औरत - एक पहेली DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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औरत - एक पहेली

1.
इक शख़्स जिस को देख के ख़ुद पर नज़र गई
वो आइना बना, और मेरी क़िस्मत सँवर गई

2.
ये दिल, भूलता नहीं है मोहब्बतें उसकी!
पड़ी हुई थीं मुझे कितनी आदतें उस की!!

ये मेरा सारा सफ़र उस की ख़ुशबुओं में कटा!
मुझे तो राह दिखाती थीं चाहतें उस की!!

घिरी हुई हूँ मैं चेहरों की भीड़ में लेकिन!
कहीं नज़र नहीं आतीं शबाहतें उस की!!

मैं दूर होने लगी हूँ तो ऐसा लगता है!
कि छाँव जैसी थीं मुझ पर रिफाक़तें उस की!!

मैं बारिशों में जुदा हो गई हूँ उस से मगर!
ये मेरा दिल मिरी साँसें अमानतें उस की

3.
हया से शर्मा जाना अदा से मुस्कुरा देना
कितना सहल है हसीनो को बीजलियां गिरा देना
4.
उसने जहाँ जहाँ अपने कदम रखे हमने वो ज़मीन चुम ली
और वो कमबख्त मेरी माँ से कह आई
"आंटी आपका बेटा मिट्टी खाता है "

5.
कहते है औरत घर को स्वर्ग बनाती है लेकिन उसके पीछे वह कितने त्याग और बलिदान करती है इसकी एक झलक प्रस्तुत है मेरी इस स्वरचित कविता में

क्यो नारी सम्माननिय और पूजनिय है

*इस दुनिया मे औरत कहाँ अपने लिये जी पाती है*

*माँ बाप की खव्हिशे ससुराल की अपेक्षाओं में जिंदगी बीत जाती है*
इस दुनिया मे औरत कहाँ अपने लिये जी पाती है

*बच्चो की फरमाइशें पती की ख़्वाहिशो में अपनी खुशी ढूंढ लेती है*
*इस दुनिया मे औरत कहाँ अपने लिये जी पाती है*
*किसी को कुछ पसन्द है किसी को कुछ अपने लिए कब मनचाहा पका पाती हैं*
*सास ससुर की सेवा ननद की आवभगत कुटुम्ब के के लिये मन को मारती है*

इस दुनिया में औरत कहाँ अपने लिये जी पाती है

*तरस जाती है तारीफ के दो बोल के लिये छोटी गलती पर भी डाँट खाती है*
*सास के ताने पती का गुस्सा बच्चो की बदतमीज़ी झेल जाती है*

*मन को मारकर चुपके से ऑंसू पोंछ कर सबके सामने फिर मुस्कुराती है*

इस दुनिया मे औरत कहाँ अपने लिए जी पाती है

*मन पसन्द न मिले खाने में तो चार बाते सुन जाती है*
*पर आज तबियत ठीक नही या मन भारी है ये कहाँ कह पाती है*

*सरोकार नही होता उसकी भावनाओं से किसी को*
*न उसकी उदासी से कोई वास्ता बस मन को समझा कर वो आगे बढ़ जाती है*

*इस दुनिया मे औरत कहाँ अपने लिये जी पाती है*
*इस दुनिया में औरत कहाँ कभी अपने मन का कर पाती है*

6.
हम इश्क नहीं लिखते अदा लिखते हैं,
जब देखते हैं तुम्हें तो दुआ लिखते हैं,
गर देखले तुझे मेरी आँखों से कोई,
जान जाएंगे हम किसे खुदा लिखते हैं...

7.
हर रंग लग गया देह पर फिर भी तन ना लाल हुआ ...!
लेकिन जब मिली नजर तुमसे मेरा रोम रोम गुलाल हुआ ...!!

8.
चेहरे को आज तक भी तेरा इंतज़ार है
हमने गुलाल किसी को मलने नहीं दिया ...!

9.
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुकी हुई हूँ वहीं रात रोक के

10.
तुझपे फूंका है मोहब्बत का तिलस्मी मंतर,
तू मुझे छोड़ के जाएगा तो, लौट आएगा ...!

11.
इस कातिल अदा से हमे देखते है वो
और यह भी देखते है कोई देखता न हो

12.
किसी ने मुझको बना के अपना मुस्कुराना सीखा दिया
अँधेरे घर में किसी ने हँस के
चिराग जैसे जला दिया