खामोशी (एक अनजाना एहसास) DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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खामोशी (एक अनजाना एहसास)

1.
हाए वोह वक़्त की तारी थी मोहब्बत हम पर
हम भी चौंक उठते थे इक नाम से, पहले पहले
हम भी सोते थे कोई याद सिरहाने रख कर
हाँ मगर ! गार्दिशे ए अय्याम से, पहले पहले

2.
क्या तुम्हें पता है, ऐ गुलशन, मेरे दिलबर आने वाले हैं
कलियाँ ना बिछाना राहों में, हम दिल को बिछाने वाले हैं

3.
तुम हो बाग़ में उड़ती हुई तितली की मिसाल...
मैं वो बच्चा _ जो पकड़ने में लगा रहता है...!

4.
मिली है हुस्न की दौलत बड़े मुक्कद्दर से...
कि नजर उतार कर निकला कर घर से...!

5.
क्या तुम्हें पता है ऐ गुलशन
मेरे दिलबर आने वाले है
कलियाँ न बिछाना राहों में
हम दिल को बिछाने वाले है

6.
यह पहली बार का मिलना भी
कितना पागल कर देता है
कुछ कुछ होता हैं साँसों
मैं न जानु क्यों होता है
बाहों में भर के वो हम को
मदहोश बनने वाले हैं
कलियां न बिछाना राहों में
हम दिल को बिछाने वाले है

7.
सीरत का है सवाल ना सूरत की बात है...
हम तुम पर मर मिटे ये तबियत की बात है...

8.
ओ सोहने जोगिया
रंग ले हमें भी इसी रंग में ओय होय
ओ सोहने जोगिया
रंग ले हमें भी इसी रंग में
फिर से सुना दे बंसी
कलियाँ खिला दे गोरे अंग में
वही जो तानें आग लगाये
उन्हीं से आग बुझाएं
हमें क्या हो गया है...

9.
महसूस ये होता है जैसे पंख तितली के लग गए
तेरी एक छुअन मुझे आसमा तक ले गई

10.
हम जो कहते थे वो कर भी सकते थे
वो छोड़कर चले गए हम क्या कर सकते थे
उसने छोड़ते वक़्त एक बार भी ये न सोचा
हम तो पागल थे उनके बिना मर भी सकते थे

11.
नागिन बैठी राह में, बिरहन पहुँची आय
नागिन डर पीछे भई, कहीं बिरहन डस न जाय

12.
सच मानो...
झुमके में उलझे बाल भी मुझे हैरत में डालते है,
तुम्हारी तरह ये भी शायद झुमके से जलते है...!

13.
चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच मे साबूत बचा न कोय

14.
क्या कहूँ वो किधर नहीं रहता
हाँ मगर इस नगर नहीं रहता
तू हो तेरा ख़याल हो या ख़्वाब
कोई भी रात भर नहीं रहता
जिस घड़ी चाहो तुम चले आओ
मैं कोई चाँद पर नहीं रहता
यूँ तो अपनी भी जुस्तुजू है मुझे
तुझ से भी बे - ख़बर नहीं रहता

15.
लग गई न तुमको भी ठंड महोब्बत की
कितना कहा था ओढ़ लो तमन्ना मेरी

16.
ख्वाहिश इतनी सी है कि
तेरे हर दर्द की दवा बन जाऊं मैं
कुछ हासिल हो न हो महोब्बत मे
तेरे लबो पर दुआ बनकर बिखर जाऊ मैं

17.
देखेंगे नही किसी को नज़र उठा कर
तुझे पाकर इतने मतलबी बन जाएंगे हम

18.
बहुत सी बातें होती है
जिनकी शिकायतें नही होती,
बस तकलीफें होती है
और तकलीफ ऐसी जिसमे दर्द नही होता सिर्फ ठेस लग जाती है हमारी उम्मीदों को,
हमारे भरोसे को,
हमारे व्यवहार को,
और खुद के स्वभाव को...
फिर भी हम बिल्कुल सामान्य दिखाने की कोशिश करते ,
न कोई शिकायत न कोई उखड़ा व्यवहार...
बस खुद को सीमित कर लेते,
थोड़ा चुप हो जातें,
थोड़ा पीछे हट जाते,
थोड़ा व्यस्त थोड़ी उपेक्षा,
पर बाते जाहिर नही करते...
हल्का सा मुस्कराकर सब आसान कर देते,
बस यही एक आदत
हर बुरी लगने वाली बातों से कब छुटकारा दिला देती,
हमे पता भी नही चलता...
हम बदल चुके होते...
सालों साल बाद किसी को लगता है
हम बदल गए है
तब एहसास होता हाँ हम बदल तो गए है....
लेकिन फिर से बदल जाएं
इतनी सहनशक्ति नही बचती।