यादों की अशर्फियाँ - 2. डेमो लेक्चर्स Urvi Vaghela द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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यादों की अशर्फियाँ - 2. डेमो लेक्चर्स

2. डेमो लेक्चर्स


सुबह यूं तो सबको प्यारी लगती है पर बचपन की वह सुबह को हमने सबसे ज्यादा धिक्कारा है जब छुट्टियों के बाद सुबह 6 बजे न चाहते हुए मम्मी की लगातार आवाज या उस कमबख्त अलार्म की आवाज से उठना पड़ता है। बाहर बारिश का मौसम है। अकसर बारिश का मौसम सुहाना होता है पर उन बच्चो से पूछो जिसको बारिश किसी दुश्मन के राजनीति की तरह परेशान करती है। मानो की बारिश की सोची समझी साजिस हो की जब स्कूल जाने का वक्त हुआ नही की बारिश शुरू। सुबह का माहोल काफी अच्छा होता है लेकिन 7 बजे ही बारिश शुरू होती है और जैसे ही हम स्कूल पहुंच जाते है की बारिश बंद।


स्कूल तक पहुंचने के लिए हमारा सफर शुरू होता है। किसी का साईकिल मे, तो किसी का गाड़ी में, तो किसी का पैदल। स्कूल में प्रवेश के लिए चार दरवाज़े थे। में मुख्य गेट से आती थी। सबसे पहले होने के कारण कोई नही होता था। अगर कुछ होता था तो वह सिर्फ दोस्तो का इंतज़ार। मुझे साथ देने सबसे पहले आती थी क्रिशा और अंजनी। हम सब वेकेशन की बातो का पिटारा खोलते है की तब आती है अपनी साईकिल में अपनी मस्ती में झूमती हुई ध्रुवी। आते ही सबके साथ मस्ती करना 'शुभारंभ' कर देती है। धीरे धीरे हमारे बाकी दोस्त जैसे खुशाली, झारा, रीति अपनी अपनी बातो का आदान-प्रदान करने आ जाते थे। तभी सामने से हमारी बातों के दुश्मन मेना टीचर अपने ‘अशुभ’ कदम रखते है। और सन्नाटा छा जाता है मानो भूत न देख लिया हो। फिर भी वह कहते है,


“स्कूल शुरू हुई नही की शौर मचाना शुरू कर दिया। और कुछ आता ही नहीं है आपको।” बोलते बोलते बैठ जाते है अपनी जगह पर स्टेच्यू बनकर।

स्कूल में आमतौर पर सीसीटीवी कैमरा लगाया होता है पर वह एक जगह ही स्थित रहते है पर हमारे यह दो-दो सीसीटीवी कैमरा थे। एक तो क्लासरूम के अंदर और दूसरा चलता फिरता सीसीटीवी कैमरा मतलब मेना टीचर, उसकी नजर सब पर बनी रहती थी। शायद उसका काम ही वही था।

मेना टीचर ने अपना सीसीटीवी कैमरा ऑन ही किया था की तभी जया मासी बेल बजाई। और हम सब लॉबी की ओर दौड़ पड़े।


गर्ल्स के लिए लॉबी और बॉयज के लिए खुला कैम्पस था। जहां अपनी कक्षा की अनुसार कतार में बैठते थे। आज 9th में नई कतार मिली थी। हम सब आगे न बैठने के लिए ज़िद करते थे क्योंकि आगे बैठना मतलब स्टेच्यू बनकर बैठना।


फिर शुरू होती है प्रार्थना। पांच-सात मिनट की प्रार्थना होती थी पर हमे बहुत लंबी लगती थी क्योंकि मुश्किल होता है आँख बंद कर बैठना। पता नही क्यों सालो से एक ही प्रार्थना गाई जाती थी और वही दूसरी और अन्य स्कूल में हफ्ते के सातों दिन की अलग अलग प्रार्थनाए होती थी। न जाने क्यों हमारी स्कूल में एक ही प्रार्थना रखने की परंपरा थी।


प्रार्थना के बाद जब हमारी आंखें खुलती थी तो हमारी नज़र के सामने बैठे होते थे, धीरेन सर। सफेद कुर्ता, सफेद पायजामा और सांवला रंग - कोई भी देख कर डर जाए। कभी कभी सर को आंखें भी बंद होती थी और हम सोचते की शायद सर हमारी तरह सो गए। तभी स्टाफ रूम से दीपिका मेम आते है माईक लेकर और जो प्रार्थना में सो गए उनको जगाने के लिए बर्थडे सॉन्ग काफी था मतलब जिसका जन्मदिन हो उनको स्टेज पर बुलाकर दीपिका मेम सुंदर गीत गाकर और हम सब तालियां बजाकर विश करते। और इस तालियों की आवाज़ से जग जाते थे वह महानुभाव।


अब बारी आती है समाचार वाचन की। सेकेंडरी और हायर सेकंडरी के विद्यार्थी को स्टेज पर जा कर पुराने समाचार यानी बीते हुए कल के समाचार पढ़ने होते है। पेज में लिख कर और स्टेज पर देख कर पढ़ने में कोई दिक्कत नजर नहीं आती मगर तकलीफ तो पढ़ने के बाद शुरू हुई। धीरेन सर कहते, “सेकेंडरी में आ गए और पढ़ना नहीं आता” या फिर कहते, “एक बार फिर पढ़ो सुनाई नही देता” और जब वह लिखा हुआ कागज़ वह खुद पढ़ते तब अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते थे।


करुण बात तो यह थी की इस साल से हमे भी समाचार वांचन करना था। हमारे क्या हाल होंगे वह तो भगवान ही जाने।


फिर क्रम होता है समूह गीत का। जिसमे सभी कक्षा के विद्यार्थी की बारी आती है। जो गरम वातावरण धीरेन सर की समाचार के लिए भयानक दहाड़ से हुआ था, उसे यह मधुर गीत ठंडा कर देता है। हमारी कक्षा की बारी आते ही हम तो हमारी क्लास की मशहूर गायिका रीति को ही भेज देते है। इस बात पर हम हमेशा निश्चिंत थे।


अब शुरू होता है धीरेन सर का भाषण जो कब खत्म होगा उसकी कोई निर्धारित सीमा नहीं थी पर हर नए शैक्षणिक वर्ष के प्रारंभिक दिनों का सर का भाषण निर्धारित होता है….


“विद्यार्थीमित्रों, हमारी स्कूलमें अभी कम संख्या है। यह सिर्फ दो-तीन दिन रहेगा। पर अपने सोए हुए मित्रो से कह देना की स्कूल शुरू हो गई है और सभी लेक्चर्स भी नियमित लिए जा रहे है। अभी एक दो हफ्ते में स्कूल की रेलगाड़ी पटरी पर चढ़ जायेगी।”


हम इंतजार करते की कब धीरेन सर कहे की राष्ट्रगीत शुरू किया जाए। और इसी राष्ट्रगीत के साथ हमारी प्रार्थनासभा बरखास्त होती है।

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शौर के साथ हम कुच करते है नए क्लास की और। हमारा क्लास स्टाफ रूम के पास का दूसरा क्लास था। धूल लगी वह बेंच पर पहले अपना हक जमाने के लिए वह चिल्लाहट। क्लासरूम हो और शौर ना तो वह क्लासरूम कहां? ज्यादातर आवाज़ तो लड़को का ही होता था क्योंकि उनकी संख्या ज्यादा थी और लड़कियों की कम। लड़को में भी निखिल का नाम शोर मचाने में आंख बंद कर लिया जा सकता है। क्लास का नंबर 1 तोफानी, स्टूडेंट के साथ साथ टीचर्स को भी चिढ़ाने वाला एक मात्र शख्स और फिर भी लीडर था बॉयज का।

हमारा पहला पीरियड गौरव सर का था सिर्फ नाम से क्योंकि पीरियड में हमने बातो के अलावा कुछ किया ही नहीं और वह चिल्लाते रह जाते, “चुप..”

तृषा टीचर आए और उन्होंने दौर संभाला और हमने खूब बाते करी और मज़ा भी क्योंकि यह तो फ्री लेक्चर था। नसरीन टीचर का भी ऐसा ही था पर मेना टीचर तो पहले दिन से ही पढ़ाना शुरू कर देते थे।

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एक टीचर आए, जिसे हम जानते नहीं थे और साथ में तृषा टीचर भी आए मतलब यह डेमो लेक्चर था। हर टीचर की तरह वह विज्ञान की पाठ्यपुस्तक निकाली, बोर्ड पर विषयवस्तु लिखा और फिर क्या शुरू हो गई उनकी बोलने की गाड़ी जिसमे ब्रेक ही नही था। टीचर ने दो बार पूरा बोर्ड भर दिया और आधे घंटे में तो पूरा चेप्टर करवा दिया पर हम तो वही के वही थे मतलब जीरो इनपुट। हम समझ गए थे की इसकी नौकरी गई।

फिर एक दूसरा डेमो लेक्चर भी हमारे हिस्से में आया थे। एक सर आए जो सिर्फ कहने को सर थे मतलब वह स्टूडेंट ही लगते थे। उसने सभी की तरह बुक नही निकाली पर जो बाते की वह बुक की ही थी और जो हमको समझाया वह तो मज़ेदार किस्से की तरह था। जेसे कोई कहानी सुना रहा हो ऐसे सर पढ़ाते थे और हम उसी तरह सुनते थे। हम सब चाहते थे की सर हररोज आए।

दूसरे दिन भी वह दिखे और हम समझ गए की किस्मत और सर के टेलेंट अब से हमारी साथ है और अब सर का नाम पता चला जो जिंदगी भर हम भूल नही पाए - निशांत सर।


हमारी स्कूल में ट्यूशन भी था। में और ध्रुवी पिछले साल भी यहां स्कूल के ट्यूशन में ही पढ़े थे। सिर्फ हम दो ही लड़कियां और बाकी सब लड़के। उसी ट्यूशन के गणित विज्ञान के मणिक सर और इंगलिश के मेहुल सर को स्कूल में देखा तो हम दोनो दंग रह गए।


मेहुल सर के हस्ताक्षर ने मुझे बहुत प्रभावित किया। सर ने बहुत ही अच्छे से अपने आप को अच्छे टीचर की तरह पेश किया पर जो स्वरूप हमने ट्यूशन में देखा वह कुछ और ही था और मनोरंजक भी। दूसरी ओर मणिक सर के बारे में थोड़ा अलग था। मणिक सर ट्यूशन में भी ऐसे ही थे पर हमारा स्वरूप बदल गया था। आखिर ट्यूशन तो ट्यूशन होता है।


अब कुछ टीचर्स को हमने पहेली बार अपने क्लास में आए थे जिसकी या तो सिर्फ बाते सुनी या सिर्फ देखा ही है। अब हम उनको सुनेंगे जिनकी बाते सुनते आए थे जेसे दीपिका मेम, जय सर और नीरज सर।


दीपिका मेम का पीरियड प्रोफेशनल लगता था क्योंकि वह इंग्लिश शब्द बोलते थे जो आधे से ज्यादा समझ नही आते थे। हम को यही बात कहते रहते की आप 9th में आ गए और ग्रामर नही आता। आपने कुछ पढ़ा नहीं होगा या किसी ने पढ़ाया नही होगा। हमे बहुत बुरा लगता की हम को पढ़ाया ही नही और मेम तो ऐसी बाते पूछ रहे थे जिसका हमने कभी नाम भी सुना नहीं था।


इसी के साथ हमारा क्लास को चेंज कर दिया। हमे भेज दिया गया उस टूटे हुए ब्लैकबोर्ड वाले रूम में जो हेमा मेडम की ऑफिस के पास था क्योंकि हम आवाज़ न कर सके। हेमा मेडम कभी भी कही से भी आ जाते थे। हमारी खिड़की से अंदर झांक लिया करते थे और हम डर जाते थे मानो भूत हो यहां तक की टीचर भी डर जाते। न सिर्फ हेमा मेडम मेना टीचर भी कम न थे हमे डराने के लिए। पर खिड़की का एक और फ़ायदा था की हम पीरियड खत्म होने पर बजता उस घंट को देख पाते और ध्रुवी तो पीरियड से थक कर और रिसेस की राह में गीत गुनगुनाया करती, “में करू इंतजार तेरा.. ”


हेमा मेडम इतने भी फ्री नही थे की हमारी रखवाली कर सके और इसी रखवाली के लिए हर क्लास में मॉनिटर को चुना जाता। टीचर और क्लास तो तय हो गए लेकिन मॉनिटर का चुनाव बाकी था। जिसके लिए में बहुत ही उत्साहित थी मगर क्या पता की कुछ ऐसा होगा जो हमने सपने में भी नही सोचा होगा। और जिसके लिए वह जिम्मेदार होंगे जो हमारी सोच से परे था।


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