फागुन के मौसम - भाग 45 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 45

 भाग- 45

 

छुट्टी के बाद एक बार फिर वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के दफ़्तर में सब लोग पूरे उत्साह से अपने-अपने काम पर लग चुके थे।

 

चूँकि नृत्य आधारित गेम के लिए जानकी अपनी तरफ से काम पूरा कर चुकी थी और अब आगे का काम तकनीकी फील्ड से जुड़ा हुआ था जिसे तारा के मार्गदर्शन में विकास और राहुल सँभाल रहे थे तो राघव अब जानकी को फ्री देखकर उसके साथ अपनी अगली गेम की योजना डिस्कस करने लगा।

 

राघव इस नए गेम का बेसिक कांसेप्ट उन जीवों पर आधारित रखना चाहता था जिनका अस्तित्व इस दुनिया से समाप्त हो चुका है।

 

स्कूल के दिनों से ही जीव-जंतुओं के विषय में पढ़कर बोरियत महसूस करने वाली जानकी ने जब इस विषय को सुना तो उसने कहा, “सर, मुझे तो आज तक ये बात समझ में नहीं आई कि जो जानवर अब पृथ्वी पर रहे नहीं उनके विषय में पढ़ाकर टीचर्स हम ज़िंदा इंसानों पर अत्याचार क्यों करते हैं?

डायनासोर घास खाते थे या छिपकली इससे मुझे क्या?

इसलिए इस प्रोजेक्ट में मैं बस आपकी सेक्रेटरी बनकर आपके साथ रहूँगी जो बस आपके बताए हुए नोट्स लिखा करेगी और उन्हें एक फ़ाइल में सेव कर दिया करेगी, बाकी आप मुझसे किसी सुझाव की उम्मीद करेंगे तो आपको निराशा ही मिलेगी।”

 

“ठीक है, नो प्रॉब्लम। मेरा और तारा का ये फेवरेट सब्जेक्ट रहा है तो बस वो छुट्टी से वापस लौट आए तब हम ऑफ़िशियली इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू करेंगे।

तब तक मैं अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके रखता हूँ।”

 

राघव ने अभी कहा ही था कि तभी उसका मोबाइल बजा जिसकी स्क्रीन पर तारा का नाम फ़्लैश हो रहा था।

 

राघव ने जैसे ही फ़ोन उठाया, दूसरी तरफ से तारा की चहकती हुई आवाज़ आई, “क्या हो रहा है मेरे बिना?”

 

“कुछ नहीं, बस तुम्हारा इंतज़ार हो रहा है।”

 

“क्यों? जानकी भी छुट्टी पर है क्या?”

 

“तारा यार...।”

 

“क्या तारा यार? इतना ही इंतज़ार है तुम्हें मेरा तो मेरी विदाई के बाद आज तक एक फ़ोन क्यों नहीं किया तुमने मुझे?” तारा ने अब रूष्ट होकर कहा तो राघव बोला, “मुझे लगा तुम अपने ससुराल और नए जीवन में व्यस्त होगी इसलिए।”

 

“या फिर तुम्हें ये लग रहा था कि यहाँ भी कोई मेरी चाची जैसा बैठा होगा जो तुम्हारे फ़ोन करने पर मेरे कैरेक्टर को जज करने लगेगा।”

 

“तुम हमेशा मेरे दिल की बात समझ जाती हो, ये तुम्हारी सबसे अच्छी बात है।”

 

“और तुम्हारी सबसे बुरी बात ये है राघव कि मुझे समझने के बावजूद तुम ऐसी बेतुकी बातें सोच बैठते हो।”

 

“वैसे मैडम इतने दिनों तक आपने भी तो मुझे फ़ोन नहीं किया।” राघव की शिकायत पर तारा ने कहा, “मैं तो ये देख रही थी कि तुम मेरे बिना कितने दिन तक रह सकते हो।”

 

“अच्छा तो क्या देखा तुमने?”

 

“यही कि कितने निर्मोही हो तुम। दुष्ट कहीं के।”

 

“अच्छा, चलो मैं दुष्ट ही सही। अब ये सब छोड़ो और बताओ नए घर में सब कैसा चल रहा है?”

 

“बहुत ही अच्छा। नए घर में कुछ भी नया नहीं लगा मुझे ये सबसे अच्छी बात है। ऐसा लगता है जैसे ये घर भी हमेशा से मेरा ही तो था।”

 

“वाकई इससे अच्छा और क्या ही होगा। और यश कैसा है? चौबीसों घंटे तुम्हें झेल पा रहा है बेचारा या अभी से हालत पस्त हो गयी उसकी?”

 

“ऐसी कोई बात नहीं है समझे। सब तुम्हारी तरह बोर टाइप के इंसान नहीं होते जो मेरे जैसी चहकती हुई लड़की की कंपनी झेल न पाएं।”

 

“क्या कहा तुमने? मैं बोर टाइप का इंसान हूँ?”

 

“और नहीं तो क्या। ख़ैर मैं और यश कल एक सप्ताह के लिए बाली जा रहे हैं।”

 

“पता है मुझे। मैंने ही टिकट्स करवाई थीं मैडम।”

 

“अरे हाँ। मैं भूल ही गई थी। वैसे तुम कभी नहीं भूलते मेरी खुशी का ध्यान रखना।”

 

“हाँ मैं तो बोर टाइप का हूँ पर फिर भी दूसरों के एंटरटेनमेंट का ख़्याल रखना जानता हूँ।”

 

“अच्छा चलो अब मुँह मत फुलाओ समझे और कल टाइम से जानकी और हमारी नई पलटन को लेकर एयरपोर्ट आ जाना।”

 

“क्यों? जब तक मैं तुम्हारी फ्लाइट को देखकर बाय-बाय नहीं करूँगा तुम जाओगी नहीं क्या?”

 

“नहीं। चाहो तो आजमा लो। वैसे मुझसे ज़्यादा नुकसान तुम्हारा ही होगा।”

 

“हम्म... ठीक है। तुम्हारी नहीं यश की खातिर आ जाऊँगा मैं वर्ना बेचारा ख़्वामख्वाह सारी ज़िंदगी मुझे कोसेगा।”

 

“ठीक है तो अब मैं भी जो करूँगी जानकी की खातिर ही करूँगी।”

 

“मतलब?”

 

“कुछ नहीं-कुछ नहीं, मज़ाक था यार।" तारा ने अचानक फिसल गई अपनी ज़ुबान को सँभालते हुए कहा और फिर अगले दिन मिलने की बात कहकर उसने जल्दी से फ़ोन रख दिया।

 

“क्या अजीब लड़की है ये भी।” राघव ने मोबाइल को घूरते हुए कहा और फिर उसने जानकी को तारा की बात बताते हुए कहा कि वो सुबह साढ़े चार बजे लीजा और मार्क के साथ एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार रहे।

 

हामी भरते हुए जानकी ने घड़ी देखी तो अब दफ़्तर का समय खत्म होने वाला था, इसलिए वो राघव को बाय बोलकर अपने घर के लिए निकल गई।

 

अभी आसमान में अँधेरा ही था जब राघव जानकी, लीजा और मार्क के साथ एयरपोर्ट पहुँचा। यश और तारा अभी तक वहाँ नहीं आए थे।

 

अब सर्दी का मौसम ज़ोर पकड़ने लगा था इसलिए अपने-अपने हाथों में गरम चाय की प्याली थामे हुए उन सबकी नज़रें प्रवेश द्वार से अंदर आने वाले लोगों पर टिकी हुई थीं।

 

जैसे ही यश और तारा एयरपोर्ट के अंदर आते हुए दिखाई दिए राघव के साथ-साथ जानकी, लीजा और मार्क भी तेज़ी से उनकी ओर चल पड़े।

 

सबसे मिलने के बाद यश ने राघव से कहा, “तुम अपनी दोस्त के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करो, मैं हमारा सामान जमा करके और बोर्डिंग पास लेकर तुरंत आता हूँ।”

 

हामी भरते हुए राघव ने तारा की तरफ देखा जो एकटक उसे ही देख रही थी।

 

हालाँकि अभी तारा को अपने ससुराल गए हुए मात्र एक सप्ताह ही हुआ था फिर भी उसे महसूस हो रहा था जैसे वो अपने दोस्त से, अपने राघव से सदियों बाद मिल रही है।

 

