लव एंड ट्रेजडी - 6 Urooj Khan द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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लव एंड ट्रेजडी - 6





दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है। घर का नौकर दरवाज़ा खोलता है और कहता है " सलाम साहब "

"अरे आप आज इतनी जल्दी " रुपाली जी ने कहा क्यूंकि दरवाज़े पर मौजूद शख्स हंसराज जी थे।

हंशित और उसके दोस्त हंसराज जी को नमस्ते करते है ।

हंसराज उनकी तरफ देखे बिना ही सर हिला देता है उन्हें उसके दोस्त पसंद नही है।

"आपने बताया नही आज इतनी जल्दी कैसे आना हुआ और रजत कहा है " रुपाली जी ने दोबारा पूछा

"आज हमें बहुत बड़ा प्रोजेक्ट मिला है रजत अभी दफ़्तर में है मुझे थोड़ी फ़ाइल लेना थी घर से और उन्हें देखना था इसलिए जल्दी आ गया ये तुम लोगो ने घर का क्या हाल बनाया है यहाँ इंसान रहते है या जानवर " हंसराज जी ने हंशित की तरफ देख कर कहा।

चारो और ख़ामोशी थी। अच्छा हंशित हम लोग चलते है फिर मुलाक़ात होगी। श्रुति ने मोके की नजाकत देख कर कहा

"तुम लोग कहा चल दिए मेरे कमरे में आ जाओ" हंशित ने कहा उन्हें रोकते हुए।



"नही यार घर जल्दी जाना है, वैसे भी शाम होने लगी है मोम इंतज़ार कर रही होंगी" जॉन ने कहा

"चलो अच्छा ठीक है कल मुलाक़ात होती है उसके बाद दोबारा डिस्कस करेंगे जाने के बारे में" हंशित ने कहा

कही जाने की तैयारी हो रही है, बस ऐसे ही समय बर्बाद करो तुम लोग" हंसराज जी ने कहा

"हंसु तू अपने कमरे में जा, जिस काम के लिए आया था वो कर जाकर" हेमलता जी ने कहा

"किसी का घर बर्बाद करने से अच्छा है की बंदा अपना समय बर्बाद करदे कम से कम बद्दुआ तो नही लगेगी" हंशित ने कहा दो टूक जवाब में कहा।

"सुना माँ आपने क्या कहा इसने और आप मुझे कमरे में भेज रही हो " हंसराज जी ने कहा

"बेटा हंशित बाहर जाओ नही तो अपने कमरे में जाओ बेवजह मेहमानों के सामने तमाशा मत बनाओ अपना और अपने पिता का " रुपाली जी ने कहा सामने खडे हंक्षित से

" उसके दोस्त वहा से चले गए जब उन्होंने देखा घर का माहौल बिगड़ रहा है




हंशित बिना कुछ कहे अपने कमरे में चला गया। हंसराज जी भी गुस्से में अपने कमरे में चले गए.

रुपाली जी दुविधा में थी की बेटे को संभाले या पति को उन्होंने हेमलता जी की तरफ देखा ।

हेमलता जी ने अपनी बहु की तरफ प्यार भरी नज़रो से देखा वो समझ गयी थी एक माँ और पत्नि की दुविधा वो बोली " बहु जा तू जाकर अपना पत्नि धर्म निभा हंसराज को संभाल कही वो गुस्से में कुछ कर ना बैठे "

"लेकिन माँ, हंशित " रुपाली ने कहा

"वो थोड़ी देर में खुद ही ठीक होकर नीचे आ जाएगा नही तो मैं रजनी बहु के साथ उसके कमरे में चली जाउंगी तू चिंता मत कर हंसु को संभाल नही तो वो पूरा घर सर पर उठा लेगा अगर कोई फ़ाइल उसे नही मिली तो " हेमलता जी ने कहा पास ख़डी अपनी बहू से विनम्रता पूर्वक

"ठीक है माँ, एक माँ की दुविधा एक माँ ही समझ सकती है शुक्रिया माँ मुझे इस दुविधा से निकालने के लिए' रुपाली जी ने कहा और अपने कमरे की और चल दी



"चल बहु हंशित के कमरे तक मुझे छोड़ आ अकेले तो मैं ये सीड़िया नही चढ़ सकती। इन बाप बेटे की नाराज़गी ना जाने कब खत्म होगी यमराज का बुलावा आ जाएगा मेरे पास लेकिन ये दोनों की नाराज़गी खत्म नही होगी" हेमलता जी ने कहा

"ईश्वर ना करे दादी आप को कुछ हो, मेरी उम्र भी आपको लग जाए, एक दिन सब ठीक हो जाएगा ईश्वर ने चाहा तो बस आप आराम से सीड़िया चढ़ जाइये" रजनी ने कहा उन्हें सीड़ियों की और ले जाते हुए।

"जीती रहे बहु, सदा सुहागन रहे तू" हेमलता जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा

हंशित कमरे में गुस्से से फूला बैठा था और ना जाने अपने आप से क्या क्या कह रहा था ।

"बस कर बेटा अब गुस्सा थूक भी दे, बहुत हुआ देख तेरी दादी घुटनो के दर्द की मरीज़ तुझसे मिलने इतनी सीड़ियाँ चढ़ कर आयी है " हेमलता जी ने कहा कमरे में घुसते हुए



" अरे दादी आप क्यू तकलीफ उठा कर मेरे कमरे में आ गयी मुझे आवाज़ देदी होती में नीचे आ जाता। और मैं किसी से नाराज़ या गुस्सा नही हूँ। बस पापा को मेरे दोस्तों को इस तरह नही कहना चाहिए था और घर के बारे में भी नही कहना चाहिए था। उनकी नाराज़गी मुझसे है तो मुझे कहा करे ना की मेरे दोस्तो को इस मामले में घसीटा करे " हंशित ने कहा मूह फुलाते हुए गुस्से से।

" अरे बेटा तू तो अपने बाप को जानता ही है, वो हमेशा से ऐसा ही तो है उसे घर में साफ सफाई पसंद है और तू तो जानता ही है वो उसी समय दफ्तर से आया था। वो हम सब से प्यार करता है उसका दिल बहुत नर्म है अंदर से बाहर से चाहे वो कितना ही सख्त बना ले अपने आप को लेकिन मैं जानती हूँ उसकी माँ जो हूँ उसे नो महीने अपनी कोख में पाला था उसे मुझसे बेहतर कौन जान सकता है। चल अब छोड़ जो हुआ और ये बता मेरे लिए क्या लाएगा केदारनाथ धाम से" हेमलता जी ने कहा उसका मूड ठीक करते हुए।

" जो आप कही दादी वो ले आऊंगा " हंक्षित ने कहा

" फिर ठीक है मेरे लिए वहां से एक बहू ले आना जो तुझे संभाल सके " हेमलता जी ने कहा हंक्षित की और मुस्कुरा कर देखते हुए







" शादी और में, जिसका खुद का कोई ठिखाना नही जिसका बाप उसे घर से निकालने की धमकी सुबह शाम देता है बस कुछ लोगो की वजह से मैं यहाँ रुक जाता हूँ जिसकी खुद की कोई पहचान नही जो खुद अकेला है वो क्या किसी को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाएगा और वैसे भी दादी मुझे पहले इस प्रतियोगिता पर फोकस करना है उसके बाद समय मिला तो देखूँगा और वैसे भी रजनी भाभी है ना और किया चाहिए आपको " हंशित ने कहा

"मिल जाएगी तुझे भी एक दिन ऐसी कोई लड़की जो तेरे लिए ही बनी होगी, जिसे ईश्वर ने तेरे लिए ही बनाया होगा जिसकी किस्मत की लकीरो में तेरा नाम लिखा होगा, जब तू उससे मिलेगा तो तेरे दिल से आवाज़ आएगी की यही है वो जिसे भगवान ने तेरे लिए बनाया है, एक कशिश सी होगी उसके चेहरे पर जिसे देख तू उसकी और खींचा चला जाएगा। उसके चाँद से चेहरे का दीदार तू बार बार करना चाहेगा, बहाना ढूंढेगा उसके साथ समय बिताने का " हेमलता जी ने कहा

"बस दादी ऐसा फिल्मो में होता है हकीकत में नहीं लगता है आज कल भजन सुनने की उम्र में रोमांटिक पिक्चर देख रही हो तब ही तो ऐसी बाते बोल रही हो 'हंशित ने कहा



"हट पागल ये तो मैं बस ऐसे ही बोल रही हूँ। मेरी बात याद रखना शायद पहाड़ो में ही तेरी शहजादी बैठी तेरा इंतज़ार कर रही हो ये सब ईश्वर के संकेत ही है जो तू वहा जा रहा है तू वहा नही जा रहा है बल्कि तुझे वहा बुलाया जा रहा है" हेमलता जी ने कहा और रजनी के साथ हसने लगी।

"बस दादी बहुत हुआ अब परेशान कर रही हो मुझे चलो मैं आपको नीचे छोड़ कर आऊ, और माँ से कहना अपना पत्नि धर्म निभा चुकी हो तो थोड़ा बेटे के पास भी आ जाना उसे भी तुम्हारी ज़रुरत है " हंशित ने कहा

"कह दूँगी तू तो हमें कमरे से निकाल रहा है लगता है शर्मा गया मेरा पोता" हेमलता जी ने कहा हस्ते हुए।

हंशित उन्हें नीचे छोड़ आया और कमरे मे आ गया उसका ध्यान दादी की बातो पर गया और वो मुस्कुराने लगा और बोला " दादी भी ना केसी फ़िल्मी बाते कर रही थी मैं वहा अपने काम से जा रहा हूँ और उन्हें मस्ती सूज रही है "



हंशित ने लैपटॉप खोला और केदारनाथ की तस्वीरे देखने लगा वहा की सुंदरता उसे मोह रही थी और वो तस्वीरे देखता देखता खो सा गया।

क्या मोड़ लेगी आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये