ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 14 astha singhal द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 14

भाग 14

खिड़की गाँव पुलिस स्टेशन
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"विक्रम, ये आरती चौहान हैं। जिनसे मेरी फेसबुक पर बात हुई थी। इन्होंने टपरवेयर की एजेंसी ले रखी है। सुलोचना जी और नीलम इन्हीं के अंडर काम करती हैं।" कविता ने विक्रम को बताया।

"आरती जी, आप नीलम के बारे में जितना जानती हैं प्लीज़ बताएं।" विक्रम ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा।

"सर, वो बहुत टैलेंटिड थी। एक साल में उसने बहुत से बैच जीते थे। हर माह का बैस्ट एम्प्लॉई का पुरस्कार उसे ही मिलता था। बस वो और आगे बढ़ सकती थी, पर अपने पति की छोटी सोच के कारण सीमित दायरे में रहकर ही उसे काम करना पड़ता था।" आरती ने बताया।

"वैसे वो महीने का कितना कमा लेती थी?" विक्रम ने पूछा।

"सर यही कोई पंद्रह हज़ार। जिसमें से वो केवल सात - आठ ही निकालती थी। बाकी एम्प्लॉई अकाउंट में ही रखें रहने देती थी।" आरती बोली।

“क्या आप जानती हैं कि नीलम मॉल में जाकर टपरवेयर का स्टॉल लगाती थी?” विक्रम ने पूछा।

“जी सर, मुझे पता है, और वो बहुत अच्छा कर रही थी वहाँ पर…फिर एक दिन पंजाबी ढाबा रेस्तरां के मेनेजर ने उसके साथ बदतमीजी की, बहुत हंगामा हुआ वहाँ पर।” आरती ने याद करते हुए बताया।

“पर…वहाँ के मेनेजर का तो कुछ और ही कहना था।” ये कह कविता ने विपुल द्वारा बताई बात आरती को सुनाई।

ये सब सुनने के बाद आरती के चेहरे पर गुस्से के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। वो बोली, “विपुल झूठ
बोल रहा है। मैं मान ही नहीं सकती सर। नीलम बहुत खूबसूरत है सर, पर बहुत ही चरित्रवान महिला है। आज तक उसने अपनी खूबसूरती को कभी ढ़ाल नहीं बनाया।”

"हम्ममम… आरती जी आप एक काम करें आप नीलम के अकाउंट की डीटेल दे दीजिए। और, आपका शुक्रिया। पर जब आपको बुलाया जाए तो आप आइएगा ज़रुर।" विक्रम ने कहा।

आरती के जाने के बाद कविता असमंजस में पड़ गई।

“कमाल है विक्रम, कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ। नीलम का चरित्र वाकई में कैसा था ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा है।”

“खैर, उसका चरित्र कैसा था, इसका सर्टिफिकेट देना हमारा काम नहीं है। हमारा काम है उसे ढूंढना।” विक्रम बोला।

“ये…विपुल को उठा लें। एक दो डंडे पड़ेंगे तो सच उगल देगा।” कविता ने कहा।

“ऐसे थोड़ा ही उठा सकते हैं कविता! कोई चार्ज होना भी तो ज़रूरी है उसके खिलाफ। मुझे लगता है कि हमें अमोल से एक बार पूछताछ करनी चाहिए। सबके बयान में एक बात थी जो जिससे सब सहमत थे, अमोल का शक करने का स्वभाव। तो चलकर पूछते हैं कि उसकी नीलम पर शक करने की वजह क्या थी?” विक्रम अपनी सीट से उठते हुए बोला।

“एक काम करो, तुम अमोल के यहाँ जाओ मैं विपुल की साली से बात करके आती हूँ। और साथ ही मेफेयर नर्सिंग होम भी जाना है।” कविता ने कहा।

“मेफेयर नर्सिंग होम? क्या बात है कोई खुशखबरी है!” विक्रम ने मस्ती करते हुए कहा।

“बिल्कुल नहीं। मुझसे एक इतना बड़ा बच्चा नहीं संभल रहा, तो छोटा सा बेबी कैसे संभालूंँगी। वो संतोष ने ज़िक्र किया था ना।” कविता बोली।

“अरे हाँ, ठीक है तुम जाओ। रात को मिलते हैं।”


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"अमोल क्या तुम्हें सच में नहीं पता था कि नीलम टपरवेयर का काम करती है। वो भी पिछले एक साल से?" विक्रम ने कड़क अंदाज़ में पूछा।

"नहीं…. बिल्कुल नहीं। मुझे तो…हैरानी हो रही है ये सुन कर। उसे क्या ज़रूरत पड़ी थी काम करने की? सब ठीक तो चल रहा था।" अमोल थोड़ा झिझकते हुए बोला।

"पर नीलम को ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि उन्हें टपरवेयर का काम तुमसे छिपाकर करना पड़ा?" विक्रम ने पूछा।

"पता नहीं….वहीं तो मैं सोच रहा हूँ।" अमोल ने कहा।

विक्रम अमोल के इस तरह बोलने पर आगबबूला हो गया और मेज़ पर अपना हाथ मारते हुए उठा और बोला, "जानते तो तुम सब कुछ हो अमोल। तुम्हारे शक्की स्वभाव के कारण नीलम कहीं नौकरी नहीं कर पा रही थी। तुम उसे हमेशा चार दिवारी में कैद रखना चाहते थे। क्यों?"

अमोल विक्रम के इस रूप को देख थोड़ा घबरा सा गया। उसकी आंँखें नम हो गईं।

"विक्रम, मैं उसे क्यों चार दीवारों में कैद रखूँगा। वो तो मेरा प्यार था जो उसे मैं हर कदम पर प्रोटेक्ट करने की कोशिश कर रहा था। उसका स्वभाव ही कुछ ऐसा था कि वो हर किसी की बातों में बहुत जल्दी आ जाती थी। अब…घर की बात ले लो। सहेलियों ने चढ़ा दिया कि किराया भरने से अच्छा है कि अपना घर लो और थोड़ा सा और पैसा डाल कर इंस्टालमेंट पे करते रहो। बस ज़िद्द पकड़ ली। मजबूरी में ये घर लेना पड़ा। दीमाग लगाती ही नहीं थी बिल्कुल।" अमोल शिकायती लहजे में बोला।

"मेरे ख्याल से उनमें बहुत बढ़िया दिमाग है। जहांँ हर साल घर बदलने का झंझट होता, वहांँ अब तुम सुख और शांति से रह रहे हो। देखो अमोल…..अभी भी बोल रहा हूँ कुछ छिपाना मत। तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।" विक्रम ने रौबदार आवाज़ में कहा।

"ऐसा कुछ…भी नहीं है विक्रम। जो है तुम्हारे सामने है भाई।" अमोल ने भी हाथ जोड़ विनती करते हुए कहा।

"तुम शक्की मिजाज नहीं हो? नीलम पर शक नहीं करते थे?" विक्रम ने फिर पूछा।

"शक नहीं परवाह करता था। जैसा मैंने कहा कि नीलम बहुत साफ दिल की औरत है। बहुत मिलनसार है और ज़ाहिर है सुंदर भी है। इसलिए हर कोई उसकी तरफ आकर्षित हो जाता था। और बहुत बार लोगों ने उसकी इस मासूमियत का फायदा उठाकर उसको धोखा दिया था। कभी अपना काम निकलवा कर, कभी पैसे मांग कर। नीलम सबके काम करने को तैयार हो जाती थी। बस…इसलिए उसे नौकरी से मना करता था। और कोई वजह नहीं थी।" अमोल ने विक्रम के मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर दिए।

“तुमने बच्चों को उनकी नानी के घर क्यों भेज दिया?”

“बताया तो था, यहाँ रहेंगे तो उन्हें नीलम की याद आती रहेगी। इसलिए इस वातावरण से दूर भेज दिया।”

“वहाँ उसके नाना-नानी के हालात ठीक नहीं हैं। बादली गांव में कौन सा अच्छा माहौल मिलेगा उन्हें। और क्या तुम्हें पता है कि नीलम अपने माता-पिता को भी महीने का कुछ खर्च भेजती थी?” विक्रम ने पूछा।

अमोल ने हैरानी जताई, “क्या? ये बात मुझे नहीं मालूम थी। कमाल है! नीलम ने मुझसे बहुत कुछ छिपा कर रखा था।”

“क्या तुम्हें नीलम के चाल-चलन पर कोई शक रहा है?”

“कैसी बातें कर रहे हो विक्रम? नीलम मेरी पत्नी है, मेरा जीवन है। मैं उसपर शक क्यों करूंगा?” अमोल की आँखों में आँसू थे।

“हम्मम…कल ही बच्चों को वहाँ से बुला लो। वहाँ‌ रहेंगे तो और परेशान हो जाएंगे। मैं चलता हूंँ।”

ये कह विक्रम अमोल के दफ्तर से चला आया।
रास्ते भर वो यही सोचता रहा कि क्या ये अमोल का असली चेहरा है? या वो कुछ छिपा रहा है?
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क्रमशः
आस्था सिंघल