प्यार हुआ चुपके से - भाग 28 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 28

अरूण की बातें सुनकर उनका एक आदमी आगे आया और बोला- पर बॉस ये कैसे हो सकता है? हमने तो अपना काम बहुत अच्छे से किया था। उस रात हमने शिव और शक्ति दोनो को ख़त्म करने की पूरी प्लानिंग की थी, पर वो शक्ति की किस्मत अच्छी थी, जो वो उस रात शिव को बचाने के लिए आगे नही आया। वर्ना वो भी फिसलकर नदी में जा गिरता और वो लड़की....उसे तो खुद हमने अपनी आंखों से उस नदी में गिरते देखा था। जितनी ऊंचाई से वो गिरी थी। उसके बचने की कोई गुजाइश ही नही है।

उसके इतना कहते ही अरूण ने खींचकर उसके गाल पर थप्पड़ मारा और बोले- तुम्हें मेरी बात लगता है ठीक से समझ नही आई। शिव ज़िंदा है और अभी-अभी मैं उससे मिलकर आ रहा हूं। उससे बातें करके आ रहा हूं। उसने ही मुझे बताया है कि रति भी ज़िंदा है।

उनके सारे आदमी फिर से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। अरूण ने उनमें से एक की कॉलर पकड़ी और बोले- रति इस वक्त ओंकारेश्वर में है, ढूंढो उसे....वो किसी भी हालत में शिव तक नही पहुंचनी चाहिए। जाओ ढूंढो उसे,

उनके सारे आदमी तुरंत वहां से चले गए। उनके जाते ही अरूण का एक खास आदमी राजा उनके पास आया और उनकी बांह को छूकर बोला- बॉस, आप थोड़ा शांत हो जाइए। पिछली बार बच गए दोनों तो क्या हुआ, इस बार नही बचेंगे। आप मुझे बताइए? कहां है वो शिव कपूर? मैं आज रात ही उसका काम तमाम कर देता हूं।

अरूण वहीं रखी एक कुर्सी पर बैठे और बोले- नही राजा.... अब उसे मारने की कोई ज़रूरत नही है। तुम सिर्फ रति को ढूंढो और जैसे ही मिले खत्म कर दो उसे क्योंकि मुझे मेरे दोस्त का दुश्मन बनाने वाली वहीं लड़की है। उसने ही मेरी बेटी से उसकी खुशियां छीनी है। शिव और शक्ति दोनो ही उस लड़की के मजनू बने घूम रहे थे और दोनों को ही मेरी बेटी कभी नज़र आई ही नहीं....एक ने दोस्ती के नाम पर उसका इस्तेमाल किया, तो दूसरा खुद को कामयाब करने के लिए उसका इस्तेमाल करना चाहता है।

"मैं कुछ समझा नहीं बॉस"- तभी राजा बोला। अरूण उसे घूरते हुए बोले- तुम्हें समझने की ज़रूरत भी नही है। तुम जाओ और रति को तलाशों और इस बार मुझे खुद अपनी आंखों से उसकी लाश देखनी है। जाओ।

राजा ने सिर हिलाया, और वहां से चला गया। उसके जाते ही अरूण ने अपनी सिगरेट जलाई और उसे फूंकते हुए बोले- अब मैं तुम्हारी जान नही लूंगा शिव क्योंकि तुम मेरी बेटी की खुशी हो इसलिये अब तुम्हें उससे शादी करनी होगी और इस बार मैं तुम्हें शादी का मंडप छोड़कर भागने नही दूंगा क्योंकि इस बार में तुम्हारे भागने की वजह को ही हमेशा के लिए खत्म कर दूंगा। तुम्हें चौबीस घंटे दिए है मैंने और इन चौबीस घंटो में मुझे तुमसे पहले रति तक पहुंचना होगा।

इस बार मैं उस लड़की को अपने बरसों पुराने सपने को तोड़ने नही दूंगा। एक बार मेरी बेटी कपूर खानदान की बहू बन जाए। उसके बाद कपूर ग्रुप ऑफ कंपनी पर सिर्फ और सिर्फ मेरा राज होगा, सिर्फ मेरा,

दूसरी ओर शिव अजय की फैमिली के साथ डिनर कर रहा था, पर उसके चेहरे की परेशानी छिपाए नही छिप रही थी, इसलिए वो खामोशी से खाना खा रहा था। उसे ऐसे देखकर अजय ने प्रिया को इशारा किया, तो प्रिया शिव की ओर देखकर बोली- वैसे शिव भईया आपको नही लगता कि आप और अजय भईया अगर साथ में खड़े हो जाए, तो सगे भाई लगेंगे।

उसके इतना कहते ही शिव के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। वो प्रिया की ओर देखकर बोला- सगे भाई नही हुए तो क्या हुआ प्रिया, दोस्त तो है और दोस्त तो भाई से भी बढ़कर होते है। कभी-कभी सगा भाई दगा दे देता है पर दोस्त....वो अपनी दोस्ती ज़रूर निभाता है। जैसे तुम्हारे भईया निभा रहे है इसलिए तो मुझे अपने घर ले आए।

"बेटा तुम इसे अपने दोस्त का नही, बल्कि अपना खुद का ही घर समझो। जब तक तुम्हारा दिल करे, तुम यहां रह सकते हो। यकीन मानो, तुम्हारे यहां आने से मुझे ऐसा लग रहा है। जैसे मेरा कोई अपना मेरे पास लौट आया है"- सुमित्रा की बातें सुनकर शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

सुमित्रा उसके सिर पर हाथ फेरकर बोली- और तुम फिक्र मत करो, इस मुश्किल घड़ी में हम तुम्हारे साथ है और भोलेनाथ तो है ही। तुम देखना, अगले चौबीस घंटो में तुम्हे तुम्हारी पत्नी भी मिल जायेगी और इस मुश्किल से बाहर आने का कोई ना कोई रास्ता भी मिल जायेगा।

"हां आंटी, ज़रूर मिल जाएगा। आपकी तरह मुझे भी महादेव पर पूरा भरोसा है"- शिव बोला। अजय और बाकी सब भी मुस्कुरा दिए। दूसरी ओर शक्ति अपने कमरे में परेशान खड़ा बाहर हो रही बारिश देख रहा था। वो मन ही मन बोला- अगर अंकल नही माने, तो मेरा एमडी बनना मुश्किल हो जाएगा। मुझे कुछ भी करके, गौरी को खुद से शादी करने के लिए मनाना होगा वर्ना मेरा तो सारा खेल ही बिगड़ जाएगा।

तभी उसे अपने कमरे से बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। वो तेज़ी से अपने कमरे से बाहर आया, तो उसके घर के सारे सदस्य किरन के कमरे की ओर दौड़ रहे थे।

"मां"- इतना कहकर वो भी अपनी मां के कमरे की ओर दौड़ पड़ा। वो उनके कमरे में आया, तो उसकी मां बेहोश बेड पर पड़ी हुई थी और उसके पापा उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रहे थे। शक्ति तेज़ी से उनके पास आया और उनके सिरहाने बैठकर बोला- मां, क्या हुआ आपको??

"पता नही शक्ति जब मैं कमरे में आया, तो तुम्हारी मां शिव की तस्वीर हाथों में लिए फर्श पर बेहोश पड़ी थी"- तभी उसके पापा बोले। शक्ति परेशान होकर नौकर पर चीखा- यहां क्यों खड़े हो सब मेला लगाकर? जाकर डॉक्टर को फोन करो। वही किरन के पास बैठी तुलसी तुरंत बोली- डॉक्टर को फोन कर दिया है, तुम जाकर देखो कि एबुलेंस आई या नही....

