इंसान या यूँ कहिये इस ब्रह्मांड का कोई भी जीव चाहे लाख कोशिश क्यों ना कर ले, प्रकृति ने, ईश्वरीय सत्ता ने उसके भाग्य में जो लिख दिया है, उसकी हथेली की रेखाओं में जो दायित्व उसे सौंप दिया है, उसे पूरा करने के रास्ते पर चलने से वो स्वयं को नहीं रोक सकता है।
कुछ इसी तरह अभी-अभी अपना इक्कीसवां जन्मदिन मना चुका वो नवयुवक जिसके चेहरे पर सदा ही देवताओं सा आलौकिक तेज़ नज़र आता था, जो अपने दिव्यत्व से सहज ही किसी का भी मन मोह लेता था, राज्य के सबसे अमीर परिवार का इकलौता बेटा जिसे उसके पिता ने नाम दिया था 'उत्कर्ष', अपने सबसे अज़ीज मित्र 'प्रणय' को साथ लिए अपने निजी विमान से उड़ा जा रहा था अटलांटिक महासागर में स्थित इस पृथ्वी के सबसे खतरनाक द्वीप ग्रांडे की तरफ।
वो द्वीप जहाँ इंसान नहीं सिर्फ बड़े-बड़े ख़तरनाक साँप पाए जाते थे, वहाँ जाने का उसका बस एक ही मकसद था अपने क्लासमेट्स के साथ लगी हुई शर्त को जीतना।
उत्कर्ष को शर्तें लगाना और खतरों से खेलना बहुत ज्यादा पसंद था।
इसलिए उसके पिता ऋषिकेश जी बहुत ज्यादा चिंतित रहा करते थे कि कहीं इन चक्करों में उनका लाडला बेटा किसी मुसीबत में ना फँस जाए।
इधर जब उत्कर्ष के ऐसे खेल ज्यादा बढ़ने लगे थे तब उन्होंने सख्ती दिखाते हुए पहले तो उसे ये सब करने से मना किया और फिर अपनी तसल्ली के लिए दो सुरक्षा गार्ड्स उसके साथ लगा दिए जो हर वक्त उसके आस-पास रहते थे।
लेकिन अगर ऋषिकेश जी डाल-डाल थे, तो उत्कर्ष भी पात-पात था।
कॉलेज में टीवी पर आने वाले एक रियलिटी शो 'खतरों के खिलाड़ी' पर चर्चा करते हुए जैसे ही उत्कर्ष ने कहा कि इस शो के प्रतिभागीयों से बेहतर स्टंट वो कर सकता है, बस उससे हमेशा खार खाए रहने वाले कॉलेज के उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी निहाल और उसके साथियों ने ये सही मौका पाकर उसे चैलेंज कर दिया कि अगर वो ग्रांडे द्वीप पर उतरकर सिर्फ तीस मिनट वहाँ के जंगलों में बिता लेगा तो निहाल अपनी पूरी गैंग के साथ हमेशा के लिए उसका गुलाम बन जाएगा।
निहाल की बात सुनते ही उत्कर्ष ने बिना देर किए इस शर्त को स्वीकार कर लिया।
उत्कर्ष की बात सुनते ही जहाँ निहाल के होंठो पर कुटिल मुस्कान खेलने लगी वहीं उत्कर्ष के बेस्टी प्रणय के माथे पर घबराहट की वजह से पसीने की बूँदें उभर आईं।
ग्रांडे द्वीप की भयावहता से संबंधित कई किस्से प्रणय पढ़ चुका था।
लेकिन उसे पता था कि एक बार उत्कर्ष ने हामी भर दी है तो अब वो किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगा।
प्रणय के माथे से पसीना पोंछते हुए उत्कर्ष ने हँसते हुए उससे कहा "अबे तू अभी से इतना क्यों डर रहा है? अभी तो हम उस द्वीप पर पहुँचे भी नहीं हैं?"
"हम से तेरा क्या मतलब है?" प्रणय ने काँपती हुई आवाज़ में पूछा।
"हम से मतलब मैं और तू। अब तुझे तो चलना ही पड़ेगा मेरे साथ वरना मेरे तीस मिनट वहाँ बहादुरी से टहलने के वीडियोज कौन बनाएगा?" उत्कर्ष ने जैसे ही कहा प्रणय को ऐसा लगा मानों उसे चक्कर आ जाएगा।
किसी तरह खुद को संभालते हुए उसने कहा "देख उत्कर्ष पागल मत बन। एक मामूली सी शर्त तेरी ज़िन्दगी से बढ़कर नहीं है। मेरी मान ये पागलपन मत कर। लगानी ही है तो कोई दूसरी शर्त लगा ले भाई।"
"बिल्कुल नहीं। तू क्या चाहता है वो निहाल सारी जिंदगी मुझे कायर कहकर मेरा मज़ाक उड़ाता रहे।
तू टेंशन मत ले मैं बेवकूफ नहीं हूँ जो अपनी और तेरी जान खतरे में डाल दूँगा।
शर्त सिर्फ द्वीप पर जाने की लगी है। जाना किस तरह है वो तो मैं तय करूँगा।" उत्कर्ष ने कुछ सोचते हुए प्रणय को हिम्मत दी।
"मतलब? मैं कुछ समझा नहीं?" प्रणय ने जब असमंजस से कहा तो उत्कर्ष ने उसे एक किनारे आने का इशारा किया।
सबसे दूर आकर जब उत्कर्ष ने पूरी योजना प्रणय को समझाई तब उसका डर कुछ कम तो हो गया, लेकिन खत्म नहीं हुआ।
एकबारगी उसका मन हुआ कि उत्कर्ष के साथ जाने से साफ इंकार कर दे, लेकिन उसे भी पता था की वो किसी भी हाल में अपने बेस्टी को अकेला नहीं छोड़ सकता है।
प्रणय उत्कर्ष के ही घर में काम करने वाले या यूँ कहना चाहिए परिवार के सदस्य की भांति उस घर की सारी व्यवस्था संभालने वाले सबसे पुराने, भरोसेमंद और ऋषिकेश जी के सबसे निकट कर्मचारी जिन्हें सब शरण बाबू कहते थे उनका एकलौता बेटा था।
उत्कर्ष के ही साथ पले-बढ़े प्रणय को भी ऋषिकेश जी हमेशा वो सब कुछ दिया था जो उत्कर्ष को मिलता आया था।
प्रणय और उत्कर्ष में इतना स्नेह था कि लोग अक्सर उन्हें सगा भाई ही समझ लेते थे।
उत्कर्ष के मनमौजी स्वभाव से वाकिफ़ प्रणय भी हमेशा उसके लिए चिंतित रहता था, लेकिन चाहकर भी वो उसे खतरों से खेलने से रोकने की जगह हमेशा हर खेल में उसका पार्टनर बन जाता था।
यही वजह थी कि प्रणय पर भरोसा होते हुए भी ऋषिकेश जी को उत्कर्ष के लिए सुरक्षा गार्ड्स की नियुक्ति करनी पड़ी थी क्योंकि वो भी समझ गए थे कि प्रणय कभी अपने बेस्टी की इच्छा के खिलाफ नहीं जाएगा।
कॉलेज से लौटने के बाद एक तरफ ग्रांडे द्वीप पर जाने की तैयारी करता हुआ उत्कर्ष जहाँ बहुत उत्साहित था, वहीं दूसरी तरफ प्रणय ने स्वयं को कमरे में बन्द कर लिया था।
बन्द कमरे में प्रणय ने अपने गले में पहना हुआ एक विचित्र लॉकेट निकालकर जैसे ही उस पर अपनी ऊँगलियाँ फिराई उस पर एक विचित्र सी दिखने वाली महिला की छवि उभरने लगी।
उस छवि की तरफ कृतज्ञता भरी नजरों से देखते हुए प्रणय ने कहा "माँ, मुझे माफ़ कर दीजियेगा मैंने बहुत कोशिश की लेकिन उत्कर्ष का उस द्वीप पर जाने का फैसला नहीं बदल पाया।
लेकिन आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिएगा मैं साये की तरह अपने मित्र के साथ रहूँगा।
कॉलेज में सबके बीच अपनी डरपोक वाली छवि बनाकर रखनी जरूरी है ताकि हमारा राज किसी के सामने ना आ सके।
उम्मीद है आप मेरी बात समझ रही होंगी।"
प्रणय की बात खत्म होते ही ऐसा लगा मानों लॉकेट से एक क्षण के लिए रोशनी की एक किरण निकली और फिर अगले ही क्षण कमरे के वातावरण में उसके विलुप्त होने के साथ-साथ लॉकेट पर उभरी हुई छवि भी उसमें समा गई।
प्रणय ने लॉकेट को अपने माथे से लगाकर उसे वापस अपनी कमीज के अंदर छुपाया ही था कि तभी दरवाजे पर दस्तक की आवाज़ तेज़ होने लगी।
प्रणय जानता था ये दस्तक सिर्फ उत्कर्ष की ही हो सकती है। उसने अपने हाव-भाव सामान्य किए और फिर उठकर दरवाजा खोल दिया।
"अबे डरपोक दरवाजा बंद करके क्या हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था?" उत्कर्ष ने हमेशा की तरह प्रणय को चिढ़ाया।
"अब जिसका तुझ जैसा बेस्टी होगा वो बेचारा और क्या करेगा बता?" प्रणय ने भी चिढ़कर जवाब दिया।
"अच्छा चल ठीक है, अब मूड ऑफ मत कर। देखना इस ट्रिप में बहुत मज़ा आएगा। मैं तुझे ये बताने आया था कि मैंने सारी तैयारी कर ली है।
ग्रांडे द्वीप की सरकार के पर्यटन-विभाग से भी हमारी ट्रिप को ऑफिशियल मंजूरी मिल गई है, बस हमारी जान की जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी।
खैर इसकी चिंता करने की किसी को जरूरत भी नहीं है।
रात के ठीक तीन बजे हम चुपचाप निकलेंगे।" उत्कर्ष ने अपनी योजना ज़ाहिर की तो प्रणय ने ख़ामोशी से हॉं में सर हिला दिया।
तय वक्त पर अपने कमरे के बाहर खड़े सुरक्षा गार्ड्स को चकमा देकर प्रणय का हाथ पकड़े उत्कर्ष अपनी कम्पनी के लिए काम करने वाले भरोसेमंद पायलट को लेकर अपने निजी विमान से ग्रांडे की तरफ उड़ चला।
यहाँ भारत में अपने कमरे में अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से निहाल कंप्यूटर स्क्रीन पर उत्कर्ष के पल-पल की लोकेशन देख रहा था ताकि उत्कर्ष उससे चीटिंग ना कर सके।
ग्रांडे द्वीप की तरफ तेज़ी से बढ़ता हुआ उत्कर्ष इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ था कि इस अंजान द्वीप की तरफ उसके कदम मात्र एक मामूली सी शर्त की वजह से नहीं बल्कि उसकी नियति की वजह से बढ़ रहे थे।
वो नियति जो उस खतरनाक निर्जन द्वीप पर तब से उसकी राह देख रही थी जब पहली बार उसे जन्म देने के लिए उसकी माँ ने वहाँ ख़तरनाक साँपों के बीच अपने कदम रखे थे।
क्रमशः