रात को खाने की टेबल पर खाना खाते समय प्रतीक ने रमन से पूछा, "बेटा यहाँ कैसे आना हुआ? क्या काम है?"
"अंकल मैं एक स्कूल में एडमिशन की बात करने आया हूँ।"
"क्यों तुम्हें हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना है? अभी तो तुम वहीं तुम्हारे परिवार के साथ रहकर भी पढ़ाई कर सकते हो। बेटा ऐसा मौका जीवन में कम ही होता है, बच्चे एक बार घर से बाहर निकल गए तो फिर वापस मेहमान बन कर ही घर लौटते हैं। यह समय तो परिवार के साथ रहने का है। "
रमन ने कोई जवाब नहीं दिया। प्रतीक को भी लगा यदि वह नहीं बताना चाहता तो उसे जबरदस्ती नहीं पूछना चाहिए।
उसने कहा, "रमन तुम जिस काम के लिए आए हो, उसके लिए ऑल द बेस्ट।"
" थैंक यू अंकल।
प्रतीक अपने कमरे में तो चला गया परंतु रमन की बात को हजम नहीं कर पाया। बहुत सोचने के बाद अंततः उसने अपने भाई विमल को फ़ोन लगा ही दिया।
"हैलो भैया।"
"हाँ बोलो प्रतीक, रमन पहुँच गया ना?"
"हाँ भैया वह अच्छे से आ गया। भैया मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ?"
"हाँ-हाँ पूछ ना, क्या बात है?"
"यह रमन, वहाँ अपना घर बार छोड़कर यहाँ पढ़ाई करने क्यों आना चाहता है?"
"अरे प्रतीक तुझे क्या बताऊँ, दो-दो साल में एक क्लास पास करता है। पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल मन नहीं लगता उसका। यहाँ माँ-बाप परेशान हैं, हरकतें भी कोई बहुत अच्छी नहीं हैं। कुछ लड़कियों ने स्कूल में छेड़छाड़ की शिकायत भी दर्ज़ करवाई थी। शायद स्कूल वाले भी अब उसे उनके स्कूल में नहीं रहने देना चाहते।"
"बाप रे यह लड़का तो खतरनाक लग रहा है, दिखने में तो मासूम-सा लगता है।"
"प्रतीक तुम चिंता मत करो, बस एक ही रात की तो बात है, कल तो वह वापस चला जाएगा।"
"हाँ भैया ठीक है, रखता हूँ।"
"हूँ ... ठीक है।"
रमन के माता-पिता ने 13 वर्ष की उम्र से ही उसे स्मार्ट फ़ोन दिला रखा था। दिलाया तो सही पर कभी यह सुध नहीं ली कि उनका लड़का उस मोबाइल में करता क्या है, वह देखता क्या है, वह सुनता क्या है और सीख क्या रहा है। पढ़ाई में विफलता पर विफलता मिलने के बाद भी उन्होंने कभी यह ग़ौर ही नहीं किया कि उनका बेटा क्यों राह से भटक रहा है। माँ-बाप परेशान पर कारण नहीं खोज पा रहे।
दरअसल रमन को ऐसे वीडियो देखने की लत लग गई थी जो इस बाली उम्र में उस बारूद की तरह होते हैं, जिसमें यदि एक भी आग की चिंगारी लग जाए तो भड़क कर जल उठते हैं और फिर सब ख़त्म कर देते हैं। लेकिन यह राज़ तो सिर्फ़ रमन ही जानता था। यहाँ भी वह अपना मोबाइल अपने साथ लेकर आया था और रोज़ रात की तरह सबके सोने के बाद उसने फिर वही वीडियो देखना शुरू कर दिया। उस वीडियो को देखकर वह इतना आवेश में आ गया कि अपने अंदर जल रही अग्नि को शांत करने के लिए, बिना सोचे समझे वह सीधा कावेरी अम्मा के कमरे की तरफ़ मुड़ गया। उसके क़दम आगे बढ़ते जा रहे थे। आँखों में हवस थी, शरीर में आग बुझाने का जुनून था।
कावेरी अम्मा के कमरे में प्रवेश करके जैसे ही उसने कावेरी अम्मा के वृद्ध शरीर पर हमला किया; वह जाग उठीं और उसकी नीयत को समझने में उन्हें बिल्कुल भी समय नहीं लगा।
कावेरी अम्मा ने अपनी मद्धम आवाज़ में कहा, "रमन यह क्या कर रहा है? तू पागल हो गया है क्या?"
"हाँ पागल हो गया हूँ मैं," कहते हुए उसने कावेरी अम्मा पर हावी होने की जैसे ही कोशिश की। कावेरी अम्मा के मज़बूत पांव जिन्होंने वर्षों कबड्डी खेली थी उनकी रक्षा में उठ खड़े हुए और उन्होंने पूरी ताकत से रमन को इतनी ज़ोर की लात मारी कि रमन दूर जाकर दीवार से टकराया और फिर धड़ाम से गिरा।
रमन के गिरने की आवाज़ सुनकर प्रतीक और नमिता दौड़ कर उस कमरे में आने लगे। तब तक रमन संभला, उठा और भागने लगा। किंतु प्रदीप के मज़बूत हाथों में उसकी टांग पकड़ में आ गई और फिर वह उसकी गिरफ़्त से छूटकर भाग नहीं पाया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः