उत्कर्ष-अभिलाषा - भाग 3 शिखा श्रीवास्तव द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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उत्कर्ष-अभिलाषा - भाग 3

"आइए-आइए हमारे सरकार बहादुर का स्वागत है जो इस खतरनाक द्वीप पर खतरों से खेलकर सही-सलामत लौट आए।" पायलट ने एक बार फिर आगे बढ़कर उत्कर्ष को गले लगाते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा।

प्रणय, जिसका चेहरा पायलट के चेहरे की तरफ ही था उसने उसके रंग उड़े हुए चेहरे को देखकर मज़ाकिया अंदाज में तंज कसते हुए कहा "क्यों भाई क्या हो गया तुम्हें? हमें देखकर तुम्हारी आवाज़ इतनी काँप क्यों रही है? तुम कहीं ये तो नहीं सोच रहे थे कि कोई खतरनाक साँप आकर उत्कर्ष को डंस लेगा और फिर तुम अकेले ही जहाज उड़ाते हुए यहाँ से वापस चले जाओगे।"

"ना ना...नहीं तो। मैं भला ऐसा क्यों सोचूँगा? आप भी क्या बात करते हैं प्रणय बाबू।" पायलट ने हकलाते हुए किसी तरह जवाब दिया और फिर सीधा अपने केबिन में चला गया।

केबिन में जाने के बाद उसने सामने की दीवार पर गुस्से में हाथ मारते हुए पायलट ने स्वयं से कहा "आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे? द्वीप पर जाते वक्त उत्कर्ष को गले लगाने के बहाने से मैंने उसकी सूट पर जो कट लगाया था वो तो अब भी वैसे का वैसा है फिर उन साँपों ने उसे डंसा क्यों नहीं?"

"क्योंकि तेरी इस घटिया हरकत पर मेरी नज़र जो पड़ गई थी नमकहराम।" अचानक प्रणय की आवाज़ पायलट के कानों से टकराई।

उसने घबराकर आवाज़ की दिशा में देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

"ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने उस चिपकू की आवाज़ बिल्कुल स्पष्ट सुनी है।" बड़बड़ाता हुआ पायलट एक बार फिर अपने केबिन से निकला तो ये देखकर चौंक गया कि जहाज के आखिरी छोर पर प्रणय और उत्कर्ष मिलकर अपना भारी-भरकम सूट खोलने में व्यस्त थे।

"ओहह मतलब सचमुच ये मेरा भ्रम था क्योंकि इतनी जल्दी मेरे केबिन से कोई भी उस आखिरी छोर पर कैसे जा सकता है? शुक्र है भगवान का।" पायलट ने गहरी नज़रों से प्रणय को घूरते हुए स्वयं से कहा और अपने केबिन में वापस लौट गया।

उसके जाने के बाद प्रणय के होंठो पर मुस्कुराहट उभर आई।
उसे यूँ मुस्कुराते हुए देखकर उत्कर्ष ने कहा "क्या हुआ? उधर देखकर क्या मुस्कुरा रहा है? अगर तू सोच रहा है कि अभी पायलट के केबिन से एक खूबसूरत एयर-होस्टेस निकलकर तेरे पास आएगी तो भाई याददाश्त दुरुस्त कर ले अपनी।
हम पब्लिक नहीं प्राइवेट ट्रांसपोर्ट में हैं।"

"हम्म इसी बात का तो अफ़सोस है।" प्रणय ने एक गहरी साँस ली।

उसकी इस अफसोसजनक बात पर उत्कर्ष को हँसी आ गई।

हँसते-हँसते ही उसने अपना पूरा सूट निकालकर शरीर से अलग किया और फिर अचानक ख़ामोश हो गया।

"अबे क्या हुआ? तू एकदम से आजकल की फिल्मों के खनकते हुए आइटम सांग्स से साइलेंट फिल्मों के युग में क्यों चला गया?" प्रणय ने चुहल करते हुए पूछा तो उत्कर्ष ने बिना कुछ बोले अपने सूट का वो हिस्सा उसके सामने कर दिया जिस पर एक स्पष्ट कट का निशान नज़र आ रहा था।

"अरे ये कैसे हुआ? तेरी सूट पर ये कट कैसे लगा? मतलब तू ये फटा हुआ सूट पहनकर उन ज़हरीले साँपों के बीच टहल रहा था भाई।" प्रणय ने घबराई हुई आवाज़ में कहा।

"लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है जब मैं ये सूट पहन रहा था तब इस पर कोई कट नहीं था और ना इसका मैटेरियल इतना कमजोर है कि तुझे पीठ पर लादने से चर्र हो जाए।
इसे काटने के लिए एक विशेष कैंची की जरूरत पड़ती है।" उत्कर्ष ने सोचते हुए कहा तो प्रणय बोला "छोड़ ना हम सही-सलामत लौट आये हैं ना। अब इतना क्यों सोचना। हो सकता है यहाँ आने की हड़बड़ी में तूने सूट ठीक से चेक नहीं किया होगा और ये कट पकड़ में नहीं आ पाया होगा।"

"हाँ हो सकता है। मैं तो कर्जदार हो गया भाई इन साँपों का जिन्होंने अवसर मिलने के बावजूद मुझे नहीं डंसा।" उत्कर्ष ने खिड़की से बाहर नज़र आ रहे साँपों की तरफ देखते हुए कहा।

"हम्म बात तो सही है तेरी। हम घर पहुँचते ही भोल बाबा के मन्दिर चलेंगे। आखिर ये साँप उन्हीं के सेवक तो हैं।" प्रणय ने अपने साथ-साथ उत्कर्ष की घबराहट को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा।

उत्कर्ष ने उसकी बात पर सहमति जताई और एक कुर्सी पर अपना सर टिका दिया।

उत्कर्ष की तरफ से ग्रीन-सिग्नल मिलते ही पायलट ने जहाज टेक-ऑफ किया और कुछ ही क्षणों में वो ग्रांडे-द्वीप की धरती छोड़ते हुए आसमान के रास्ते भारत की तरफ बढ़ने लगे।

अपने कमरे में निहाल बेचैनी से चहलकदमी करते हुए बार-बार मॉनिटर की स्क्रीन को देख रहा था कि कब उस पर उत्कर्ष के नेटवर्क से संबंधित कोई संकेत मिलेगा।

अत्याधुनिक नेटवर्क का प्रयोग करने के बावजूद जैसे ही उत्कर्ष के जहाज ने अटलांटिक क्षेत्र में प्रवेश किया था तब से ही उसका संपर्क निहाल से कट गया था।

मॉनिटर से अचानक तेज़ी से आती हुई बीप की आवाज़ जैसे ही निहाल के कानों में पड़ी उसने तेज़ी से आगे बढ़कर अपनी आँखें मॉनिटर स्क्रीन पर जमा दीं।

मॉनिटर पर लगातार बढ़ती हुई एक रेखा उत्कर्ष के जहाज के सुरक्षित लौटने की सूचना प्रेषित कर रही थी।

इस सूचना के साथ ही उत्कर्ष के पायलट का भेजा हुआ एक गुप्त संदेश भी निहाल की स्क्रीन पर चमकने लगा।

उस संदेश में उत्कर्ष के सही-सलामत होने की खबर पढ़ते ही निहाल ने गुस्से में हाथ मारकर मॉनिटर को फर्श पर पटक दिया।

"कमबख्त उत्कर्ष की किस्मत कुछ ज्यादा ही अच्छी है कि इतनी खतरनाक जगह पर जाकर भी बच गया। अब तो मुझे कॉलेज में उसकी जी-हुजूरी करनी पड़ेगी और वो अपने दो टके के उस नौकर प्रणय के साथ मिलकर मेरी खिल्ली उड़ाएगा।" निहाल जोर से दीवार पर मुक्का मारते हुए बड़बड़ा रहा था।

हवाई अड्डे पर लैंड करने के बाद जब उत्कर्ष और प्रणय घर जाने के लिए गाड़ी में बैठे तब थकान की वजह से उनकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी।

ग्रांडे द्वीप जाने और वहाँ से वापस आने में उन्हें दो दिन लग गये थे।

एक तरफ थकान और दूसरी तरफ घर पहुँचते ही पापा से पड़ने वाली डाँट के विषय में सोचकर अब उन दोनों दोस्तों की हालत खराब हो रही थी।

प्रणय ने काँपते हुए हाथों से उत्कर्ष का हाथ पकड़कर कहा "देख भाई मैं तो चाचू से साफ कह दूँगा की मेरी कोई गलती नहीं है। मुझे सज़ा से बचा लेना भाई प्लीज।"

डर तो उत्कर्ष को भी लग रहा था ऋषिकेश जी के सामने जाने से, लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए उसने कहा "हाँ-हाँ ठीक है। मुझ जैसे बहादुर बंदे का भाई होकर भी तू इतना डरपोक कैसे हो गया? ऐसे काँप रहा है जैसे हम रावण की लंका में प्रवेश कर रहे हैं।"

"भाई कुछ मिनटों के बाद तू भी ऐसे ही काँपने वाला है।" प्रणय ने कार की सीट पर सर टिकाते हुए कहा और अपनी आँखें मूँद लीं।

उत्कर्ष ने जब प्रणय की आँखें बंद देखीं तो उसने आहिस्ते से किनारे रखे हुए अपने बैग में हाथ डाला जिसमें उसका सुरक्षा सूट था।

सूट की गुप्त जेब में ही उसने ग्रांडे द्वीप पर तोड़ा हुआ फल प्रणय की नज़रों से छुपाकर रख लिया था।

उस फल को स्पर्श करके उसकी सलामती निश्चिन्त करने के बाद उत्कर्ष बेचैनी से खिड़की के बाहर देखने लगा।

अपनी माँ और अपने जन्म के रहस्य से सर्वथा अनजान उत्कर्ष अब बस घर पहुँचकर जल्दी से जल्दी इस फल को अपने हाथ में लेकर ध्यान से देखना चाहता था और ये जानना चाहता था कि आखिर इस फल में ऐसा क्या है जो उसका दिल और दिमाग दोनों उसकी तरफ आकर्षित हुए जा रहे हैं।
क्रमशः