कलयुग के श्रवण कुमार - 7 - मन की शीतलता संदीप सिंह (ईशू) द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कलयुग के श्रवण कुमार - 7 - मन की शीतलता

मन की शीतलता
(सामाजिक कहानी)


गर्मी अपने चरम पर थी, महीना जरूर अप्रैल था किंतु गर्मी बाप रे.. अभी से 38°C - 40°C पहुंच रहा था।

अनुराग क्रूड रिफाइनरी प्लांट गेट के बाहर आया। अनुराग एक कॉन्ट्रैक्टर के यहां साइट इंचार्ज (इंजीनियर) के रूप मे कार्यरत है।

गर्मी जिस दिन से बढ़ी, अनुराग ने सामने वाली शिकंजी (गूंद क़तीरा, नींबू, ठंडे चीनी बर्फ मिश्रित मीठा पेय) की दुकान पर शिकंजी पीना शुरू कर दिया, उसे तपती धूप मे भागना दौड़ना पड़ता है।

पर यह गर्मी मे शरीर को शीतल रखती है। यह देशी शीतल पेय पंजाब का विशेष पेय है। हालांकि बिकता दिल्ली की मशहूर शिकंजी के नाम से है।
पेट कुछ खुराक की मांग कर रहा था उसका।

और हो भी क्यों ना गुप्ता जी के गर्मागर्म समोसे, दाल और कस्तूरी मेथी के भराव वाली कचौडी़ की खुशबु और लस्सी का गिलास सुबह अनुराग का नाश्ता था।

अब भी उसे समोसा खाने का मन हुआ, थोड़ी देर मे समोसा अनुराग के सम्मुख प्रस्तुत था, हरी तीखी चटनी मे इठलाते गरम समोसे ने जैसे आमंत्रित किया, अनुराग गुरु टूट पड़ो।

समोसे का आनंद लेते हुए अनुराग ने गुप्ता जी के लड़के से कहा - समोसा खा लूँ तो एक लस्सी देना गुप्ता जी।
गुप्ता जी ने हल्की व्यापारिक मुस्कान के साथ गर्दन को जुम्बिस देते हुए, बिना मुँह खोले और और शब्द जाया किए 'ठीक है' की मौन स्वीकृति दी।

चूंकि समोसा गरम था, तो खाने मे भी समय लग रहा था। हर कौर के लिए " फूंक फूंक कर कदम" रखने वाली कहावत को चरितार्थ होती प्रतीत हुई।

वैसे गर्मी मे समोसा ठीक नहीं पर फिर भी मजबूरी होती है हम जैसे लोगों की।
अनुराग मस्ती से समोसे का आनंद ले रहा था।

सामने शिकंजी की दुकान पर इंजीनियर्स की भीड़ लगी हुई थी। चिलचिलाती गर्मी मे एक 75 वर्षीय बुजुर्ग शिकंजी की दुकान पर दिखे।

पहनावे से वो ग्रामीण लगे, या फिर जीवन यापन करने वाले वो मेहनतकश बुजुर्ग जो अभी भी समान उतारने का काम करते होंगे।

उन्होंने शिकंजी दुकानदार से मातृभाषा (पंजाबी) मे कहा -
बेटा मेरे कोलं सिरफ 10 रुपये हां, मैनू एक्क शिकंजी दे दियो। (Beta mere kole siraf 10 rupaye hana, mainu ekk shikanji de dio).

लेकिन दुकानदार राजी ना हुआ। बेचारे बुजुर्ग ने कई बार प्रयास किया पर सफलता मिलती नहीं दिखी।

उनके चेहरे पर गर्मी की मार और हताशा दोनों स्पष्ट दिख रही थी। एक बार दूसरों के लिए बन रही शिकंजी के गिलासों को देखते फिर अपने हाथों मे मुड़े तुड़े दस रुपये के नोट को।

अनुराग अचंभित था, जिस पंजाब मे कोई इंसान भूखा प्यासा नहीं रह सकता वाहे गुरु की कृपा से, जहां जगह जगह पर लंगर, भयंकर गर्मी के दिनों मे मे रेलवे-स्टेशन, बस स्टैंड, बाजारों, अस्पतालों मे मुफ्त मीठे शीतल शर्बत का वितरण होता है बिना किसी भेदभाव, और शुल्क के, कह सकते है स्वार्थरहित जन सेवा, जो किसी लोभ से परे है।

ऐसे प्रांत मे यह शिकंजी वाला। व्यावसायिक दृष्टिकोण से तो शिकंजी वाला भी अपनी जगह सही है, वह व्यापारी है, वस्तु का उचित मूल्य तो लेगा ही वर्ना व्यावसायिक हानि का सामना करना पड़ेगा।

पर मानवता शिकंजी वाले के साथ साथ उपस्थित बड़े बड़े साहब जिनका वेतन ही लाखों मे है उनके भी अंदर दम घोट चुकी दिखती है।

'साहब, लस्सी दूँ?'
गुप्ता जी की आवाज से मेरी तन्द्रा भंग हुई।
अनुराग ने मुस्कराते हुए कहा - नहीं गुप्ता जी, रहने दीजिए, शिकंजी का मूड है।

उन्होंने भी कुशल व्यापारिक मुस्कान के साथ बोले - 'ठीक है। '
इसके बाद अनुराग के पैर सामने शिकंजी वाले की दुकान की ओर बढ़ चले।

अनुराग ने शिकंजी वाले को दो ग्लास शिकंजी का ऑर्डर दिया और 40 रुपये चुकता किया।
फिर मैंने कहा एक ग्लास अंकल को दे दीजिए, एक मुझे दे दीजिए।

बुढ़े अंकल ने गिलास देते हुए दस रुपये देना चाहा शिकंजी वाले को।
तब शिकंजी वाले ने बुजुर्ग सज्जन से बताया - 'पैसा इन साहब ने पैसा दे दिया।'

बुजुर्ग ने कृतज्ञ भाव से देखा, शायद उनके चेहरे की शीतलता अनुराग को आशीर्वाद दे रही थी।
साथ खड़े बड़े साहब लोग भी मुँह देखते रहे।

अनुराग ने शिकंजी समाप्त कर प्लास्टिक के गिलास को डस्टबीन के सुपुर्द किया और फिर अंदर जाने के लिए प्लांट के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ चला।

मन को एक भीनी सी संतुष्टि महसूस हो रही थी, शायद यह मन की शीतलता ही तो कहलाती है।

' मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ' ऐसा प्रसिद्ध दार्शनिक /समाजशास्त्री अरस्तू ने कहा था, तो फिर निस्वार्थ सहयोग भी हम सामाजिक प्राणियों का नैतिक दायित्व (जिम्मेदारी) है।

(समाप्त).


©✍🏻संदीप सिंह (ईशू)
रचना कैसी लगी कृपया समीक्षा के माध्यम से अवश्य बताइयेगा।
🇮🇳 जय हिंद 🇮🇳