प्यार हुआ चुपके से - भाग 26 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 26

शिव को देखकर अरूण अभी भी बुत बने खड़े थे। उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था, कि शिव उनके सामने खड़ा है। शिव उनके पास आया, तो वो बिना कुछ कहे उसे एकटक देखने लगे, पर फिर उन्होंने अपना हाथ बढ़ाकर, शिव के चेहरे को छुआ। उसे छूते ही उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया।

शिव के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई। अरूण ने उसकी ओर देखा और बोले - मुझे तो मेरी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा है शिव, कि तुम मेरी आंखों के सामने सही-सलामत खड़े हो। शिव ने मुस्कुराते हुए उनके हाथ को पकड़ा और बोला- जिस के सिर पर महाकाल का हाथ हो अंकल, क्या काल उसका कुछ बिगाड़ सकता है, जो मुझे कुछ हो जाता?

अरूण ने ये सुनकर फिर से उसे गले लगा लिया। ये सब देखकर अजय चुपचाप खड़ा मुस्कुरा रहा था। अरूण ने शिव की ओर देखा और हैरानी से पूछा- शिव अगर तुम ज़िंदा थे, तो फिर लौटकर घर क्यों नही आए? और थे कहां तुम इतने दिन? तुम्हें पता भी है, कि तुम्हारे पीछे क्या कुछ हो चुका है तुम्हारे घर में?

"सब जानता हूं मैं अंकल, सब जानता हूं इसलिए तो अजय की मदद से आपको यहां बुलाया है मैनें"- शिव के इतना कहते ही अरूण उसे एकटक देखने लगे। शिव उनकी बांह को छूकर बोला- आप आइए मेरे साथ, मैं आपको सब कुछ बताता हूं।

तीनों अजय के कैबिन में पहुंचे, तो अजय बोला- आप लोग बातें कीजिए, मैं थोड़ी देर में आता हूं। इतना कहकर वो वहां से चला गया। उसके जाते ही अरुण ने शिव से पूछा- शिव मुझसे अब और रुका नही जा रहा है। प्लीज़ बताओ कि आखिर उस रात हुआ क्या था? तुम अगर ज़िंदा हो तो वो लाश किसकी थी?

शिव ने खुद को संभाला और बोला- मुझे नही पता अंकल कि वो लाश किसकी थी और मुझे ये भी नही पता कि मेरी जान कैसे बची? पिछले दो महीने से मैं कोमा में था। जब होश आया, तो मैनें खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। डॉक्टर और पुलिस वालों से मुझे पता चला कि आदिवासियों के एक गांव के मुखिया को। मैं जख्मी हालत में नदी के किनारे मिला था। उन्होंने अपनी जड़ी-बूटियों से मुझे काफी हद तक ठीक कर दिया था, पर फिर जब मुझे होश आने लगा, तो उन्होंने पुलिस वालों को मेरे बारे में बताया। पुलिस ने मुझे हॉस्पिटल में शिफ्ट किया और फिर मेरी एक तस्वीर खींचकर अखबार में भी छपवाई, पर या तो मेरे किसी अपने ने वो तस्वीर देखी नही या फिर मेरी बड़ी हुईं दाढ़ी और दो महीने कोमा में रहने के बाद, गिरी हुई हालत की वजह से किसी ने मुझे पहचाना नहीं। ये भी हो सकता है कि किसी और की लाश को शिव कपूर समझकर, उसका अंतिम संस्कार कर देने की वजह से, किसी ने ये सोचा भी नहीं कि मैं ज़िंदा हो सकता हूं।

अरूण ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोले- शिव सबको ले लगता है कि तुम दोनों भाईयों के बीच बढ़ती तकरार की वजह से, शक्ति तुम्हारी मौत का ज़िम्मेदार है। क्या ये सच है शिव? क्या उसने तुम्हें नदी में धक्का दिया था? क्या हुआ था उस रात?

