प्यार हुआ चुपके से - भाग 24 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 24

शिव और अजय बातें करते हुए रति के क़रीब से निकल गए। तभी रति गौरी से बोली- गौरी अब मैं फोन रखती हूं, थोड़ा काम है मुझे। मैं फिर तुझे फोन करूंगी। तू प्लीज़ मुझे वहां का हाल बताती रहना और प्लीज़ कभी-कभी वक्त निकालकर मेरे घर भी जाती रहना।

गौरी मुस्कुराते हुए बोली- तू यहां की फिक्र मत कर रति। मैं हूं यहां और रही बात तेरे परिवार की, तो मैं जाती हूं उनसे मिलने। सब ठीक है वहां....तभी गौरी को अपने पापा की गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी और वो तुरंत बोली- रति,पापा आ गए। मैं फोन रखती हूं,बाद मैं बात करूंगी तुझसे।

इतना कहकर उसने रिसीवर नीचे रख दिया। रति ने भी रिसीवर नीचे रखा और शक्ति के बारे में सोचने लगी। वो मन ही मन बोली- समझ नही आता, आखिर शक्ति चाहता क्या है? अब तो सब उसका है, तो अपनी ही चीज़ पर कब्जा करने का क्या मतलब हुआ। शायद हर चीज़ छीनने की आदत हो गई है उसकी।

दूसरी ओर शिव और अजय,अजय के कैबिन में पहुंचे। शिव ने टेबल पर रखी फोन डायरेक्ट्री उठाई और अरूण मित्तल के घर का फोन नंबर तलाशने लगा। तभी अजय ने पूछा- शिव साहब आप ठहरे कहां है?

शिव ने नंबर ढूंढते हुए जवाब दिया- एक होटल में रुका हूं अजय साहब, मैं आपको वहां का नंबर दे देता हूं। आप वहां फोन करके मुझसे बात कर सकते है।

अजय मुस्कुरा दिया- उसकी कोई ज़रूरत नही है क्योंकि अब आप मेरे साथ, मेरे घर में रहेंगे।

शिव ने तुरंत नज़रे उठाकर उसकी ओर देखा, तो अजय फिर से बोला- प्लीज़ इंकार मत कीजिएगा शिव साहब, मैं दिल से चाहता हूं कि आप मुझे अपनी मेहमान नवाज़ी का मौक़ा दे और मेरे घर में रहे। मेरी मां आपसे मिलकर बहुत खुश होगी। प्लीज़,

"अजय साहब मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी को कोई भी तकलीफ पहुंचे। आपको और आपके परिवार को बेवजह परेशानी होगी। मैं होटल में ही ठीक हूं और फिर सिर्फ दो-तीन दिन की ही तो बात है। एक बार मेरे हाथ कपूर ग्रुप ऑफ कंपनीस के 51% शेयर लग जाए, फिर तो मुझे अपने घर लौटना ही है।"

शिव की बातें सुनकर अजय फिर से मुस्कुरा दिया और बोला- जानता हूं कि आप सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही इस शहर में है इसलिए तो चाहता हूं कि आप मेरे साथ मेरे घर पर रहें। वहां रहना आपके लिए सेफ भी रहेगा शिव बाबू और मैं आपकी पत्नि को तलाशने में आपकी मदद भी कर सकूंगा।

"ठीक है। अगर आप यहीं चाहते है तो यहीं सही। आप मेरे लिए इतना कुछ कर रहे है, तो मैं आपकी खुशी के लिए इतना तो कर ही सकता हूं।"- शिव के इतना कहते ही अजय के चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई। उसने तुरंत टेबल पर रखे फोन का रिसीवर उठाया और अपने घर फोन करने लगा। दूसरी ओर से उसकी बहन प्रिया रिसीवर उठाकर बोली- हैलो, कौन?

"पीयू, मैं अजय बोल रहा हूं। मां से बात करवा मेरी"

"मां भईया का फोन है। बात करिए। मैं ट्यूशन जा रही हूं"- प्रिया चीखी। उसकी आवाज़ सुनकर उसकी मां तुरंत अपने कमरे से बाहर आई। प्रिया ने उन्हें रिसीवर पकड़ाया और वहां से चली गई। सुमित्रा रिसीवर कान से लगाकर बोली- अजय बेटा तेरा टिफिन बस थोड़ी देर में भिजवा रही हूं।

"मां नौकरों से मेहमानों वाला कमरा साफ करवा दीजिए। मुझे शाम तक वो रूम एकदम क्लीन चाहिए।"- अजय बोला। सुमित्रा ने तुरंत पूछा- कोई मेहमान आ रहा है क्या बेटा?

"हां मां मेरे एक खास मेहमान आ रहे है और वो कुछ दिनों के लिए हमारे साथ ही रहेंगे और आप उनसे मिलकर बहुत खुश भी होगी।"-

"ठीक है। मैं अभी कमरा साफ़ करवाती हूं और डिनर की तैयारी भी करती हूं।" तभी शिव ने उसे इशारा किया की नंबर मिल गया। अजय तुरंत अपनी मां से बोला- मां मैं फोन रखता हूं। कुछ ज़रूरी काम कर रहा हूं। आप प्लीज़ कमरा अपनी निगरानी में क्लीन करवाइएगा।

इतना कहकर उसने रिसीवर नीचे रख दिया। शिव उसे नंबर दिखाकर बोला- इस नंबर पर कॉल करिए अजय साहब और वहीं कहिएगा जो मैंने आपको समझाया है।
अजय ने सिर हिलाया और फोन करने लगा।

दूसरी ओर रिंग जा रही थी पर कोई फोन नही उठा रहा था। शिव के दिल की धड़कने तेज़ हो रही थी। वो मन ही मन बोला- प्लीज़ अंकल फोन उठाइए....मुझे पता है। इस वक्त आप घर पर ही होंगे, प्लीज़ फोन उठाइए।
तभी दूसरी ओर से अरुण रिसीवर उठाकर बोले- हैलो....

अजय ने तुरंत पूछा- आप अरूण मित्तल साहब बात कर रहे है?

"जी हां कहिए, आप कौन?"

"मित्तल साहब मैं अजय माथुर बोल रहा हूं। आपको याद होगा कि कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी जो डैम ओंकारेश्वर में बनाने जा रही थी। उसका कॉन्ट्रेक्ट आप लोगों ने मुझे ही दिया था।"

"आय एम सॉरी अजय साहब,पर अब शायद वो डैम हमारी कम्पनी नही बना पाएगी क्योंकि सरकार हमसे वो कॉन्ट्रेक्ट वापस ले रही है।"

"आय नो मित्तल साहब इसलिए तो मैंने आपको फोन किया है। वो कॉन्ट्रेक्ट फिर से कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी को मिल सकता है, बस उसके लिए आपको एक बार आकर मुझसे मिलना होगा।"

"आप हमारी कम्पनी को वो कॉन्ट्रेक्ट दिलवाएंगे, पर जहां तक मैं आपके बारे में जानता हूं अजय साहब। आप सिर्फ एक इंजीनियर है।"

"इंजीनियर बनना तो मेरा शौक था मिस्टर मित्तल इसलिए मैं इंजीनियर बन गया पर असल में मैं एक बिज़नेसमैन हूं। मेरी फैक्टरी से निकला कुमकुम पूरे देश में इंपोर्ट होता है, इसलिए मुझे हल्के में मत लीजियेगा। इस वक्त सिर्फ मैं आपकी मदद कर सकता हूं।"

"पर आप मेरी मदद क्यों करेंगे मिस्टर अजय? आपकी और हमारी तो कोई खास दोस्ती भी नही है।"

"सही कहा आपने। मेरी और आपकी कोई खास दोस्ती नहीं है पर शिव साहब मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे। कल जब अखबार में उनकी डूबती हुई कम्पनी की खबर पढ़ी, तो मुझे बहुत दुःख हुआ। बस इसलिए मैं आपकी मदद करना चाहता हूं।"

"ठीक है, मैं शक्ति से कहता हूं आपसे मिलने के लिए।"

"जी नहीं मित्तल साहब, मैं अपने दोस्त के दुश्मन से कोई बात नही करूंगा। अगर आप कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी को डूबने से बचाना चाहते है, तो आज ही आकर मुझसे मिले। वो भी अकेले और बिना किसी को कुछ बताए... खास तौर से शक्ति साहब को"

अरूण सोच में पड़ गए और कुछ बोल नहीं सके। अजय बड़ी ही बेकरारी से उनके कुछ कहने का इंतज़ार कर रहा था और शिव भी। उसने अजय को इशारा किया, तो अजय फिर से बोला- आप आ रहे है ना मित्तल साहब? या फिर अपने दोस्त की कम्पनी को डूबते देखना चाहते है?

"आ रहा हूं अजय साहब, अपने ऑफिस का ए ड्रेस नोट करवाइए मुझे। मैं आपसे आकर मिलता हूं।"

अरूण के इतना कहते ही अजय के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई और उसने शिव को इशारा किया। शिव ने आंखें बंद करके गहरी सांस ली और फिर मुस्कुरा दिया।

अजय ने अरूण को एड्रेस और फोन नंबर नोट करवाकर रिसीवर नीचे रख दिया। उसने शिव से पूछा- शिव साहब आपके अंकल तो आपको अपने शेयर्स दे देंगे और आपके शेयर्स मिलाकर आपके पचास परसेंट शेयर्स भी हो जाएंगे पर कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी का एमडी बनने के लिए आपको एक परसेंट शेयर की और ज़रूरत पड़ेगी। उसका क्या करेंगे आप?

"वो एक परसेंट शेयर ऑल रेडी मेरे पास है अजय साहब"- शिव बोला। अजय उसे एकटक देखने लगा तो शिव ने टेबल पर रखा पेपर वेट उठाया और उसे देखते हुए बोला- मेरे पापा ने मेरी दादी के नाम पर जो शेयर्स किए हुए थे। वो मेरी दादी ने हम तीनों भाईयों के नाम बराबर बांट दिए थे और शक्ति ये बात नही जानता है।

अजय के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। दूसरी ओर अरूण ओंकारेश्वर के लिए निकल ही रहे थे कि तभी शक्ति वहां आ गया। उसे देखकर अरूण सोच में पड़ गए। तभी शक्ति ने पूछा- क्या हुआ अंकल? मेरा आना आपको अच्छा नहीं लगा?

"ऐसी बात नही है शक्ति। ये घर तुम्हारा उतना ही अपना है, जितना कपूर हाऊस पर पिछले कुछ महीनों में तुमने खुद इस घर से दूरियां बना ली थी। बस इसलिए आज अचानक तुम्हें यहां देखकर, मैं थोड़ा हैरान हूं। आओ बैठो।"

शक्ति के बैठते ही अरूण ने नौकर को आवाज़ लगाई- मनीष शक्ति साहब आए है। उनके लिए चाय लाओ। मनीष तुरंत चाय बनाने चला गया।

अपने पापा के मुंह से शक्ति का नाम सुनकर गौरी तुरंत अपने कमरे से बाहर आई। शक्ति को अपने घर में देखकर उसे गुस्सा तो बहुत आया पर वो चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकी। तभी शक्ति की नज़र उस पर पड़ी।

"हाय गौरी"- वो मुस्कुराते हुए बोला। गौरी मुस्कुराने की कोशिश करते हुए सीढ़ियों से नीचे आकर बोली- आज शक्ति साहब के कदम हमारे घर में कैसे पड़ गए? आय एम श्योर कि कोई बहुत ज़रूरी काम होगा। क्योंकि बिना मतलब के तो तुम अधिराज अंकल से भी ना मिलो। है ना?

"गौरी ये क्या बदतमीजी है?"- अरूण ने गुस्से में पूछा, तो गौरी मुस्कुराते हुए शक्ति के पास आकर बैठी और बोली- बदतमीज़ी नही थी पापा, बस मज़ाक था। अब क्या मैं अपने बचपन के दोस्त से मज़ाक भी नही कर सकती?

"ऑफ कोर्स कर सकती हो गौरी, हक बनता है तुम्हारा। हम बचपन के दोस्त जो है।"- शक्ति बोला। गौरी के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। तभी अरूण ने शक्ति से पूछा- तुमने बताया नही बेटा,कैसे आना हुआ तुम्हारा?

"मज़ाक में ही सही, पर गौरी ने सही कहा अंकल। आज मैं आपके पास अपने मतलब के लिए ही आया हूं।"- शक्ति ने जवाब दिया। अरूण फिर से सोच में पड़ गए पर गौरी मन ही मन बोली- मुझे अच्छे से पता है शक्ति कि तुम यहां क्यों आए हो। मेरे पापा के पच्चीस परसेंट शेयर्स तुम्हें यहां खींच लाए है।

शक्ति अपनी जगह से उठकर अरूण के पास बैठा और बोला- हमारी कंपनी की हालत आपसे छिपी नहीं है अंकल बर्बादी की कगार पर खड़ी है हमारी कम्पनी अगर अगले दो दिनों में हमने कोई सही फैसला नहीं लिया, तो कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीस को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकेगा पर अधिराज कपूर का बेटा होने के नाते.... मैं अपने डैड और आपकी बरसों की मेहनत को बचाने की एक आखिरी कोशिश करना चाहता हूं।

तभी गौरी उसे टोकते हुए बोली- अगर तुम भूल गए हो शक्ति, तो मैं तुम्हें याद दिला दूं कि कपूर ग्रुप ऑफ कम्पनी आज जहां भी खड़ी है। उसके ज़िम्मेदार सिर्फ तुम हो। आज तुम्हारी वजह से शिव की कम्पनी बर्बादी के मुकाम पर पहुंच गई है।

"गौरी??"- अरूण गुस्से में चीखे। गौरी ने नज़रें झुका ली, तो अरूण उससे बोले- जाओ जाकर देखो, चाय बनी या नहीं। जाओ...

गौरी भनभनाती हुई वहां से चली गई। उसके जाते ही अरूण ने शक्ति के कन्धे पर हाथ रखा और बोले- गौरी की बदतमीज़ी के लिए मैं तुमसे माफी मांगता हूं बेटा। बोलो तुम क्या कहना चाहते हो?

"अंकल मुझे घुमा फिराकर बातें करना नही आता इसलिए साफ़-साफ़ आपसे बात करूंगा। हमारी कम्पनी को बचाने के लिए शिव की जगह उसकी कुर्सी पर किसी का बैठना बहुत ज़रूरी है। एमडी की खाली कुर्सी हमारी कम्पनी की बर्बादी की सबसे बड़ी वजह बन गई है।"

अरूण उठकर खड़े हुए और बोले- अगर तुम अभी भी उस कुर्सी पर बैठना चाहते हो शक्ति, तो मैं अब तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता क्योंकि तुम्हारे उस कुर्सी पर बैठने की खबर की वजह से ही हमारे शेयर्स मार्केट में गिरे है।

"ऐसा नहीं है अंकल। कोई है जो नही चाहता कि मैं उस कुर्सी पर बैठूं इसलिए किसी ने जान-बूझकर मेरी इमेज खराब करके, वो खबर अखबार में छपवाई है। ताकि मैं उस कुर्सी पर ना बैठ सकूं क्योंकि हमारे राइवल्स ये अच्छे से जानते है कि अगर मैं मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया, तो हमारी कंपनी फिर से टॉप पर आ जायेंगी वर्ना आप खुद सोचिए अंकल....ये खबर कल ही क्यों छपवाई गई क्योंकि खबर छपवाने वाला ये जानता था कि मैं उस कुर्सी का सबसे बड़ा दावेदार हूं। मुझे उस कुर्सी पर बैठने से रोकने के लिए ही वो खबर छपवाई गई है।"

