उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार

मित्रों

बहस हो गई उस दिन मित्रों के बीच और जीवन की परिभाषा के बारे में चर्चा होने लगी| उसी चर्चा के कुछ अंश पाठक मित्रों के साथ साझा करने की इच्छा हुई |

हमारी सारी बातें जीवन से जुड़ी रहती हैं क्योंकि हम इस जीवन के उतार-चढ़ावों को देखते हैं| हमें लगताहै कि जीवन एक ही सड़क पर नाक की सीध पर चलता रहता है परंतु ऐसा कहाँ होता है मित्रों |

जीवन की सतह पर चलने के लिए उसे केवल पढ़ा जाना ही नहीं होता, उसके साथ करनी होती है एक यात्रा, कभी मन की सतह पर तो कभी तन की सतह पर ! जहाँ मिलती है एक निर्दोष सरसराहट जो मन के जंगलों में न जाने कैसी लुका-छिपी खेलती रहती है | कभी जामुनी फूल बनकर अजनबी प्रतीक्षा करती रहती है तो कभी साम्राज्ञी बन जाती है, कभी एक उत्तुंग लहर जो एक स्थान पर स्थिर कहाँ रह सकती है !

पहले जैसा कुछ भी तो नहीं रहता, न दोपहर, न शाम, न ही रात, सोने–जागने को पर्यायवाची महसूसता मन आईने में अपना अक्स देखकर खुद के भीतर मुहब्बत की सिंचाई भी तो करता है | कहीं फूलों के स्वप्नलोक में संगीत की अनुगूँज है तो कभी तितली बनूँ, उड़ती फिरूँ मस्त गगन में की चाह का दीप दपदपाए, प्रकृति बेइंतिहा मुहब्बत है ! देह की पहचान देह से, मन की मन से, बोध से बुद्धि लेकिन आत्मा---उसको ही तो खोजना है|

युगल राग है तो आसावरी भी है, जोगिया भी है, जोड़ जोड़ जकड़ता छूटता वर्तमान है तो साथ ही देह में पिघलता है, बूढ़ी देह में बसता है एक शिशु ! झाँकती है कविता बार-बार, भीतर और बाहर और हर बार निकल आते हैं कुछ नए कोंपल ! पीले पन्नों में तकदीर लिखी हुई, सिमट जाती है । कागज़ी बादाम के बागीचों में उगने लगते हैं तड़प के वृक्ष ! ललचाती रबरी के दौने, जलेबियों का हँसना, मन की यात्राएं कहाँ जीवित रहते पूरी होती हैं ? चलती रहती हैं हर पल, हर क्षण निरंतर, जीवन की हर साँस के साथ-साथ---

जीवन के अंतिम क्षणों तक नहीं पूरी हो सकेगी यह जिज्ञासा कि मन के भीतर यह जो प्रेम की परतें हैं ये क्या परिभाषित कर सकती हैं उन मानवीय संवेदनाओं को जो हर झौंके के साथ इधर से उधर डोलता है? पूरी उम्र इस पशोपेश में झूमते, झूलते मैं प्रेम के निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सकी थी ||

जीवन संघर्ष है और उससे जूझने की शक्ति भी, जीवन प्यार है और मनुहार भी, जीवन आकांक्षा है और शुभाकांक्षा भी ! क्या नहीं है जीवन? सर्वस्व समर्पित करना भी आवश्यक है तो आनंद को महसूस करना भी !

तात्पर्य है कि जितना हो सके जीवन का मूल्य समझना हमारे लिए आवश्यक है, वही गीत है, वही संगीत है किन्तु बदलाव के झूलों पर झुलाने वाला एक रहस्य भी है इसलिए उसके रहस्य में न जाकर चलती हुई वायु के झौंको के सहारे, उनकी ओर चलना ही हमारे लिए हितकर है |

सोचकर देखें व स्वयं के जीवन से प्यार करें |

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती