स्त्री (अनुभूति का विषय है सहानुभूति का नहीं) DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

स्त्री (अनुभूति का विषय है सहानुभूति का नहीं)

1.
अगर आप मुझे मेरे नाम की वजह से प्यार करते हो तो मुझसे प्यार मत करो। नाम आज है कल बदनाम भी हो सकता है, फिर मेरे साथ अपना नाम जोड़कर आप बहुत पछताओगे।

मेरे काम की वजह से अगर आप मुझसे प्यार करते हो तो बिल्कुल मत करना, कई बार ऐसा होता है कि मैंने काम करना छोड़ दिया। तब आप मेरे साथ जुड़कर पछताओगे।

यदि आप मेरे रूप - रंग से आकर्षित हैं, तो कृपया मुझसे दूर रहें। जैसे - जैसे उम्र बढ़ेगी, वैसे - वैसे रूप भी कम होता जायेगा, तब आपको अपने आकर्षण पर पछतावा होगा।

अगर आपको मेरा स्वभाव पसंद है तो भी आप गलत हैं। समय और परिस्थिति के साथ स्वभाव बदलता है। शरीर में हार्मोन का स्राव भी प्रकृति को बदल सकता है उस समय आपको पछतावा होगा कि आप गलत थे।

अगर आपको लगता है कि कभी - कभी मैं आपके लिए काम करूंगी और आप करीब आ गए हैं तो रुकें और वापस जाएं। मैं मददगार हो सकती हूं लेकिन केवल निःस्वार्थ रिश्तों में। इस सच्चाई का अनुभव करने के बाद भी आपको इसका पछतावा होगा।

कुछ भी शाश्वत नहीं है, मुझमें अनेक दोष हैं। मेरा एक बहुत ही सामान्य व्यक्तित्व है। और मेरी एक छोटी सी दुनिया है मुजमे बहुत सी खामियों है अगर आप यह जानकर भी मुझे पसंद करते हे मुझे प्यार कर सकते हे यह जानते हुए भी की में आपको कुछ नही दे सकती तब भी आप मेरा आत्म - सम्मान बनाए रख सकते हे तो आपका स्वागत है मेरी इस छोटी सी दुनिया में

अन्यथा, कृपया दरवाजा खटखटाने की तसदी न उठाए

2.
एक रात तुम गए थे
जहाँ बात रोककर
हम आज तक खड़े है
वहाँ वो रात रोककर

3.
अब इन हुदूद में लाया है इंतज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे

4.
आप बदनाम ना हो इसलिये आपकी रज़ा में जी रही हूँ मैं ...!
वरना आपकी चौखट पे मरने का इरादा रोज़ करती हूँ मैं ...!!

5.
ये कैसे लत थी मुझे उसके दीदार की
की इतवार के दिन भी मैं स्कूल चली गई ।

6.
रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो

7.
मैं वक्त के रफ़्तार में गिरफ्त हो चुका शख़्स ,
तुम्हारी प्रतीक्षा में ये उम्र बिताना चाहता है।

8.
(1) गवाही देते हैं अजमेर के गली कूचे
यहीं कहीं वो मोहब्बत नशीन लड़की थी

(2) शहर ए अजमेर मेरी पहली मोहब्बत तु है
तु ना होता तो मेरे ख्वाब अधूरे होते

9.
तुम रौंद सकते हो सभी फूलों को, मगर
तुम बसंत को आने से नहीं रोक सकते।

10.
तबस्सुम की सज़ा कितनी कड़ी है
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है।

11.
हो गई है खंडहर ये दास्ताँ तेरी मेरी लेकिन
बचे हुए हैं अब भी अवशेष कुछ तेरी यादों के

12.
जलता है परवाना तो आह निकलती है
लेकिन
उसे जलाने के लिये शमा खुद भी तो जलती है

13.
टूटे हुए लोग कर बिखर जाते हैं दीवारों की तरह,
जो खुद से भी ज्यादा किसी और से मुहब्बत करते हैं।

14.
उसने थोड़ी देर जुल्फों को खुला रहने दिया
उसने आज आईने को आइना रहने दिया