Love and Tragedy - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

लव एंड ट्रेजडी - 1

 
एक झलक
 
ये उपन्यास सिर्फ कल्पना पर आधारित है, इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नही। इसका उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन करना है। इस धारावाहिक की कहानी एक अमीर घर के लड़के हंक्षित जिसके परिवार में उसकी माँ ( रुपाली ) उसके पिता हंसराज उसका भाई और भाभी ( रजत / रजनी ) उसकी दादी ( हेमलता )और बहन ( काव्या ) रहते है. उसका सपना दुनिया घूमने का और तस्वीरे खींच कर एक बड़ा फोटोग्राफर बन कर नाम कमाना है। उसकी ईश्वर में आस्था कही खो गयी है, एक हादसा जो उसके जीवन में पेश आया था उसके बाद उसका ईश्वर पर से भरोसा उठ सा गया है। ये सब लोग दिल्ली में रहते है।
 
वही दूसरी तरफ हमारी नायिका हिमानी उसकी एक बहन भव्या उसका छोटा भाई कार्तिक उसकी माँ वैशाली जो की हाउस वाइफ है और पिता पंडित हरी किशन ji है। ये सब लोग उत्तराखंड के पहाड़ो में बसे केदारनाथ धाम के नजदीक रहते है। हिमानी जो की एक गाइड है और सेलनियों को पहाड़ो की सेर कराती है। उसकी ईश्वर में बहुत आस्था है। और फिर ऐसे ही एक गाइड बतौर हंक्षित और हिमानी की मुलाक़ात होती है। एक तरफ ईश्वर में बहुत ज्यादा आस्था रखने वाली वही दूसरी तरफ ईश्वर से नाराज़ हंक्षित आखिर कैसे मिलेंगे ये दो दिल आपस में अलग अलग सोच रखने वाले या फिर ईश्वर की कोई और ही मर्जी होगी इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए शुरू करते है
 
एक बड़ा सा घर जिसके बाहर त्रिपाठी भवन की नाम प्लेट लगी हुई थी। बाहर एक गार्ड अपने केबिन में बैठा उंग रहा था शायद रात की शिफ्ट कर के थक गया था और अब अपने दुसरे साथी का इंतज़ार कर रहा था उंगते हुए भी उसकी नजरें बाहर खिड़की की तरफ थी जो बता रही थी की वो किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
 
सात बज चुके थे। उसका इंतज़ार ख़त्म हुआ और दुसरे साथी ने आकर उसकी जगह संभाल ली और वो अपना बेग लेकर वहाँ से चला गया। गार्ड वहाँ रखी एक कॉपी में कुछ देखने में मसरूफ हो गया।
 
घर के अंदर का दृश्य।
 
घर काफ़ी बड़ा है उस घर के बड़े से कोने में सब लोग एकत्रित है वो घर में बना एक मंदिर है जहाँ सब लोग एक साथ भगवान की पूजा अर्चना करते है सिवाय हंक्षित को छोड़ कर वो वहाँ मौजूद नही है। काफ़ी देर तक पूजा अर्चना के बाद रुपाली जी ने पूजा ख़त्म की और सबको प्रसाद दिया।
 
एक एक कर सबने प्रसाद और आरती ली, रुपाली जी आरती की थाली लेकर अपने पति हंसराज जी के पास पहुंची उन्होंने भी प्रसाद और आरती ली और अपनी पत्नि की तरफ देख कर बोले
 
"अपने उस बेटे को भी जगा दिया होता, जो रात भर दोस्तों के साथ आवारा गर्दी करता रहता है और दिन भर सोता रहता है उल्लू की तरह, न आरती में आता है और न ही मंदिर जाता है भगवान से तो मानो उसका जन्मों से कोई बेर है। बाप तो मानो उसका दुश्मन है दफ्तर में भी उसने झाँक कर नही देखा MBA भी बीच में ही छोड़ दिया बस हाथ में कैमरा लिए फिरता है साहब को फोटोग्राफर बनना है "
 
" क्या, तू हर वक़्त मेरे पोते के पीछे पड़ा रहता है, उठ जाएगा ज़ब उसका मन करेगा और रही बात दफ्तर जाने की, तो तुम दोनों जाते तो हो सुबह से लेकर शाम तक वही तो रहते हो अब क्या हंक्षित भी तुम दोनों की तरह हो जाए जिन्हे सिर्फ काम, काम बस काम है नजर आता है और कुछ नही " हेमलता जी ने कहा जो की हंसराज जी की माँ है।
 
" माँ! ये सब आप लोगो की वजह से ही इतना बिगड गया है, अगर आप लोग उसकी साइड न लो तो कभी भी वो इस तरह न करे " हंसराज जी कुछ और कहते तब ही रजत बोल पड़ा " पापा! अभी वो छोटा है अभी उसे अपनी जिंदगी जी लेने दीजिये आज नही तो कल समझ जाएगा कि आप उसके भले के लिए कह रहे है "
 
