फागुन के मौसम - भाग 32 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 32

सभी बड़ों के बाद जब यश, तारा, अंजली, अविनाश, राघव और जानकी खाना खाने बैठे तब बातचीत के दौरान यश ने राघव से कहा, "भाई ऐसा है कि कल सुबह ठीक ग्यारह बजे तुम दशाश्वमेध घाट पहुँच जाना।"

"क्यों? कोई ख़ास बात है क्या?"

"हाँ भाई, वहाँ जो बनारसी साड़ी की फैक्ट्री नहीं है जहाँ हाथों से साड़ियां बुनकर देते हैं एक्सक्लूसिव डिज़ाइन वाली, वहाँ तारा को विवाह और सगाई के लिए कुछ साड़ीयों का ऑर्डर देना है।"

"तो इस खरीददारी में मेरा क्या काम है यश?" राघव ने हैरत से कहा तो यश बोला, "भाई, जितने घंटे ये शॉपिंग करेगी उतने घंटे मैं अकेला बोर नहीं हो जाऊँगा?"

"हुँह बड़े आये बोर होने वाले।" तारा ने चिढ़ते हुए कहा और फिर सहसा वो जानकी से बोली, "जानकी, भैया-भाभी तो कल भाभी के मायके जा रहे हैं इसलिए तुम एक काम करना तुम मेरे साथ मार्केट चलना ताकि मुझे इन दोनों लड़कों को साड़ीयों की डिज़ाइन्स दिखाकर इन्हें बोर करने की ज़रूरत ही न पड़े।"

"ठीक है, पक्का चलूँगी। मेरा भी कब से मन था कि हाथों से साड़ी की बुनाई होते हुए देखूँ।" जानकी ने अपनी सहमति जतायी तो यश बोला, "फिर ठीक है, राघव तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लेगा और मैं तारा को साथ लेकर आ जाऊँगा।"

"पर राघव को मेरे घर का पता मालूम नहीं है।" जानकी ने जब कहा तो राघव बोला, "मैं अभी चलूँगा न तुम्हारे साथ तो पता मिल ही जायेगा मुझे।"

"अरे नहीं, तुम थक गये हो आराम करो। मैं अकेली चली जाऊँगी। कोई प्रॉब्लम नहीं है। आदत है मुझे।" जानकी ने कुछ संकोच से कहा तो तारा बोली, "डोंट वरी जानकी, राघव तुम्हारे बिखरे हुए घर को देखकर बिल्कुल नहीं हँसेगा और वैसे भी वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के हर एम्पलॉयी का ध्यान रखने की जिम्मेदारी हमारे बॉस की ही है।"

"बिल्कुल, और मैं अपनी इस जिम्मेदारी से कभी नहीं भागा हूँ।" राघव ने सहजता से कहा तो बाकी सबको भी इस बात पर हामी भरनी पड़ी।

डिनर खत्म होने के बाद जब यश और तारा अपने-अपने परिवार के साथ अपने घर के लिए निकल गये तब जानकी भी राघव के साथ अपने घर की तरफ चल पड़ी।

उसे जाते हुए देखकर नंदिनी जी मन ही मन बस यही प्रार्थना कर रही थीं कि जल्दी ही वो दिन आये जब जानकी उनकी बहू बनकर हमेशा के लिए उनके इस घर में ठहर जाये।

वहीं बार-बार पीछे मुड़कर राघव के घर को देखते हुए जानकी का मन भी बस यही चाह रहा था कि वो जल्दी से जल्दी हमेशा के लिए इस घर का हिस्सा बन जाये।

राघव जब जानकी के साथ उसकी बिल्डिंग में पहुँचा तब जानकी ने उससे कहा, "अगर तुम यहाँ तक आ ही गये हो तो मेरे साथ ऊपर फ्लैट तक भी चल सकते हो।"

"ठीक है लेकिन फिर तुम्हें मुझे चाय बनाकर पिलानी पड़ेगी।"

