जिस्मो के साए तले बैरागी दिलीप दास द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जिस्मो के साए तले

जिस्मो के साए तले
जिस्मों के साए तले छिपे कितने राज़ हैं,
नफ़रत के साँचे में ढले कितने चेहरे हैं।
चेहरों पर नक़ाब हैं, नज़रों में घृणा की आग,
दिलों में ईर्ष्या का जहर, ज़ुबां पर ज़हर की बाढ़।
जिस्मों के साए तले छिपी ये खोखली आवाज़ें,
इंसानियत का गला घोंटती ये नीची नज़रें।
इंसान के नाम पर दानव बन बैठे हैं,
रिश्तों को तोड़कर राख किया है।
जिस्मों के साए तले छिपे वो दिल के काँटे,
जो रिश्तों को चुभोकर ज़ख्म करते हैं सदा।
अंधेरे का साया छंटे उजियारे की किरण से,
इंसानियत की खोई शान लौटे फिर से।

जिस्मो के साए तले
जिस्मों के साए तले, खो ना जाए ये रिश्ता,
प्रेम की ज्योति जगे, दूर हो ये अंधेरा घना।
स्पर्श का नशा जरूरी, पर ये प्यार का सुख नहीं,
दो दिलों का मिलन ज़रूरी, जिस्म का मोह नहीं।
प्रेम की भाषा नज़रों से, छू लेती है आत्मा को,
पास आने की ज़रूरत नहीं, बस समर्पण का त्योहार हो।
शरीर का मिलन क्षणिक है, प्यार का सफर है लंबा,
दो आत्माओं का संगीत हो, ये रिश्ता हो अनमोल अनोखा।
प्रेम की पवित्रता बनाए, जिस्मों को ना सौंपे ये बंधन,
प्यार का दीप जले सदा, जिस्मों के साए से परे, जहान।

जिस्मो के साए तले
जिस्मो के साए तले, ज़िंदगी सिमटती है,
रिश्तों की गर्माहट, धीरे-धीरे ढलती है।
चमकती स्क्रीनें, हाथों में कैद हैं,
आँखों का मिलना, अब दूर सा रहता है।
प्रेम की बातें, चैट में सिमटी रहती हैं,
स्पर्श का सुख, कोडों में खो जाता है।
दिल की गहराई, इमोजी बयां न कर पाते,
सच्ची मुस्कान, अब कैमरे के लिए सजती है।
चलो निकलें बाहर, जिस्मों के साए से,
रूह से रूह मिले, इश्क़ को नया रंग दें।
बातें हों दिल की, हवाओं में घुलें,
ज़िंदगी का सार, फिर से महसूस करें।

जिस्मो के साए तले
जिस्म के साए तले
जिस्म के साए तले, दिल टिमटिमाता है,
इश्क़ की लौ भीतर, पल-पल जलता है।
होंठ तेरे छू लूँ, जज़्बात भरपूर हों,
सांसों में मेरी खुशबू, महकती गूँज हो।
हाथों से हाथ थामूँ, नज़रें कुछ कहती हों,
मिले हों साथ जो अब, तो फिराक़ न सहती हों।
जिस्म की बंदिशें तोड़, जहाँ मुक्त उड़ सकूँ,
इश्क़ की राहों पे चल, मैं मंज़िल पा सकूँ।
साए में तेरे ही अब, दुनिया नज़र नहीं आती,
इश्क़ की रोशनी में, ज़िंदगी छा जाती है।
जिस्म के साए तले, प्यार की निशानी है,
इश्क़ का ये सफर, सदा मेरी कहानी है।

जिस्मो के साए तले
जिस्म के साए तले
तहों में नफरत की अंधेरी रात,
उपर से प्यार की झूठी बात।
साए तले छिपे जहर के प्याले,
मीठे बोलों से लेते हैं जहाले।
जिस्मों के साए का दिखावा है ये,
अंदर का तूफान छुपावा है ये।
नफरत की ज्वाला दहकाती है,
प्यार की राख बुझाती है।
साए के अंधेरे से निकलो अब तुम,
सच्चे प्यार की रोशनी पाओ तुम।
जिस्मों के साये तो टूट जाएंगे,
जब दिलों के बंधन जुड़ जाएंगे।

जिस्मो के साए तले
जिस्मो के साए तले, नफ़रतें पलती हैं,
प्यार की आग बुझती है, दम घुटता है।
शक्लें रंग-बिरंगी, दिल अंधेरे और भरे,
नफ़रत का ज़हर फैलाते, प्यार को कुचलते हैं।
जिस्म की दीवारें खड़ी, दिलों को दूर करती,
प्यार की धारा सूख जाती, नफ़रत भर जाती है।
इश्क़ के सपने टूटते, ज़हर घुल जाता है,
जिस्मो के साए तले, प्यार घायल होता है।
नज़रें झुकी रहती हैं, जुबां खामोश है,
प्यार की आवाज़ दब जाती, नफ़रत हावी है।
जिस्मो के साए माया हैं, दिलों को भ्रमित करते,
नफ़रत की जंजीरों से, प्यार को कैद करते हैं।
पर जब जिस्म साथ छोड़ते, रह जाती है याद,
प्यार का दर्द महसूस करते, पछतावा होता है।
तब समझ आता है, नफरत का क्या नुकसान है,
प्यार की कमी का अहसास, ये एक सज़ा है।