स्वयंवधू - 5 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 5

हम अंदर गए। वृषा ने अपने हाथ-पैर धोकर पूजा सामग्री ली, फिर मैंने हाथ-पैर धोकर उससे सामग्री लिया और आगे चल दिए। हम शिव मंदिर गए। हमने शिव-शक्ति और पूरे शिव परिवार कि पूजा की। पूजा के बाद हम पुजारी जी से आशीर्वाद लेकर बाहर आए। हमारे बीच एक लंबी, अजीब सी खामोशी थी जिसे वृषा ने यह कहते हुए तोड़ा, "तुम्हें इस पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।",
मैंने हाँ में सिर हिलाया, और हम कार में बैठने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी किसी ने मेरा कंधा थपथपाया। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरी बुआ वहाँ थीं।
(ऐसे इंसान हो तो नियती पर कैसे विश्वास करूँ दाईमाँ?)
उन्होंने अपनी बुरी मुस्कान बिखेरी और पूछा, "तो कहाँ चली सवारी? हम्म्म? नया बॉयफ्रेंड सब, हाँ? हम सबके सिर से छत छीनकर कहाँ चली सवारी? मायके?", वह लगातार कचरी बातें कर रही थी। मुझे कुछ करना होगा यह दूसरी बार था। पहले जब पुजारी जी जोड़ा समझ लिया और अब ये!
मैंने यह कहकर उनकी बातचीत बंद कर दी, "क्या काम है?", कहना तो था, 'ज़्यादा सगे मत बनो।'
(! एक मिनट, क्या?) मेरी बत्ती देर से जली।
उन्होंने धीमी आवाज़ और मीठी चाशनी में मुझे बुरा-भला कहा, "तुम तीनों को वह मिल गया जो तुम तीनों चाहते थे लेकिन अफसोस तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि तुम्हारे पिता ने इनकार कर दिया है।", वह कुछ कहने जा रही थी लेकिन वृषा बातचीत में आ गया।
"क्या यह तुम्हारी रिश्तेदार है?”, उसने ठंडे स्वर में पूछा,
मैं एक पल के लिए स्तब्ध रह गयी और समझ नहीं पायी कि स्थिति की व्याख्या कैसे करूँ? मैंने बस इतना कहा, "डैडा कि छोटी बहन।",
"मेरे पास जोंक से बात करने का समय नहीं है। वृषाली, कार में बैठो।", मैं वहाँ दंग रह गयी। वह ऐसे बात कर रहा था जैसे वह उसकी रिश्तेदार हो, मेरी नहीं। लेकिन जो भी हो वह सही था।
सारे लोग हमारे आसपास जमा होने लगे,
"अरे! ये तो सूर्यकांत की छोटी पोती है ना?",
"हाँ। जिसने एक पैसेवाले आदमी की गृहस्थी तोड़कर उससे शादी करने जा रही है?",
"नहीं रे! उसका जिसका भरी बाज़ार में अपहरण हुआ था।",
"ओह! पर वो तो बैल से भी ज़्यादा तंदरुस्त लग रही है।",
"मैंने सुना है ये दोनो की मिली भगत है और हमारे सूर्यकांत भाईसाहब को उनके ही घर से घसीटते हुए बाहर निकाल दिया।"
वो मुस्कुराने लगी।
"देखो भाई, इसने अपने आशिक के साथ पहले साजिश के तहत हमे अपने घर से बाहर निकाल फेका अब हमे बीच सड़क पर बदनाम नीच, चरित्रहीन कहकर किया जा रहा है। मैं अपने रास्ते जा रही थी पर इसने रोककर मेरा अपमान शुरू कर दिया।", वह हाथ जोड़कर रो-रोकर बोली, "भले ही हम बेघर किया गया हो पर बीच रास्ते पर शोषण करना। वृषाली तुम हमे मार डालो पर हमे ऐसे बेइज़्ज़त मर करो! हम तुम्हारी जितनी सक्षम नहीं है जो अपने ही अपहरण का नाटक रच सके। हमे छोड़ दो- छोड़ दो।", वह गिड़गिड़ाने लगी,
आस-पास के लोग आपस में खुस-पुसाने लगे। उनमें से कुछ आवाज़ आई,
"मैंने सुना था इसके बाप ने माफियाओ से भारी लोन लिया था और चुका नहीं पाए।",
"अरे नहीं भाई! विवेक ने अपने भाई के नाम का फ़र्जी इस्तेमाल किया था।",
"किसको पता कौन सही है पर जायदाद अब उसकी हो गई है।",
"किसकी?",
"और किसकी इसके-",
कही से कई आदमी आ गए और हमे घेर लिया। वृषा मेरा हाथ पकड़ मुझे ले गए। मैं बस क्या हुआ उसे समझने की कोशिश कर रही थी।
(डैडा? साजिश? घर हत्याना? आखिर हुआ क्या है? सब ठीक तो है?)

