उत्कर्ष-अभिलाषा - भाग 2 शिखा श्रीवास्तव द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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उत्कर्ष-अभिलाषा - भाग 2

उत्कर्ष का हवाई-जहाज ग्रांडे द्वीप पर एक उचित जगह देखकर लैंड कर चुका था।
जहाज की खिड़की से उत्कर्ष ने बाहर द्वीप का एक नज़ारा देखा और फिर उसने अपने बैग से दो विशेष बुलेट-फायरप्रूफ सूट निकालकर उनमें से एक प्रणय की तरफ बढ़ाया और दूसरा खुद पहनने लगा।

ये बुलेट-फायरप्रूफ सूट हर तरफ से इस तरह पैक था कि उसके अंदर मौजूद इंसान को आग-पानी के अलावा और भी कोई बाहरी चीज, कोई जीव-जंतु लाख कोशिशों के बाद भी स्पर्श नहीं कर सकता था।

उनकी आँखों के सामने वाले हिस्से पर भी मोटा सुरक्षित ग्लास बना हुआ था जिससे उन्हें सब कुछ नज़र आ रहा था।

सूट पहनकर तैयार होने के बाद जब उत्कर्ष जहाज से उतरने लगा तो उसके पायलट ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया।

अपने उत्साह में डूबे हुए उत्कर्ष को इस बात का भान ही नहीं हुआ कि इस तरह अचानक पायलट के उसे गले लगाने की क्या वजह थी।
वो इसे उसका सामान्य स्नेह और फिक्र समझ रहा था, लेकिन हर पल चौकन्ने रहने वाले प्रणय ने पायलट की चालाकी से की गई कारस्तानी देख ली थी।

इसलिए जैसे ही पायलट उत्कर्ष से दूर हटा प्रणय आगे बढ़कर उत्कर्ष की पीठ को अपने हाथों से स्पर्श करता हुआ उसकी पीठ पर यूँ टिक गया कि अब पीछे खड़े पायलट को उत्कर्ष की नहीं प्रणय की पीठ नज़र आ रही थी।

प्रणय की इस हरकत पर चौंकते हुए उत्कर्ष ने कहा "अबे तू इस तरह मेरी पीठ पर क्यों लद गया है?"

"देख तूने कहा था कि मुझे तेरे साथ यहाँ आना होगा तो मैं आ गया लेकिन अब जहाज से उतरते हुए मुझे बहुत डर लग रहा है।
इसलिए तुझे इसी तरह अपनी पीठ पर मुझे उठाकर नीचे चलना होगा।" प्रणय की बात सुनकर उत्कर्ष ने हँसते हुए कहा "आ चल मेरे डरपोक भाई तू भी क्या याद रखेगा।"

प्रणय को अपनी पीठ पर लादे हुए उत्कर्ष ने धीरे-धीरे सीढियाँ उतरकर द्वीप की ज़मीन पर अपने पैर रखे।

द्वीप पर पहुँचते ही प्रणय ने जब देखा कि पायलट ने जहाज के दरवाजे बंद कर दिए हैं तब वो झटके से उत्कर्ष की पीठ से अलग होकर उसके सामने खड़ा हो गया।

उसे अपने सामने खड़ा देखकर उत्कर्ष ने कहा "इतनी जल्दी तेरा डर खत्म हो गया?"

"डर तो लग रहा है भाई लेकिन तू कब तक मेरा बोझ ढोएगा और फिर मुझे तेरी वीडियो भी तो बनानी है।" प्रणय ने अपने कैमरे का फोकस उत्कर्ष के चेहरे पर एडजस्ट करते हुए जवाब दिया।

कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर अब वो दोनों खतरनाक जंगल में पहुँच चुके थे जहाँ चारों तरफ बस साँप ही साँप नज़र आ रहे थे जो अब उनके शरीरों पर भी रेंगने लगे थे।

ये नज़ारा देखकर उत्कर्ष भी अंदर ही अंदर घबराने लगा था, हालांकि उसे पता था कि वो और प्रणय अपने सूट में पूरी तरह सुरक्षित हैं।

अभी उन्हें द्वीप पर मात्र बीस मिनट ही हुए थे। दस मिनट का वक्त और उन्हें इन साँपों के बीच बिताना था।

