वह आखिरी पल - भाग - 4 Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वह आखिरी पल - भाग - 4

कावेरी अम्मा की हालत देखकर नमिता दौड़ कर उनके पास आई तो उसने देखा कि वह हांफ रही थीं। घबराहट के कारण वह बोल सकने की हालत में नहीं थीं।

" क्या हुआ अम्मा, कहते हुए नमिता ने उन्हें उठाया और सीने से लगा लिया।

कावेरी अम्मा नमिता से इस तरह से चिपक गईं जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ के सीने से लगकर सुकून महसूस करता है।

नमिता ने पूछा, "अम्मा आप ठीक तो हैं ना?"

कावेरी अम्मा ने हाथ से इशारा किया रुक जाओ, "ज़रा सांस तो लेने दो, फिर बताती हूँ," इतना कहते हुए अम्मा रोने लगीं।

उनके इस रोने में दर्द के साथ-साथ क्रोध भी था। उनके बहते आँसुओं को नमिता ने अपने हाथों से पोछा।

तब तक प्रतीक उस रमन को पकड़कर कावेरी अम्मा के पास लेकर आया और उनके पैरों पर पटकते हुए कहा, "माफ़ी मांग, माफ़ी मांग, शर्म नहीं आती तुझे एक 90 वर्ष की वृद्धा पर इस तरह ग़लत ... छीः," कहते हुए उसने विमल को फ़ोन लगाया।

रमन होश में आ चुका था। वह रो-रो कर गिड़गिड़ा कर माफ़ी मांग रहा था।

"माफ़ कर दो अंकल, किसी को मत बताओ, अंकल प्लीज किसी को मत बताओ ..."

प्रतीक ने कहा, "तुम्हारा गुनाह माफ़ करने के लायक नहीं है। मेरी माँ तो बचपन से खेल कूद में प्रवीण रही है। शायद इसीलिए उन्होंने ख़ुद को बचा लिया और हम भी तुरंत ही आ गए। वरना तो तू फिर से उन पर हमला कर देता। शायद वह मर जातीं।"

उधर कावेरी अम्मा की हृदय की धड़कनें रुक रही थीं। उन्हें गहरा सदमा लगा था। वह सोच रही थीं, भला इस उम्र में भी कोई ऐसी हरकत कर सकता है। उनकी पूरी शक्ति शायद उस लात के वार के साथ ख़त्म हो गई थी। वह बिल्कुल शिथिल लग रही थीं।

नमिता ने तुरंत उनके फैमिली डॉक्टर को फ़ोन लगाया।

प्रतीक ने रमन की एक न सुनते हुए विमल को फ़ोन लगा ही दिया। उसका गुस्सा इस समय अपनी चरम सीमा पर था। उनकी प्यारी अम्मा के साथ आज बदतमीजी की हद पार कर दी गई थी। वह इस समय बागी हो रहा था जिस पर उसका ख़ुद का नियंत्रण नहीं था।

कुछ ही घंटे के उपरांत विमल के साथ रमन के पिता मनोज भी आ गए। आज अपने बेटे की इस घिनौनी हरकत के कारण वह इतने शर्मिंदा थे, मानो खड़े-खड़े किसी ने उनकी पूरी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया हो। वह आग बबूला होकर रमन की तरफ़ लपके। वह उस पर हाथ उठाने ही वाले थे कि विमल ने उन्हें ऐसा करने से रोकते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, मारना इसका हल नहीं है मनोज।

उधर डॉक्टर तुरंत ही आ गए और आते से कावेरी अम्मा का इलाज़ शुरू कर दिया। वह इस समय सदमे में थीं, शायद होश में ही नहीं थीं लेकिन उनकी आँखों के पोरों से लगातार आँसू गिर रहे थे, जो उनकी वेदना के सूचक लग रहे थे। वह तो बच गई थीं लेकिन वह घटना फिर भी उन्हें तोड़ गई। वह अब बचेंगी या नहीं यह बड़ा प्रश्न था।

विमल ने कहा, "बोलो मनोज क्या करें तुम्हारे बच्चे के साथ।"

मनोज ने ज़्यादा कुछ सोचे बिना कहा, "इसे तो मैं बाल सुधार केंद्र में भेज देता हूँ।"

फिर उन्होंने रमन की तरफ़ देखते हुए कहा, "अब तुम्हारी जगह वहीं है। तुमने हमारी नाक कटवा दी। इसीलिए तेरा पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था ... है ना?"

तब प्रतीक ने कहा, "आपने उसे छोटी-सी उम्र में मोबाइल दे दिया उसके बाद यह ध्यान ही नहीं रखा कि वह उसके साथ क्या करता है। आज उसे पकड़ने के बाद मुझे उसका मोबाइल फ़र्श पर पड़ा मिला, जिसे मेरे आने से पहले वह उठा नहीं पाया था। मैंने जब उसका मोबाइल खोला तो सबसे ऊपर जो वीडियो था वह यदि आप देख लो तो आपको पता चलेगा कि आपका बेटा मोबाइल पर क्या करता है, क्या सीखता है और क्यों वह इतनी छोटी उम्र में ऐसा हो गया है। गलती तो आप जैसे माँ-बाप की भी होती है, जो सुविधा के नाम पर बिना सोचे समझे बच्चों को वह खिलौना पकड़ा देते हैं, जिसे खेलने के लायक उनकी उम्र हुई ही नहीं होती है। माना कि सब बच्चे ऐसे नहीं होते लेकिन यदि सौ में से एक भी ऐसा निकल जाए तो वह एक भी तो किसी न किसी की आँखों का तारा होता है ना जो बर्बादी के रास्ते में कहीं खो जाता है। मैं पुलिस में फ़ोन करने वाला था लेकिन मेरी माँ बच गई तो आप अपने बेटे को ले जा सकते हैं। जो सज़ा देना चाहें आप स्वयं ही दें। जिस वक़्त उसने आकर अम्मा के पाँव छुए थे तब मुझे ऐसा लगा था कि कितना संस्कारी है, बातें भी बड़े ही अदब के साथ नम्रता पूर्वक कर रहा था पर अचानक ही सब कुछ बदल गया। उसके अंदर एक भेड़िया पल रहा था जिसके कसूरवार तो आप भी हैं जो उस पर अपनी पैनी नज़र ना रख पाए। अब आप इसे मेरी नजरों से दूर ले जाइए प्लीज।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः