प्यार हुआ चुपके से - भाग 13 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 13

अजय,शक्ति के साथ नदी के किनारे पहुंचा और बोला- सर यहीं इसी जगह पर डैम बनने वाला है। खुदाई का काम यहां कल से शुरु हो जायेगा। वो वहां पर एक कंट्रोल रूम शिव साहब ने बनवाया था। आप वहां चलकर बैठिए, मैं सप्लायर्स की लिस्ट लेकर आता हूं।

शक्ति ने उसे घूरा और तेज़ी से कंट्रोल रूम की ओर बढ़ने लगा। उसे जाते देख अजय ने सुकून की सांस ली और अपनी घड़ी की ओर देखते हुए बोला- ये सुनिल कहां रह गया? काजल से कहा था मैनें कि उसे जल्दी फाइल लेकर भेजे।

वो बड़ी बेचैनी से टहलते हुऐ उसके आने का इंतज़ार करने लगा। उसने वहीं नपती ले रहे एक आदमी को इशारा करके अपने पास बुलाया। वो आदमी तुरंत उठकर उसके पास आया। अजय ने अपनी पॉकेट से एक सौ का नोट निकालकर उसे दिया और बोला- सामने जो चाय की टपरी है। वहां से दो चाय और गर्म-गर्म समोसे ले आओ। और हां, इमली की चटनी ज़रूर लेकर आना।

"जी साहब"- इतना कहकर वो आदमी दौड़ता हुआ वहां से चला गया। अजय फिर से उस रास्ते की ओर देखने लगा, जहां से सुनिल आने वाला था। दूसरी ओर शक्ति कंट्रोल रूम में बैठा। अजय के आने का वेट कर रहा था। दस मिनट वेट करने के बाद भी जब अजय नहीं आया तो वो गुस्से में उठकर कंट्रोल रूम से बाहर आने लगा।

दूसरी ओर अजय परेशान खड़ा बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था पर तभी उसकी नज़र सामने से चली आ रही काजल पर पड़ी। उसे वहां देखकर अजय थोड़ा हैरान हुआ पर फिर तेज़ी से उसकी ओर बढ़ने लगा।

"तुम?? मैनें तो तुमसे सुनिल को भेजने के लिए कहा था ना?"- अजय ने उससे पूछा। रति ने उसकी ओर फाइल बढ़ाकर जवाब दिया- वो लंच ब्रेक होने की वजह से सुनिल सर खाना खा रहे थे इसलिए मैनें उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा। ये जगह पास ही थी इसलिए मैं खुद ही चली आई।

अजय ने उसके हाथों से फाइल ली और उसे देखते हुऐ बोला- थैंक्यू,

रति कुछ नही बोली। बस उस नदी की ओर देखने लगी, जिस पर डैम बनाया जाना था। वो आहिस्ता-आहिस्ता उस नदी की ओर बढ़ने लगी। वो कुछ कदम ही चली थी कि तभी शक्ति गुस्से में अजय के पास आकर बोला- मैं आपको पहले ही क्लियर कर चुका हूं मिस्टर अजय कि मुझे इंतज़ार करना पसन्द नही है।

"आय एम सो सॉरी सर... मैं आपके लिए चाय मंगवा रहा था। ये रही सप्लायरो की लिस्ट ....आप रूम में बैठकर आराम से देख सकते है"- अजय के इतना कहते ही शक्ति ने गुस्से में उसके हाथों से फाइल ली और बोला- पहले चलकर मुझे ये पूरा एरिया देखना है। चलो,

"यस सर"- इतना कहकर अजय उसके साथ चल दिया। रति अकेली ही छिछले पानी की ओर बढ़ने लगी, जहां वो आखिरी बार शिव के साथ आई। नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर के करीब पहुंचते ही वो लड़खड़ाकर गिरने लगी। पर तभी, शिव ने उसका हाथ पकड़ लिया। रति ने पलटकर उसकी ओर देखा तो शिव उसका हाथ पकड़े हुए उसके करीब आया और उसकी आंखों में देखकर बोला- रति, तुमने शादी के पहले मुझे ये बात क्यों नहीं बताई कि तुम्हें गिरने-पड़ने की बीमारी है?

रति ने उसके गले में अपनी बांहे डाली और मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से बोली- अगर मुझे पता होता कि उस रात मेरी शादी आपसे हो जायेगी तो ज़रूर बता देती
पर अब तो आप आदत डाल ही लीजिए। मुझे गिरने से बचाने की... शिव बिना कोई जवाब दिए मुस्कुराते हुए उसे देखने लगा।

"वैसे एक बात बताइए? आप मुझे यहां क्यों लाए है? मेरा मतलब है कि ना आज सोमवार है और ना शिवरात्रि और ना ही कोई सरकारी छुट्टी है तो हम यहां क्यों आए है?"- रति ने पूछा। शिव ने उसकी बांहे अपने गले से हटाई और पीछे से हाथ बढ़ाकर उसके कन्धे पर रखकर आगे बढ़ते हुए बोला- अपने सपने से रूबरू करवाने...

रति ने तुरंत नज़रे उठाकर उसकी ओर देखा तो शिव सामने की ओर इशारा करके बोला- वहां देखो रति, वहां बहुत जल्द डैम बनने जा रहा है। रति ने तुरंत उसकी ओर देखकर पूछा- हमें टेंडर मिल गया?

शिव ने आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिला दी। उसके गर्दन हिलाते ही रति खुशी से उछल पड़ी और उसके गले लगकर बोली- शिव, शिव मैं बहुत-बहुत बहुत खुश हूं। आपका सपना सच होने जा रहा है। यहां बहुत जल्द हमारी कम्पनी के नाम का बोर्ड लगेगा और आप इस प्रोजेक्ट को लीड करेंगे।

शिन उसे अपनी बांहों में भरकर बोला- हां रति...बहुत जल्द इस साईट पर कपूर कंस्ट्रक्शन का बोर्ड लगेगा। पापा कितने खुश होंगे ना?

"हां शिव, मां और पापा बहुत खुश होंगे। वैसे आपने पापा को बताया कि हमें टेंडर मिल गया है?"- रति ने पूछा। शिव ने आहिस्ता से ना मैं अपनी गर्दन हिलाई और बोला- नही आज ही टेंडर खुला है और टेंडर खुलते ही मुझे सबसे पहले तुम्हारा ख्याल आया और मैं तुम्हें यहां ले आया। अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जीत,अपनी पत्नि के साथ सेलिब्रेट करने,

शिव की बातें रति की चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट ले आई। वो उसके सीने से लगकर बोली- मैं तो ज़िंदगी के हर एहसास में आपके साथ हूं। फिर चाहे वो खुशी हो या गम। मैं तो हमेशा आपके साथ खड़ी रहूंगी।

शिव ने उसके चेहरे को छुआ और बोला- मैं भी तो हर पल हर लम्हा तुम्हारे साथ हूं रति। तुम्हें गिरने से बचाने के लिए,

शिव के इतना कहते ही रति का मुंह खुल गया और वो बच्चों की तरह बोली- आप फिर से मेरा मज़ाक उड़ा रहे है?

शिव ने हां में अपनी गर्दन हिला दी तो रति गुस्से में उससे दूर जाते हुए बोली- जाइए, अब मैं आपसे बात ही नही करूंगी। हर बात पर मज़ाक उड़ाते है आप मेरा,

इतना कहकर वो आगे बढ़ने लगी, तभी शिव ने उसे पुकारा- रति,

रति ने पलटकर देखा तो शिव ने नदी का पानी उस पर फेंक दिया। रति ने तुरन्त अपना चेहरा अपनी दोनों हथेलियों से ढंक लिया और बोली- शिव आप?

पर शिव कहीं नही था। रति ने चारों ओर घुमकर देखा पर उसे शिव कहीं नज़र नही आया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वो रोते हुए बोली- अपना वादा तोड़ दिया आपने शिव। आपने मुझसे वादा किया था कि जब भी इस प्रोजेक्ट की शुरुआत होगी तो हम साथ में ज्योर्तिलिंग के दर्शन करेंगे पर आज आपके प्रोजेक्ट की शुरुआत हो रही है पर आप कहीं नही है।

इतना कहकर वो वही खड़ी रोने लगी पर फिर अचानक से उसका रोना बन्द हो गया और उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई।

"हे भगवान, मैं ये कैसे भूल गई कि ये डैम हमारी कम्पनी बना रही है? और शिव की गैरमौजूदगी का फायदा उठाकर, शक्ति ही इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहा होगा"- रति मन ही मन बोली। उसे शक्ति के बारे में सोच कर घबराहट सी होने लगी। उसने तुरंत अपना चेहरा अपनी साड़ी के पल्ले से ढंका और मुंह छिपाकर वहां से जाने लगी। जल्दबाज़ी में वो सामने से चले आ रहे शक्ति से टकरा गई।

"सॉरी"- इतना कहकर रति बिना शक्ति की ओर देखे तेज़ी से वहां से चली गई। शक्ति ने भी पलटकर उसकी ओर देखा पर तब तक रति तेज़ी से आगे बढ़ चुकी थी। अजय उसे ऐसे जाते देख थोड़ा हैरान था पर शक्ति मन ही मन बोला- ये आवाज़? मुझे इतनी जानी-पहचानी से क्यों लगी?

"सर, चाय और समोसे आ गए है।"- तभी वो आदमी आकर बोला जिसे अजय ने ये सब लाने के लिए कहा था। अजय तुरंत बोला- कैबिन में जाकर चाय-नाश्ता लगाओ। हम लोग आ रहे है।

उस आदमी ने सिर हिलाया और वहां से चला गया। उसके जाते ही अजय,शक्ति से बोला- चले सर,

शक्ति ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि वो अभी भी ये सोच रहा था कि वो आवाज़ किसकी थी। तभी अजय फिर से बोला- चले सर,

"हा"- शक्ति चौंककर बोला और अजय के साथ आगे बढ़ गया। दूसरी ओर, रति दौड़ती हुई अपने ऑफिस पहुंची और अपनी चेयर पर आकर बैठ गई। उसने अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ा और मन ही मन बोली- अगर ये प्रोजेक्ट शक्ति कर रहा है तो फिर तो उसका इस शहर में आना-जाना लगा रहेगा और अजय सर, वो भी उसके साथ ही काम कर रहे है। शक्ति तो किसी भी दिन इस ऑफिस तक भी पहुंच जाएगा।

"नही-नही रति, इससे पहले कि शक्ति तुझ तक पहुँचे। तुझे यहां से चले जाना चाहिए। अगर उसने तुझे देख लिया तो शिव की प्रॉपर्टी हासिल करने के लिए, वो किसी भी हद तक जायेगा। जो इंसान दौलत के लिए अपने ही छोटे भाई की जान ले सकता है। वो उसके बच्चे की जान लेने से भी पीछे नहीं हटेगा और तुझे तो शिव के लौटने तक उसकी प्रॉपर्टी और उसके बच्चे दोनों को बचाना है। तुझे अभी और इसी वक्त यहां से जाना होगा।

रति ने इतना कहकर, अपना बैग उठाया और तेज़ी से वहां से चली गई। दूसरी ओर शिव बेड पर लेटा हुआ, उस दिन के बारे में सोच रहा था। जब वो पहली बार रति से मिला था। उसे याद आया कि इंडिया आने के बाद वो सबसे पहले गौरी से मिलने उसके घर गया था।

उसने अपने पापा की गिफ्ट की हुई बाईक गौरी के घर के लोन में रोकी और तेज़ी से घर के अन्दर आते हुए चीखा- गौरी,

