रिश्ता अनोखा सरलता का DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ता अनोखा सरलता का

1.
ऐसा ना हो कि,
तुम्हें जब मेरी आदत होने लगे,
अपने आस पास,
मुझे ढूंढने की,
कवायद होने लगे...

2.
इन सुलगते रास्तों पर मैं अब्र बिखरा रही हूं,
अपने हिस्से का सारा सब्र बिखरा रही हूं,
बिखरा रही हूं, अपने विचारों के टुकड़े,
जो तुम्हारी यादों से टकराते रहते हैं,
इस सुलगते रास्ते पर मैं तुम्हारा ज़िक्र बिखरा रही हूं...

3.
वास्ता ज़रूर है

मुझे तुमसे वाबस्ता ज़रूर है,
तो, मेरे शब्द रख लो तुम,
और तस्वीरें रख लेती हूं मैं,
दिखाई दूं या ना दूं,
सुनाई तुम दो या ना दो,
कभी!
किस्सा फिर भी ये है कि,
मुझे तुमसे वास्ता ज़रूर है...

4.
आंखों को ऐसा ना होने दो,
जो तुम्हें अपने आगे कुछ,
दिखने नहीं देती,

किसी के हक़ का,
रखना क्यूं अपने क़रीब,

भ्रम में लिपटी नज़रें,
अक्सर असलियत,
दिखने नहीं देती...

5.
यूं ही नहीं उसने मुझे छुपा के रखा था,
मेरी हस्ती के हिस्से में हर बार,
बदलती बयार आई,
किस्मत का खेल भी अजब सा है यारों,

एक कोई टूटा तो,
उसके हिस्से में बहार आई,
किसी के टूटने पर भी,
उसके हिस्से मझधार आई...

6.
मेरी खूबसूरती, मेरी उदासी है,
जिस दिन तुम्हें, प्यार होगा उस उदासी से,
समझ जाओगे, ये कोई उदासी नहीं,
बस तेरे होने और ना होने के बीच की,
कशमकश है...

7.
हर बात आकर तुम पर रुक जाती थी,
तुम मेरे लिए पूर्ण विराम जैसे ही तो थे...
8.
राशन जैसी होती है बेपरवाह,
खिलखिलाती हंसी,
जब गरीबी दिल पे छाती है,
और एहसासों की नौकरी चली जाती है,
तब वो हंसी दिल के किचन से खत्म हो जाती है...

9.
तुम्हारी पसंद

धूपबत्ती भी तुम्हारी पसंद की जलाती उस घर में,
गर तुम मिले होते 25 से पहले,
या होते मेरे पहले पहले,

किसी के शौक को,
कैसे बनाते हैं अपनी पसंद,
हर वक्त जताती तुम्हें उस घर में,

आरज़ू दबाए यहां ना जाने,
फिर रहे थे कबसे,
आरज़ू कैसे करी जाती हैं मदमस्त,
हर वक्त बताती तुम्हें उस घर में,

छुपाने में तुम भी माहिर हो,
छुपाने में, मैं भी कुछ कम नहीं,
हर राज़ कर देती दफा,
तुमसे कुछ ना छुपाती उस घर में,
समय की अपनी तहरीज़ है,
कि जद्दोजेहद में अब मैं रहती हूं,
चेहरे और आंखों को कैसे पढ़ेंगे,
अब हम दोनों,
कि मैं रहती हूं इस घर में,
तुम रहते हो उस घर में...

10.
एहसास कभी खत्म नहीं होते...
इंसान रहे या ना रहे...
एहसास रहते हैं...

11.
संभाल कर रखना अपना वो एक चांद
जिसको देख कर शीतलता का एहसास कर सको,
वो एक चांद और कोई नहीं,
हो तुम स्वयं
कभी पूनम रात्रि की तरह चमकोगे,
तो कभी हो जाओगे अमावस के,
जीवन को जीने का तरीका,
रखना कुछ ऐसा,
की सख्त पत्थर पर भी निशान कर सको...

12.
किसी को ना चाह के, अब आबाद हैं हम,
फितरत ये बड़ी मुश्किल से पाई है,
वो जो इश्क का दरिया था और
डूब के जाना था,
उस दरिया में डूब के भी हमने,
किस्मत आज़माई है...

13.
कभी तो आयेगा दिन वो
जब तुम भी तड़पोगे हमारे लिए,

"आज तो गुमान तुम्हें बहुत है..."

14.
सुन लो...

पेशानी थोड़ी सी है,
गले लगा लो और,
सुन लो,

"बाद उसके"

ना चाहो तो,
चुप रह जाऊंगी,
चाहो तो, मुझे,
चुन लो...

15.
कुछ कम रहे

तराज़ू में तोल के देखा,
मेरे एहसास हमेशा कुछ कम रहे,

बरसात तो होती रही,
मगर हम भीगते कुछ कम रहे,

जिसको रखना था,
हीरे की तरह सदा के लिए,
ना रख पाने की,
मजबूरियों में बस हम रहे...

16.
सुना है अब तेरे शहर में,
वो शाम नहीं होती,
अब, जो हमारी मुलाकात नहीं होती,
शाम तो आज भी होती है,
मगर शामों में अब वो बात नहीं होती...