1.
कम नज़र समझते _ हैं खेल यह नज़र का है!
आशिकी़ तो _ ऐ साहब रोग उम्र भर का है!!
2.
दिल उन को मुफ़्त देने में दुश्मन को रश्क क्यूँ
हम अपना माल देते हैं इस में किसी का क्या...!
3.
दुनिया की सारी महोब्बतों से किनारा करके।
रखें खुदा हमें तुम्हारा और तुम्हें हमारा करके।
4.
कभी मिलोगे फुर्सत से तो बताएंगे तुम्हे
तन्हाई भी कितनी शिद्दत से काटी हैं हमने
5.
कुछ तुम को भी अज़ीज़ हैं, अपने सभी उसूल
कुछ हम भी इत्तेफ़ाक से ज़िद के मरीज़ हैं...!
6.
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
7.
कोई कसम कोई वादा कोई इज़हार नहीं होता
अरे ... इश्क़ वो भी होता है
जो महज़ आंखो, आंखो में पनपता है
और एहसासों में जीता है
8.
मेरी तन्हाईयो में, शरीक हो जाओ...
तुम मेरा नसीब हो जाओ
ना रहे किसी और की आरजू मुझे...
तुम मेरे इतने, करीब हो जाओ...
9.
लिबास मोहब्बत का पहनकर भी,
देख इस फागुन मे हम तेरे लिए तरसते है!
10.
वफ़ा ए दिल बाज़ार मे नहीं मिलते,
जो शिद्दत से चाहे वो बार - बार नहीं मिलते !
11.
चलो इजाज़त दी तुझे...
इन आँखों में डूब जाने की...
फिर ये तोहमत मत लगाना... कि...
हम ने मोहब्बत की नहीं तुमसे...
12.
बैठो ना सनम
हमारे सामने यकीन के लिए
दवा जरुरी नही
हर वक्त सुकुन के लिए
13.
हम तो अदब से कहते रहे
हुजूर उनको।
बस इसी बात पर आ गया
गुरुर उनको।
14.
हर लफ़्ज मेरी नज़्म का तुझसे था मुख़ातिब...
कुछ हम ना लिख सके, कुछ तुम ना पढ़ ना सके...
15.
*ये मोहब्बत के हिसाब किताब*
*मेरे समझ नहीं आते,*
*मिलते हो तो सांसे बढ़ जाती हैं*
*बिछड़ते हो तो धड़कने रूक जाती हैं...!*
16.
वैसे तो तेरी मर्जी है लेकिन,
अच्छा तो नहीं है!
के तेरे होते हुए भी हम, तुझको तरसे!!
17.
मेरे दिल में उतरो ज़रा - ज़रा
मुझे हौले - हौले तुम प्यार दो,
मेरी तिश्नगी को बढ़ाओ फ़िर
मेरी बेक़रारी को तुम क़रार दो,
मुझे हर्फ़ - हर्फ़ तुम समेट लो
मुझे लफ़्ज़ - लफ़्ज़ शुमार दो,
जो उम्र - भर भी ना उतर सके
मेरी आँखों को वो ख़ुमार दो,
मुझे लिखो दिल की किताब पे
मेरी रूह को ख़ुद में उतार दो,
आओ प्यार के इस खेल में
तुम जीत जाओ मुझे हार दो,
18.
समझता तो है पर मानने को तैयार नहीं है,
दिल है ज़नाब... दिमाग़ जैसा समझदार नहीं है,
19.
कैसे करें इन्तज़ार तुम्हारे लौट आने का,
अभी दिल को यक़ीन नहीं हुआ है तुम्हारे चले जाने का,
20.
वो एक नाम ढूंढते हैं अक्सर पोस्ट हुई मेरी शायरियों में,
अब क्या कहूँ फेसबुक नहीं उन्हें आप मेरे दिल में देखिये,
21.
ना पूछो मेरे सब्र की इन्तेहा कहाँ तक है,
तुम कर लो सितम तुम्हारी हसरत जहाँ तक है,
22.
तुम को लिख लिखकर मैं रोज़ मिटाती हूं
तुम में एक नशा है ... एक खुमारी है...
मेरे दिल ने ख़ुद मुझको ही भुला दिया
इसमें बसती अब तस्वीर तुम्हारी हैं...
23.
दूसरे क्या जानेंगे,
मेरे दिल के छालों को...!
जब पता ही नहीं,
दिल मे रहने वालों को...!!
24.
नशीली आंखों से हो जाए मदहोश तो मुझे शराबी मत कहना,
नजरों से हो जाए घायल तो मुझे कातिल मत कहना,
नयनों की नमी काफी है उथल - पुथल मचाने के लिए दिल में,
पलकों से गर छलके शबनम तो मेरे नैनों की खराबी मत कर देना।