प्यार हुआ चुपके से - भाग 16 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 16

रति को देखकर शक्ति उसके पास आया और बोला - मुझे पता नही था रति, कि तुम साड़ी में इतनी खूबसूरत लगती हूं। बहुत अच्छी लग रही हूं। रति ने खुद को देखा और आहिस्ता से बोली- शक्ति, मैं सच में अच्छी लग रही हूं ना? शक्ति ने मुस्कुराते हुए हां में अपना सिर हिला दिया और बोला- हां,बहुत अच्छी लग रही हो।

"अगर मैं सच में अच्छी लग रही होती ना शक्ति,तो सब लोग मुझे ऐसे घूर-घूर कर नही देख रहे होते।"- रति मुंह बनाकर बोली। शक्ति आकर उसकी बगल में खड़ा हुआ और लोगों की ओर देखते हुए बोला- सब तुम्हें इसलिए घूर रहे है रति क्योंकि आज इस पूरी पार्टी में तुमसे ज़्यादा खूबसूरत कोई नही है, बर्थडे गर्ल भी नही।

तुम्हारी सादगी और तुम्हारा ट्रिपिकल भारतीय नारी वाला रूप, सबके एट्रेक्शन की वजह बन गया है। ट्रस्ट मी रति मेरी नज़र से देखो, तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।

शक्ति की बातें सुनकर रति ने सुकून की सांस ली। तभी शक्ति फिर से बोला- चलो आओ, मैं तुम्हें अपनी फैमिली और अपनी लाइफ के सबसे स्पेशल इंसान से मिलवाता हूं।

"नही शक्ति प्लीज़, मैं कैसे?"- रति ने उसे इंकार किया पर शक्ति ने उसका हाथ पकड़ा और उसे ले जाते हुए फिर से बोला- आओ रति,मेरी फैमिली तुमसे मिलकर बहुत खुश होगी।

रति ने तुरंत अपने हाथ की ओर देखा और फिर डरी-शरमाई सी अपने आसपास देखने लगी। शक्ति उसे अपनी मां के पास लाया- मां ये रति है। मेरी बहुत अच्छी दोस्त...

"नमस्ते आंटी"- रति हाथ जोड़कर बोली। किरण ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली- बहुत प्यारी हो और बहुत खूबसूरत भी।

शक्ति फिर से कुछ कहने जा ही रहा था कि तभी अधिराज आकर रति से बोले- बेटा, मुझे ऐसा लगता है। जैसे मैंने तुम्हें पहले भी कही देखा है। रति मुस्कुराते हुए बोली- बहुत बार देखा है सर। मैं अपने पापा का टिफिन लेकर कई बार आपके ऑफिस में आई हूं।

अधिराज सोच में पड़ गए तभी शक्ति बोला- पापा, रति रामप्रसाद काका की बेटी है। ये सुनकर अधिराज़ के चेहरे के जैसे रंग ही उड़ गए। उन्होंने तुरंत अपने आसपास देखा और फिर शक्ति के कंधे पर हाथ रखकर बोले- शक्ति, ज़रा मेरे साथ आना बेटा। किसी से मिलवाना है तुम्हें।

"बस दो मिनिट पापा। मैं रति को बाकी सबसे मिलवा दूं"- शक्ति, रति की ओर देखकर बोला। अधिराज मुस्कुराए और बोले- मिलवा लेना बेटा, तुम्हारी दोस्त कहां भागी जा रही है। मेरे बहुत अच्छे दोस्त पार्टी में आए हुए है और तुम्हारा उनसे मिलना ज़्यादा ज़रूरी है।

शक्ति कुछ कहता, उसके पहले ही अधिराज उसे वहां से ले गए। पास ही तुलसी के साथ खड़ी पायल ये सब देखकर उनसे बोली- आज पहली बार ऐसा लगा। जैसे भाई साहब मेरी तरह सोचते है। तभी तो शक्ति को यहां से ले गए। वैसे मां, हमारे एक मामूली से चपरासी की बेटी, हमारे घर के सबसे बड़े बेटे से दोस्ती करती है। आपको कुछ अजीब नही लग रहा?

"अजीब तो हमें आपकी सोच लगती है पायल। बड़े घर से ब्याह कर, बड़े घर में ही आई है आप, पर फिर भी आपकी सोच बहुत छोटी है इसलिए आप हर इंसान को दौलत नाम के तराजू में तौलती है और अपनी आंखों पर बंधी दौलत नाम की पट्टी से देखती है।

पर हमारी आंखें हमेशा से खुली हुई है और हम इंसान का चेहरा देखकर, उसके दिल को पढ़ सकते है और इस वक्त, हम इस लड़की को देखकर आपको ये बता सकते है कि जितना खूबसूरत इस लड़की का चेहरा है। उससे कहीं ज़्यादा खूबसूरत इस लड़की का दिल है"- तुलसी रति की ओर देखकर बोली।

पायल ने गुस्से में कुछ कहना चाहा ही था कि तभी तुलसी फिर से बोल पड़ी- और एक बात आपको बता दे हम...अगर रति हमारे शक्ति की दोस्त है, तो सच में बहुत अच्छी लड़की होगी क्योंकि हमारे शक्ति आसानी से किसी से दोस्ती नही करते है। शक्ति बिना चप्पलों के जमीन पर पैर भी नही रखते है और फिर भी वो हमारे एक मामूली से चपरासी की बेटी को,चहकते हुए अपने परिवार से मिलवा रहे है। कोई तो खास बात होगी ना इस लड़की में...

पायल कुछ नही बोल सकी और भनभनाते हुए वहां से चली गई। वहीं पास ही चुपचाप खड़ा शिव उनकी बातें सुन रहा था पर उसकी नज़रें सिर्फ रति पर ही थी।

दूसरी ओर अधिराज, शक्ति को अपने एक दोस्त के पास लेकर आए और उससे बोले- जनार्दन ये है मेरा बड़ा बेटा शक्ति.. लंदन से दो साल पहले मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आया है पर इसे कंस्ट्रक्शन की फील्ड में कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए इसने अब तक अपने पापा का बिज़नेस ज्वॉइन नही किया है। ये अपना खुद का बिज़नेस सेटअप करना चाहता है और पिछले एक साल से उसी की फील्डिंग में लगा हुआ है।

"ये तो बहुत अच्छी बात है शक्ति कि तुम अपने बाप का बिज़नेस ज्वॉइन नही करना चाहते। मुझे भी इसका दिन भर सीमेंट-रेत की डीलिंग करना पसन्द नही है। वैसे तुम किस चीज का बिज़नेस सेटअप करने में लगे हुए हो?"- जनार्दन ने पूछा।

शक्ति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- अगर बता सकता अंकल, तो अपने पापा और शिव को सबसे पहले बताता, पर फिलहाल अपना प्लान सबके साथ शेयर करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, पर आय प्रॉमिस कि बहुत जल्द, ये बात खुद ब खुद सारी दुनिया को पता चल जाएगी। पता चल जाएगा सबको कि शक्ति का सिर्फ नाम शक्ति कपूर है,पर असल में वो विलेन नही बल्कि हीरो है।

उसकी बातें सुनकर शिव ने आकर उसके गले में हाथ डाला और बोला- किसकी इतनी मजाल, जो शिव कपूर के भाई को विलेन कहे। बस एक बार पता चल जाए, फिर देखना मैं उसका क्या हाल करता हूं।

अधिराज के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो शिव के बाल छूकर बोले- जनार्दन, ये मेरा छोटा बेटा.... शिव, जो मेरे सारे सपने ज़रूर सच करेगा। ये कपूर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीस को कामयाबी के ऐसे मुकाम पर ले जाएगा। जहां से बाकी कंस्ट्रक्शन कम्पनियां बहुत छोटी नज़र आयेगी। क्योंकि मेरा शिव कल से ही मेरा बिज़नेस ज्वॉइन करने जा रहा है।

"ओह प्लीज़ पापा, शिव कल ही तो इंडिया लौटा है। कुछ दिन तो उसे अपनी ज़िंदगी जीने दीजिए, फिर तो इसे सारी ज़िंदगी आपका बिज़नेस ही संभालना है"- तभी शक्ति बीच में बोला। जनार्दन मुस्कुरा दिये और फट से बोले- शक्ति ठीक ही तो कह रहा है अधिराज। अभी तो आया है तेरा बेटा....कुछ दिन तो इसे एंजॉय करने दो।

"मेरा शिव तो लौट आया है पर तेरी बेटी रीना, वो इंडिया कब लौट रही है?"- अधिराज ने पूछा। जनार्दन ने उसके गले में हाथ डाला और बोले- बहुत जल्द,

तभी अधिराज अपने बेटों की ओर देखकर बोले- बेटा, जनार्दन मेरा और अरुण का बरसों पुराना दोस्त है। कुछ दिनों पहले ही ये बैगलौर से मुम्बई शिफ्ट हुआ है और मैनें इसे कल हमारे घर डिनर पर इनवाइट किया है, इसलिए कल तुम दोनों घर पर रहोंगे। समझे??

"यस ऑफ कोर्स पापा"- शिव और शक्ति एक साथ बोले। जनार्दन ने हंसते हुए अधिराज के गले में हाथ डाला और बोले- चल मुझे तुझसे कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है।

दोनों वहां से चले गए। उनके जाते ही शक्ति, शिव से बोला- चल तुझे किसी खास से मिलवाता हूं। शक्ति उसे लेकर रति के पास आया, जो अपनी कुछ सहेलियों के साथ खड़ी आइसक्रीम खा रही थी।

"एक्सक्यूज मी गर्ल्स। मुझे बस दो मिनट के लिए रति से बात करनी है"- शक्ति उनके पास आते ही बोला। रति की सहेलियां मुस्कुराते हुए वहां से चली गई। उनके जाते ही रति ने नज़रें चुराते हुए शिव की ओर देखा, पर उसे खुद को देखते देख झेंप गई और उसने फिर से अपनी नज़रें झुका ली।

"रति ये मेरा छोटा भाई है.... शिव"- शक्ति अपने भाई के गले में हाथ डालकर बोला। रति ने फिर से शिव की ओर देखा और बोली - जानती हूं।

"जानती हो? पर मैनें तो तुम्हें इससे कभी मिलवाया ही नहीं? और ना ही तुम्हें इसकी कोई तस्वीर दिखाई है?"- शक्ति ने हैरानी से पूछा। रति, शिव की ओर देखकर आहिस्ता से बोली- वो.....कल गौरी के घर इनसे मुलाकात हुई थी मेरी।

"ओह, तो तुम दोनों मिल चुके हो? कोई बात नही.... मैं एक बार फिर से, तुम दोनों को मिलवा देता हूं। रति ये वही खास इंसान है, जिससे मैं तुम्हें मिलवाना चाहता था। ये मेरा छोटा भाई शिव है पर ये मुझसे एकदम ऑपोजिट है। मुझे बात-बात पर गुस्सा आ जाता है पर ये। ये बहुत कूल है और यही वजह है कि लोग मुझसे ज़्यादा इससे इंप्रेस होते है। एक सिर्फ तुम ही हो, जिसने मेरी बुराइयों में भी अच्छाई तलाश ली। वर्ना तो लोग मेरा नाम सुनकर ही, मुझे शक्ति कपूर समझ लेते है"

शक्ति की बाते सुनकर रति मुस्कुराते हुए बोली- ऐसा नही है शक्ति...फिल्मों वाले शक्ति कपूरजी भी असल ज़िंदगी में वैसे नही होंगे,जैसे वो फिल्मों में दिखते है, तो तुम कैसे खलनायक हो सकते हो और फिर तुम्हें हमारी पहली मुलाकात याद है ना, जिसमें हम दोनों का जमकर झगड़ा हुआ था? क्योंकि तुमने अपनी गाड़ी से एक ठेले वाले के सारे फ्रूट्स, जमींन पर गिरा दिए थे। और ना उसे सॉरी कहा था और ना उसे पैसे दिए थे, पर इसके बावजूद.... हम आज दोस्त है, क्योंकि वो तुम ही थे, जिसने मेरे पापा की जान बचाई थी।

शिव चुपचाप खड़ा उनकी बातें सुन रहा था और वो अपनी ही बातों में लगे हुए थे। शिव की नज़रे उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी।

"अब आपकी तबियत कैसी है?"- तभी डॉक्टर साहब ने शिव से इंजेक्शन लगाते हुए पूछा। इंजेक्शन की चुभन से, शिव अपने बीते हुए कल से बाहर आ गया और उसने डॉक्टर की ओर देखा। डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोले- अब आपकी सेहत पहले से बेहतर है।

आज से एक वॉर्ड बॉय, हर रोज आपको चलने की प्रैक्टिस करवाएगा। बहुत जल्द आप फिर से चलने लगेंगे मिस्टर शिव और कुछ देर में नाई आकर आपकी दाढ़ी भी बना देगा। वैसे आपकी बात तो अपने परिवार वालों से हो ही चुकी है तो वो लोग जल्द ही आपको लेने आते होंगे। हैना?

"शिव ने कोई जवाब नही दिया। वो बस ऊपर सीलिंग की ओर देख रहा था। दूसरी ओर रति अपने घर पहुंची, तो गायों को चारा खिला रही लक्ष्मी की नज़र उस पर पड़ी। रति तेज़ी से घर के अन्दर आई और उसने अपना बैग वही एक कील पर टांग दिया।

"काजल बिटिया, आज तू इतनी जल्दी आ गई अपने दफ्तर से? आधी छुट्टी हो गई क्या?"- लक्ष्मी में बाहर से ही पूछा। रति ने अपनी आँखें बंद की और गहरी सांस लेकर बोली- हां,आधी छुट्टी हो गईं है अम्मा।

लक्ष्मी मुस्कुराते हुए बोली- बिटिया तेरे लिए खीर बनाई है। गरम ही होगी, खा ले।

रति ने खुद को संभाला और फिर दीवार के ऊपर लगे पटिए पर से, पीतल की एक कटोरी उठाई और फिर जमीन पर बैठकर तपेली से अपने लिए खीर निकालने लगी। तभी लक्ष्मी अंदर आई और बोली- बिटिया, आज अगर तू जल्दी आ गई है, तो मेरे साथ चौक में चल.... आज मन्दिर के सामने चौक में वीसीआर लगने वाला है। पड़ोस वाली सुनीता बहन बता रही थी कि जो नई पिक्चर लगी है। वही चलेगी वहां पर, इसलिए मैनें जल्दी खाना भी बना लिया है। तू चलेगी ना?

"हां अम्मा,चलूंगी"- रति खाट पर बैठकर बोली। वो खीर की चम्मच अपने मुंह तक लाई ही थी कि तभी लक्ष्मी ने जल्दी से सारे बर्तन समेटने शुरू किए और बोली- जल्दी से बर्तन भी साफ कर लेती हूं।

"आप रहने दीजिए अम्मा। बर्तन मैं साफ कर दूंगी"- रति चम्मच फिर से कटोरी में रखकर बोली।

"नही बिटिया, अभी-अभी तो दफ्तर से आई है। थकी हुई होगी, तू थोड़ी देर आराम कर ले और खाना भी खा ले। बर्तन मैं साफ कर लूंगी"- लक्ष्मी सारे बर्तन बाहर आंगन में ले जाते हुए बोली। रति ने खीर की कटोरी वही ज़मीन पर रखी और बोली- अगर आपने मुझे बर्तन साफ करने नही दिए अम्मा, तो मैं आपके साथ चौक में फिल्म देखने नही चलूंगी। यही रहूंगी घर में, अकेली.....और आपके साफ किए हुए बर्तन फिर से साफ करूंगी।

ये सुनकर लक्ष्मी मुस्कुरा दी- अच्छा बाबा, तू साफ कर ले.... मैं आंगन में झाड़ू लगा देती हूं। सांझ होने वाली है फिर झांडू नही लगा सकूंगी।

"अम्मा मै बर्तन साफ करने के बाद,आंगन में झाड़ू भी लगा दूंगी और दिया-बत्ती भी कर दूंगी। आप जाइए और पास वाली कांता काकी के साथ मन्दिर में भजन करिए। दफ्तर से आते वक्त देखा था मैंने मन्दिर में मातारानी के भजन हो रहे है। हमारे मोहल्ले की बहुत सी औरते जमा है वहां"

लक्ष्मी परेशान होकर उसे देखने लगी। रति ने मुस्कुराते हुए उन्हें पकड़ा और बोली- जाइए अम्मा, मैं सब कर लूंगी।

"पर बिटिया"

"जाइए अम्मा," रति अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर रौब से बोली।

"ठीक हैं जाती हूं, पर तू खीर खा लेना और पेट भर के खाना... बहुत सारी बनाई है मैंने तेरे लिए"

रति ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला दिया। लक्ष्मी ने उसके सिर पर बहुत प्यार से हाथ फेरा और फिर से बोली- पता नही, जब कभी तू यहां से चली जायेगी, तो हम तेरे बिना कैसे रहेंगे। एक ना एक दिन जमाई बाबू तुझे लेने ज़रूर आएंगे और फिर तू हमें छोड़कर। हमेशा के लिए अपनी दुनिया में लौट जायेगी। अब तक अकेलेपन की आदत हो गई थी, पर तेरे आने के बाद ये घर, घर लगने लगा है। सुबह-शाम तेरे हाथों का बना खाना खाने की जैसे आदत ही पड़ गई है। आज इतने दिनों बाद मैनें खाना बनाया है। पता नही तेरे बाबा खाएंगे या नही?

रति मुस्कुराते हुए बोली- ज़रूर खाएंगे अम्मा क्योंकि आप तो मुझसे भी ज़्यादा अच्छा खाना बनाती है। आपको पता है अम्मा जिस दिन शिव आपके हाथों का बना खाना खा लेंगे, तो बार-बार आपसे खाने की फरमाइशें करेंगे और आपको परेशान कर देंगे। विदेश में इतने साल रहने के बाद भी उन्हें देसी खाना ही भाता है।

कड़ी चावल....आलू की सब्जी और पूड़ी.... दाल-बाटी.... गौबी के पराठे.... सब उन्हें बहुत पसन्द है और दाल-चावल....वो तो उन्हें रोज चाहिए होते है और वो भी मां के हाथों के बने हुए। मां बनाती ही इतने स्वाद है.. जीरे और हींग का तड़का लगाकर,

"एक बार जमाई बाबू को लौट तो आने दे बिटिया। पंद्रह दिन तक यहां से जाने नही दूंगी। उनकी पसन्द की सारी चीज़े बनाकर खिलाऊंगी। उन्हें भी और अपने होने वाले नाती को भी, पर अभी के लिए तू ये खीर खा लेना। ठीक है?"- लक्ष्मी उसके गाल को छूकर बोली। रति मुस्कुरा दी और उसने लक्ष्मी को जाने का इशारा किया।

लक्ष्मी सिर हिलाकर वहां से चली गई। उनके जाते ही रति ने अपनी आँखें बंद कर ली और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने अपनी आँखें खोली और मन ही मन बोली- मुझे माफ कर दीजिए अम्मा। आपका ये सपना अब कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि मैं कल सुबह ही यहां से हमेशा-हमेशा के लिए जा रही हूं। सिर्फ आज की रात है मेरे पास... आप लोगों के साथ बिताने के लिए... सिर्फ आज की रात,

इतना कहकर उसने खुद को संभाला और फिर से घर के अन्दर आई। आते ही उसने खीर की कटोरी उठाई और खीर खाने लगी पर फिर अचानक, उसके हाथ रुक गए। उसने खीर की चम्मच की ओर देखा और फिर अपने पेट की ओर देखकर बोली- आपके पापा को खीर बहुत पसन्द थी तो आपको भी ज़रूर पसंद आएगी।

उसने मुस्कुराते हुए चम्मच अपने मुंह में रखनी चाही ही थी कि तभी शिव ने उसका हाथ पकड़कर चम्मच अपने मुंह में रख ली। रति ने तुरंत नज़रें उठाकर देखा तो शिव उसके सामने खड़ा था। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

"इतनी टेस्टी खीर मेरी बेटी को तुम क्यों खिलाओगी रति? उसे खीर खिलाने के लिए उसके पापा है?"- इतना कहकर शिव ने कटोरी से एक चम्मच खीर ली और रति की ओर बढ़ा दी। रति बहुत प्यार से मुस्कुराते हुए उसे देखने लगी। तभी शिव ने अपनी नज़रों से उसे खीर खाने का इशारा किया। रति ने उसकी आंखो में देखते हुए खीर खाई। शिव ने पहले उसके होंठो की ओर देखा और फिर उसकी आंखों में शरारत भरी नज़रों से देखने लगा। उसने चम्मच फिर से कटोरी में रखी और फिर आहिस्ता से अपना हाथ उसके चेहरे की ओर बढ़ाया। रति एकटक उसे ही देख रही थी।

शिव ने अपने हाथों की उंगलियों से आहिस्ता से उसके चेहरे को छुआ, तो रति के पूरे बदन में सिहरने होने लगी और उसके होंठ कांपने लगे। शिव ने फिर से उसके होंठो की ओर देखा और उसके होंठों पर लगे चावल के दानों को आहिस्ता से निकाला और फिर से रति की आंखों में देखने लगा। रति ने अपनी तिरछी नज़रों से उस चावल के दाने की ओर देखा और फिर शर्म से अपनी नज़रें झुकाकर मुस्कुराने लगी।

लेखिका
कविता वर्मा