सन्यासी -- भाग - 18 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी -- भाग - 18

अब जयन्त ने सुमेर सिंह को सबक सिखाने का सोच ही लिया था और फिर वो उसके बारें में तहकीकात करने लगा,बहुत जगह पूछताछ के बाद पता चला कि सुमेर सिंह ने लखनलाल से बदला लेने के लिए वो घिनौना काम किया था,उसके लठैतों ने ही बेचारी निर्बोध फागुनी को उस दिन उसकी झोपड़ी से उठाया था,उसके बाद सुमेर सिंह ने एक मोटी रकम लेकर एक सेठ के पास फागुनी को भेज दिया था,फिर सेठ ने फागुनी की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,इसके बाद सुमेर सिंह के लठैतों ने फागुनी का खून करके उसे झाड़ियों में फेंक दिया था,जब जयन्त को ये बात पता चली तो उसका खून खौल गया.....

       और वो बिना सोचे समझे सुमेर सिंह के घर जा पहुँचा,उसके घर पहुँचते ही सुमेर सिंह के चौकीदार ने जयन्त का रास्ता रोकना चाहा लेकिन जयन्त नहीं रुका और वो सीधा सुमेर सिंह को आवाज़ देते हुए उसके घर में घुस गया,जयन्त की आवाज़ सुनकर सुमेर सिंह अपने कमरे से बाहर निकलकर आया और गरजते हुए उसने जयन्त से कहा.....

"तू....तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरे घर तक आ पहुँचा",

तब जयन्त ने सुमेर सिंह से कहा....

"हाँ! आना ही पड़ा सुमेर सिंह! तूने मुझे यहाँ आने के लिए मजबूर कर दिया,मुझे ये तो पता था कि तू एक घटिया इन्सान है लेकिन ये आज मालूम चला कि तू घटिया नहीं एक गिरा हुआ इन्सान है,जिसका कोई जमीर नहीं, जिसका कोई ईमान धरम नहीं है,तू पैंसो के लिए किसी भी हद तक जा सकता है",

"तू अपनी हदें भूल रहा है जयन्त!",सुमेर सिंह फिर से दहाड़ा...

"मुझे मेरी हदें अच्छी तरह से याद हैं,लेकिन शायद तू जुर्म करने की हदें भूल चुका है,तभी तो तू इतने कुकर्म कर रहा है",जयन्त भी चुप ना रह सका उसने जवाब देते हुए सुमेर सिंह से कहा....

"हाँ! ठीक है! मैंने किए हैं कुकर्म! लेकिन शायद आज एक कुकर्म और करना पड़ेगा,तभी मेरे कलेजे को ठण्डक पड़ेगी और वो कुकर्म है तेरी हत्या",सुमेर सिंह बोला....

"ओह...तो तू अब मेरा मुँह बंद करवाने के लिए मेरी हत्या करेगा",जयन्त बोला...

"मुझे तेरा मुँह बस बंद नहीं करवाना है,मैं तो तेरे हाथ ,पैर,मुँह आँखें सब बंद करवाना चाहता हूँ,तभी तो मुझे तुझसे छुटकारा मिलेगा",सुमेर सिंह बोला...

"तू ऐसा नहीं कर पाऐगा सुमेर सिंह! मैं लखनलाल और फागुनी को न्याय दिलवाएँ बिना नहीं मर सकता", जयन्त बोला...

"तू इस दुनिया से अभी और इसी वक्त जाऐगा,अब ऊपर जाकर ही तू लखनलाल और फागुनी को न्याय दिलवाते रहिओ,क्योंकि वे दोनों तुझे वहीं तो मिलेगें",सुमेर सिंह बोला...

"तुझे जो करना है करके देख ले,अब मैं भी देखना चाहता हूँ कि भगवान मेरे साथ है या नहीं,भगवान अगर मेरे साथ हुआ तो मैं समझूँगा कि भगवान न्याय के साथ है",जयन्त बोला....

"तू वो दिन देखने के लिए जिन्दा नहीं रहेगा",

      और ऐसा कहकर सुमेर सिंह ने अपने लठैतों को बुलाया और उन सबसे कहा कि इसे घर के कच्चे आँगन में ले जाकर तब तक इतना पीटो, जब तक कि इसका दम ना निकल जाएँ,फिर क्या था लठैतों ने सुमेर सिंह के आदेश पर उसे लाठियों से,घूसों से और लातों से पीटना शुरू कर दिया,कुछ देर तक तो जयन्त अपना बचाव करता रहा लेकिन वो भी अपना  बचाव कब तक कर पाता,आखिरकार वो कोई पहलवान तो नहीं था,था तो साधारण ही मानव इसलिए कुछ ही देर में वो लहुलूहान होकर धरती पर गिर पड़ा,जब जयन्त थक हार कर मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ा तो सुमेर सिंह उसके पास गया और उसकी नाक के पास हाथ लगाकर देखा तो उस समय जयन्त की साँसे लगभग बंद सी हो चुकी थीं.....

       फिर सुमेर सिंह ने निर्दयता की सीमा पार करते हुए अपने लठैतों से कहा....

"बहा आओ इसे गंगा मैया में और सुनो सावधानी से जाना,इसे ताँगे में लादकर ले जाओ और जो मेरे गाँव के पास से नहर होकर गुजरती है,वो सीधा गंगा मैया में जाती है,इसे उसी नहर में बहा आओ,बनारस के किसी घाट पर लेकर मत जाना इसे",

     और फिर क्या था सुमेर सिंह के लठैत जयन्त का अधमरा शरीर ताँगें में लादकर नहर की ओर पहुँचे और उन्होंने उसे उसी नहर में बहा दिया,देखते ही देखते बेचारा अचेत जयन्त उस नहर में समा गया.....

    और इधर जब जयन्त रात तक घर नहीं पहुँचा तो घर के लोग परेशान हो उठे,खासकर नलिनी,जब ये बात शिवनन्दन सिंह जी ने सुनी तो उन्होंने अपने दोनों बड़े बेटों देवराज और प्रयागराज को उसकी खोज में भेजा,लेकिन उन दोनों को जयन्त कहीं नहीं मिला,फिर उन्होंने शहर में उसकी खोजबीन शुरू कर दी लेकिन जयन्त की उन्हें कोई भी खबर नहीं मिली,फिर दूसरे दिन काँलेज में उसकी खोजबीन शुरू हुई लेकिन यहाँ भी सबको नाकामी ही हासिल हुई,अब तक ये बात वीरेन्द्र और अनुकम्पा तक भी पहुँच चुकी थी,इसलिए उन दोनों ने भी जहाँ जहाँ हो सकता उसे खोजा,लेकिन उन दोनों को भी जयन्त का कोई सुराग नहीं मिला, अब तो सब परेशान हो उठे कि आखिर जयन्त कहाँ जा सकता है,नलिनी तो ये देखकर अपने माथे पर हाथ धरकर रो रोकर ये कहने लगी....

"लगता है मेरा जयन्त हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चला गया है,वो अकसर मुझसे कहा करता था कि वो एक दिन सन्यासी बन जाऐगा"

   वो आखिर माँ थी जयन्त की,उसका बेटा लापता था इसलिए उसके मन में वही सब बातें आ रहीं थीं,जो जयन्त हमेशा उससे कहा करता था,अब जब जयन्त को लापता हुए दो दिनों से ज्यादा हो गए तो सबकी चिन्ता और भी ज्यादा बढ़ गई,इसलिए अब शिवनन्दन सिंह जी ने फैसला लिया कि वो अब जयन्त के लापता होने की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज कराऐगें,अब जयन्त के लापता होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज हो चुकी थी,इसलिए पुलिस अपने काम में लग गई,तहकीकात करने पर पता चला कि आखिरी बार जयन्त को सुमेर सिंह के घर के आस पास देखा गया था...

     जब ये बात शिवनन्दन सिंह जी को पता चली तो उनका शक़ सुमेर सिंह पर गया,लेकिन उसके खिलाफ कोई सुबूत ना होने के कारण सुमेर सिंह पर कोई कार्यवाही नहीं की सकती थी,पुलिस भी मजबूर थी....

         और उधर दूर एक गाँव में.....

एक लड़की ने अपने पिता को पुकारा....

"बाबा! देखो तो बाबू को होश आ गया है"

"क्या कहती है बिटिया! सच में बाबू को होश आ गया"

   और लड़की का बाप भागकर झोपड़ी में आया और उस बेहोश सख्श के पास आकर बोला....

"भगवान की बड़ी कृपा है जो आपको होश आ गया"

"कौन हो तुम?",उस सख्श ने लड़की के बाप से पूछा...

"जी! मैं हरदयाल और ये मेरी बेटी आँची,इसे ही उस दिन आप नदी में बेहोश मिले थे"हरदयाल बोला...

"ओह....मैं जयन्तराज हूँ,आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद मेरी जान बचाने के लिए",जयन्त बोला...

"धन्यवाद काहे का बाबूजी! अगर इन्सान ही इन्सान के काम ना सके तो फिर काहे का इन्सान", हरदयाल बोला...

     और फिर हरदयाल ने अपनी बेटी आँची से कहा....

"बिटिया! जल्दी से  गरम दूध ला बाबूजी के लिए और उसमें वो जड़ी बूटियाँ मिला देना जो वैद्य जी देकर गए थे"

"ठीक है बाबा!"

    और ऐसा कहकर आँची ने जल्दी से चूल्हा बालकर उस पर दूध चढ़ाया और जब दूध गुनगुना हो गया तो आँची उसमें जड़ी बूटियाँ डालकर जयन्त के लिए ले आई,दूध पीने के बाद जयन्त ने हरदयाल से बहुत सी बातें की....





क्रमशः....

सरोज वर्मा....