भाग 7
"कुछ बहुत अजीब पता चला है विक्रम। ये नीलम टपरवेयर का काम करती थी जिसकी जानकारी अमोल ने हमें नहीं दी।" कविता ने कहा।
"तुम्हें कैसे पता चला?" विक्रम ने पूछा।
"फेसबुक अकाउंट से। मैं उसका अकाउंट चैक कर रही थी कि मेरी नज़र एक टपरवेयर के ऐड पर पड़ी जिसमें नीलम ने कमेंट कर रखा था कि इसकी सदस्यता कैसे ली जाती है? उसपर कम्पनी ने रिप्लाई में अपना नम्बर भेजा और उस नम्बर पर फोन कर जब मैंने पता किया तो पता चला कि नीलम पिछले एक साल से इस काम में है। और पिछले छह माह से बहुत अच्छा कमा भी रही है। " कविता ने विक्रम को बताया।
विक्रम भी आश्चर्यचकित था कि अमोल ने ये बात उससे छिपाई क्यों?
“या तो अमोल हमसे कुछ छिपा रहा है या फिर उसे सच में कुछ पता नहीं है।” इंस्पेक्टर राठोर ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा।
“विक्रम मैंने कहा था ना कि तुम प्रीति का पता लगाओ, अमोल की ऐक्स गर्लफ्रेंड।” कविता बोली।
“पर उसका इस केस से क्या संबंध कविता?”
“संबंध हो सकता है विक्रम। जब तक नीलम का पता नहीं चल जाता तब तक सब शक के दायरे में हैं।”
“ठीक है, कल तक पता चल जाएगा। अच्छा तुम्हें याद है ना कि रात को ए. सी. पी सर की पार्टी में जाना है। तैयार रहना।” इंस्पेक्टर राठोर ने कविता की तरफ प्यार भरी निगाहों से देखते हुए कहा।
“ऑफकोर्स याद है। मैं तैयार रहूँगी। चलो अभी चलती हूँ।” ये कह कविता वहाँ से निकल गई।
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शाम को जब इंस्पेक्टर राठोर अपने घर पहुँचा, कविता तैयार हो रही थी।
“क्या बात है सुभानल्लाह! गज़ब लग रहीं हैं आप इस गाऊन में।” विक्रम कविता के नज़दीक आते हुए बोला।
“उफ़! विक्रम! हटो तैयार होने दो।” कविता ने नखरे दिखाते हुए कहा।
विक्रम ने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसे पीछे से अपनी बाहों के घेरे में घेर लिया और उसकी गर्दन पर अपने होंठों का स्पर्श करने लगा।
“क्या बात है आज बहुत आशिकाना अंदाज़ है जनाब का! इरादे नेक नहीं हैं।” कविता ने शर्माते हुए कहा।
कविता को इस कदर शर्माते देख विक्रम ने उसे तेज़ी से पलटा और उसके होंठों पर होंठ रख दिए। कविता ने भी विक्रम के बढ़ाए इस कदम को बढ़ावा देते हुए अपनी उँगलियां उसके बालों में घुमानी शुरू कर दीं। देखते ही देखते दोनों एक दूसरे में पूरी तरह खोने लगे। विक्रम थोड़ा ज़्यादा ज़ोर से कविता को पकड़ कर रखे था।
“आ.. विक्रम, मेरी बांहें दर्द कर रहीं है हटो।” कविता दर्द से कराह उठी।
“प्लीज़ कविता, बिल्कुल चुप! खो जाओ मुझमें। प्लीज़ मत टोको बीच में।” विक्रम ने थोड़ा ज़्यादा वहशीपन दिखाते हुए कहा।
तभी कविता ने विक्रम को पूरा दम लगा कर पीछे धकेल दिया।
“अब याद आया, बहुत समय से एक कड़ी जोड़ने की कोशिश कर रही थी।”
“कविता? यार! इतना अच्छा समा बंध रहा था। सब खराब कर दिया। और ये क्या? इससे पहले भी कई बार हमने इस कदर टूट कर प्यार किया है। तुम्हें मेरी ज़रा सी तेज़ पकड़ से दर्द कैसे हो गया?” विक्रम बिस्तर पर बैठते हुए बोला।
“अरे! सॉरी माई लव! मेरा इरादा तुम्हें दूर करने का नहीं था। ऑफकोर्स, इससे पहले भी हम बहुत बार टूट कर प्यार कर चुके हैं, पर मेरे दिमाग में अचानक कुछ बात कौंध गई।” कविता ने विक्रम के गालों पर हल्के से चूमते हुए कहा।
“कवि, डार्लिंग तुमने ही तो यह रूल बनाया था ना कि केस को हमेशा इस कमरे से बाहर रखेंगे। बेबी, ये हमारे प्यार करने की जगह है। सारा दिन खून-खराबा, चोरी, चोर और मुजरिम के पीछे भागने के बाद जब मैं इस कमरे में कदम रखता हूँ तो लगता है कि सारी टेंशन खत्म हो गई है। सिर्फ सुकून और प्यार होता है यहाँ।” विक्रम ने कविता को देखते हुए कहा।
“जानती हूँ कि रूल मैंने ही बनाया था, सॉरी, पर अब क्या करूँ आ गया कुछ दिमाग में।”
“वैसे ऐसा क्या आया दिमाग में जो मेरी प्यार भरी बांहों के घेरे से भी ज़्यादा ज़रूरी था।” विक्रम ने पूछा।
“बात कॉलेज के समय की है। वो प्रीति थी ना, तुम्हें पता है वो बहुत अच्छी डांसर थी।”
“तुम्हारी सुई वहीं पर अटकी हुई है यार! हमारे लव टाइम में भी ये अमोल का केस पीछा नहीं छोड़ रहा।” विक्रम ने चिढ़ते हुए कहा।
कविता बिस्तर से उठी और गुस्से में तैयार होने लगी। “चलो पार्टी के लिए लेट हो रहे हैं।”
“तुम नाराज़ हो गई। अच्छा बाबा! आई एम सॉरी! अब बताओ क्या कह रहीं थीं।” विक्रम ने अब गंभीर रूप धारण करते हुए कहा।
“तो, प्रीति एक अच्छी डांसर थी। एन्यूअल डे के फंक्शन में उसने ज़बरदस्त पर्फार्मेंस दिया था। याद है तुम्हें!”
“मैडम आपको देखने के अलावा हमारी नज़रें किसी और पर कहाँ गईं कभी।” विक्रम ने कविता को और करीब खींचते हुए कहा।
“सीरियस विक्रम, प्लीज़! तो, अमोल को प्रीति का डांस करना बिल्कुल पसंद नहीं था।”
“और ये बात तुम्हें कैसे पता?” विक्रम ने संशय ज़ाहिर करते हुए कहा।
“इसलिए पता है कि मैंने खुद अमोल और प्रीति को इस बात पर झगड़ते सुना था।” ये कह कविता अतीत के सफर पर चल पड़ी।
“उफ़! अमोल तुम समझ क्यों नहीं रहे हो? मैं बचपन से डांस करती आई हूँ। यही तो एक तरीका बचा था स्कूल और घर दोनों में अपनी पहचान बनाने का। मेरी सांवली सी सूरत की वजह से सब मुझे चिढ़ाते थे। पढ़ाई में भी उतनी अच्छी नहीं थी। स्कूल में कोई लड़का मुझसे बात तक नहीं करता था। फिर डांस पर्फार्मेंस की वजह से कम से कम टीचरों में मेरा नाम होने लगा। धीरे-धीरे क्लास में खूबसूरत लड़कियाँ भी मेरे साथ बैठने लगीं।”
“और…लड़के!” अमोल ने संदेह से देखते हुए कहा।
“हम्मम…मतलब, घूमते-फिरते तो नहीं थे मेरे साथ पर अब बात करने लगे थे मुझसे। मैं इसी में खुश थी। खुद की पहचान बन रही थी। और तुम चाहते हो कि अब मैं ये पहचान भी खो दूँ।” प्रीति रोने लगी।
अमोल ने प्रीति को वहशियों की तरह अपनी तरफ खींचा और गुस्से से उसके चेहरे को अपने हाथों में भर कर बोला, “अब, मैं नहीं चाहता कि मेरी प्रीति को मेरे सिवा कोई और देखे। नाचते हुए आज तुम्हारा हर अंग थिरक रहा था। कॉलेज के लड़कों के मुँह से लार टपक रही थी। सब आँखेंं फाड़ कर तुम्हें देख रहे थे। तुम्हारे हर अंग को पी रहे थे।”
“छी…अमोल कैसी बातें कर रहे हो। मैंने बहुत सी स्टेज परफॉर्मेंस भी दी हैं। ऐसा कुछ नहीं होता। अपनी सोच सुधारो।” ये कह प्रीति अमोल को धकेल कर वापस जाने लगी।
पर अमोल ने उसका हाथ पकड़ उसे वापस खींच लिया।
क्रमशः
आस्था सिंघल