उसकी आँखों की नमी राघव से छिपी नहीं रह सकी।

उसने स्नेह से तारा का हाथ थामते हुए कहा, “हमेशा मुझे रुलाने वाली ख़ुद कब से इतना रोने लगी।”

 

“तुम लड़की नहीं हो न राघव, इसलिए नहीं समझोगे।”

 

“यार एक बात बताओ सदियों से हर लड़की यही एक डायलॉग क्यों मारती है? तुम तो क्रिएटिव फील्ड से जुड़ी हो कम से कम तुम तो कुछ नई बात बोलो।” राघव ने तारा को चिढ़ाकर उसकी उदासी दूर करने की कोशिश करते हुए कहा तो उसकी पीठ पर कसकर एक मुक्का मारते हुए तारा बोली, “बस कुछ दिन और बॉस, फिर मैं तुम्हें अपनी क्रिएटिविटी दिखाऊँगी वो भी डांस फॉर्म में।”

 

तारा का संकेत जल्दी ही कत्थक आधारित लॉन्च होने वाले उनके नए गेम की तरफ था जिसे समझकर राघव बस फीकी मुस्कान देते हुए बोला, “अच्छी बात है, लखनऊ में पीए साहब को भी उस दिन का इंतज़ार है मिस क्रिएटिव इंचार्ज ऑफ वैदेही गेमिंग वर्ल्ड।”

 

सहसा उन दोनों को टोकते हुए जानकी ने कहा, “कम से कम यहाँ तो तुम लोग काम की बात मत करो।”

 

“लो ये बात वो मैडम कह रही हैं जिन्हें छुट्टी के दिन भी काम करने का शौक है।” राघव ने हँसते हुए कहा तो बाकी सबने भी खुलकर उसका साथ दिया।

 

बोर्डिंग पास लेकर वापस आने के बाद यश ने जानकी को इशारे से एक किनारे बुलाया और उससे कुछ बात करने लगा।

 

राघव ने देखा यश की बात सुनते हुए जानकी का चेहरा बहुत गंभीर हो गया था।

 

उनकी बातचीत खत्म होते-होते यश और तारा के फ्लाइट की अनाउंसमेंट हो गई।

 

उन दोनों को ‘हैप्पी जर्नी’ विश करने के बाद जब राघव, जानकी, लीजा और मार्क एयरपोर्ट से बाहर निकले तब लीजा ने जानकी से कहा, “मैं और मार्क ज़रा विश्वनाथ मंदिर की तरफ जाने की सोच रहे हैं, तुम हमारे साथ चलोगी क्या?”

 

“मैं तो सोच रही थी थोड़ी देर गंगा किनारे बैठूँ और वहाँ से उगते हुए सूरज को देखूँ।” जानकी ने कहा तो राघव बोला, “मैं भी अभी-अभी यही सोच रहा था।”

 

“ठीक है फिर, हम चलते हैं। घर पर मिलेंगे।” मार्क ने एक टैक्सी रोकते हुए कहा तो हामी भरते हुए जानकी राघव के साथ चल पड़ी।

 

केदार घाट पर ख़ामोश बैठे हुए राघव और जानकी पूर्व दिशा में धीरे-धीरे आसमान के रंग को सिंदूरी होता हुआ देख रहे थे।

इस समय इस छोटे से घाट के चारों ओर असीम शांति पसरी हुई थी और वातावरण का ये सुकून गंगा की लहरों के साथ तालमेल बिठाते हुए मानो राघव और जानकी के हृदय के कोलाहल को भी धीरे-धीरे उनसे दूर, बहुत दूर बहाकर लिए जा रहा था।

 

सहसा मौन के आवरण को तोड़ते हुए राघव ने कहा, “पता नहीं क्यों मुझे बहुत तेज़ नींद आ रही है।”

 

“तो थोड़ी देर सो जाओ न।” जानकी ने आसमान में उड़ान भरते हुए पंछियों के एक जोड़े को एकटक देखते हुए कहा।

 

“कहाँ सो जाऊँ?” राघव ने किसी मासूम बच्चे की तरह प्रश्न किया तो जानकी ने सहजता से कहा, “मेरी गोद में सिर रख लो।”

 

एक पल के लिए राघव ने अविश्वास से जानकी की तरफ देखा लेकिन जब उसे महसूस हुआ कि जानकी के शब्दों में मज़ाक नहीं था तब उसने आहिस्ते से उसकी गोद में सिर रखा और अपनी आँखें बंद कर लीं।

 

जानकी की ऊँगलियां धीरे-धीरे राघव के बालों से खेलने लगी थीं और राघव इस स्पर्श में चिरपरिचित स्नेह का अनुभव करते हुए बचे-खुचे तनाव से भी ख़ुद को पूरी तरह मुक्त होते हुए महसूस कर रहा था।

 

कुछ पल के बाद जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वो सीधे जानकी की आँखों से जा टकराईं जो उसे ही निहार रही थी।

 

अब धीरे-धीरे घाट पर लोगों का आवागमन बढ़ने लगा था, इसलिए राघव ने उठकर बैठते हुए कहा, “सॉरी मैंने तुम्हें परेशान कर दिया और थैंक्यू क्योंकि अब मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रहा हूँ। मेरी सारी थकान छूमंतर हो गई है।”

 

“हम्म... एक बात कहूँ मैं?” जानकी ने गंभीर होते हुए कहा तो राघव बोला, “दस बातें कह लो पर यूँ सीरियस मत हुआ करो। बिल्कुल अच्छी नहीं लगती तुम ऐसे।”

 

राघव के इस कॉम्प्लीमेंट पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए जानकी ने कहा, “तुम बस मुझे किसी बात के लिए सॉरी मत बोला करो क्योंकि अगर मुझे किसी चीज़ से दिक्कत होगी तो मैं तुम्हें वो करने ही नहीं दूँगी। समझ गए न?”

 

“समझ गया। वैसे अगर तुम्हें बुरा न लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ कि यश तुमसे क्या कह रहा था कि तुम एयरपोर्ट पर भी अचानक गंभीर हो गई थी?”

 

“वो यश भईया से माँ ने मेरे विवाह के लिए लड़का ढूँढ़ने की बात की है तो वो मुझसे पूछ रहे थे कि क्या मेरी ज़िंदगी में कोई है।

अगर है तो मैं उन्हें बता दूँ वरना फिर वो एक अच्छे भाई और भतीजे का फर्ज निभाते हुए मेरी माँ की इच्छा पूरी करने के लिए ख़ुद ही मेरे लिए किसी की तलाश करेंगे।”

 

“अच्छा। तो तुमने क्या कहा?”

 

अचानक जानकी के विवाह का ज़िक्र होने से अब राघव भी गंभीर हो गया था जिसे भली-भाँति महसूस करते हुए जानकी ने कहा, “मैंने बस यही कहा कि अभी मेरे ज़हन में विवाह को लेकर कोई स्पष्ट ख़्यालात नहीं हैं तो मुझे थोड़ा सा समय चाहिए।”

 

“और इस बात पर यश ने क्या कहा?”

 

“उन्होंने कहा कि वो माँ को मेरी तरफ से समझा लेंगे।”

 

“हम्म... यश सचमुच बहुत अच्छा इंसान है।”

 

“वो तो है। चलो अब घर चलें वरना फिर दफ़्तर के लिए देर हो जाएगी।”

 

“हाँ चलो।” राघव ने उठते हुए कहा तो जानकी भी उसका हाथ थामकर उठ खड़ी हुई।

 

जानकी को उसके घर छोड़ने के बाद अपने घर की तरफ बढ़ते हुए यकायक राघव को ख़्याल आया कि आज जानकी के साथ घाट पर उसने जिस लम्हे को जिया था उसके सपने तो वो न जाने कब से वैदेही के साथ देखता आया था लेकिन आज जब जानकी के सान्निध्य में उसका ये मीठा सा सपना सच हुआ तब उसके मन में किसी तरह की कोई ग्लानि नहीं थी बल्कि जानकी की गोद का कोमल स्पर्श उसके होंठों पर ही नहीं बल्कि उसकी आँखों में भी मुस्कुराहट बनकर ठहर सा गया था।

 

तभी अचानक उसके ज़हन में जानकी के विवाह वाली बात भी कौंध उठी और यकायक गहरे दर्द की अनुभूति से वो इतना बेचैन हो गया मानों उसका सिर फट जाएगा।

 

बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संयत करते हुए उसने नंदिनी जी से नींद का बहाना बनाया और अपने बिस्तर पर जाकर निढ़ाल हो गया।