मैंने उसे तिरछी आँखों से देखा, उसकी आँखें लाल थीं।
"क्या तुम रो रही हो?"
वह गुमसुम बैठी थी।
"वापस जाना चाहती हो या कुछ खरीदना चाहती हो?", मैंने सरलता से पूछा, उसने तुरंत उत्तर दिया, "मैं..." फिर चुप हो गई। हम फार्महाउस वापस चले गए।
मैंने उससे बात कि कोशिश की पर वो मुझे अनसुना कर चली गई। मैंने दाईमाँ को रोका और उसे जाने दिया। हम हॉल में बैठे। मैंने बताया कि क्या हुआ।
"इस मानसिक स्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते।", दाईमाँ ने चिंतित होकर कहा,
"ऐसा नहीं होगा लेकिन मैं उसे इन सब बातों का जवाब नहीं देना चाहता।",
लेकिन तुम्हें अपनी नियति से कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए...", वह परेशान लग रही थी,
मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि सब सुनिश्चित होने के बाद सब बता दूँगा।
(वह महाशक्ति हो सकती है, पर मुझे कुछ चीजें साफ करनी होंगी...)
"परेशान मत हो वृषा, वह शायद इसे संभाल लेगी। तैयार हो जाओ। हम कब जा रहे हैं?"
"दो दिनों में, सुबह-सुबह। मोनिका को कॉल करें और उसे लगभग 3.00 बजे के लिए बुक कर लीजिए।",
"ठीक है। लेकिन क्यों?",
"कोई बड़ी बात नहीं।",
मैं अपना लंबित काम पूरा करने के लिए ऊपर गया। जैसे ही मैंन स्टडी रूम का दरवाज़ा खोला, मैंने उसे फिर से बादलों के सागर की ओर देखते हुए देखा।
"पाँच मिनट में कार में आ जाना।", मैंने राय कि राय नहीं पूछी बस उसे चलने को कहा,
वह पाँच मिनट में नीचे आई और चुपचाप अंदर बैठ गई।
"हम समुद्र के किनारे जा रहे हैं।", मैंने कहा पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी,

वो और मैं कार में बैठे और लगभग 10 मिनट ड्राइव के बाद किनारे पर पहुँचे। वह समुद्र के पास गयी और वहाँ अकेली बैठ गयी। मैं उसके पास जाकर बैठा। उसे देखकर मुझे मेरे अतीत और कभी-कभी वर्तमान की याद दिलाती थी।

"अहम!" मैं चुपचाप अपना गला साफ़ कर, "परेशान?",
"...", उसने जवाब नहीं दिया।

"अब कैसा महसूस कर रही हो?" मैंने फिर पूछा,
"...", अब भी कोई उत्तर नहीं।

"यह तरोताज़ा करने वाला है, ना?",
"...", फिर कोई उत्तर नहीं। उसने मुझे नज़रअंदाज किया।
(मैं हार मानता हूँ...)
मैंने उसे उसके गालों से पकड़ा और मेरी ओर मोड़ा। अचानक घुमने के कारण उसका ढीला बँधा जूड़ा खुल गया और उसके आधे सूखे रेशमी बाल समुद्री हवा के वेग से उड़ने लगे। जिसने मेरे चेहरे पर सीधा तमाचा मारा। (वाह! चिकने बाल भी एक हथियार हो सकते हैं।) मैंने पकड़ ढीली कर दी। उसने अपने बालों को बाँधा। उसने मुझे चिढ़ कर देखा, और वापस कार की ओर जाने लगी।
अरे, मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी! मैं उसके पीछे भागा। कई बार उसका नाम चिल्लाने के बाद, उसका हाथ पकड़ा और गलती से उसे कार के दरवाज़े पर सटा दिया। वो चौंक गयी और डर गई थी।

शायद वह आश्चर्यचकित थी पर उससे ज़्यादा मैं आश्चर्यचकित था यह देखकर कि वो कितनी छोटी थी!
(मैं खुद को औसत से अधिक जानता हूँ लेकिन अब मुझे पता है कि औसत से कम लोग भी होते हैं।)
वह बमुश्किल मेरे पेट को पार कर सकती थी। मैं जानता था कि वह केवल 150 से.मी की थी, लेकिन उससे इतनी छोटी होने की उम्मीद नहीं थी।
#वह 200 से.मी यानी 6.5 फीट से अधिक लंबा है। वृषाली 150 से.मी यानी 4.9 फीट की हैं।

(अभी ये सब सोचने का वक्त नहीं है।)
उसने मुझे भ्रमित दृष्टि से देखा। मैंने उसे देखा, वह तनावग्रस्त लग रही थी। मैंने उसे छोड़ा और कहा, "चलो सीधी मुद्दे पर आते हैं।",
मैं उससे और झूठ नहीं बोल सकता।
हम समुद्र के पास गए और एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर चट्टानों पर बैठ गए।
"तो कहो तुमने अपने लिए लड़ाई क्यों नहीं की?", मैं सीधे मुद्दे पर आया,
उसने लंबी साँस के साथ उत्तर दिया, "मैं नहीं कर सकती... मैं डर गई थी!",
"तुम्हारे हमेशा डरे रहने का कारण?",
"...", कोई जवाब नहीं!
"बच्चे, तुम ऐसे नहीं चल सकती।",
उसने रोनी आवाज़ को संभालते हुए कहा, "मैंने कोई साजिश नहीं की!... मैं...गुनाह मेरा था, मैं अगवा की गई! अपराध मेरा था जो मैंने जन्म लिया! मेरे कारण मेरे परिवार का नाम ऐसे बीच बाज़ार में उछला! मुझे उसी दिन मर जाना चाहिए था!!",
मैं महसूस कर सकता था कि उसका गला भरा हुआ था, "अगर तुम्हें रोना आ रहा है तो रो। तुम्हें कोई नहीं रोक सकता!",
उसने चुपचाप मेरी बात सुनी और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन फिर भी मैंं उससे बाते करता रहा। उसे उसके दिल कि बाते करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। कुछ प्रयास के बाद उसने अपने होंठ हिलाए। उसने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उसके दिल का बोझ आँसुओं के रूप में उसकी आँखों से बह निकला...आँसुओं में ना केवल पानी और नमक था बल्कि दर्द, डर, चिंता और अन्य नकारात्मक भावनाएँ थी जो उसे जकड़े हुए थी।
सिसकना...सिसकना...सिसकना...काफी देर तक रोने के बाद वह शांत हुई। मैंने उसे पानी का बोतल दिया। उसने इसे लिया और आधी बोतल को गड़गड़ाकर गटक लिया, "आह!"
