सुव्यवस्था कैसे होगी। Ranjeev Kumar Jha द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सुव्यवस्था कैसे होगी।




मैं आपको एक छोटी - सी दुर्घटना बताता हूं । जिससे आपको अपनी देश की व्यवस्था और यहां की जनता की मानसिकता का सही पता चलेगा । वैसे यदि आजतक आप में से किसी को , इस देश में कही पर भी , कोई सुव्यवस्था नाम की चीज दिखाई दी हो , तो मुझे जरूर खबर कीजिएगा ।
आप पुछिएगा-" क्यों ? "
तो जनाब , मुझे एक अरसे से इसकी तलाश है।
मैं आजतक जहां - जहां भी गया हूं । सर्वत्र कुव्यवस्था का ही राज मिला है । सुव्यवस्था तो इस धरती से लुप्त हो गये कुछ जंगली जीवों के तरह , इस देश से कब का लुप्त हो चुका है ।
बस में , ट्रेन में , गली और मुहल्लों में , हाट में , बाजार में , शहर और गांव में , यहां तक कि ग्रामपंचायत से लेकर संसद तक में भी सर्वव्यापी कुव्यवस्था का राज देखने को मिलता है ।
सुव्यवस्था तो देखने को तरस गया हूं मैं । तो जनाब , अब तो आप समझ गए होंगे कि इस सुव्यस्था नाम की चीज की तलाश मुझे क्यो है।
मुझे लगता है , आप बोर हो रहे हैं । मन ही मन मुझे कोस रहे हैं । सोच रहे हैं , आज किस सरफिरे कलमकार से पाला पड़ा,तो लीजिए जनाब , मैं आपको वह दुर्घटना सुना ही देता हूं।
सुबह के आठ बजे का समय था । बस स्टेन्ड में यत्र - तत्र सर्वत्र अव्यवस्थित बसें खड़ी थी ।
उधर से एक मोटर साईकिल सवार काफी तेज गति से आ रहा था , और इधर से एक साईकिल सवार भी तेज गति से ही जा रहा था।दोनो तरफ बसें खड़ी थी । बीच की पतली गलीनुमा जगह पर आकर दोनो घबड़ा गये , और ब्रेक लेते - लेते भी टकरा गये । वैसे टक्कर मामूली ही थी । पर यदि बसें सुव्यवस्थित ढंग से खड़ी रहती तो दोनो अपने साईड से निकल जाते और दुर्घटना नहीं होती ।
तो जनाब , टक्कर होते ही वहां लोगो की भीड़ जुट गई । आनन - फनन में लोगो ने सवार और सवारी दोनो को उठाकर खड़ा कर दिया । दोनो कपड़े के धूल झाड़ते हुए अपने रास्ते चले गये।
अब लगी लोगो में बहस होने । वैसे भी हमारे देश में बहस टाईम पास का सबसे बड़ा साधन है । एक ने कहा - “ सारी गलती इन प्राईवेट बस वालो की है । ये थोडा पीछे लेकर बसें खड़ी नहीं कर सकते हैं क्या ? ऐसे में तो कभी भी बड़ी दुर्घटना घट सकती हैं । "
दूसरे ने कहा - "राज्य परिवहन निगम वाले भी कम नही हैं । ये भी इधर ही घुसेड़ कर खड़ी करते हैं । "
तीसरा - " लेकिन ये ट्रेफिक पुलिस वाले क्या करते हैं ? इन्हें बस स्टेन्ड की अव्यवस्था नहीं दिखती है क्या । "
चौथा - " अरे भईया , वो तो पेसे लेकर खाली तमाश देखते है । "
पांचवा - "तो उनके बड़े अफसरों से शिकायत करो । वे नही सुनते हैं , तो नगर पालिका सी. एम .ओ .और अध्यक्ष को भी आवेदन दो । " छठा - " अरे यार , हर जगह शिकायत कर - करके थक गये हैं । किसी के कानो में जूं तक नही रेंगता है । "
सातवां - " तो अखबार में दो , जब खबर बनेगी , तभी इनके होश ठिकाने आएंगे ।" आठवां -" कितनी बार तो अखबार में छप गई। कुछ नहीं होता इन सब से ।"
नौवां - "तो कोर्ट में जाओ । आजकल बिना कोर्ट के दखल से कोई काम सही नही होता है" दसवां - " अरे भाई , सिर्फ करो - करो से कुछ नही होगा । करना पड़ेगा । आज ही दस - बीस दुकानदार मिलकर ट्रेफिक पुलिस अधिकारी के पास और नगरपालिका में लिखित शिकायत करते हैं । वहां से कार्रवाई नही होने पर बाद में कोर्ट भी जाएंगे ।"
एक बुजुर्ग - " अरे , क्यों तुमलोग बेकार में बहस कर रहे हो । जाओ - जाओ , अपना काम देखो । घटना - दुर्घटना तो भगवान के हाथों में है । तुमलोग लाख व्यवस्था सुधारोगे , जो होना होगा , वह तो होगा ही । उसे नहीं रोक सकते हो तुम । होनी तो होके रहे , अनहोनी न होय । जाको राखे सांईया , मार सके न कोय । "
बुजुर्ग ने दार्शनिक अंदाज में कहा ।
इसके बाद जनसमूह में बहस बंद हो गया । धीरे - धीरे भीड़ भी छंट गई । लोग अपने - अपने काम में लग गये और भूल गये बस स्टेन्ड की अव्यवस्था को ।

सुव्यवस्था कैसे होगी ।