अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 15 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 15

इधर आज के दिन जतिन के साथ उसके ऑफिस मे बैठकर चाय पी रहे राजेश ने चाय पीने के बाद कहा- अच्छा जतिन भाई मै चलता हूं अभी एक दो जगह और जाना है फिर मै लखनऊ के लिये निकलूंगा...

राजेश की बात सुनकर जतिन ने कहा- चलिये मै नीचे तक छोड़ देता हूं आपको, मुझे भी कुछ काम है मै वो भी कर लूंगा....

इसके बाद जतिन और राजेश ऑफिस के पास बनी सीढ़ियो से होते हुये नीचे की तरफ आने लगे, सीढ़ियो से नीचे उतरते हुये जतिन की नजर अपने सीमेंट के गोदाम मे काम करने वाले एक मजदूर पर पड़ी जिसके सामने उसका टिफिन खुला रखा था, उसका मुंह चल रहा था पर वो खड़ा हुआ था और जतिन की तरफ देखकर माथे पर हाथ रखकर उसे सलाम कर रहा था, जतिन उसे देखकर समझ गया कि ये मजदूर मुझे देखकर खाना खाते खाते रुक गया है और खाना छोड़कर खड़ा हो गया है, सीढ़ियो से उतरने के बाद उस मजदूर की तरफ देखते हुये जतिन उसके पास गया और बड़े ही सहज तरीके से उसके कंधे पर हाथ रखते हुये बोला - ये जो चीज तुम्हारे सामने रखी है ना दोस्त... ये वो चीज है जिसके पीछे ही जिंदगी की सारी जद्दोजहद है, इंसान जिंदगी भर इसी के लिये संघर्ष करता है तो जब ये तुम्हारे सामने हो ना उस समय भगवान भी तुम्हारे सामने आ जायें तो कभी इसे छोड़ कर खड़े मत होना..!! ये दो वक्त की रोटी ही है जो हमसे मेहनत करवाती है, आराम से बैठो और अच्छे से खाओ....

ये बात बोलकर जतिन उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा और उसकी इस अच्छी, प्यारी और सम्मानजनक बात को सुनकर वो मजदूर भी मन ही मन बहुत खुश हुआ और उस मजदूर से जतिन को इस सहज तरीके से बात करता देख राजेश को भी बहुत अच्छा लगा और वो सोचने लगा कि "ऐसे लोग दुनिया मे बहुत कम ही होते हैं जो एक गरीब के लिये अपने दिल मे इतनी संवेदनायें रखते हैं, जतिन इतना पैसे वाला है फिर भी इतना सहज है, जतिन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है" ये सोचता हुआ राजेश.. जतिन के साथ उसके शोरूम से बाहर की तरफ जाने लगा आगे बढ़ते बढ़ते राजेश ने पीछे मुड़कर जब उस मजदूर की तरफ देखा तो वो मजदूर अभी भी बुत सा बना जतिन की तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था, उस मजदूर को इस तरह से मुस्कुराते देख राजेश को ऐसा लगा जैसे जतिन का व्यवहार देखकर वो मन ही मन सोच रहा हो कि साहब आप जैसा इस दुनिया मे कोई नही...!!

राजेश को ये पूरा द्रश्य देखकर बहुत अच्छा लगा इसके बाद वो जतिन के शोरूम से निकलकर दूसरी जगह चला गया....

जतिन वाकई मे अब मिडिल क्लास से अमीरो की लिस्ट मे आ गया था लेकिन उसने ये रुतबा, ये पैसा एक एक पाई जोड़ कर बड़ी मेहनत से कमाया था इसलिये उसके अंदर घमंड नाम की चीज ही नही थी, वो हर किसी के साथ बहुत सहज था फिर वो चाहे उसकी फर्म का मजदूर हो या चपरासी सबको पूरी पूरी इज्जत मिलती थी, जतिन के ऑफिस मे काम करने वाली दो लड़कियों ने भी जतिन के बिजनेस के शुरुवाती दिनो मे ही जतिन की कंपनी ज्वाइन कर ली थी और तब से वो यहां पर ही जॉब कर रही थीं क्योकि उन्हे जतिन के ऑफिस का माहौल रास आ गया था, ना किसी तरह की कोई महिलाओ से जुड़ी प्रताड़ना ना डांट ना कोई और टेंशन, बस एक अच्छे और स्वस्थ माहौल मे काम...और यही वजह थी कि जतिन की एक आवाज पर सब लोग इकट्ठे हो जाते थे और पूरी ईमानदारी से काम करते थे, जतिन के ऑफिस मे दो बुजुर्ग भी थे जतिन उनके साथ तो बहुत ही सहज था, उनकी बहुत इज्जत करता था और इसकी वजहें थीं एक तो उसके संस्कार, उसके जीवन को लेकर अनुभव और सबसे बड़ी वजह थी कि जतिन के पापा विजय भी एक प्राइवेट कंपनी मे काम करते थे तो कभी कभी ऐसा होता था कि जब वो घर आते थे शाम को तो उनका चेहरा उतरा हुआ होता था, जतिन ने एक दो बार उन्हे अपनी मम्मी बबिता से कहते सुना था कि "आज ऑफिस मे बिना वजह बॉस मुझपर चिल्ला दिये, बेकार मे डांट दिया" ये सुनकर जतिन को बहुत दुख होता था और उसे लगता था कि वो अपने पापा की जॉब छुड़वा दे लेकिन उस समय की परिस्थितियाँ ऐसी नही थीं कि वो कुछ कह पाता और उसे ये तकलीफ सहनी पड़ती थी इसलिये वो जानता था कि कैसा महसूस होता है जब घर वालो को पता चलता है कि उनके पापा को उनके बॉस ने बेवजह डांट लगायी... इसीलिये वो अपने ऑफिस के बुजुर्गो के साथ बहुत अच्छे तरीके से पेश आता था....

इधर दूसरी तरफ अपना काम निपटा कर लखनऊ पंहुचा राजेश रेल्वे स्टेशन से सीधे हॉस्पिटल अपने ताऊ जी के पास चला गया, वहां जाकर उसने देखा कि उसके ताऊ जी जगदीश प्रसाद के साथ मैत्री और उसका छोटा भाई सुनील बैठे हुये हैं, राजेश ने अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद को देखा और उनसे पूछा- कैसा महसूस कर रहे हैं ताऊ जी...
जगदीश प्रसाद ने कहा- अब ठीक लग रहा है...

और ये बात बोलते हुये जगदीश प्रसाद मुस्कुराने लगे इस बार उनकी आवाज पहले से काफी ठीक थी, दवाइयां ठीक तरह से असर कर रही थीं, राजेश ने अपने ताऊ जी का हाथ अपने हाथ मे लेते हुये कहा- ताऊ जी आप बिल्कुल चिंतामुक्त हो जाइये, पिछली बार मैत्री की शादी के टाइम पर मै कुछ नही बोला था क्योकि हम सभी ने उस बिचौलिये की बातो मे आकर मैत्री की शादी उस घर मे करवा दी थी जहां इसे सिर्फ उलझने ही मिलीं थीं लेकिन इस बार मै अच्छे से जांच परख के सब कुछ पता करके ही मैत्री की शादी करवाउंगा ताकि हमारी एकलौती बहन खुश रहे....

राजेश की ये बात सुनकर जगदीश प्रसाद मुस्कुराते हुये बोले- हां हां बेटा इस बार तेरे कंधो पर ही रहेगी मैत्री की शादी की जिम्मेदारी, तुझे जैसा ठीक लगे तू वैसा ही कर, मुझे तुझपर पूरा भरोसा है...

सच ही तो है कि किसी भी इंसान के जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है बुढ़ापे में बीमारी की अवस्था में बच्चों का प्यार और उनका साथ जो राजेश, सुनील और मैत्री से जगदीश प्रसाद को भरपूर मिल रहा था शायद इसी प्यार की वजह से उनको दी जाने वाली दवाइयां भी अपना काम अच्छी तरह से कर रही थीं और वो जल्दी ठीक हो रहे थे..!!

क्रमशः

बड़े सौभाग्य से इतना प्यारा परिवार मिलता है जो मुसीबत के समय साथ आकर खड़ा हो जाये.. बिना कोई फालतू सवाल किये, हैना?