगर हम लोग ये मैच जीत गए तो सरपंच जी ने वादा किया है की वो हमें और पूरे गांव को दावत देंगे। मुझे तुम लोगो के खेल पर कोई शक नही, पर फिर भी मैं चाहूंगा की आज तुम लोग अपना पूरा दम लगा देना। आज हमें ये मेच कैसे भी जितना होगा। मैने आज तुम सबको इसलिए यहां बुलाया है की आज मैदान पर कोई रणनीति नही बनेगी, सब कुछ हम यहीं प्लान करके चलेंगे, और हां इतने दिनो मे रघु और मंगल का भी खेल अच्छा हो गया है तो मैं चाहता हूं की आज इन दोनो को शुरू से मैच मे उतारा जाए, तुम लोगो का इस बारे मे क्या कहना है?” दिलीप का ये फैसला सबको सही लगा। सबने इस बात के लिए हां कर दी।
“चलो अब हमें चलना चाहिए, समय पर पहुंचना भी है। और हां मैं एक बात बताना तो भूल ही गया। सरपंच जी ने कहा है की अगर हम आज का मैच जीत गए तो वो हर खिलाड़ी को दो दो जोड़ कीट दिलवाएंगे।” दिलीप ने सभी खिलाड़ियों से कहा।
दिलीप की ये बात सुनते ही सभी खिलाड़ियों मे एक सा जोश भर आया। सभी अब आज के मैच के लिए तैयार दिख रहे थे। सबने अपनी अपनी मोटर साइकिल स्टार्ट की और सब मैच खेलने जाने के लिए रवाना हो गए।
कुछ ही देर बाद सभी मैदान मे पहुंच गए। वहां पहुंचकर जब उन्होंने देखा तो वहां का नजारा देखकर हैरान रह गए। रोज के मुकाबले आज बहुत ज्यादा लोग मैच देखने आए थे। इतनी भीड़ देख कर सब लोग जोश से भर गए। आज उनके पास मौका था की आज वो इस मेच को जीतकर सबको दिखा दे की वो किसी से कम नही, क्योंकि इस टूर्नामेंट से पहले के टूर्नामेंट्स मे दिलीप की टीम कभी फाइनल तक नही आ पाई। कभी क्वार्टर फाइनल मे बाहर हो जाते तो कभी सेमी फाइनल मे। पर आज उन सबके पास मौका था की वो लोग फाइनल मे जीतकर अपनी टीम और अपने गांव का नाम रोशन कर सकें।
रघु ने पहली बार किसी मैच मे इतनी भीड़ देखी थी। वो इधर उधर देख ही रहा था की उसने देखा उसके मम्मी पापा, शिल्पा और शिल्पा के मम्मी पापा भी मैच देखने आए हुए हैं। वो भागता हुआ उनके पास गया और कहा– “मम्मी... पापा... आप सब यहां कैसे? आपने तो मुझे बताया ही नहीं की आप लोग भी मेच देखने के लिए आ रहे हो।”
रघु की बात सुनकर उसकी मम्मी ने उसको मुस्कुराते हुए देखा, उसके बाद उससे कहा, “अरे बेटा तेरा फाइनल मैच है, ऐसे कैसे देखने नही आते !”
शांति ने इतना कहा ही था की शिल्पा ने बीच मे टोकते हुए कहा– “ओए रघु...! आज जीतकर ही आना, नही तो तुझे घर पर खाना नही मिलेगा।” शिल्पा ने मजाकिया अंदाज मे रघु से कहा। रघु और बाकी सब भी शिल्पा की बात सुनकर हंस पड़े। इतने मे रघु के पीछे से आवाज आई– “रघु चल, मैच शुरू होने वाला है।”
रघु ने पीछे मुड़कर देखा तो दिलीप उसको आवाज दे रहा था। “हां भईया, आ रहा हूं।” रघु ने कहा और मम्मी पापा का आशीर्वाद लेकर वहां से चला गया।
Story to be continued......