अपने रुम में बेड पर लेटकर बुक पढ़ रही गौरी के कानों में जैसे ही शिव की आवाज़ पड़ी तो वो खुशी से चीखी- शिव,

वो दौड़ती हुई अपने कमरे से बाहर आई तो उसने बालकनी से नीचे देखा। शिव उसे अपने घर के अंदर आता हुआ नज़र आया। वो तेज़ी से सीढ़ियों की ओर भागने लगी। उसे नीचे आते देख शिव के कदम रुक गए और उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। गौरी दौड़कर शिव के गले लग गई। शिव उसे अपनी बांहों में भरकर बोला- आय मिस यू गौरी,

गौरी की आंखों से खुशी के आंसू झलक आए। उसने गुस्से में शिव की ओर देखकर पूछा- इंडिया आ रहे थे तो मुझे बताया क्यों नही। मैं खुद तुम्हें लेने एयरपोर्ट आ जाती।

शिव ने उसके कंधे पर हाथ रखा और आगे बढ़ते हुए बोला- अगर बता देता तो तेरे चेहरे पर ये खुशी देखने कैसे मिलती? अपना चेहरा देख खुशी से लाल टमाटर हो गया है और तेरी फूली हुई नाक और फूल गई है।

इतना कहकर शिव वही रखे सोफे पर लेट गया। गौरी ने झटके से उसके पैरों को सोफे से हटाया और उसके पास बैठकर बोली- मुझसे ज़्यादा तो तुम्हारी नाक फुली हुई है। जिस पर बात-बात पर गुस्सा सवार हो जाता है। ये बताओ? लंदन में कितने लोगों के सिर फोड़े है तुमने?

शिव उठकर बैठा और कैलकुलेट करके बोला- यही कोई चालीस या पचास...

उसके इतना कहते ही गौरी का मुंह खुल गया और वो चिढ़कर बोली- शर्म नही आई तुम्हें? अपने देश की परदेस में बेज्ज़ती करवाते हुए?

"बेज्ज़ती ना हो हमारे देश की इसलिए तो ऐसा किया यार मैनें। तुझे तो अच्छे से पता है कि कोई मेरे सामने किसी के साथ मिसबिहेव करें। ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता"- शिव के इतना कहते ही गौरी ने अपना सिर हिलाया और फिर अपना हाथ आगे बढ़ाकर बोली- मेरा बर्थडे गिफ्ट,

शिव उसका हाथ झटककर बोला- बर्थडे कल है ना, तो गिफ्ट भी कल ही मिलेगा। चल अब जा, और मेरे लिए एक कप अच्छी सी चाय बनवा।

गौरी मुंह बनाकर जाने लगी तो शिव टेबल पर रखी मनोहर कहानियां का नया संस्करण उठाते हुए बोला- और प्लीज़ मनीष से कहकर बनवाना। खुद मत बनाना....बहुत बुरी चाय बनाती है तू,

गौरी ने गुस्से में वही रखा एक पिलो उठाकर उसे दे मारा और बोली- ये बार-बार मेरा मज़ाक उड़ाना बंद कर दो तुम, वर्ना मैं तुमसे शादी नही करूंगी।

"दुनिया भर की खूबसूरत लड़कियां मर गई है जो मैं तुझसे शादी करूंगा"- शिव मैगजीन देखते हुए बोला तो गौरी ने किचन की ओर बढ़ते हुए जवाब दिया- शिव की शादी पहले भी गौरी से हुई थी और अभी भी गौरी से ही होगी।

"ये गलतफहमी अपने दिल और दिमाग से निकाल दे गौरी क्योंकि तेरे जैसी पचासो गौरी लंदन में मेरे आगे पीछे घुमा करती थी और मैंने उन्हें कभी पलटकर भी नही देखा क्योंकि मुझे तो एक ट्रिपिकल हिंदुस्तानी लड़की से शादी करनी है"- शिव की बातें सुनकर गौरी गुस्से से चीखी- मनीष, शिव साहब के लिए चाय बनाओ और चाय में थोड़ी मिर्च भी डाल देना ताकि शिव साहब की जुबां थोड़ी साफ हो जाए।

शिव उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया तो गौरी उसे घूरते हुए बोली- तुम तुम्हारी मिर्च वाली चाय का वेट करो। मैं दस मिनट में रेडी होकर आती हूं। मुझे अपनी नई फटफटी पर मेरी सहेली के घर छोड़ देना।

"तेरे बाप का नौकर नही हूं मैं"- तभी शिव फिर से बोला। उसके इतना कहते ही गौरी का पारा चढ़ गया।

"शिव अभी बताती हूं तुम्हें"- रति ने इतना कहकर टेबल पर रखा एक फ्लॉवर पॉट उठाया और शिव को फेंककर मार दिया पर शिव उसे कैच करके बोला- पागल हो गई है क्या? अभी सिर फूट जाता मेरा.....

तभी गौरी ने दूसरा फ्लॉवर पॉट उठा लिया। शिव वहां से भागने लगा। गौरी उसे मारने की कोशिश करते हुए बोली- मेरे बाप तक जाओगे... छोडूंगी नही मैं तुम्हें,

"पहले पकड़ तो ले, फिर छोड़ने की धमकी देना"- इतना कहकर शिव सोफे पर चढ़ गया। गौरी फ्लॉवर पॉट लिए उसकी ओर दौड़ पड़ी। शिव सोफे से कूदकर बाहर की ओर भागा। वो जैसे ही लॉन में आया तो सामने से बुक्स हाथों में लिए चली आ रही रति से जा टकराया। रति के हाथों से बुक उछलकर ज़मीन पर गिर गईं और शिव उस पर।

गिरने की वजह से रति का सफेद रंग का दुपट्टा उसके चेहरे पर आ गिरा था इसलिए शिव को उसका चेहरा साफ़ नज़र नही आया पर दुपट्टे की ओट से,उसे उसका चेहरा हल्का-हल्का नज़र आ रहा था। लेकिन रति उसे साफ-साफ देख पा रही थी तभी गौरी वहां आ गई और इन दोनों को ऐसे जमीन पर गिरा हुआ देखकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी।

उसकी हंसी सुनकर रति आहिस्ता से शिव से बोली- उठिए,

शिव ने जैसे कुछ सुना ही नहीं। वो अभी भी एकटक उसका चेहरा देखने की कोशिश कर रहा था। ये देखकर रति फिर से बोली- उठिए,

शिव चौंककर तुरंत उठ खड़ा हुआ तो गौरी अपने दोनों हाथों से उसकी दाईं बांह पकड़कर हंसने लगी तो शिव उसे घूरने लगा। वही खड़ी रति ने अपना दुपट्टा ठीक किया और अपने चेहरे पर आ रहे कुछ बालों को हटाते हुए। जमीन पर पड़ी अपनी बुक्स उठाने लगी। उसने सफेद रंग की कुर्ती और चूड़ीदार सलवार पहनी हुई थी और गले में अपना दुपट्टा फैला कर डाल रखा था। उसके लंबे खुले बालों से उसकी पूरी पीठ ढंकी हुई थी और उसके लंबे बाल जमीन को छू रहे थे।

तभी गौरी बुक्स में से गिरे नोट्स को उठाने में उसकी मदद करने लगी। लेकिन तभी शिव की नज़र रति पर पड़ी। उसे सिर्फ रति के लम्बे बाल ही नज़र आ रहे थे। बालों से ढंका उसका चेहरा उसे दिखाई नहीं दे रहा था। तभी रति ने अपने चेहरे पर आ रहे बालों को हटाकर आहिस्ता से अपने कान के पीछे कर लिया और शिव को उसका खूबसूरत चेहरा नज़र आया। वो उसे देखकर पलकें झपकाना भी भूल गया।

लेखिका
कविता वर्मा