आगे बढ़ते हुए सहसा उत्कर्ष की नज़र फलों से लदे हुए एक अनोखे पेड़ पर पड़ी।

इस पेड़ को देखकर प्रणय भी चौंक उठा मानों उसे कोई पुरानी बात याद आ गई हो।

पेड़ की तरफ आश्चर्य भरी नज़रों से देखते हुए उत्कर्ष ने कहा "यार प्रणय देख कैसा अजीब पेड़ है ये और ये इसके फल तो और भी अलग दिख रहे हैं।
मैंने तो आज तक इसकी कोई तस्वीर भी कभी इंटरनेट पर नहीं देखी।"

"हम्म बात तो तेरी सही है। लेकिन सुन इसे छूना मत। ये भी ज़हरीला ही होगा।" प्रणय ने कहा तो उत्कर्ष ने हाँ में सर हिला दिया।

अभी वो दोनों उस पेड़ से कुछ कदम आगे बढ़े ही थे कि उत्कर्ष ने एक नज़र मुड़कर उस पेड़ को देखा और उसकी नज़र सभी फलों के बीच में एक अलग ही आभा में चमकते हुए एक फल पर टिक गई।

उत्कर्ष ने अब आगे प्रणय की तरफ देखा तो पाया वो सामने एक मोटे पेड़ की ओट में छुप सा गया था।
बस इसी क्षण उत्कर्ष ने फुर्ती से अपना हाथ बढ़ाया और उस चमकते हुए फल को तोड़ लिया।

ऐसा लग रहा था मानों वो फल भी उत्कर्ष के हाथ में आना चाहता था इसलिए जो डाल अभी तक ऊँची नज़र आ रही थी वो उत्कर्ष के हाथ बढ़ाते ही ज़मीन को छूती हुई प्रतीत होने लगी थी।

जैसे ही उत्कर्ष ने फल तोड़ा प्रणय की आवाज़ आई "अरे भाई कहाँ रह गया। ऐसा लग रहा है मानों इस बड़े से पेड़ ने जानबूझकर मुझे घेरकर तुझसे दूर कर दिया है।"

फल को छुपाते हुए प्रणय के सामने आकर उत्कर्ष बोला "मेरे भाई को मुझसे कोई दूर नहीं कर सकता है। अब चल वापस चल। हम शर्त जीत चुके हैं।"

"भगवान का शुक्र है।" प्रणय ने अपना कैमरा बंद किया और उत्कर्ष का हाथ थामकर तेज़ी से जहाज की तरफ बढ़ चला।

जहाज के पास पहुँचकर उत्कर्ष ने मुड़कर एक नज़र द्वीप और वहाँ टहलते हुए साँपों की तरफ देखते हुए कहा "पता नहीं प्रणय मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं इस द्वीप पर पहले भी आ चुका हूँ। जैसे ये खतरनाक साँप जानते हैं मुझे, पहचानते हैं मुझे।"

उसकी बात सुनकर एकबारगी प्रणय के चेहरे का रंग ही उड़ गया लेकिन सूट में बन्द होने की वजह से उत्कर्ष प्रणय की ये प्रतिक्रिया देख नहीं पाया।

स्वयं को संयत करते हुए प्रणय ने हँसकर कहा "तू भी ना यार। यहाँ आने की बात सुनते ही तूने उत्साह में सपनों में इस जगह को पहले ही देख लिया होगा या फिर शायद पिछले जन्म में तू कोई सपेरा होगा और मैं तेरा पालतू साँप।

अब प्लीज जहाज के अंदर चल इससे पहले की ये साँप हमें इस सूट के अंदर आकर डंस लें।"

"हाँ-हाँ चल।" उत्कर्ष ने पायलट को जहाज का दरवाजा खोलने का इशारा करते हुए कहा।

उत्कर्ष को सुरक्षित देखकर पायलट के हाव-भाव भी अचानक से बदले हुए नज़र आए मानों वो कुछ और उम्मीद कर रहा हो, लेकिन उसने प्रत्यक्ष में अपने भावों को ज़ाहिर किए बिना तेज़ी से आगे बढ़कर जहाज का दरवाजा खोलकर सीढ़ी नीचे कर दी।

सीढ़ी पर चढ़ते हुए प्रणय ने पायलट की तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए आहिस्ते से उत्कर्ष की पीठ पर अपना हाथ फेर दिया।
क्रमशः