निर्मला DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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निर्मला

1.
दोस्त

किशोरी लाल एक किसान थे। उनके दो बेटे थे- जीवा और मोती। जीवा अपने पिता के काम में हाथ बँटाता था, पर मोती सिर्फ गाँव के दोस्तों के साथ घूमता और मौज मस्ती करता था।
गेहूँ की फसल पककर तैयार खड़ी थी। बस काटने की देरी थी। किशोरी लाल कई बार अपने दोनों बेटे जीवा-मोती से बोले- " कि चलो, मिलकर फसल काट लें। किसी भी पल बारिश हो सकती है।" मोती ने कहा- "हाँ, काट लेंगे पिताजी! अभी इतनी जल्दी क्या है?" किशोरी लाल बोले- "तुम्हें क्यों चिन्ता है? तुम्हें तो अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमने से ही फुर्सत नहीं मिलती है।"
अगले दिन तेजी से मौसम ने करवट ली और आसमान में काले-काले बादल छा गये। किशोरी लाल बुरी तरीके से घबरा गये और बिस्तर पर लेट गये। उनको लगा कि अब सब फसल बर्बाद हो जायेगी। पानी भरने से गेहूँ खराब हो जायेंगे।
जब मोती ने देखा कि पिताजी बिस्तर पर लेट गये हैं और घबरा गये हैं तो मोती तुरन्त गाँव में गया और अपने दोस्तों को यह सब बताया। उसके कई दोस्त तुरन्त उसके साथ आये और मोती के खेत में जाकर सबने मिलकर गेहूँ काटा।
दो घन्टे में उन्होंने पूरी फसल काट दी। बारिश होने से पहले ही सारी फसल घर पर पहुँच चुकी थी। मोती बोला- " पिताजी! उठिये और देखिये- अब आप चिन्ता मत करिये। आपके सारे गेहूँ घर पर आ गए हैं।" किशोरी लाल ने देखा तो उन्हें बहुत खुशी हुई। मोती के सारे दोस्त पास में ही खड़े थे। किशोरी लाल ने कहा- "बेटा! मैंने तुम सबको बहुत गलत समझा था। आज मुझे पता लगा है कि दोस्ती बहुत बड़ी चीज होती है।"
मोती और उसके दोस्तों ने कहा- "पिताजी! कोई बात नहीं है। समय पड़ने पर सच्चे दोस्त ही काम आते हैं।" ऐसा सुनकर कर मोती के पिता ने उन सब को गले लगा लिया।

संस्कार सन्देश :-
बड़े से बड़ी विपत्ति को दोस्तों के साथ मिलकर दूर किया जा सकता है।

2.

वन्दन कक्षा सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला बहुत होशियार लड़का था। अपने काम को वह हमेशा समय पर पूरा करता और मन लगाकर पढ़ाई करता। ये सभी वन्दन की अच्छी आदतें थीं, लेकिन वह जब भी खाना खाने बैठता, अपनी थाली में कुछ न कुछ बचा देता। माँ हमेशा उसे टोकती-, "वन्दन! ये आदत अच्छी नहीं है। जितने भोजन को तुम बेकार कहकर फेंक देते हो, उतने ही भोजन के लिए हमारे देश में या इस दुनिया में बहुत सारे लोग तरसते रहते हैं। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।" लेकिन वन्दन कहता-, "अरे मांँ! इतने से खाने से किसी का पेट क्या भरेगा?"
एक दिन वन्दन पिताजी के साथ बाजार जा रहा था। रास्ते में उसने देखा कि ईंट के भट्ठे पर एक तीन-चार साल का लड़का कटोरा लिए खड़ा जोर-जोर से रो रहा है। आप-पास कोई बड़ा व्यक्ति भी नहीं है। बस, उससे थोड़ी बड़ी बहन वहीं खड़ी उसे चुप करा रही है।
वन्दन के पिताजी ने मोटर साइकिल रोक दी। उन बच्चों से पूँछने पर पता चला कि उनके माँ और बापू ईंटें छाप रहे हैं। माँ थोड़ा सा चावल रख गयी थी कि जब छोटे भाई को भूख लगे, खिला देना। पर जैसे ही चावल दिया, एक कुत्ते ने आकर झपट लिया। मेरे भाई के लिए खाने को कुछ भी नहीं है। जब बापू चावल लायेंगे, तभी माँ पकाकर देगी।"
वन्दन घर आया और उसी बच्चे के भोजन के बारे में सोचता रहा। रात में जब माँ उसे खाना परोस रही थी, तो वन्दन ने कहा- "मांँ! मुझे एक ही रोटी और थोड़ा सा चावल देना।"
उसने आज पहली बार अपने भोजन की थाली में रखी हुई सभी चीजें खायी थी और थाली एकदम साफ थी।
थाली देखकर माँ ने कहा, "अरे! आज ये चमत्कार कैसे हुआ?
वन्दन ने कहा- "मांँ! मुझे माफ कर दो! अब तक मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि भोजन का महत्व क्या होता है? आज से मैं भोजन को बिल्कुल भी बर्बाद नहीं करूंँगा। आप हमेशा समझाती थी कि हमारे देश में और इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो एक रोटी के लिए या एक चम्मच चावल के लिए तरसते रहते हैं। यदि हम सब थोड़ा-थोड़ा भोजन बचायें तो कई भूखे लोगों के पेट भर सकते हैं।" माँ वन्दन की बात सुनकर और उसमें अचानक ये परिवर्तन देखकर बहुत खुश हुई।

संस्कार सन्देश :-
कम लें भोजन थाली में,
और व्यर्थ न फेंकें नाली में।
भोजन को न करें बर्बाद,
बात पते की, रखना याद।।