आशिक़ी (एक बेनाम रिश्ता) DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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आशिक़ी (एक बेनाम रिश्ता)

1.
सोचता हूं
कुछ कहूं तुमसे मैं
मगर तेरे - मेरे बीच में
बढ़ती दूरियों से
खामोश रह जाता हूं
फिर खुद से ही
कर लेता हूं सारी बातें तुम्हारी
विदा तुम हो गई मुझसे
तुम्हारी यादों से
विदा कैसे मैं हो जाऊ...

2.
जब तुमने ले ली थी विदा
मेरे हाथों से छुड़ाकर
हाथ अपना
सारी रात भीगता रहा मन
गहराती रहीं यादें तेरी
मैं होकर मैं देखता रहा
एकटक वो राह
जिस पर बढ़ चली थी तुम
इक बार भी
पीछे मुड़कर नही देखा तुमने
विस्मृत हो खड़ा रहा
दोनो हाथ पसारे

3.
क्या सोचा होगा कभी उसने
अब मैं कैसे रहता हूं

उसकी यादें उसकी बातें
अब मैं किससे करता हूं

बुरा भला, दुनिया के ताने
सब अकेला सहता हूं

है बात पुरानी सालों की
पर अब भी उस पे मरता हूं ।

4.
हल्की हल्की सी ठंड बदन को अब लगने लगी है,
तेरी यादों की छुअन मन को तपन अब देने लगी है।

तेरी नाराज़गी तेरा गुस्सा अब चुभन बनने लगी है,
गुजरते वक्त के साथ तन्हाई अब पसंद बनने लगी है।

मत लौट के आना क्योंकि उदासी आदत अब बनने लगी है,
जिंदगी तुम बिन अधूरी ही अब चलने लगी है।

5.
कल रात मेरी आँख से
एक आसूँ निकल आया,

तो मैने उस्से पुछा के बाहर क्यो आया ...?

तो उसने बोला तेरि
आँखो में कोई इतना समाया है

की मैं चाह कर भी अपनी जगह नहीं बना पाया ...

6.
*दिल डूब रहा गमों के दरिया*
में कोई साहिल तो दिख जाए ...!*

*हर पल खो रहा ख़ामोशी में
*अब कोई आहट तो कर जाए ...!*

*सजदे कि ख्वाहिश नहीं है बस
*यादों का कोई सहारा तो बन जाए ...!*

7.
जब जिंदगी की
नाव की पतवार
होगी कमजोर
सांसें होगी मद्धम
जीवन की ऊंची नीची राहों में
चलना होगा दुश्वार
चलना थाम मेरा हाथ
लगाएंगे तुझको पार
न जाने कितनी
अनकही बातें
साथ ले जाएंगे
सारी खट्टी मीठी यादों को
मिलके करेंगे अहसास
तू होगी मेरा सहारा
हम होंगे तेरा सहारा...

8.
तुमको पाकर
कुछ पाने की
ख़्वाहिश ना रही कभी
रहे दरमियाँ इश़्क
ताउम्र यूं ही सलामत
पल पल मांगी
रब से दुआ यही
रास्ता चाहे खूबसूरत हो
या हो वीरान
हमसफ़र तुम हो साथ
फिर क्यूं होना
मुझे परेशान है...?
रहें न रहें हम कल
यादें खूबसूरत
साथ हम ले जाएंगे...

9.
जब उम्र का सूरज ढ़लान पर उतरने लगे

जब आँखो की रौशनी मध्यम होने लगे

जब स्वर में हौले - हौले कम्पन होने लगे

जब क़दम दो डग भर कर थकने लगे

जब ख़ाली वक्त काटने को दौङने लगे

तब लिखूँगा एक कविता तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए सिर्फ तुम्हारे लिए

10.
अपनी चाहत को लेकर जाना है
हमें उस मुकाम तक,

जहाँ पहुँच कर किसी और की चाह
की हसरत ना रहे हमें,

जुदाई तन्हाई रूसवाई से परे हो
हमारे साथ का सफर,

जहाँ एक दूसरे के जिक्र में ही झलक
दिखे एक दूसरे की फिक्र का,

अब ये बात तुम याद रखना
इस जनम के बाद तक।

11.
सर्द रातों में मोम की तरह
तेरी आग़ोश में पिघल जाने को
जी चाहता है !

बड़ा अजीब सा है इन दिनों
मेरे दिल का मिजाज़
कभी ख़ुश तो कभी उदास,

किसी आहट, इशारा या
हवा के जैसे,
चुपचाप तेरे पास आने को
जी चाहता है !

12.
बनकर मीत मेरी
मुझे अपना बना लेती
तो क्या होता
हमारे प्यार पर
छाई धुंध का
अंधेरा मिटा देती
तो क्या होता
जैसे हमने बसाया है
तुम्हे अपने दिल में
तुम भी बसा लेती
तो क्या होता
सारे जमाने के सामने
लगाकर मुझको सीने से
जिंदगी में मेरी तुम
उजाला ला देती
तो क्या होता...