उनके इतना कहते ही शक्ति ने सिर हिलाया और उठकर जाने लगा। तभी एक नौकर दौड़ते हुए वहां आकर बोला- साहब एंबुलेंस आ गई है। चलिए,

शक्ति ने तुरंत अपनी मां को अपनी बांहों में उठाया और दौड़ पड़ा। दूसरी ओर शिव अपने कमरे में परेशान टहल रहा था। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें। वो कुछ देर टहलता रहा और फिर बेड पर बैठकर मन ही मन बोला- मुझे कुछ तो करना होगा। अंकल को कैसे भी करके शेयर्स देने के लिए मनाना होगा मुझे। क्योंकि सिर्फ चौबीस घंटो में इतने बड़े शहर में रति को ढूंढना बहुत मुश्किल है,

अपने ज़िंदा होने की खबर फिलहाल अखबार में छपवा भी तो नही सकता। ऐसा करने से शक्ति अलर्ट हो जाएगा और वैसे भी मैं इस सच से मुंह नही मोड़ सकता कि वो शेयर्स गौरी के है, उसका हक़ हैवो शेयर्स...पहले ही उसे बहुत चोट पहुंचा चुका हूं। अब उसे और दर्द भी तो नही दे सकता। शक्ति के साथ वो कभी खुश नही रहेगी, क्योंकि शक्ति उसके लायक नही है और वो उससे ये शादी सिर्फ और सिर्फ उसके शेयर्स हासिल करने के लिए ही कर रहा होगा।

क्या करूं? कुछ समझ नही आ रहा है? एक तरफ मेरी बचपन की दोस्त की ज़िंदगी मेरी वजह से दांव पर लगने जा रही है और दूसरी ओर मेरी बीवी ज़िंदा होकर भी खुद को मार रही है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे लगता है कि मैं अब इस दुनिया में नही रहा। समझ नही आ रहा कि कैसे इन दोनों को शक्ति के घटिया इरादों से बचाऊं? कहां ढूंढूं रति को?

एक और बात मुझे रात-दिन परेशान कर रही है। रति ज़िंदा होकर भी अपने अपनों के पास क्यों नही लौटी? ज़रूर कोई ऐसी बात है, जिसकी वजह से रति अपने मां-पापा से भी नही मिली। उसने उन्हें भी नही बताया कि वो ज़िंदा है। क्यों भाग रही है वो सबसे? क्या हुआ है मेरे पीछे??

कितने सारे सवाल है पर एक का भी जवाब नही है। जब तक रति मुझे मिल नही जाती, ये सवाल यू ही मुझे परेशान करते रहेंगे। अंकल ने सिर्फ चौबीस घंटे दिए है मुझे। अगर इन चौबीस घंटों में मुझे रति नही मिली, तो वो ये शेयर्स शक्ति के नाम कर देंगे।

शिव सारी रात अपनी परेशानी से बाहर आने का रास्ता खोजता रहा। यही सब सोचते हुए उसकी आंख कब लग गई, उसे पता भी नही चला। अगली सुबह रति ऑफिस जाने से पहले मन्दिर पहुंची और भगवान के सामने हाथ जोड़कर बोली- शिव जहां भी है महादेव उनकी रक्षा कीजिएगा। उनका साथ कभी मत छोड़िएगा और जब तक वो लौट नही आते, मुझे हिम्मत दीजियेगा कि मैं उनकी इस अमानत को संभालकर रख सकूं। उसे कुछ ना होने दूं।

इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए दीनानाथजी के पास आई और बोली- बाबा पास वाली काकी ने एक मिस्त्री के बारे में बताया था, तो मैंने उन्हें उसे बुलाने के लिए कह दिया है। आप जल्दी से नई चद्दर ले आइए, वो आकर अपना काम शुरु कर देगा। अभी मौसम भी साफ है, अभी काम शुरू करेंगे तो शाम तक हो भी जाएगा, फिर मैं ऑफिस से आकर घर की साफ सफाई कर दूंगी।

दीनानाथजी ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखा और बोले- ठीक है बेटा मैं सारा काम करवा लूंगा। तू फिक्र मत कर.... तू अपने दफ्तर जा और वक्त पर खाना खा लेना, अपने काम में ही मत लगी रहना। रति ने आहिस्ता से अपना सिर हिलाया और उनके पैर छूकर दौड़ती हुई वहां से चली गई।

उसके जाते ही एक जीप मंदिर के बाहर आकर रूकी, जिसमें से से तीन-चार आदमी बाहर आए। उन्हें देखकर ही लग रहा था कि वो गुंडे है। वो तेज़ी से मन्दिर की सीढियां चढ़ने लगे। तभी एक भक्त को प्रसाद दे रहे दीनानाथजी की नज़र उन पर पड़ी। उन्हें उनमें से एक के हाथ में गन दिखाई दी। दीनानाथजी उसे देखकर सोच में पड़ गए। तभी उनमें से एक गुंडा उनके पास आया और उसने उन्हें रति की तस्वीर दिखाते हुए पूछा- इस लड़की को कहीं देखा है?

