होली का इतिहास
"दादी जी! आज तो कोई कहानी सुनानी पड़ेगी, क्योंकि श्रुति आज यूनिवर्सिटी से घर आयी है। उसकी इच्छा कहानी सुनने की है।" शैलेश की बात सुनकर दादी बोली-, "चलो ठीक है, सब लोग भोजन कर अपने बिस्तर पर बैठ जाओ।" जब सभी लोग भोजन करके आ गये और यथास्थान बैठ गये, तब दादी कहानी सुनाने लगी। दादी ने कहानी सुनाने से पहले सभी से पूछा-, "बच्चों! तुम्हें पता है कि अभी कौन-कौन से त्योहार इस वर्ष हो चुके हैं?"
श्रुति ने कहा कि-, "दादा! इस वर्ष तो मकर-संक्रान्ति, होली और नवदुर्गा त्योहार हो चुके हैं। मकर संक्रान्ति के बारे में तो दादी सभी जानते हैं लेकिन होली के त्योहार के पीछे क्या इतिहास है, इस बारे में यदि कुछ नयी जानकारी हो तो कहानी के माध्यम से बताएँ, जिससे सुनने में रोचक और मजेदार लगे।"
श्रुति की बात सुनकर दादी बोली-, "ठीक है बच्चों! तो सुनो- बहुत प्राचीन काल की बात है। आर्यावर्त के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के झाँसी जिले में एरच नाम का स्थान है। एक किवदन्ती के अनुसार यह हिरण्यकशिपु की यह राजधानी थी। इसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। इसकी बहिन का नाम होलिका था। यह भक्त प्रह्लाद की प्यारी बुआ थी। इसकी कथा हमारे विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों में बहुत ही विस्तार से सुन्दर ढंग से कही गयी है। प्रह्लाद की बुआ होलिका ने तपस्या करके एक ऐसी ओढ़नी (वस्त्र) प्राप्त की थी, जो अग्निरोधक थी अर्थात जिसको ओढ़ लेने से अग्नि जला नहीं सकती थी। भाई के कहने पर भक्त प्रह्लाद को लेकर वह वस्त्र ओढ़कर अग्नि में बैठ गयी थी। उसको भक्त प्रह्लाद बहुत प्यारा था। उसने अपनी चिन्ता न करते हुए अपनी ओढ़नी अपने भतीजे को ओढ़ा दी और स्वयं अपने प्राण त्यागकर प्रह्लाद की रक्षा की। उसके त्याग को देख व सुनकर लोग कहने लगे कि-, "वह बड़ी तपस्विनी थी। भगवान ने भक्त की रक्षा की और होलिका जल गयी। तभी से यह होलिकोत्सव मनाया जाने लगा। यह उत्सव बुन्देलखण्ड से चलकर पूरे व्रजमण्डल में लड्डू-होली से लट्ठमार होली होते हुए विश्व विख्यात हो गया और आज सभी जगह यह मनाया जाता है। सच पूछो, तो यह एक प्रकार से अपने विकारों के शमन करने की प्रथा है। तो बच्चों! बताओ, कैसी लगी यह कहानी?"
शैलेश बोला-, "दादीजी! आपने तो कमाल कर दिया। आप इतना अच्छा शोधपूर्ण ज्ञान रखती हैं।"
"हाँ, दादी! हमें तो पता ही नहीं था कि हिरण्यकशिपु का स्थान हमारे एरच में है। यह तो हमारे पास ही है।" श्रुति बोली।
दादी ने कहा-, "अगली बार दो-तीन दिन का समय निकालकर आना, फिर मैं तुम सबको एरच के किले की सैर कराने ले चलूँगी। अपने यहाँ झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई का महल और महोबा में आल्हा-ऊदल का महल और तालाब है। यहीं पास ही ओरछा में हमारे रामलला और वीर हरदौल विराजमान हैं, जहाँ तुम पिछली बार गये थे।"
"हाँ, दादी! सचमुच, आज तो आनन्द आ गया।" श्रुति की बात सुनकर दादी ने सबको सोने के लिए कहा। सभी 'अच्छा दादी' कहकर सोने चले गये।
संस्कार सन्देश :-
दादा-दादी की कहानियों में पौराणिक और ऐतिहासिक काल की झलक मिलती है, ये बहुत ही शिक्षित और प्रेरणादायक होती हैं।