कलयुग के श्रवण कुमार - 9 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कलयुग के श्रवण कुमार - 9

कलयुग के श्रवण कुमार

........ मनोहर ने मुरली से पूछा था- "क्या हो गया था मुरली ।"

कुछ नही मनोहर काका.. (सुबकते हुये) मैं खेत से लौटा था, तबियत ठीक नही लग रही थी बुखार था कल दोपहर से, खाना भी नही दिया था इसने , मैने इससे बोला की दवा दे दें, कुछ खाने को दे दे ताकि खाना खा कर दवा खालूं खेतों मे पानी लगाना है।

सांसे व्यवस्थित करने की कोशिश करते हुये थोड़ा रुका था मुरली।

'फिर क्या हुआ ?' मनोहर ने पूछा।

'इसने (चमेली) कहा तुम्हारा रोज का नाटक हैं, मैंनें कहा दशा देखकर नहीं लग रहा। तब कहती है कि इससे अच्छा तो तुम मर ही जातें, परेशान कर रखा है कुछ करना धरना नहीं तुम्हें बस रोज नौटकी, तुम्हारा मुंह देखना पाप है।... '

'... छोटी बिटिया पानी लेकर आई, तो इसने छीन कर फेंक दिया। मैंने गुस्सें में इसको (चमेली) को एक ओर धक्का दे दिया, इसके बाद ये और दोनों बेटे और बड़ी बेटी ने मिल कर मारना शुरू कर दिया।'

मुरली की आंखो से अब भी आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे।

मनोहर ने मुरली की पत्नी और बच्चो से कहा-
'यह तो गलत है दिन भर खेतों मे काम करना, पशुओं की देखभाल करना, किसी से फालतू मिलाना नही, कोई नशा नही, आखिर मुरली किसके लिये करता है यह सब ।' थोड़ा रुका था मनोहर।

फिर मुरली के बेटे बनवारी से बोला-
'पढ़ाई लिखाई किये होते तो समझ मे भी आता, दिन भर निठल्लो की तरह घूमना, गांजा दारू पीना, स्कूल से आती जाती लड़कियों से बत्तमीजी करना, शाम को आवारो कि मंडली बना कर नहर किनारे धुएँ उड़ाना। तुम कौन सा काम करते हो, यही बाप खट कर तुम सभी का पेट भरता है और उसी को मारते हो, शर्म नहीं आती तुम्हें। '

मनोहर का लड़का गांव का प्रधान था, और मनोहर भी क्षेत्र मे सम्मानित अतः उसकी बात पर चमेली, दोनो लड़के और बड़ी लड़की सभी चुप थे।

" मनोहर आगे बोला- तुम जाहिलो से अच्छी तो ये (छोटी बेटी की ओर इशारा करके) है, पढाई लिखाई भी करती है, घर मे हाथ भी बताती है, कम से कम बाप का ख्याल तो रखती है, बाकी तुम सभी की करतूते तो सब जानते है।'

मनोहर नाम का बुजुर्ग बुरी तरह विफर गया था , उसका चेहरा क्रोध की ज्यादती से सुर्ख हो उठा था और शरीर भी कांप रहा था।

मनोहर ने मधु से कहा- जा विटिया पानी ले आ और मुरली को हाथ मुँह धुला कर पानी पिला, और कपड़े बदलने को दे मै इसे अस्पताल लेकर जाता है ।

मुरली ने कहा- 'अरें नही मनोहर काका मै ठीक हो जाऊंगा, ये तो मेरा नसीब हो गया है, भगवान भी नही सुनता किसी तरह विटिया की शादी कर देता तो मै भी इसके कर्ज से मुक्त हो जाता और सुकुन से मर जाता। '

मनोहर ने कहा - ' भगवान सब की सुनते है, पढ़ लिख लेने दो उसे इसकी शादी भी हो जायेगी - अभी उठो और तैयार हो जाओ।'

इतना कह कर मनोहर ने कुर्ते की जेब से की - पैड फोन निकाल कर किसी को फोन लगा कर बोला - जीप ले कर आ जाओ और टकुराइन से कहना - पंडित बाबा (मुरली) को अस्पताल ले जा रहा हूँ, वो बटुआ देंगी उसे लेते आना।

इतना कह कर कॉल काट दी मनोहर ने।

जीप आते ही मनोहर मुरली को लेकर अस्पताल को निकल पड़े। अस्पताल जो तहसील का सरकारी अस्पताल था।

(क्रमशः)