"वक्त" बताता है...
10.
छलकते दर्द को होठों से बताऊं कैसे।
ये खामोश गजल मैं तुमको सुनाऊं कैसे।।
दर्द गहरा हो तो आवाज़ खो जाती है।
जख़्म से टीस उठे तो तुमको पुकारूं कैसे।।
मेरे जज़्बातों को मेरी इन आंखों में पढ़ो।
अब तेरे सामने मैं आंसू भी बहाऊं कैसे।।
इश्क तुमसे किया, जमाने का सितम भी सहा।
फिर भी तुम दूर हो हमसे, ये जताऊं कैसे।।
तुझे पाने के लिये हर डगर पर भटकी हूँ।
बहती आँखों का दरिया सूख गया अब आँसू बहाऊं कैसे।।
11.
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कभी जमी तो कभी आसमा नहीं मिलता
12.
दिल में है जो दर्द वो दर्द किसे बताएं!
हंसते हुए ये ज़ख्म किसे दिखाएँ!
कहती है ये दुनिया हमे खुश नसीब!
मगर इस नसीब की दास्ताँ किसे बताएं!
13.
हमे किस्मत से कोई शिकायत नहीं शायद मेरी किस्मत में चाहत नहीं।
मेरी तकदीर को लिख कर खुदा भी मुकर गया बोला ए मेरी। लिखावट नहीं
14.
जब कुछ ना रहा पास हमारे "साहिब" तो रख ली संभाल कर हमने तन्हाई !
"क्यूंकि" ये वो सल्तनत है जिसके बादशाह भी हम, वजीर भी हम और फ़क़ीर भी हम ही हैं !!
15.
*आसानी से निकाल देते हैं, दूसरों में ऐब, जैसे हम "नेकियों के नवाब हैं"*
*अपने गुनाहों पर परदे डालकर, हम कहते हैं "ज़माना बड़ा खराब है" !!*
16.
"उछलकर" वो नही चलते, जो "माहिर" हर "फन" में होते है।
"छलक" जाते है वो "पैमाने"... जो "ओछे" "बर्तन" में होते है।।
17.
*हवा की तरह होती है मुसीबतें भी,*
*कितनी भी खिडकिया बंद कर लो अंदर आ ही जाती है !!*
18.
किताब - ए - वक़्त का कोई सफ़ा खाली नहीं होता,
पढ़ने वाले वो भी पढ़ लेते हैं,
जो लफ्ज़ों में लिखा नहीं होता ।
19.
अक्सर हम जिसको हद से ज्यादा चाहते हैं...
वही क्यों धोखा दे जाते हैं...
20.
वक्त नूर को बेनूर कर देती है,
छोटे से जख्म को नासूर कर देती है,
कौन चाहता है अपने से दूर होना,
लेकिन वक्त सबको मजबूर कर देती है !
21.
शामिल हो तुम... मेरी हर कहानी में...!
कभी होंठों की "मुस्कराहट" में..
कभी आँखों के पानी में...
22.
बस कोरे कागज पे तेरी नज़रों से तस्वीर बना रही हुं।
फिर ना तू मुझ से जुदा हुआ ना दूरियों का एहसास हु।।