"ठीक?", मैंने उससे पूछा,
उसने हाँ में सिर हिलाया। अब जब वह शांत हो गई थी। मुझे लगा भविष्य में बेहतर तालमेल के लिए हमारे बीच उचित बातचीत की आवश्यकता थी। उसे यह जानने का हक था कि उसे किन चीजों में घसीटा गया था।
"वृषाली, मुझे लगता है कि हमें बात करने की ज़रूरत है। पिछली बार की तरह नहीं, ज़्यादा सटीकता से करने की ज़रूरत है।",
वह मुझसे सहमत थी। पहल मैंने की-
"जैसा कि तुम पहले से ही जानती हो कि मैं वृषा बिजलानी, बिजलानी फूड्ज़ की भावी उत्तराधिकारी हूँ। यद्यपि मैं तुमसे चार वर्ष बड़ा हूँ, परन्तु भविष्य के लिए मुझे वृषा कहो। बहुत सी चीजें है जो हुई हैं, बहुत सी चीजें है जो हो रही हैं, बहुत सी चीजें है जो होने वाली है जिनके बारे में हम नहीं जानते कि वे होंगी, इसके लिए हमें एक टीम के रूप में काम करना होगा। अभी तुम नहीं समझोगी लेकिन जल्द ही समझ जाओगी।",
उसने कांपती आवाज़ में मुझसे पूछा, "उन्होंने जो कहा वह सही था? क्या आपने किया...", वह रुक-रुक कर बोल रही थी,
"जानना चाहती हो?",
उसने आँखो से हाँ कहा।
"तो सुनो बच्चे, उसने जो कहा वह सच था। मैंने उन्हें उनके घर से बाहर निकाल दिया।",
"क्या?... क्यों!?", वह उत्तेजित हो गयी, "आपने कहा था कि मेरा प्रदर्शन उनकी सुरक्षा तय करेगा, तो आपने मेरे परिवार को घर से बाहर क्यों निकाला? आपने तो इंतज़ार भी नहीं किया।",
"आराम करो, लड़की। क्या तुमने नहीं सुना कि विवेक ने तुम्हारे पिता का नाम इस्तेमाल किया?",
उसने हाँ में सर हिलाया।
"बात यह है कि...",
"क्या आपने यह किया?", मैंने उस दिन वहाँ जो कुछ हुआ था, वह सब बताया, वह बहुत आश्चर्यचकित और खुश लग रही थी,
"क्या उन्होंने सचमुच उन्हें अस्वीकार कर दिया और अब वे असली मालिक हैं?",
"हाँ।",
"मम्मा की क्या प्रतिक्रिया थी? क्या डैडा इसे स्वीकार कर पाए?", वह वास्तविक बात के बारे में चिंतित थी,
"उन्होंने घर लेने से इनकार कर दिया और तुम्हारी माँग की।", वे वास्तव में महान माता-पिता थे,
"तो आपने क्या किया?", वह चिंतित थी,
"खैर, मैं एक माफिया हूँ इसलिए मैं अपनी कमाई हुई चीज़ों का उपयोग करूँगा।",
"तो आपने संपत्ति नहीं ली है। है ना?", उसने घबरा कर पूछा, मैंने 'नहीं' में सिर हिलाया तो वह शांत हो गई,
जिसने मेरे अंदर एक सवाल जगा दिया, "तुम्हें क्यों लगता है कि संपत्ति मुख्य है, तुम नहीं? क्या तुम भाई-बहनों की गिनती संपत्ति के सामने कुछ नहीं?",
"नहीं!", उसने तुरंत इनकार कर दिया, "कभी नहीं! हमारे लिए परिवार से ज़्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता!", उसने पूरे विश्वास के साथ कहा,
"तो जब हम तुम्हारे बारे में बात कर रहे हैं तब वह आत्मविश्वास कहाँ चला जाता है?",
वह स्पष्ट रूप से हिल गई। उसने मुझे टालने को कोशिश की, "ऐसा कुछ नहीं।"
मैंने जारी रखा, "वृषाली, अभी तुमने ही कहा था ना कि परिवार से बढ़कर कुछ नहीं। तो तुम्हारा परिवार तुम्हारे बिना पूरा है? अगर ऐसा है तो तुम उस परिवार की सदस्य कैसे हुई?",
वह मेरे सवाल से दंग रह गई, वह बहुत देर तक चुप रही। जब उसने बहुत देर तक एक भी शब्द नहीं बोला तो मैंने कहा, "सुनो बच्चे, मैं परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता लेकिन मैं तुम्हें इतना ज़रूर बता सकता हूँ कि वे तुमसे बहुत प्यार करते हैं। तुम योग्य हो।",
तब मौन वृषाली ने पूछा, "क्या मैं सच में योग्य हूँ? इसीलिए आपने मेरा अपहरण किया?",
अब मेरे पास कोई जवाब तैयार नहीं था।
वह दर्द से मुस्कुराई और बोली, "देखा! आप भी नहीं कह सकते कि मैं किसी योग्य हूँ। योग्य होना एक ऐसी कला है जो मेरे पास नहीं है। बचपन से ही मुझे अनाड़ी होने और हर काम गलत करने के लिए ताना मारा जाता था। उन्होंने ने भी मुझे ताना मारा और कूटा पर उसमे सम्मान, प्रेम और परवाह के अलावा कुछ और नहीं था... यह समय की बर्बादी है। आप किस बारे में बात करना चाहते हैं?",
मैं बस उसे जारी रखने के लिए घूर रहा था,

"-आप किस बारे में बात करना चाहते थे?",
"...यदि आपके पास कहने को कुछ नहीं है तो हम जा सकते हैं, है ना?",
"हैल्लो?",
मैं देख सकता था कि वह जानबूझकर इस बातचीत से बचना चाह रही थी,
"तुम मुझे अपने बारे में क्यों नहीं बता सकती?",
उसने मुझसे बस यही पूछा, "किस प्रकार का माफिया अपने शिकार के बारे में जाँच नहीं करता?",
जिसने मुझे अचंभित कर दिया।
"सुनो, तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारे लिए गुलाम बनने को तैयार हैं, फिर तुम क्यों सोचती हो कि तुम इसके लायक नहीं हो? उन्होंने तुम्हें प्रताड़ित किया?",
"कभी नहीं।",

"फिर कैद कर रखा?",
"नहीं।",

"फिर अपने उसूल तुमपर थोपे?",
"उससे क्या? वे जो करते है हमारे लिए करते है।",

"तो फिर कारण क्या है तुम्हारी इतनी कम आत्मविश्वास का?",
"...", वह चुप रही,

"सुनो वृषाली, तुम्हारे बचपन में ज़रूर कुछ ऐसा हुआ होगा जिससे तुम्हारा यह स्वभाव उत्पन्न हुआ, जिसका तुम्हें एहसास भी नहीं है?",
वह चुप थी। फिर वो बोली, "माम्मा कहा करती थी कि मैं बहुत ऊर्जावान बच्ची थी, जिसे संभालना बहुत कठिन था।", वह बहुत उत्साहित नहीं लग रही थी,
"हम्मम?",
"हालाँकि मुझे याद नहीं है कि मैं कभी ऊर्जावान थी। मुझे अपना बचपन लगभग याद नहीं है। मम्मा कहा करती थी कि जब मैं चार-छह साल की थी तब मैं बहुत बीमार हो गई थी, जैसे मेरी आत्मा को किसी ने चूस लिया हो। मैं कई महीनों तक अस्पताल में रही। मेरे जीने की उम्मीद ना के बराबर थी, फिर किसी चमत्कार से मैं मरी तो नहीं लेकिन मेरा शरीर हर काम के लिए बेकार हो गया। मैं लंबे समय तक चल नहीं सकती, मैं दौड़ नहीं सकती, मैं खेल नहीं सकती और... मैं लंबे समय तक बिना हाफे बात नहीं कर सकती थी। वो...मैं सामाजिक रूप से बहुत अच्छी नहीं थी तो कोई बात नहीं थी... लेकिन इसके बाद मैं खुद को सक्रिय बच्चों के समूह में फिट नहीं कर पाई। पहले तो वे मेरे प्रति विचारशील थे, पर कौन लंबे समय तक आपका इंतजार करेगा? उन्होंने मुझे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और मेरे साथ अन्य छात्रों की तरह व्यवहार करने लगे तथा मुझसे राह पर पड़े कंकर की तरह पेश आने लगे। पहले तो मैंने अपनी भावनाएँ मम्मा के सामने व्यक्त कीं, लेकिन अंततः उनके मानसिक दबाव को देखकर मैंने ऐसा करना बंद कर दिया। आप समझ सकते होंगे, मैं उन्हें निराश करने से डरती हूँ!
मैं आशा करती हूँ कि आप कुछ और नहीं पूछेंगे। मैं किसी के साथ सामान्य बातचीत नहीं कर सकती। यहाँ तक कि आपसे बात करते हुए भी मैं इतना घबरा रही हूँ कि जो कुछ भी मुझे याद आता गया, उसे बेवकूफों की तरह बोले जा रही हूँ। मैं गहराई से जानती हूँ कि आपको पछतावा होता होगा कि कैसे मुसीबत आपके पल्ले पड़ गई और कैसे इससे छुटकारा पाऊँ?",
"ऐं?", बातचीत ने ऐसा मोड कब ले लिया?
"मुझे पता था! जब आपको इसका पछतावा हो ही रहा होगा कि आपके खाते में मैं कैसे आ गई?", उसने हँसकर कहा,
"रुको! मैंने कब कहा कि मुझे इसका पछतावा है?",
"अब आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं! यदि आप मेरी लंबाई, वज़न या चरित्र का मज़ाक उड़ा रहे हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, इसमें मैं क्या कर सकती हूँ।", वह उदास लग रही थी,
वह लगातार बड़बड़ा रही थी। वह कैसे कह सकती थी कि वह आसानी से डर जाती है? मैने अपने हाथों से उसका मुँह ढक दिया, "! हम्म?",
"बस मेरी बात सुनो।", मैं अपरिपक्व व्यवहार कर रहा था,
वह कांप रही थी।
"ओए! क्या तुम डर से काँप रही हो? क्या तुम्हें डर लग रहा है?",
उसने अपना चेहरा घुमा लिया।
"खैर मैं झूठ नहीं बोल सकता कि तुम अनाड़ी नहीं हो लेकिन तुम ज़िम्मेदार तो हो लेकिन अत्यधिक कायर भी।",
"धन्यवाद, कुछ ज़्यादा ही ईमानदार हो गए।",
"वाह! यह तो कठोर था। तो मैं कह रहा था कि मुझे माता-पिता के प्यार किस प्रकार का होता है उसकी समझ नहीं है लेकिन, तुम्हारे माता-पिता से मिलने के बाद मुझे इसका सार समझ आया। वे तुमसे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए उनके प्यार का मज़ाक मत उड़ाओ, इस प्रकार का निःस्वार्थ प्रेम दूसरे बच्चे का सपना हो सकता है। उनका और उनके प्यार का सम्मान करों।",
"तो...फिर आपके जैसा अमीर लड़का इस द्वीप पर क्या कर रहा हैं?", वह अब सामान्य लग रही थी,
"क्या यह स्पष्ट नहीं है? निश्चित रूप से अपना सामान लेने।",
वह आश्चर्यचकित लग रही थी, "आप सबसे बुरे हो।",
"और मैं तुम्हारा बहुत अच्छा उपयोग करने जा रहा हूँ।",
"अगर आप मेरा इस्तेमाल करेंगे तो आप सबकुछ खो देंगे।",
अचानक गंभीरता से कहा, "मैं करूँगी। वैसे वृ-वृषा... मुझे बताना अगर मैंने अपनी सीमा लांघी तो। आपको हमारे रिश्ते कि इतनी परवाह क्यों है? इसका आपसे या आपके माफिया वाले काम से कोई लेना-देना नहीं है, फिर क्यों?",
मैं दंग रह गया, "तुम क्यों जानना चाहती हों?",
वह बहुत गंभीर थी, "आप मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं, यहाँ तक कि मैं किस प्रकार का टूथपेस्ट उपयोग करती हूँ और यहाँ मुझे मेरे अप-हरण-कर्ता के बारे में कुछ भी नहीं पता?", उसने अपहरणकर्ता पर अच्छा खासा ज़ोर दिया,
"पर क्यों?", मैं अब और इनकार नहीं कर सकता, "मुझे तुम्हारे परिवार से ईर्ष्या हो रही थी। जब मैंने उन्हें अपने बच्चे के लिए अपना सबकुछ त्यागते देखा, हालाँकि तुम्हारे बाद भी उनके पास दो और बच्चे बचे होंगे, लेकिन फिर भी उन्होंने तुम्हें वापस पाने के लिए अंत तक लड़ाई लड़ी। तुम्हारा भाई अपनी 'चुप्पी' वापस पाने के लिए मुझे पीटने के लिए भी तैयार था। क्या तुम्हारा नाम 'चुप्पी' है?",
उसने शर्म से कहा, "यह नाम मेरे डरपोक स्वभाव के कारण पड़ा।",
"देखो, यह ऐसी चीज़ थी जिसके बारे में मैंने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं सुना था, ना देखा था, ना अनुभव किया था। (अपराध बोध की उस भावना ने मुझे अच्छा पकड़ा।) जब मैं पाँच साल का था तब मेरी दादी मुझे छोड़कर चली गईं। उसके बाद हालात बहुत खराब हो गए... जब मैं दस साल का था तब मेरी माँ ने भी मुझे छोड़ दिया और मेरी माँ के बाद मेरे पिता ने मुझे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल किया। मैं अपने पिता के लिए सिर्फ एक पासा मात्र हूँ। मैं कंपनी में सिर्फ एक अंशकालिक निदेशक और एक पूर्णकालिक एंप्लॉय हूँ, मैं सिर्फ एक कर्मचारी हूँ जो एक गुलाम की तरह काम करता हैं।",
वह कुछ देर तक चुप रही तो मैंने पूछा, "क्या यह तुम्हारे लिए एक झटका था?",
मैं चट्टान पर आराम से लेट गया।
"यह नाटकीय था, है ना?", मैंने पूछा,
उसने यह कहकर मना कर दिया, "नहीं! मुझे लगा आप बहुत अकेले होंगे?...आह! मैं नहीं जानती कि दूसरों को सांत्वना कैसे दिया जाता है! लेकिन यह आपके लिए कठिन होगा?",
"इतना नहीं। मैं काफी अनुकूल हो रहा हूँ और दाईमाँ ने बारह साल की उम्र से मेरी अच्छी देखभाल की है।",
"यही कारण है कि वह आपके प्रति इतनी अधिक सुरक्षात्मक है?", उसने पूछा,
"...", मैं एक क्षण के लिए चुप हो गया,
"क्या हुआ?", वह चिंतित थी,
मैंने अपना सिर हिलाया, "कुछ नहीं। कहाँ था मैं? हाँ, मैं कह रहा था कि मुझे वृषाली की मदद चाहिए।",
"कैसी मदद?", उसे मुझे शक्की नज़र से देखा,
"क्या? जैसा कि मैंने पहले कहा, मेरा अपने जीवन पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने मेरे साथ मेरे घर में रहने के लिए सात लड़कियों का एक समूह व्यवस्थित किया और...", यह बहुत घृणित था! उसे भी घृणा महसूस हुई होगी।
"...वे एक ही छत के नीचे रहेंगे और प्रतियोगिता में उनकी गतिविधियों और प्रदर्शन के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाएगा। इस बकवास शो का नाम 'स्वयंवधू' है। इसे पहले ही प्रमुख समीक्षाएं प्राप्त हो चुकी हैं और शीर्ष व्यापार और राजनीतिक नेताओं की लड़कियों ने इस प्रतियोगिता के लिए आवेदन किया था और उनमें से छह का चयन किया गया।",
"-सातवें से आपका मतलब है, मैं...?",
"हम्म।",
उसने अटकते हुए पूछा, "...सातवीं हूँ?",
मैंने उसे इशारा किया। वह तुरंत अपने शर्मीले व्यक्तित्व की सबसे खराब स्थिति में पहुँच गई। सदमे के कारण वह एक शब्द भी नहीं बोल पा रही थी और नाही कोई आवाज़ निकाल पा रही थी।
मैंने उसके सिर पर थपथपाते हुए कहा, "चिंता मत करो बस खुद बने रहो और मैं तुम्हारे साथ हूँ।",
उसने मेरा हाथ पकड़ा और पूछा, "क्या आप शादी नहीं करना चाहते?",
इसका जवाब मुझे सोचने की भी ज़रूरत नहीं, "नहीं, यह जीवन की बर्बादी है।",
वह हँसी और बोली, "यही स्थिति यहाँ भी है। मैं भी यही चाहती थी।",
"मैं समझा नहीं।",
"मैं भी शादी से डरती हूँ। मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी किसी और के नहीं। खैर छोड़ो, वो अलग कहानी है। आपको मेरी ज़रूरत है और मैं वापस घर नहीं जा सकती। वैसे मुझे अपने पे ज़्यादा उम्मीद नहीं है आप भी मत करना।",
मैंने उसे बड़ी राहत की साँस के साथ देखा, "यह अधिक भरोसेमंद लगता अगर तुम बिना कांपे कहती।",
उसने अपने हाथों को घूरा और उसे अपनी कुर्ती की जेबों में छिपा लिया। "इसका कोई फायदा नहीं है, मुझे हाथ दो, हम जा रहे हैं।",
"मैं अपने आप नीचे जा सकती हूँ।", उसने खुद नीचे जाने की कोशिश की और फिसल गई... "आउच!", मैंने उसे संभाल लिया, "क्या 'आउच'? पहले देख तो लो गिरी की नहीं।",
अब उसने मेरा हाथ पकड़ा और चट्टान पर चलने लगी। जब हम नीचे आये तो उसने पूछा, "आप अपने चेहरे का इस्तेमाल कर सकते हैं और लड़कियों को अपने पीछे आकर्षित कर सकते हैं। आप मुझसे अधिक भरोसेमंद और गुणवान किसी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।",
मैं उसकी बात समझता था लेकिन मैं अभी असली सच्चाई नहीं बता सकता। "तुम अधिक भरोसेमंद और अच्छी बच्ची हो, जिसे मैंने पाया।",
"आज के लिए धन्यवाद, वृषा। इससे मुझे बहुत मदद मिली।", वह एक अच्छी बच्ची थी,
"मेरे लिए भी यही बात है।",
अब हम समुद्र में थे, "क्या तुम तैरना जानती हो?",
वह मुझे भयभीत होकर देखने लगी। हम बस चलते रहे, हम दोनों पानी से बाहर निकले और अपने जूते-चप्पल पहनने लगे तब रेत हमारे जूते-चप्पलों अंदर घुस गए तो हमे गाड़ी तक नंगे पैर ही चलकर जाना पड़ा।
ब्रर्ररर...ब्रर्ररर... मुझे फोन आया, "हम्म?", (यह एक चेतावनी थी।)
मैंने मोबाइल जेब में रखा, (मुझे कायल के बारे में कुछ करना होगा।)
मैंने वृषाली को अपनी ओर आते देखा, "वृषा, क्या आप ठीक है? आप अचानक से उदास लग रहे हो।",
एक बच्चे को मेरे बारे में चिंता करते देख मुझे दयनीय महसूस हुआ। "कोई गंभीर बात नहीं, बस थोड़ा सा काम बाकी है।",
जब मैं अपना मोबाइल वापस रख रहा था तो मुझे मंदिर जाने का मुख्य कारण याद आया। दाईमाँ मुझे गजब सुनाने वालो थी अगर मैंने आज यह काम ना किया तो। सरयू और आर्य को तो संभाल लूँगा पर दाईमाँ को नाराज़ नहीं कर सकता, "वृ...वृषाली!",
"जी?", उसने कोमलता से पूछा,
"कुछ नहीं। चलो बस वापस चलते हैं।",
हमलोग वापस गए।

रात्रि भोजन के समय मैंने बताया की कि हम दो दिन में मुख्य भूमि पर जा रहे हैं। वह हैरान लग रही थी और अच्छा खेल रही थी, "क्या कल हमारा यहाँ आखिरी दिन होगा?", वह बहुत उदास थी।
स्टडी में,
"वृषाली, तुम अपने परिवार के लिए एक पत्र लिख सकती हो। जो तुम चाहें लिख सकती हो।",
उसने यह कहकर इनकार कर दिया, "यह वास्तविक जीवन है कोई नाटक नहीं जहाँ सब कुछ आपके अनुसार होगा। आपने पहले ही उनके लिए बड़ी गड़बड़ कर दी है।",
(आप कभी नहीं जान पाएँगे कि आपने हमारा कितना अपमान किया है।)
मैंने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की, "यह आपके ऊपर है वृषा। मैं बाहर की परिस्थितियों को नहीं जानती और मैं परिस्थितियों से निपटने में बहुत बुरी हूँ, इसलिए मैं आप पर विश्वास कर रही हूँ, आप सही कदम उठायेंगे।",
मैं घबराई हुई अपने कमरे में चली गई।