सुमन खंडेलवाल - भाग 4 Pradeep Shrivastava द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुमन खंडेलवाल - भाग 4

भाग -4

बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद उनके कपड़े उनको दे दिए। भुवन चंद्र जी ने आख़िर तमंचे वाले से पूछा, “आप लोग कौन हैं? मुझसे क्या चाहते हैं?” 

तो उसने कहा, “अब हम जो कहेंगे, तुम्हें वही करना होगा, नहीं तो यह औरत अभी थाने में रिपोर्ट लिखाएगी कि तुम उसके घर में घुसकर उसका रेप कर रहे थे।”

भुवन चंद्र जी बोले, “यह सब झूठ है, साज़िश। यह मुझसे शादी करने वाली है। हमारे बीच पति-पत्नी का ही रिश्ता है, मैं इनके कहने पर ही यहाँ आता हूँ, सब-कुछ इनकी इच्छा से ही हो रहा है। पुलिस झूठी बातों पर विश्वास नहीं करेगी, ये सारी बातें ख़ुद ही बताएँगी। रेप का तो कोई प्रश्न ही नहीं है।”

तभी तमंचे वाला उजड्ड जंगलियों की तरह गाली देता हुआ बोला, “चुप कर, बहुत हो गई तेरी बकवास। तुम इसको बहला-फुसलाकर बहुत दिन से इसकी इज़्ज़त, पैसे लूटते आ रहे हो, इसे मासूम नादान समझ कर तूने अपने झाँसे में फँसा लिया।” फिर वह सुगंधा की तरफ़ देख कर बोला, “चल, तू ही बता, मैं सच कह रहा हूँ कि नहीं।”

यह सुनते ही सुगंधा बड़ी कुटिलता के साथ मुस्कुराई। यह देखकर भुवन चंद्र जी के होश फ़ाख़्ता हो गए। वह अपने होशो-हवास सँभाल पाते कि उसके पहले ही उसने साफ़-साफ़ कहा, “जी हाँ, मैं इसके बहकावे में आ गई, यह बहुत दिनों से मेरे सारे पैसे, मेरी इज़्ज़त लूट रहा है, वह भी मेरे ही घर में घुस कर। अब तो मेरा घर भी मुझसे छीनना चाहता है।”

यह सुनते ही भुवन चंद्र उस पर चीखे, “तुम झूठ क्यों बोल रही हो?” 

उनका इतना बोलना था कि वह दोनों आदमी उन पर टूट पड़े। जम-कर पिटाई कर दी। सकीना ने भी भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हुए हाथ साफ़ किए। 

अब भुवन चंद्र जी को विश्वास हो गया कि वह ऐसी गहरी साज़िश का शिकार हुए हैं, जिससे बच निकलने का कोई रास्ता फ़िलहाल दिखता नहीं है। इसी समय उन दोनों ने मोबाइल में उनके कई और ऐसे वीडियो दिखा कर उन्हें बिलकुल पस्त कर दिया, जिसमें वह सुगंधा के साथ अंतरंग खेलकूद में लगे हुए थे। 

उन सब ने सबसे पहले उन पर दबाव डाल कर उनके अकाउंट में जितना भी पैसा था, वह अपने अकाउंट में ट्रांसफ़र करवा लिया। वह हाथ जोड़ते रहे, लेकिन वह नहीं माने, कहा, “तुरंत पैसा ट्रांसफ़र करो, नहीं तो यह सारे वीडियो तुम्हारी मिसेज़ को भेज दूँगा, सोशल मीडिया पर डालूँगा और फिर थाने में रिपोर्ट लिखवाऊँगा, तुम्हें जेल जाते देर नहीं लगेगी। 

“इसका रेप करते रहे, अभी-अभी किया है, यह तो मामूली से मेडिकल चेक-अप में ही साबित हो जाएगा। इसके बाद तुम जेल में होगे और तब हम तुम्हारी बीवी, तुम्हारी लड़कियों को नहीं छोड़ेंगे। तुमने इसके साथ रेप किया, पैसा लूटा, हम उनके साथ करेंगे, एक-एक पैसा वसूलेंगे, तुम अकेले कर रहे थे, हम कई लोग करेंगे। सोचो तुम्हारी बीवी, लड़कियों का क्या हाल होगा।”

इसके बाद उन सब ने उनकी एक-एक जमा पूँजी ले ली। फिर उनके षड्यंत्र का नया अध्याय खुला। एक दिन उनसे कहा कि “तुम इसकी इतने दिनों से इज़्ज़त लूटते रहे, इसलिए अब तुम्हें इसके साथ निकाह करना पड़ेगा।”

भुवन चंद्र जी ने कहा, “मैं निकाह कैसे कर सकता हूँ, मेरी पत्नी है, बच्चे हैं। यह हो ही नहीं सकता। क़ानून इसकी परमिशन नहीं देता।”

तो उन्होंने गालियाँ देते हुए कहा, “तुमसे जो कहा जा रहा, वह तुम्हें करना ही करना है, बाक़ी क़ानून-सानून हम देख लेंगे। ऐसे क़ानून हम अपने . . . पर रखते हैं,” बड़ी भद्दी बात कहते हुए उन्हें फिर धमकाया। 

भुवन चंद्र जी अब उन सब से गँवार उजड्डों की भाषा, व्यवहार से इतर कुछ और की रत्ती भर भी आशा नहीं कर थे। फिर गिरोह उन्हें एक दिन ज़बरदस्ती एक जगह उठा ले गया। वहाँ सकीना, मौलवी सहित पहले से ही कई लोगों का जमावड़ा था। वो कुछ समझें बूझें उसके पहले ही उनसे तुरंत ही इस्लाम मज़हब क़ुबूल करने के लिए कहा गया। 

उनके इनकार करते ही गर्दन पर चाकू रखकर कहा गया कि “जो कहा जा रहा है तुरंत मानो, वरना सिर क़लम कर देंगे। आख़िर उन्हें मानना पड़ा। उसी समय उनका खतना भी कर दिया गया। नाम भुवन चंद्र से बदल कर मोहम्मद सुलेमान कर दिया गया। 

इसके बाद उन्हें एक दूसरी जगह तीन-चार दिन तक रखा गया। नाम-मात्र को खाना दिया जाता, साथ ही कोई नशीली दवा भी। वह बेहोशी की हालत में पड़े रहते थे। जब होश में होते तो उनको कुछ समझ में नहीं आता कि आख़िर यह लोग चाहते क्या हैं? सकीना को सुगंधा बनाकर जाल में फँसाया, धोखे से खतना किया, मुसलमान बनाया, निकाह कराने के लिए कहा, मगर मुसलमान बनाने के बाद से सकीना ग़ायब है। 

कुछ ही दिनों में वह बहुत कमज़ोर हो गए थे। एक दिन फिर उन्हें लेकर कहीं चल दिए। रास्ते में चाय दी गई। उसे पीने के बाद फिर उन्हें होश नहीं रहा। जब होश आया तो अपने को एक थर्ड क्लास हॉस्पिटल में पाया। वह बहुत घबराए कि उन्हें क्या हो गया था जो हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। जब नर्स आई तो उससे पूछा, लेकिन वह बिगड़ कर ऊट-पटाँग बोलकर चली गई। 

इसके बाद जल्दी ही फिर बेहोश कर दिए गए। जब होश आया तो ख़ुद को एक कमरे में बंद पाया। पेट के निचले हिस्से में उन्हें दर्द महसूस हो रहा था। जब वहाँ देखा तो ऑपरेशन का निशान पाया। वह घबरा उठे यह क्या, क्या इन सब ने मेरी किडनी निकाल ली है। सोचते ही वह बेहोश हो गए। 

फिर उनका जीवन ऐसे ही चलता रहा। कभी कहीं तो कभी कहीं, किसी कमरे में ख़ुद को बंद पाते। और फिर उस दिन सकीना उनको ख़ास मक़सद से लेकर दिल्ली पहुँची थी। पुलिस ने जब क़ायदे से छानबीन की तो पता चला कि उस दिन ह्यूमन बॉडी ऑर्गन्स बेचने वाला गिरोह, अपने शिकार की आख़िरी सबसे बड़ी क़ीमत वसूलने जा रहा था। और वह दिन उनके जीवन का आख़री दिन होने जा रहा था। वहाँ के एक हॉस्पिटल में उनकी आँखें, लीवर, आदि जितने भी अंग प्रत्यारोपित हो सकते हैं, वह सब निकाले जाने थे। 

उसके बाद बची डेड बॉडी को जलाकर राख कर दिया जाना था। उनकी किडनी पहले ही ब्लैक-वर्ल्ड के ज़रिए तीस लाख रुपए में ह्यूमन बॉडी ऑर्गन्स की, दुनिया की सबसे बड़ी अवैध मंडी गल्फ़ कंट्रीज़ में बेची जा चुकी थी। बाक़ी हिस्से दो करोड़ में बिकने फ़ाइनल हुए थे, मगर मेरे मिल जाने से उनका जीवन बच गया। 

क़ानूनी कार्यवाईयों को पूरा करने के बाद, उनके ख़राब स्वास्थ्य के कारण मैं ख़ुद उन्हें उनके घर अल्मोड़ा तक छोड़ने गया। मैंने सोचा चलो अब सुमन, मेरी देवी भी मिल जाएगी। लेकिन वहाँ पहुँच कर मेरे सपनों पर फिर तुषारापात हो गया। हमारे पहुँचने के कुछ महीने पहले ही उसकी माँ ने मेरी देवी का विवाह पास के ही एक गाँव में कर दिया था। मगर मुझे इस बात की ख़ुशी हुई कि अंकल को उनके परिवार ने फिर अपना लिया था। 

शादी के बाद सुमन का पति काम-धंधे के लिए उसे लेकर लखनऊ चला आया था। यहीं पहाड़ियों के एक सामाजिक संगठन पर्वतीय परिषद के एक पदाधिकारी के सहयोग से उसने एक दुकान खोली थी, जो दोनों के सौभाग्य से चल निकली थी। 

इसी बीच एक दिन पता चला कि सुमन को ब्रेस्ट कैंसर है। उसका प्यारा पति उसका इलाज लखनऊ पीजीआई में करवा रहा था, वह काफ़ी हद तक ठीक भी हो गई थी। लेकिन लंबे ट्रीटमेंट, पैसों की बढ़ती तंगी, भयावह तकलीफ़ों के चलते सुमन हिम्मत हार बैठी, और एक दिन उसने सुसाइड कर लिया। 

मैं जिस दुकान पर चाय पीने उस मनहूस डरावने रास्ते से पहुँचता था, वह उसी की दुकान थी, और उसने अपनी पत्नी यानी मेरी प्यारी देवी सुमन खंडेलवाल का चित्र लगा रखा था। 

एक दिन फिर मैं वर्कशॉप में बैठा था, अचानक ही मुझे महसूस होना शुरू हुआ कि मुझे . . . मैंने गाड़ी निकाली और सीधे वहीं होटल पहुँचा। अंदर बैठकर मैंने चाय-नाश्ता मँगवाया। काऊंटर पर बैठे व्यक्ति के बारे में वेटर से पूछा, “क्या यही होटल के मालिक हैं?”

तो उसने कहा, “हाँ।”

मैंने कहा, “मैं इनसे कुछ बात करना चाहता हूँ, पूछ कर बताओ वह किस समय बात कर सकते हैं।”

वह मुझे रोज़ देखते ही थे, तो तुरंत बात करने के लिए तैयार हो गए। मैंने उनके पास पहुँच कर बहुत ही विनम्रता से कहा, “देखिए मैं जो बात करने जा रहा हूँ, उसे कहीं से अन्यथा मत लीजिएगा।”

मैंने फोटो की ओर संकेत करते हुए आगे कहा, “आपने यह जो फोटो लगा रखी है, यह शायद आपकी . . . “

मैं जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी तो उन्होंने बड़ी गहरी साँस लेकर कहा, “जी हाँ, मेरी मिसेज़ की फोटो है। दुर्भाग्य से अब इस दुनिया में नहीं रहीं।”

मैंने सुमन और अपने रिश्ते के बारे में कोई भी बात करना उचित नहीं समझा, इसलिए बात में थोड़ा परिवर्तन करते हुए कहा, “शायद आपको पता हो कि आपकी ससुराल के लोग पहले यहीं लखनऊ में रहते थे, हम एक ही मोहल्ले में रहा करते थे। खण्डेलवाल साहब के यहाँ से मेरे परिवार का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध था। फिर अचानक ही खंडेलवाल साहब का परिवार अल्मोड़ा चला गया और हमारा सम्बन्ध छूट गया।” 

मैंने अल्मोड़ा जाने तक की बाक़ी सारी बातें इसलिए नहीं की, कि पता नहीं सुमन, उसकी माँ ने कौन सी बातें बताईं हैं, कौन सी नहीं। मेरी बात सुनकर वह कुछ सोचते हुए बोले, “हाँ, कुछ स्थितियाँ ऐसी बनीं कि अचानक ही अल्मोड़ा जाना पड़ा।”