शिव उठकर खड़ा हुआ और अरूण की ओर पीठ करके बोला- उस रात क्या हुआ अंकल, ये आप हम दोनों भाईयों के बीच ही रहने दीजिए। पर हां, मैं आपको ये ज़रूर बता देता हूं कि मुझे नदी में धक्का शक्ति ने नही दिया था।

अरूण ये सुनकर सोच में पड़ गए। शिव ने पलटकर उनकी ओर देखा और बोला- पर अगर वो चाहता, तो उस रात मुझे उस उफनती नदी में गिरने से बचा सकता था।

अरूण उसकी बातें सुनकर परेशान होकर बोले- मुझे कुछ समझ नही आ रहा है शिव, कि तुम क्या कह रहे हो। एक तरफ़ तुम ये कह रहे हो, कि शक्ति ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश नही की और दूसरी तरफ तुम ये कह रहे हो कि वो अगर चाहता, तो तुम्हें बचा सकता था।

शिव उनके पास बैठकर बोला- मै सिर्फ आपको ये बता रहा हूं अंकल कि शक्ति इस वक्त कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के लिए, कुछ भी कर सकता है, किसी भी हद तक जा सकता है और मैं अपनी कंपनी उसके हाथों में नही जाने दे सकता। बस इसलिए ज़िंदा होने के बाद भी अब तक किसी के सामने नही आया। शक्ति अब पहले वाला शक्ति नही रहा अंकल.... अब वो एक ऐसा इंसान बन चुका है, जो अपने स्वार्थ अपनी खुशी के लिए किसी की भी ज़िंदगी के साथ खेल सकता है। उसकी ज़िंदगी का सिर्फ एक ही मक़सद है, मुझसे मेरा सब कुछ छीनना.... जिसके लिए वो किसी की भी ज़िंदगी बर्बाद कर सकता है और किसी की भी जान ले सकता है अगर उसे रोकना है। अपने परिवार को उसके गंदे इरादों से बचाना है, तो मुझे पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरना होगा।

अरूण ने उसकी ओर देखकर पूछा- शिव, क्या तुम ये जानते हो, कि रति अब इस दुनिया में नही रही?

उनका ये सवाल सुनकर शिव तुरंत बोला- वो ज़िंदा है अंकल, मेरी रति को कुछ नही हुआ है। मेरी तरह उसे भी महाकाल ने मौत के मुंह से बचा लिया है।

ये सुनते ही अरूण उठकर खड़े हो गए और शिव को हैरानी से देखने लगे। शिव भी उठकर खड़ा हुआ और बोला- मैं सच कह रहा हूं अंकल...रति ज़िंदा है, मैनें खुद कल उसे उज्जैन के महाकाल मंदिर में देखा है और वहां से वो ओंकारेश्वर की बस में चढ़ी थी। वो यही है इसी शहर में और मैं बहुत जल्द उसे ढूंढ निकालूंगा। मैं सच कह रहा हूं अंकल,

"तुमने अपने परिवार को अब तक नही बताया, शिव कि तुम ज़िंदा हो। यहां तक कि अपनी उस मां को भी नही बताया, जो अपनी सगी औलाद से ज़्यादा तुम्हें चाहती है पर तुम मेरे सामने आ गए, तो जाहिर सी बात है कि तुमने मुझे किसी मक़सद से ही यहां बुलाया होगा। मुझसे क्या चाहते हो शिव?"- अरूण ने पूछा।

शिव ने उनकी ओर देखा और बोला- अपनी कंपनी को शक्ति के हाथों में जाने से बचाने के लिए, मुझे आपकी मदद चाहिए अंकल,

"ओह....तो तुम्हें भी मेरे पच्चीस परसेंट शेयर्स चाहिए"- अरूण उसकी आंखो में देखकर बोले, तो शिव ने हैरानी से पूछा- तुम्हें भी से आपका क्या मतलब अंकल? क्या कोई और भी वो शेयर्स चाहता है? अरूण ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और बोले- शक्ति ...

शक्ति का नाम सुनकर शिव के चेहरे के जैसे रंग ही उड़ गए। तभी अरूण फिर से बोले- शक्ति आज ही मेरे पास आया था, उसे भी मेरे हिस्से के शेयर्स चाहिए क्योंकि तुम्हारी तरह वो भी ये बात जानता है कि उसे एमडी की कुर्सी पर बैठने के लिए मेरी मदद की ज़रूरत पड़ेगी और मैं तुम्हें एक बात और बता दूं शिव। तुम्हारे चाचू ने अपने हिस्से के शेयर्स उसे देने का फैसला कर लिया है और वजह तुम शायद जानते ही होगे। तुम्हारी चाची,

शिव ये सुनकर हैरान रह गया। उसका चेहरा देखकर अरुण फिर से बोले- और एक बहुत ज़रूरी बात... उसे ये भी पता है कि तुम्हारी दादी ने अपने हिस्से के शेयर्स तुम तीनो भाईयों के नाम कर दिए थे और अगर मैं उसे अपने शेयर्स दे दूं, तो तुम ये बात जानते हो कि बाकी के शेयर्स हासिल करके, वो बहुत आसानी से कपूर ग्रूप ऑफ़ कम्पनी का एमडी बन सकता है।

"इसका मतलब, आपने अपने हिस्से के शेयर्स उसके नाम करने का फैसला ले लिया है?"- शिव ने पूछा। अरूण मुस्कुराते हुए बोले- उन शेयर्स पर मेरा नही। गौरी का हक है शिव और मैं अपनी बच्ची का हक, किसी और के नाम करने की बेवकूफी करके, उसका फ्यूचर बर्बाद नही कर सकता।

शिव उनकी हथेली थामकर बोला- अंकल प्लीज़ ऐसा मत करिए। इस वक्त मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है। मेरा यकीन कीजिए, आपके शेयर्स भले मेरे नाम पर होंगे, पर मेरी कम्पनी में आपका जो भी प्रॉफिट शेयर है। वो आपको हमेशा मिलता रहेगा और सब ठीक होते ही, मैं आपको आपके शेयर्स वापस कर दूंगा। ट्रस्ट मी,

अरूण के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई- ट्रस्ट.... और उस इंसान पर? जो मेरी बेटी से हो रही अपनी मंगनी के दिन उसकी सहेली से शादी करके आ गया था? और उसने मेरा ट्रस्ट चकनाचूर कर दिया था।

शिव उन्हें हैरानी से देखने लगा, तो अरूण गुस्से में बोले- मैं ये बात अभी तक भूला नहीं हूं शिव कि तुमने किस तरह मेरी बच्ची का दिल तोड़ा था। तुम शक्ति को स्वार्थी कह रहे होना, पर स्वार्थी तो तुम भी हो। तुमने भी तो अपनी खुशी के लिए, मेरी बच्ची और मेरी इज्ज़त का तमाशा सबके सामने बनाया था और तुम्हें क्या लगता है? मैं इतना बेफकूफ हूं कि एक बार फिर से तुम पर ट्रस्ट करूंगा?

नही शिव...कभी नही करूंगा क्योंकि अगर तुम्हारी पत्नि रति ज़िंदा है, तो साफ है कि तुम अपनी बीवी के साथ मिलकर कोई माइंड गेम खेल रहे हो पर तुम्हारा मक़सद मुझे समझ नही आ रहा है। शक्ति से बदला लेना चाह रहे हो या कपूर ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ पर कब्जा करना चाहते हो....