"बिल्कुल पिलाऊँगी, डोंट वरी।" जानकी ने आगे बढ़ते हुए कहा तो राघव भी उसके साथ चल दिया।

जानकी ने जब अपने फ्लैट का दरवाजा खोला तब राघव ने देखा उसका घर इतना भी बेतरतीब नहीं था जितना वो थोड़ी देर पहले जानकी की बात सुनने के बाद कल्पना कर रहा था।

जानकी को अहसास था कि शायद कभी राघव उसके घर आ सकता है इसलिए पहले से ही सावधानी बरतते हुए उसने यहाँ ऐसी कोई चीज़, कोई तस्वीर नहीं रखी थी जिससे राघव को उसके नृत्यांगना होने पर संदेह हो।

नृत्य अभ्यास से जुड़ी उसकी सारी चीज़ें सामने लीजा और मार्क के फ्लैट में थीं, इसलिए जानकी ने निश्चिंत होकर राघव से बैठने के लिए कहा।

राघव अभी बैठा ही था कि तभी लीजा और मार्क भी यहाँ आ गये।

राघव को हैलो बोलने के बाद मार्क ने जानकी से कहा, "तुम इतनी जल्दी कैसे आ गयी?"

"काम खत्म हो गया तो वहाँ रहकर मैं क्या करती, बताओ?"

"ये भी सही है। वैसे तुम्हारी ट्रिप कैसी रही?" लीजा ने पूछा तो जानकी ने कहा, "बहुत ही अच्छी। तुम लोग राघव के साथ बैठो मैं सबके लिए चाय बनाकर लाती हूँ। फ्रिज में दूध तो होगा न?"

"हाँ, मैंने सुबह ही लाकर रख दिया था। मुझे पता था रात में बिना दूध पिये तो तुम सो नहीं पाओगी।" मार्क ने कहा तो उसकी बात सुनकर राघव ने सहज ही अंदाज़ा लगा लिया कि जानकी का मार्क और लीजा के साथ बहुत गहरा संबंध है, तभी वो दोनों न सिर्फ पूरे अधिकार से जानकी के घर में आते हैं, उसके घर की चाभी अपने पास रखते हैं, बल्कि वो जानकी की हर छोटी से छोटी आदत से भी वाकिफ़ हैं।

जानकी जब चाय लेकर आयी तब उसका घूँट लेते हुए राघव ने कहा, "इसमें तो लौंग का स्वाद आ रहा है।"

"तुम्हें पसंद है न।" यकायक जानकी ने कहा तो राघव चौंकते हुए बोला, "तुम्हें किसने बताया?"

एक पल के लिए जानकी सकपका गयी कि अब वो इस प्रश्न का क्या उत्तर दे, तभी लीजा ने उसे हल्के से संकेत किया।

उसका संकेत समझते हुए जानकी ने कहा, "तारा ने बताया था तो मुझे याद था।"

"अच्छा। तारा ने तुम्हें और भी कुछ बताया है क्या?" राघव ने जानकी के चेहरे पर अपनी नज़रें स्थिर करते हुए पूछा तो जानकी बोली, "हाँ बस वो बता रही थी कि तुम्हें अक्सर शाम में अस्सी घाट पर बैठकर नींबू वाली चाय पीना भी बहुत अच्छा लगता है।"

"राघव, कभी तुम जानकी के हाथ की लेमन टी ट्राय करना। फिर तुम सारी दुनिया की चाय भूल जाओगे।" मार्क ने मानों लेमन टी के स्वाद को याद करते हुए कहा तो जानकी बोली, "ये क्यों नहीं कहते कि सुबह तुम्हें लेमन टी चाहिए। बना दूँगी बस समय से तुम दोनों आ जाना।"

"एडवांस में थैंक्यू मैडम।" मार्क ने मुस्कुराते हुए कहा तो राघव ने भी जानकी से कहा, "तुम्हारे चाय बनाने का भी कोई फिक्स टाइम है क्या?"

"हाँ, जानकी को ठीक आठ बजे चाय-नाश्ते की आदत है। अगर उस समय आप आ गये तो ठीक वरना बाद में ये दोबारा चाय फिर सीधे शाम में ही बनाती है।" लीजा के बताने पर राघव ने जानकी से कहा, "अगर तुम्हें दिक्कत न हो तो मैं भी सुबह आ जाऊँ? चाय-नाश्ते के बाद हम अपने बाकी बचे हुए नोट्स फ़ाइल में एड कर देंगे ताकि सोमवार को दफ़्तर में सबके साथ प्रोजेक्ट डिस्कस करने में ज़्यादा देर न हो।
और उसके बाद हम यश और तारा से मिलने निकल जायेंगे।"

"हाँ ठीक है, कोई दिक्कत नहीं है। तब तक तो मेरा अभ्यास पूरा हो जाता है।" असावधानीवश जानकी के मुँह से निकल गया तो उसकी बात को मेकअप करते हुए लीजा ने जल्दी से कहा, "जानकी का मतलब है उसका योगाभ्यास पूरा हो जाता है।"

"हाँ, मैडम रोज़ नियम से योगा करती हैं और ज़बरदस्ती हमसे भी करवाती हैं।
रविवार को भी आराम से सोने नहीं देती।" मार्क ने भी दयनीय स्वर में कहा तो राघव को लुंबिनी में सुबह-सुबह जानकी का उसे जगाना याद आ गया।

"लेकिन अगर कभी हमारी जानकी देर तक सोती रह जाये और कोई इसे उठाने चला आये तो उसे ये काट खाने को दौड़ती है।" लीजा ने जानकी को चिढ़ाते हुए कहा तो राघव को फिर आज की सुबह याद हो आयी जब वो जानकी को जगाने गया था और वो घूरती हुई आँखों से उसकी तरफ देख रही थी।

"क्या हुआ राघव, कोई परेशानी है क्या?" जानकी ने ख़्यालों में डूबे हुए राघव को आवाज़ दी तो राघव ने हड़बड़ाकर कहा, "नहीं तो। मैं सुबह आता हूँ।"

"हाँ ठीक है, गुड नाईट और थैंक्यू अपने घर पर इतना अच्छा डिनर करवाने के साथ-साथ यहाँ तक आने के लिए।" जानकी ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा तो प्रतिउत्तर में कुछ कहने की जगह राघव बस उससे हाथ मिलाकर बाहर चला गया।

लीजा और मार्क ने अब जानकी से लुंबिनी ट्रिप का वृत्तांत पूछा तो जानकी ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि अब जल्दी ही तुम दोनों राघव के सामने भी मुझे मेरे असली नाम से बुला सकोगे।"

"ओहो ये तो बढ़िया है।" लीजा ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा तो मार्क बोला, "राघव की आँखों में तो स्पष्ट रूप से दिख रहा था कि वो जानकी को पसंद करने लगा है।"

"हाँ, तभी तो उसने ख़ुद काम का बहाना बनाकर कल यहाँ आने की प्लानिंग कर ली।" लीजा ने भी कहा तो जानकी मुस्कुराते हुए बोली, "अब मैं हूँ ही इतनी अच्छी तो राघव भला मुझसे दूर कैसे रहता बताओ।"

"वाह-वाह मैडम, वो क्या कहते हैं हिंदी में अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना।" मार्क ने जानकी के गाल पर चपत लगाते हुए कहा तो जानकी के साथ-साथ लीजा भी हँस पड़ी।

इतवार की सुबह अपने नियत समय पर नृत्य अभ्यास करते हुए जानकी का मन आज इतना प्रफ्फुलित था कि उसका सकारात्मक प्रभाव उसके थिरकते हुए कदमों में भी नज़र आ रहा था।

आज बिना किसी त्रुटि के बिना रुके वो बस नृत्य करती ही जा रही थी और इस दौरान उसका खिला हुआ चेहरा देखकर लीजा और मार्क के साथ-साथ वीडियो कॉल पर उसे देख रही शारदा जी भी प्रसन्नता का अनुभव कर रही थीं।

