उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार मित्रो

आशा है सब भीषण गर्मी से ख़ुद को बचा रहे हैं।

नंदिनी बड़ी बुद्धिजीवी व स्वाभिमानी लड़की है। इधर न जाने क्यों वह कुछ दिनों से उदास रहने लगी है। काम में भी उसका मन नहीं लगता।

उसकी मम्मी को अब उसकी चिंता होने लगी है। उन्होंने बताया कि वह एक दो साक्षात्कार में असफ़ल क्या हो गई बिलकुल ही उदास हो गई है। मैंने उसे अपने पास बुलाया और उदासी का कारण पूछा तो वह रोने लगी।

" दीदी! मेरा भाग्य ही ख़राब है, जहाँ जाती हूँ वहीं सिलेक्शन नहीं हो पाता।"

कई बार हम दुर्भाग्य को खुद ही टैग देकर उसे अपने जीवन में स्थायी बना लेते हैं और दो तरह की परिस्थिति पैदा कर लेते हैं। पहला, हम सोच लेते हैं कि दुर्भाग्य है, तो इससे उबरने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी चाहिए। ऐसा करने से हम खुद को मानसिक और भावनात्मक रूप से थका लेते हैं जबकि कई बार शांत रहना और चीजों को थोड़ी देर के लिए छोड़ देना भी बेहतर होता है।

हम किसी चीज़ के लिए जितना प्रयास करेंगे, उतनी उम्मीद बांधेंगे और फिर उससे कहीं अधिक निराश होंगे। उससे बेहतर है कि ये सोचना ही बंद कर दें कि सब कुछ ज्यादा ही बुरा है।

दूसरी परिस्थिति लोग ये पैदा कर लेते हैं कि वो ये सोच लेते हैं कि सबकुछ उनके नियंत्रण से बाहर हो चुका है और वो कुछ नहीं कर सकते। ऐसा नहीं होता, हमें अपनी इच्छित वस्तु के लिए प्रयास करना है लेकिन बहुत आतुरता के साथ नहीं। सबकुछ हाथ से फिसलता जा रहा है, इस बात से एंग्जायटी या पेनिक महसूस करने से अच्छा है कि हम बिना किसी शिकायत या उम्मीद के बस कोशिश करें और जीवन को वैसे ही देखने का प्रयास करें, जैसे पहले करते थे।

कोई भी स्थिति सदा के लिए नहीं रहती जैसे अँधेरा हर समय नहीं रहता। यह निराशा का अँधेरा भी कुछ समय का होता है। एक दिन सुबह आँखें खोलते ही हमारे सामने जीवन का उजियारा खिलखिलाने लगता है।

मैंने नंदिनी को समझाने की कोशिश की लेकिन वह अधिक उदास बनी रही। कुछ दिन बाद अचानक ही मेरे सामने आई और एक बहुत बड़ी कंपनी का, बहुत अच्छी पोजीशन का एपाइंटमैंट लैटर मेरे हाथ पर ला रखा।

वह बहुत खुश थी जैसे उसे कारूं का ख़ज़ाना मिल गया हो।

" दीदी! मैंने आपकी बात पर गौर किया और मेरे मन का अँधेरा दूर होता गया। आपको कैसे थैंक्स दूँ?"

उसको प्रसन्न व सफ़ल देखकर मुझे संतुष्टि मिल गई।

ऐसे ही मित्रों कभी हम परेशान हो जाते हैं किंतु यदि हम थोड़ी शांति और विवेक से काम करें तो हम सफ़ल न हों ऐसा नहीं हो सकता।

सबको स्नेह!

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती