लम्बा सफर हैं - मोहब्बत का DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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लम्बा सफर हैं - मोहब्बत का

1.
जी करता है तुम्हें जी भर के देखूँ...

लेकिन माशाअल्लाह ये है जी भरेगा कब...

2.
ये खामोश से लम्हें ये गुलाबी ठंड के दिन,
तुम्हें याद करते - करते एक और चाय तुम्हारे बिन...

3.
आँखो में आँसू और
दिल में कुछ अरमान रख लो

लम्बा सफर हैं मोहब्बत का
जरुरी सामान रख लो...!!

4.
हमने ऐसी, क्या खता कर दी,
जो, काबिल ए माफ़ी नहीं है...!!

तुझे देखा नहीं, जी भर कर...
क्या ये सज़ा, काफ़ी नहीं है...!!

5.
दुनिया मे ऐसी कोई दिलचस्पी नहीं...!

जो मेरा ध्यान तुम से हटा दे...!!

6.
वो दिल ही था जो तुझसे हार गया...

वरना जहाँ हमने दिमाग लगाया फतेह ही पाई...

7.
प्रेम ये तो नहीं कि... मैं जैसे चाहूँ,
तुम वैसे ही हो जाओ...!

प्रेम तो ये है... कि मैं तुम्हें बेपनाह चाहूँ,
चाहें तुम जैसे भी हो जाओ...!!

8.
किसी ने पूछा... बहुत लोग लिखते है यहाँ
आप किस सुरूर में लिखते है...?

हमने कहा... कोई हर रोज़ पढता है मुझे
बस इस ग़ुरूर में लिखते है...

9.
जल्दबाजी मे मुझसे होती है गलतिया बहुत

इसलिए तुझसे मोहब्बत आराम से करनी है।।

10.
मौन मे कितनी छुपी है
प्रेम की गहराईया...

क्या समन्दर गिन सकता है
लहरों की अंगड़ाईया...!!

11.
ये मोहब्बते उनकी और दुशवारियाँ जमाने की

कसम खुदा की किसी दिन जान ले लेंगी...!!

12.
कब तक चुराऊ नजरे
महफ़िल तमाम से

हर कोई बुला रहा है...
हमें आप ही के नाम से...

13.
आलम - ए - गुफ़्तगू... तो... देखिए...!

लब सिलें हैं, आँखों ने समां बाँध रखा है

14.
मोहब्बत के आदाब सीखो ज़रा
उसे जान कह कर पुकारा करो ...!!

15.
डिग्रियां सब इल्म की तब फाड़ दी

जब उस पगले ने कहा बुद्धू हो तुम

16.
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं

क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तक़लीफ़ होती है

17.
अगर तेरा अंदाज़ - ए - मुहब्बत देख ले कोई !

रहा न जाए उस से तेरी हसरत के बैगैर !!

18.
मुर्शिद उनसे कहना...

मैं अपनी मोहब्बत को भी, दोनों अदब सिखाऊगी...

तुम हिंदी में प्रेम जताना, मैं उर्दू में इश्क़ निभाऊंगी...!

19.
क्या मोहब्बत थी, क्या मोहब्बत है, क्या मोहब्बत रहेगी,

तुम्हारी चाहत थी तुम्हारी चाहत है तुम्हारी चाहत रहेगी...!!

20.
मुझे परहेज है ज़ख्मों की नुमाइश से,

मेरे हमदर्द रहने दे दिले - बीमार की बातें...!!

21.
तुम छुपाने लगे हो बातें हमसें ये कोनसा दौर आया हैं...!

बदल गई मोहब्बत तुम्हारी या दिल में कोई औंर आया हैं...!!
22.
वो खुद किसी और का होना चाह रहा था...!

जो वजह परिवार और समाज बता रहा था...!!
23.
मेरे इन्तजार की दाद जमाना देने आया,

बाल जब पक गये तो वो मेरी बाहों में आया

24.
थोडे़ से पागल है तो थोडे़
से नादान है हम,
जैसे
भी है
तेरे दिल के मेहमान है हम...!!

25.
उसने भी और
सख़्त
किया इम्तिहाँ मेरा,
मैंने
भी पाँव रख
दिए
जलते अलाव पर...!!

26.
माहे अक्टूबर के
सितम भी कुछ कम नहीं...

गर्मी... बरसात, ठंड
कौन सा मौसम इसमें नहीं...!

27.
कहते हैं कि रोज़ - रोज़ कहीं जाओ तो इज़्ज़त नहीं रहती,

तुम्हारी याद बड़ी बेशर्म है, कम्बख्त रोज़ आ जाती है!!

28.
मैं खो भी दूँ सब कुछ और मलाल भी ना करूं,

वो कहता जाए बेबाक और मैं सवाल भी ना करूँ...