जब जानकी का नृत्य समाप्त हुआ तब शारदा जी ने उसे अपना ध्यान रखने की हिदायत देते हुए फ़ोन रख दिया और जानकी अब बिना एक मिनट का भी ब्रेक लिए सीधे रसोई की तरफ दौड़ पड़ी।

उसने फटाफट नाश्ते में राघव की पसंदीदा बेड़मी पूड़ी के साथ आलू की सब्जी और रायते की तैयारी की, और फिर उसके आने की राह देखने लगी।

घड़ी के काँटों ने जैसे ही आठ बजने का संकेत किया वैसे ही राघव ने भी जानकी के फ्लैट की घंटी बजा दी।

उसके लिए दरवाजा खोलते हुए लीजा ने कहा, "वाह राघव, मान गये आपको। आपने एक मिनट की भी देर नहीं की।"

"लेमन टी का सवाल था न।" राघव ने हँसते हुए कहा तो लीजा भी प्रतिउत्तर में मुस्कुराते हुए उसे बैठने के लिए कहकर जानकी के पास रसोई में चल पड़ी।

जानकी ने बाहर आकर राघव को हैलो कहा तो राघव बोला, "मैंने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया न?"

"बिल्कुल भी नहीं। तुम चलकर डायनिंग टेबल पर बैठो, मैं बस अभी आती हूँ।"

हामी भरते हुए राघव उठकर डायनिंग हॉल की तरफ जा ही रहा था कि तभी एक बार फिर दरवाजे की घंटी बजी।

जानकी ने जाकर दरवाजा खोला तो मार्क ने अंदर आते हुए एक पैकेट उसे देकर कहा, "ये लो तुम्हारे राघव बाबू की पसंदीदा गरम-गरम जलेबियां।"

"मार्क...।" जानकी ने उसे आँखें दिखायीं तो मार्क ने पहले चौंकते हुए उसकी तरफ देखा और फिर उसकी नज़र वहीं खड़े राघव पर पड़ी तो उसने सहजता से उसके पास जाते हुए कहा, "चलिये राघव बाबू, अब नाश्ता किया जाये।"

जानकी और लीजा ने जब सारा नाश्ता टेबल पर लगा दिया तब राघव की प्लेट में पूड़ियां सर्व करते हुए लीजा बोली, "वैसे मानना पड़ेगा बनारस न सिर्फ संस्कृति और शिक्षा के मामले में रिच है बल्कि यहाँ के खाने की भी बात ही अनूठी है।"

"हाँ, ख़ासतौर से ये पूड़ियां, मलइयो और वो टमाटर चाट।" मार्क ने कहा तो राघव इस स्वादिष्ट नाश्ते का लुत्फ़ उठाते हुए बोला, "अगर आज शाम आप सबके पास समय हो तो मैं आपको यहाँ का बेस्ट टमाटर चाट खिलाने ले जा सकता हूँ।"

"खाने के लिए इन दोनों के पास समय ही समय है, डोंट वरी।" जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा तो लीजा बोली, "बिल्कुल, वो क्या कहते हैं भारत में जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म।"

उसके मुँह से ये कहावत सुनकर राघव भी अपनी मुस्कुराहट रोक नहीं पाया।

नाश्ते के बाद जब जानकी अपने वादे अनुसार सबके लिए लेमन टी बनाकर लायी तब उसे पीते हुए राघव ने अनुभव किया कि मार्क ने बिल्कुल सच कहा था, ऐसी बढ़िया चाय उसने आज तक कभी नहीं पी थी।

अपनी-अपनी चाय खत्म करने के बाद जब लीजा और मार्क अपने फ्लैट में चले गये तब जानकी ने राघव से उसका लैपटॉप माँगा।

राघव ने लैपटॉप ऑन करके उसकी तरफ बढ़ाया तो जानकी ने उससे डिस्कस करते हुए अपनी फ़ाइल पर तल्लीनता से काम करना शुरू कर दिया।
क्रमश: