के. कामराज ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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के. कामराज

द मैंन हू मेड टू प्राइमिनिस्टर...

बन्दा है के. कामराज। नेहरू के जमाने के कांग्रेस प्रेसिडेंट। आज जो शाह की हैसियत है ..

तब कामराज की थी।।
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मेरा मतलब यह नही कि वे तड़ीपार रहे थे। वे तो फ्रीडम फाइटर थे। सम्विधान सभा के सदस्य थे। मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री थे।

याद रहे, ये वह मद्रास था जिसमे आज का तमिलनाडु और केरल के बड़े इलाके शामिल थे। इसके सबसे सफल और कहें आखरी कांग्रेसी प्रशासक थे। उनके बाद, कांग्रेस वहां कभी सत्ता में न आ सकी।
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इंदिरा गांधी सन 59 में कांग्रेस अध्यक्ष बनी। हुआ यह कि नागपुर में सालाना अधिवेशन हुआ। वहां नेहरू मौजूद नही थे, पर इंदिरा थीं।

तो आंध्र के सीएम ने नेहरू की बेटी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया, और वे चटपट चुन ली गयी।

अभी तक, नेहरू ने बेटी को "फर्स्ट लेडी" वाली भूमिका दी थी। देश विदेश के दौरों में साथ होती, प्रधानमंत्री आवास में रुकने वाले विदेशी मेहमानों के सत्कार देखतीं।

मगर उनकी राजनीतिक भूमिका न तो कांग्रेस में थी, और न ही सरकार में। वे नेहरू के रहते वे न तो कभी सांसद हुई, न मंत्री।

और जब पार्टी अध्यक्ष बन ही गई, अगले बरस नेहरू ने रिपीट न होने दिया।
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नीलम संजीव रेड्डी अध्यक्ष हुए। फिर 1963 में नेहरू कामराज को लाये। करुणास्वामी कामराज, संगठन के चाणक्य थे।

नेहरू मंत्रिमंडल के मंत्रियों को इस्तीफा दिलाकर संगठन में लगाने वाले कामराज, संगठन के मामले में सर्वेसर्वा थे।

पर अगले ही बरस नेहरू मर गए। अब पीएम बनना चाहते थे बम्बई के घाघ नेता, वित्तमंत्री मोरारजी, सीनियर मोस्ट इन कैबिनेट...

पर कामराज नही चाहते थे।
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इंदिरा से पूछा। उन्होंने दावेदारी से मना कर दिया। फिर कामराज ने शास्त्री जी को चुना।

शास्त्री, संसदीय दल में चुनाव जीत गए, शपथ ली। पर वे कांग्रेस सर्कल में हल्के नेता थे। मोरारजी और उनके गुट के सामने टिकना कठिन था।

तो कैबिनेट में काउंटर वजन के लिए, कामराज नेहरू की बेटी को सरकार में लाये। मंत्री बना दिया।

ये 1964 था। इंदिरा सन्सद की सदस्य नही थी, तो कामराज ने राज्यसभा से भेजा।
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पर दो साल में शास्त्री भी काल कवलित हो गए। फिर से संसदीय दल में चुनाव होना था। अबकी बार मोरारजी, पूरी तय्यारी में थे।

कामराज ने नेहरु की बेटी को फिर आगे किया। इंदिरा तब गूंगी गुड़िया कहलाती थी। कामराज ने हर प्रपंच किया।

और जिता दिया इंदिरा को।
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दरअसल कामराज जानते थे कि वह स्वयं पीएम बन नही सकते। उनको अपना पिट्ठू पीएम चाहिए था।

जानबूझकर पहले शास्त्री और फिर इंदिरा को चुना, जिन दोनो की हैसियत पार्टी में खास नही थी।

अब ये आगे का अलग ही इतिहास है कि इंदिरा उनका पिंजरा तोड़ निकली। पार्टी का विभाजन किया। कामराज वाला धड़ा, कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) के नाम से लड़ा।

इंदिरा ने कांग्रेस (आई) के नाम से... और जीतकर सरकार बनाई। फिर 1971 का युद्ध जीता, दुर्गा हो गई। कामराज और साथी इतिहास के कूड़ेदान में चले गए।
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मुद्दा ये, की नेहरू ने जीते जी कभी इंदिरा को सांसद मंत्री नही बनाया। न ही उत्तराधिकारी घोषित किया।

वह बाप के लिए पीए का काम जरूर करती थी। बूढ़े बाप को विधवा बेटी का इतना स्पोर्ट जायज है। पर नेहरू पर वंशवाद का आरोप बेबुनियाद है।

यह जानकारी व्हाट्सप मेसेज और मोदी के भाषणों से ज्ञान लेने गधो को समर्पित है। गूंगे कांग्रेसी भी अपनी हिस्ट्री जानें, और जवाब दिया करें।
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हां, इन्दिरा को परिवारवाद का दोषी अवश्य कहें। कोई एतराज नही।

बारी बारी दोनो बेटों को सांसद बनाया और उन्हें प्रिंस का ट्रीटमेंट मिलने लगा। लेकिन यह भी याद रहे कि उन्होंने राजीव को संगठन का काम दिया था।

मंत्री नही बनाया, और न अपने बाद पीएम का पद वसीयत में लिख दिया।
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इंदिरा की मौत बाद, राजीव को चटपट शपथ दिलाने वाले, ज्ञानी जैल सिंह थे।

कोंग्रेस को सेलेबल नाम चाहिए। वह गांधी परिवार है। ऐसे मोदी मोदी के व्यक्तिगत नारे लगाने वालों को, गांधी नाम के नारों पर एतराज करने का हक नही है।
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बात कामराज की थी। राजनीति में जो जीतता है, सिकन्दर होता है। पर जिसका जो अवदान है, वह भी याद किया जाना चाहिए।

तो आज आप स्कूलों में बच्चो को मध्यान्ह भोजन करते देखें, तो कामराज को जरूर याद करें।

तमिलनाडु के गाँव गाँव मे स्कूल और मध्यान्ह भोजन ने शिक्षा की जो अलख जगाई, उसने 30 साल बाद इस राज्य को भारत का लीडिंग स्टेट बना दिया।

प्रशंसा उनके बाद आई सरकारों की भी, जिसने इसे मुफ्तखोरी, रेवड़ी कहकर बच्चो के मुंह से निवाला नही छीना।

भरे पेट औऱ सक्रिय शिक्षा से कोई राज्य कैसा बन सकता है, वह राह कामराज ने दिखाई।

किसी चैनल पर कामराज पर से कोई वेब सीरिज आयी है। खोजें, देखे।

और बंदे को सलाम कहें।