रति की तस्वीर देखकर दीनानाथजी की आँखें खुली की खुली रह गई। वो मन ही मन बोले- ये तो काजल बिटिया की तस्वीर है, पर ये लोग कौन है? उन्होंने नज़रें उठाकर उस गुंडे की ओर देखा, तो उसने अकड़कर पूछा- कुछ पूछ रहा हूं? इस लड़की को कहीं देखा है। रति नाम है इसका.... रति शिव कपूर,

दीनानाथजी उसे रति के बारे में बताने ही जा रहे थे। कि तभी उनकी नज़र उसके साथ वाले गुंडे पर पड़ी, जिसके हाथ में अभी भी गन थी। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि ये लोग ठीक नहीं है। तभी वो गुंडा उन पर भड़का- बेहरे हो या अंधे हो? इस तस्वीर में जो लड़की है, वो दिखाई दे रही है या नही? देखा है इस लड़की को कहीं?

"नही मैनें नही देखा"- दीनानाथजी ने इतना कहकर वो तस्वीर जान-बूझकर अपनी पकड़ी थाली में जल रहे दिए के आगे कर दी, जिससे वो तस्वीर जलने लगी। वो गुंडा तुंरत उस तस्वीर को जलने से बचाने लगा और चीखा- ये क्या किया तुमने? एक ही तस्वीर थी हमारे पास,

"माफ करना बेटा, थोड़ा कम नज़र आता है मुझे। इसलिए ठीक से दिखाई नही दिया"- दीनानाथजी नम्रता से बोले। उस आदमी को उन पर बहुत गुस्सा आया पर वो मन्दिर में खड़ा था, इसलिए वो चाहकर भी कुछ नही कर सका।

"सारी तस्वीर जला दी। चेहरा तो नज़र ही नही आ रहा है"- इतना कहकर वो गुंडा दीनानाथजी को घूरता हुआ वहां से चला गया। उसके जाते ही उन्होंने सुकून की सांस ली और आरती की थाली मन्दिर में रखकर सीढ़ियों की ओर दौड़े। उन्होंने मन्दिर के बाहर जितनी भी दुकाने लगी थी। वहां जाकर उन्होंने सबसे, रति के बारे में किसी को कुछ ना बताने के लिए कह दिया। और फिर भागे-भागे अपने घर पहुंचे। उन्होंने एक कील पर टंगा अपना झोला उठाया और अपनी पत्नी से बोले- मैं घाट पर जाकर आता हूं।

कपड़े धो रही लक्ष्मी ने उठकर तुरंत अपने हाथ पौछे और बोली- इस वक्त घाट पर किसी का कोई संस्कार करवाने जा रहे है? दीनानाथजी तुरंत उसके पास आए और बोले- नही, घाट पर सबको बताने जा रहा हूं कि अगर कोई काजल बिटिया के बारे में पूछताछ करने आए, तो वो किसी को कुछ ना बताए और ये तो हरगिज़ ना बताए कि बिटिया हमें नदी में बहती हुई मिली थी।

"क्यों क्या हुआ जी?"- लक्ष्मी ने परेशान होकर पूछा। दीनानाथजी ने जवाब दिया- आज मन्दिर में कुछ लोग बिटिया की फोटो लिए उसके बारे में पूछताछ कर रहे थे। सब चेहरे और पहनावे से गुंडे लग रहे थे। ज़रूर ये वही लोग है, जिनकी वजह से बिटिया नदी में गिरी थीं। ज़रूर उसके जेठ को ये पता चल गया होगा कि बिटिया ज़िंदा है इसलिए वो बिटिया और उसके होने वाले बच्चे को मारने आया होगा।