"ये सोच रखते है आप मेरे बारे में?"- शिव ने पूछा, तो अरूण मुस्कुराते हुए बोले- बिल्कुल भी नही.... तुम्हारी बातों ने मुझे ऐसा सोचने पर मजबूर कर दिया है शिव क्योंकि अगर तुम ये कह रहे हो कि तुम और रति दोनों, भेड़ाघाट से नदी में गिरने के बाद भी बच गए हो, तो मेरे लिए इस बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इत्तफाक सिर्फ एक बार होता है, बार बार तो सिर्फ साजिशे होती है। मैं अपनी बेटी का हक तुम्हें नही दे सकता शिव क्योंकि मैं उसकी शादी शक्ति से करने का फैसला ले चुका हूं।

इतना कहकर अरुण वहां से जाने लगे, पर फिर उनके कदम रुक गए और वो पलटकर शिव से बोले- पर इसका ये मतलब बिल्कुल नही है बेटा, कि तुम्हें ज़िंदा देखकर मुझे खुशी नही हुई। यकीन मानो...तुम ज़िंदा हो। ये जानकर मुझे उतनी ही खुशी हुई है जितनी कि अधिराज को तुम्हें देखकर होगी क्योंकि मैनें हमेशा तुम्हें अपने बेटे के रूप में देखा है। अपने दामाद के रूप में देखा है।

"और शायद इसलिए आप मुझ पर भरोसा नही कर सकते। है ना?"- तभी शिव ने पूछा। अरूण कोई जवाब नही दे सके। शिव उनके पास आया और बोला- अंकल, मेरे पापा आपके बचपन के दोस्त है। आपने हर अच्छे बुरे वक्त में उनका साथ दिया है, तो मेरी नादानी की सज़ा अपने दोस्त को मत दीजिए। मेरा यकीन कीजिए... मैनें बचपन से लेकर आज तक, कभी भी गौरी को उस नज़र से देखा ही नहीं। मैंने सिर्फ और सिर्फ रति को चाहा है और गौरी मेरे लिए आज भी मेरी सबसे अच्छी दोस्त है और मैं आज भी दिल से उसकी खुशी चाहता हूं।

"अगर तुम वाकई उसकी खुशी चाहते हो, तो ठीक है, मैं तुम्हें अपने हिस्से की शेयर्स देने के लिए तैयार हूं, पर उसके बदले तुम्हें मेरी बेटी को उसकी खुशी देनी होगी। शादी करनी होगी तुम्हें उससे"- अरूण के इतना कहते ही शिव उन्हें हैरानी से देखने लगा। अरूण ने अपने कदम उसकी ओर बढ़ाए और बोले- मेरी बेटी आज भी तुमसे ही प्यार करती है शिव.... उसकी नज़र में तुम इस दुनिया में नही हो, पर वो आज भी तुम्हें इस कदर चाहती है कि किसी और से शादी नही करना चाहती है इसलिए अगर तुम्हें मेरे हिस्से के शेयर्स चाहिए, तो तुम्हें मेरी बेटी से शादी करनी होगी।

शिव उन्हें घूरते हुए बोला- एक शादीशुदा इंसान से आप अपनी बेटी की शादी करना चाहते है अंकल और ये जानते हुए भी कि मेरी पत्नी ज़िंदा है।

"मर चुकी है वो.....और उसका ज़िंदा होना नामुमकिन है"- तभी अरूण बोले। उनके इतना कहते ही शिव की आँखें खुली की खुली रह गई। उसका चेहरा देखकर अरूण तुरंत बोले- ये सिर्फ तुम्हारा वहम है शिव कि रति ज़िंदा है क्योंकि इतनी गहरी नदी में और इतने भयानक तूफान में। तुम उस नदी में गिरने के बाद भी बच सकते हो क्योंकि तुम तैरना जानते हो, पर रति?? वो तैरना नही जानती थी इसलिए वो उस तूफानी रात में उस नदी में कूदने के बाद भी बच गई हो, ये नामुमकिन है।

तुमने ज़रूर किसी और को रति समझ लिया है, पर अगर फिर भी तुम ये मानते हो, कि वो ज़िंदा है, तो मैं भी मान लेता हूं। मैं तुम्हें चौबीस घंटे देता हूं शिव... अगर तुम इन चौबीस घंटो में, रति को मेरे सामने ले आए, तो मैं ये मान लूंगा कि तुम दोनों की जोड़ी पर सच में महाकाल का हाथ है और शेयर्स तुम्हारे नाम कर दूंगा, पर अगर तुम ऐसा नही कर सके, तो तुम्हें रति को मरा हुआ मान कर। मेरे शेयर्स पाने के लिए खुद को मेरी बेटी को सौंपना होगा। शादी करनी होगी उससे....

शिव उन्हें एकटक देखने लगा तो अरूण ने अपनी आंखो पर चश्मा लगाया और बोले- फैसला तुम्हारा है शिव...या तो अपने पापा की ज़िंदगी भर की मेहनत और उनके रुतबे को बर्बाद होने से बचा लो या अपनी मरी हुई बीवी को ज़िंदा मानकर, अपने साथ अपने अपनों को भी बर्बाद करके, किसी मन्दिर के बाहर भिखारियों की तरह बैठा दो।

क्योंकि अगर शक्ति मेरा दामाद बनता है, तो मैं उसके साथ खड़ा नज़र आऊंगा। फिर चाहे उसके लिए मुझे अपने दोस्त के ही खिलाफ क्यों ना खड़ा होना पड़े... क्योंकि अब मेरे लिए मेरी एकलौती बेटी की खुशी से बढ़कर और कुछ नही है। ये बात याद रखना तुम, तुम्हारे लौटने का हर हाल में इंतज़ार रहेगा शिव.... चलता हूं।

इतना कहकर वो जाने लगे, पर अजय को दरवाज़े पर देखकर उनके कदम रुक गए, पर फिर वो मुस्कुराते हुए उसके करीब से निकलकर चले गए। शिव अभी भी बुत बना खड़ा था। अजय अपने साथ आए लड़के से बोला- ये टेबल पर रखो और जाओ यहां से,

उस लड़के ने चाय रखी और वहां से चला गया। उसके जाते ही अजय ने शिव की ओर देखा, जो बहुत परेशान था। उसने अंदर आकर शिव के कंधे पर हाथ रखा, तो शिव ने अपनी आँखें बन्द कर ली। दूसरी ओर रति, अपने घर के आंगन में खाट पर लेटी, आसमान की ओर देख रही थी। वो चांद में शिव का चेहरा देखने की कोशिश कर रही थी, पर फिर उसने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बन्द कर ली।

तभी लॉन में रखे बड़े से झूले पर बैठी, रति की आंखों पर शिव ने पीछे से आकर अपनी हथेली रख दी। रति ने मुस्कुराते हुए उसकी हथेली पकड़ी और बोली- तो फाइनली रात के एक बजे, मेरे पति को ये बात याद आ गई कि उनकी पत्नी बड़ी ही बेकरारी से, उनके घर लौटने का इंतज़ार कर रही है।

शिव ने उसकी आंखो से अपना हाथ हटाया और उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोला- आय एम सॉरी रति। दो दिन बाद हमारे होटल का काम शुरू होने जा रहा है। तो बस, उसी सिलसिले में एक मीटिंग रखी थी मैनें, पर इस बात का अंदाज़ा नहीं था मुझे कि मीटिंग इतनी रात तक चलेगी।

रति ने पलटकर उसके गले में अपनी बांहें डाली और बोली- आपको सॉरी कहने की कोई ज़रूरत नही है क्योंकि ओमी ने मुझे बता दिया था कि आज आपको आने में देर हो जाएगी। अब आप जल्दी से चेंज करके आइए, मैं आपके लिए खाना गर्म करती हूं।

इतना कहकर वो वहां से जाने लगी पर तभी शिव ने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ लिया। रति ने पलटकर उसकी ओर देखा।

लेखिका
कविता वर्मा