शक्ति की बातों ने अरूण को सोचने पर मजबूर कर दिया। छिपकर ये सब सुन रही गौरी को उस पर बहुत गुस्सा आया। तभी शक्ति उठकर अरूण के पास आया और बोला- अंकल अगर एक बार मैं उस कुर्सी पर बैठ गया, तो सब कुछ ठीक हो जायेगा और यही हमारे दुश्मन नहीं चाहते।

अरूण उसकी ओर देखकर बोले- मैं कभी तुम्हारे एमडी बनने के खिलाफ नही था शक्ति। इनफेक्ट मैंने तो खुद तुम्हारा साथ दिया था। ये सुनकर शक्ति तुरंत बोला- आय नो अंकल.... इसलिए तो आपके पास आया हूं।

"मुझसे क्या चाहते हो?"- अरूण ने पूछा। शक्ति उदास होने का नाटक करते हुए बोला- अंकल आप ये बात अच्छे से जानते है कि मेरा परिवार मेरे ही खिलाफ खड़ा है। उन्हें मुझसे ज़्यादा भरोसा हमेशा से शिव पर रहा है और शिव की मौत के पहले जो कुछ भी हुआ। उसकी वजह से वो सब आज भी मुझसे नाराज़ है और अखबार में छपी खबर के बाद, वो कभी मुझे उस कुर्सी पर बैठने नही देंगे पर अगर आप मेरी मदद करे, तो मैं उस कुर्सी पर बैठकर, आखिरी सांसे ले रही अपनी कंपनी को बचा सकता हूं।

अरूण बिना कुछ कहे उसे एकटक देखने लगे। गौरी की नज़रें भी सिर्फ उस पर थी। शक्ति हिम्मत करके बोला- मुझे आपके 25% शेयर्स चाहिए अंकल,

अरूण की आंखे खुली की खुली रह गई और गौरी ने गुस्से में अपने हाथों की मुठ्ठी बांध ली। शक्ति, अरूण का चेहरा देखकर उनके पास आया और बोला- अंकल प्लीज़, इंकार मत कीजिएगा। आप और मैं...सिर्फ हम दोनों इस वक्त हमारी कम्पनी को बचा सकते है। मैं आपसे वादा करता हूं कि एमडी बनने के बाद मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा और एक बार सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाए, फिर आपके शेयर्स फिर से आपके होगें। प्रॉमिस....आप चाहें तो मुझसे कोई भी पेपर्स साइन करवा सकते है। मेरा इरादा गलत नहीं है अंकल और ना ही मैं इंसान बुरा हूं। बस रति के लिए मेरी दीवानगी ने मुझे लोगों की नज़रों में बुरा बना दिया। उस लड़की ने दो भाईयों के बीच नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी, जो उसकी मौत के बाद टूट गई है। आज मेरी ज़िंदगी का सिर्फ एक ही मक़सद है। अपनी गलतियों का पछ्यताप करना और शिव के सपने को साकार करना। मैं हमारी कम्पनी को फिर से उसी मुकाम पर लाना चाहता हूं, जहां शिव ने उसे लाकर खड़ा किया था इसलिए प्लीज़ मेरी मदद करिए। प्लीज़,

"आय एम सॉरी शक्ति....पर मैं तुम्हें अपने शेयर्स नही दे सकता।"- अरूण बोले। शक्ति उन्हें एकटक देखने लगा। गौरी ने ऊपर सीलिंग की ओर देखकर अपने हाथ जोड़े और भगवान का शुक्र अदा किया।

शक्ति फिर से कुछ कहने जा ही रहा था कि तभी अरूण बोले- ये शेयर्स मेरी एकलौती बेटी की अमानत है शक्ति। और मैं ये शेयर्स सिर्फ उसे दूंगा, जिससे मेरी बेटी की शादी होगी और जहां तक मुझे पता है। मेरी बेटी शिव को चाहती थी, पर शिव ने उसे नही गौरी को चुना। पर तुम उसकी चाहत कभी नही थे और शायद आज भी नही हो। शक्ति के चेहरे पर परेशानी की लकीरें साफ़ नज़र आने लगी।

लेखिका
कविता वर्मा