जैसे तुम लोगो कि मर्जी अब मैं क्या बोलू उन नवाब साहब के बारे में, ज़ब सारे घर वाले उन्ही की तरफ है तो मेरा बोलना तो बेकार है, जो दिल में आये करे लेकिन याद रखना एक दिन बहुत पछतायेगा ज़ब सब कुछ उसके हाथ से चला जाएगा ये वक़्त जो उसे आवारा गर्दी में नही बल्कि अपने बाप के दफ्तर में लगाना चाहिए था ताकि कुछ सीख पाए
 
मेरी अब उम्र हो रही है इतना बड़ा कारोबार सिर्फ रजत तो नही संभाल सकता अकेले, अभी से कुछ सीखेगा तब ही तो आगे चल कर अपने भाई का हाथ बटा पायेगा मेरा कोई भरोसा नही कब इस दुनिया से चला जाऊ हंसराज जी और कुछ कहते तब ही रुपाली जी बोल पड़ी
 
" ये केसी बातें कर रहे है आप सुबह सुबह, ईश्वर न करे आपको कुछ हो, मैं समझाऊंगी हंक्षित को देखना वो मान जाएगा आखिर माँ हूँ उसकी मेरी बात को तो नही टालेगा लेकिन आप आइंदा इसमें की बात मत करना "
 
"जी पापा, मम्मी ठीक कह रही है, आप से ही तो हम सब है " रजत ने कहा।
 
थोड़ी देर के लिए सब लोग थोड़ा भावुक हो गए थे कि तब ही हेमलता जी बोल पड़ी
 
" क्या आज नाश्ता मिलेगा भी या नही या यही मंदिर में खडे होकर पूरा दिन गुजारना है "
 
" अरे! हम सब तो भूल ही गए, अभी शामू काका से कहकर नाश्ता लगवाती हूँ फिर सब लोग नाश्ता करेंगे " रजनी ने कहा और वहाँ से रसोई कि और चली गयी।
 
"आप लोग सब जाकर टेबल पर बैठिये मैं बहु के साथ रसोई में नाश्ते का देखती हूँ " रुपाली जी ने कहा और वहाँ से रजनी के पीछे पीछे रसोई में चली गयी जहाँ रजनी और शामू काका नाश्ता बनाने की तैयारी कर रहे थे।
 
सब लोग टेबल पर बैठ कर नाश्ते का इंतज़ार कर रहे थे और आखिर कार स्वादिष्ट नाश्ता उनकी टेबल पर रखा हुआ था सब लोग नाश्ता कर ही रहे थे कि तब ही हंक्षित सीड़ियों से आँख मलते हुए आ रहा था और नीचे आकर सब को गुडमॉर्निंग विश करता है।
 
"उठ गया मेरा पोता, आ आकर नाश्ता करले देख सब गरमा गरम है " हेमलता जी ने उसे देख कर प्यार भरे अंदाज़ में कहा।
 
" नही दादी, आप लोग नाश्ता कीजिये मैं पहले नहाऊंगा उसके बाद ही कुछ खाऊंगा " हंक्षित ने कहा।
 
"आज सूरज कहा से निकला है, जो इन नवाब साहब के दर्शन इतनी जल्दी हो गए कल रात जल्दी घर वापसी हो गयी थी शायद " हंसराज जी ने तंस मारते हुए कहा।
 
" इस घर में सुबह सुबह नींद किस को आती है जितनी तेज आवाज़ में यहां आरती होती है उस आवाज़ से तो मुर्दा भी उठ खड़ा हो जाए " हंक्षित ने कहा।
 
" लेकिन फिर भी एक शख्स ऐसा है जो जिन्दा लाश बना बिस्तर पर पड़ा रहता है लेकिन आरती में नही आता है उठ कर "हंसराज जी ने तंस मारते हुए कहा
 
चारो और ख़ामोशी सी पसर गयी थी, सब लोग हंक्षित की और देख रहे थे वो अपने पिता की तरफ देख कर बोला " जिस चीज में मेरी आस्था ही नही है तो मैं सुबह सुबह अपनी नींद खराब क्यू करू? "
 
"तो जरा बताना आपकी आस्था किस चीज में है, जरा हमें भी तो पता चले, दोस्तों के साथ पार्टी करने में या फिर अपने उन दो कोड़ी के कैमरे में जिससे तुम हर समय जानवरों, पहाड़ो और इंसानों की बेतुकी तस्वीरे खींचते हो या फिर घूमने फिरने में है और बाप का पैसा पानी की तरह उडाने में " हंसराज जी ने दो टूक सवाल किया।
 
अपने पिता द्वारा अपने प्रोफेशन के बारे में इस तरह कहे जाने पर हंक्षित की क्या प्रतिकिर्या होगी जानने के लिए पढ़े अगला भाग

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