एक उम्मीद की किरण DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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एक उम्मीद की किरण

1.
तेरे बिन मेरा मन
जैसे बन में हिरन
जैसे पगली पवन
लागी तुमसे मन की लगन
लगन लागी तुमसे मन की लगन

2.
वो खेल वो साथी वो झूले
वो दौड़ के कहना आ छू ले
हम आज तलक भी न भूले
वो ख़्वाब सुहाना बचपन का

3.
तुम्हे याद करते करते जाएगी रैन सारी
तुम ले गए हो अपने सँग नींद भी हमारी

4.
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं

5.
देर से लहरों मैं कमल सम्भाले हुए मन का
जीवन ताल मैं भटक रहा रे तेरा हँसा
ओ हँसनी ... मेरी हँसनी, कहाँ उड़ चली,
मेरे अरमानो के पँख लगाके, कहाँ उड़ चली

6.
जलती बुझती यादों कि किरणों को सजाकर रोये है
वो चेहरा याद आया हम शमा जलाकर रोये है
तुझसे रिश्ता क्या छूटा हर गम से रिश्ता टूटा था
ये आँसू है खुशी के आँसू जो तुमको पाकर रोये है

7.
शबनम से भीगे लब हैं, और सुर्खरू से रुख़सार,
आवाज़ में खनक और, बदन महका हुआ सा है,

जाने वालों ज़रा सम्हल के, उनके सामने जाना,
मेरे महबूब के चेहरे से, नक़ाब सरका हुआ सा है।

सुर्खरू - लाल
रुखसार - गाल, चेहरा

8.
वा के बिन मैं भई बावरी
भूख प्यास सब खोई
जा दिन ते परदेस गयो
मैं एक रैन न सोई
मेरे दिल को दर्द न जाने कोई
मैं कबते देख रही हर ओर
वन में नाचे मोर सखी री
वन में नाचे मोर

9.
ख़याल - ओ - ख़्वाब के सब रंग भर के देखते हैं
हम उस की याद को तस्वीर कर के देखते हैं
जहाँ जहाँ हैं ज़मीं पर क़दम - निशाँ उस के
हर उस जगह को सितारे उतर के देखते हैं

10.
दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली
बाहों में लहराये गंगा जमुना, देख के दुनिया डोली
गर्व से कहो हम भारतीय है

11.
दश्त ओ जुनूँ का सिलसिला मेरे लहू में आ गया
ये किस जगह पे मैं तुम्हारी जुस्तुजू में आ गया
चारों तरफ़ ही तितलियों के रक़्स होने लग गए
तू आ गया तो बाग़ सारा रंग - ओ - बू में आ गया

12.
गुलाब - रुत की देवियाँ नगर गुलाल कर गईं
मैं सुर्ख़ - रू हुआ उसे भी लाल कर दिया गया

13.
उसे इक अजनबी खिड़की से झाँका
ज़माने को नई खिड़की से झाँका
वो पूरा चाँद था लेकिन हमेशा
गली में अध - खुली खिड़की से झाँका

14.
साँस लेता हुआ हर रंग नज़र आएगा
तुम किसी रोज़ मिरे रंग में आओ तो सही

15.
फीकी है हर चुनरी
फीका हर बंधेज
जो रूह को रंग दे
वो सच्चा रँगरेज

16.
मेरे सामने से जो कोई रहगुज़र गुज़रे...
ढूंढती हूँ अक्स तेरा जब कोई बशर गुज़रे...

17.
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्य्युल में रह रह के झलक उठती है
यूं अचानक तिरे आरिज़ का ख़याल आता है
जैसे ज़ुल्मत में कोई शमां भड़क उठती है

18.
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना

19.
चिड़िया होती है लड़कियाँ
मगर पंख नहीं होते लड़कियों के,
मायका भी होता है, ससुराल भी होता है
मगर घर नहीं होते लड़कियों के,
मायका कहता है, ये बेटियां पराई हैं
ससुराल कहता है, ये दूसरे घर से आई हैं
खुदा अब तू ही बता
ये बेटियां किस घर के लिए बनाई हैं?