वह आखिरी पल - (अंतिम भाग) Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वह आखिरी पल - (अंतिम भाग)

इस समय कावेरी अम्मा को ग्लूकोस की बोतल चढ़ रही थी। प्रतीक और नमिता पूरी रात उनके सिरहाने बैठे अपने और उनके आँसू पोछते रहे, भगवान का शुक्रिया अदा करते रहे कि उन्होंने अम्मा को बचा लिया।

धीरे-धीरे समय आगे बढ़ा और सूर्य देवता ने पृथ्वी के इस कोने में दस्तक दे दी। सुबह उषा की किरणों के आने के साथ ही प्रतीक के दोनों बच्चे राज और नीता भी अपने शहर आ गए। इस समय वे दोनों बहुत ख़ुश थे। उन्होंने बस से अपना समान उतारा। नीचे आकर इधर-उधर देखा लेकिन आज उन्हें पापा की कार नहीं दिखाई दी। उसमें बैठी दादी और मम्मी भी नहीं दिखाई दीं।

नीता ने कहा, "राज क्या हो गया, आज पापा, माँ और दादी हमें लेने नहीं आए, ना ही उनका कोई फ़ोन आया।"

"हाँ नीता, चल मैं फ़ोन लगाता हूँ।"

"नहीं राज टाइम वेस्ट मत कर। यह रिक्शा खड़ा है, चल जल्दी घर। कुछ तो गड़बड़ लग रही है। राज मुझे बहुत डर लग रहा है। दादी तो ठीक होगी ना?"

"पता नहीं ...तू तो मुझे भी डरा रही है।"

दोनों भाई बहन रिक्शे में बैठकर घर की तरफ़ जाने लगे।

इधर कावेरी अम्मा की टूटती सांसें उनका साथ नहीं दे रही थीं। यह आघात केवल तन पर ही नहीं उनके मन को भी चकनाचूर कर गया था। यह उनके जीवन के वह अंतिम पल थे जिन्हें वह सुकून से जी कर जाना चाहती थीं। लेकिन वही अंतिम पल इस तरह बीतेंगे यह उन्होंने और उनके परिवार ने कभी नहीं सोचा होगा। भगवान ऐसे अंतिम पल जिनमें ऐसा दर्द भरा हो किसी को ना दे।

दादी के लिए चिंतित बच्चे जैसे ही घर पहुँचे और उन्होंने दरवाजे पर घंटी बजाई, नमिता ने लपक कर दरवाज़ा खोला। अपनी माँ का चेहरा देखते ही वह समझ गए घर में कुछ तो हुआ है। नमिता कुछ बोल नहीं पा रही थी। बच्चों को देखकर उनका दर्द सिसकियों में बदल गया।

राज ने पूछा, "क्या हुआ मम्मा?"

नीता ने भी पूछा, "दादी ठीक तो हैं ना?"

घबराए हुए चेहरे के साथ वे दोनों अंदर आए।

उन्होंने देखा कि ग्लूकोज़ की चढ़ी हुई बोतल से ग्लूकोज़ उनकी दादी के शरीर में जा तो रहा था लेकिन दर्द में लिपटकर आँसुओं के रूप में आँखों से बाहर टपकता भी जा रहा था। घर में सन्नाटा-सा था। एक ऐसा अजीब सन्नाटा जो इससे पहले उन दोनों ने कभी नहीं देखा था। उनकी धड़कनें भी तेज हो रही थीं, दिल घबरा रहा था। कावेरी अम्मा के पास पहुँच कर बच्चों ने एक साथ आवाज़ लगाई, "दादी-दादी, देखो हम आ गए।"

अपनी जान से ज़्यादा प्यारे अपने बच्चों की आवाज़ सुनकर उनकी दादी ने आँखें खोली। नीता और राज दोनों उनके पास बैठ गए।

नीता ने पूछा, "क्या हो गया दादी? तबीयत बिगड़ गई है? कुछ दुख रहा है।"

राज ने कहा, "मेरी हिम्मत वाली दादी जल्दी ही ठीक हो जाएंगी।"

नीता ने फिर कहा, "दादी कबड्डी-कबड्डी कह कर इस बीमारी को एक लात मार कर भगा दो।"

इतना सुनते ही प्रतीक और नमिता रो पड़े।

प्रतीक ने कहा, कबड्डी-कबड्डी के दम पर ही तो आज तुम्हारी दादी ने ख़ुद को बचा लिया है। "

राज और नीता परिपक्व थे। वह आश्चर्य भरी नज़रों से प्रतीक के सामने देखने लगे और फिर राज ने पूछा, "क्या मतलब है पापा आपका?"

प्रतीक कुछ बोले उससे पहले कावेरी अम्मा ने राज और नीता का हाथ पकड़ कर कहा, "एक रावण आया था पर मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाया लेकिन यह बता गया कि धरती पर पाप कितना बढ़ गया है। मैं मेरे इस प्यारे से परिवार के साथ और कुछ दिन जी सकती थी लेकिन उस पापी ने वह पल मुझसे छीन लिए। वह मेरे जीवन के अंतिम पलों को ज़हरीला बनाकर चला गया," कहते हुए कावेरी अम्मा ने अंतिम सांस ली।

नीता और राज उनके गालों की पप्पी लेने लगे। उनकी दादी की आँखों के आँसू उनके होठों से टकरा गए। वह दर्द उन आँसुओं के साथ बच्चों को अंदर तक छलनी कर गया। एक हंसता खेलता परिवार ऐसे दर्द की चपेट में आ गया, जिसका उपचार किसी के पास नहीं था।

प्रतीक ने तो छोड़ दिया था लेकिन राज ...? राज उसे नहीं छोड़ पाया और पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवा ही दी। रमन बाल सुधार केंद्र में अब सुधरने की कोशिश कर रहा है लेकिन उसने कावेरी अम्मा को जो दर्द दिया था, क्या उसके लिए वह ख़ुद को कभी भी माफ़ कर सकेगा?

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त