"हे भगवान अब क्या करेंगे? काजल बिटिया तो दफ़्तर गई हुई है। कहीं वो लोग उसे ढूंढते हुए वहां पहुंच गए या हमारे मौहल्ले में किसी ने उसके बारे में उन्हें कुछ बता दिया तो?"- लक्ष्मी घबराते हुए बोली। दीनानाथजी की परेशानी और बढ़ गई। वो तुरंत बोले- मौहल्ले वाले कुछ नही बताऐंगे क्योंकि उन्हें तो यही पता है कि काजल बिटिया मेरी भतीजी है और गांव से आई है। तुम बस घर पर रहना और कही जाना मत..... मैं घाट से सीधे बिटिया के दफ़्तर जाता हूं और उसे घर लेकर आता हूं। अगले कुछ दिन हम उसे दफ्तर नही जाने देंगे।

इतना कहकर दीनानाथजी वहां से चले गए। लक्ष्मी भी बहुत परेशान हो गई। वो अपने हाथ जोड़कर बोली- हे भगवान, काजल बिटिया की रक्षा करना। दूसरी ओर अजय ने भी अपनी गाड़ी उसी मन्दिर के बाहर रोकी, तो शिव तेज़ी से गाड़ी से बाहर आया।

"शिव हम ओंकारेश्वर के ज़्यादातर शिव मन्दिरो में उनके बारे में पता कर चुके है। सुबह चार बजे से उनके बारे में पूछताछ कर रहे है, पर इस एरिया मैं एक यही मन्दिर है और इस मंदिर के पुजारी को मैं बचपन से जानता हूं। अगर आपकी पत्नी यहां आती होगी, तो उनके बारे में कुछ ना कुछ तो पता चल ही जाएगा"- अजय शिव के साथ मन्दिर की सीढ़ियों की ओर बढ़ते हुए बोला।

"रति को ढूंढने का यही सबसे अच्छा तरीका है अजय, क्योंकि वो शिवजी को बहुत मानती है। बिना उनके दर्शन किए उसकी सुबह नही होती है। अगर वो यहां है, तो किसी ना किसी शिव मन्दिर में ज़रूर जाती होगी,"

शिव इतना कहकर मन्दिर में आकर पुजारी को तलाशने लगा, पर उसे मन्दिर में पुजारी नज़र नही आए। अजय ने वही खेल रहे एक बच्चे को इशारा करके बुलाया और पूछा- पंडितजी कहां है?

बच्चे ने तुरंत जवाब दिया- बाबा तो अभी थोड़ी देर पहले ही घर के लिए निकले है। इतना कहकर वो फिर से खेलने लगा। अजय के पास रति की कोई तस्वीर नही थी इसलिए वो उसका हुलिया बताकर उसके बारे में पूछताछ करने लगा। अजय ने भी वहां मौजूद लोगों से पूछा पर किसी ने रति के बारे में कुछ नही बताया।

वो शिव के पास आकर बोला- शिव अगर आप नाराज़ ना हो, तो आपसे एक सवाल करूं? शिव मन्दिर में नज़रे दौड़ाते हुए बोला- अगर तुम ये पूछने वाले हो अजय कि क्या मैनें सच में रति को ही देखा था, तो मैं तुम्हें क्लियर कर दूं कि मैंने उसे ही देखा था। मुझसे उसे पहचानने में कभी कोई गलती नही हो सकती।

अजय ने उससे कुछ नही पूछा, क्योंकि वो यही पूछने वाला था। शिव ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- यहां आसपास जो भी दुकानें है, जहां पूजापाठ का सामान मिलता है। वहां पूछते है, शायद कुछ पता चल जाए। अजय ने सिर हिलाया, तो शिव दौड़ते हुए वहां से चला गया। उसने वहां की बहुत सी दुकानों पर पता किया, पर किसी ने उसे कुछ नही बताया। वहां सब उसे अजीब सी नज़रों से देख रहे थे।

लेखिका
कविता वर्मा।