कलयुग के श्रवण कुमार - 6 - प्यारा आशू संदीप सिंह (ईशू) द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कलयुग के श्रवण कुमार - 6 - प्यारा आशू

प्यारा आशू


मेरी पत्नी बहुत दिनों से कह रही थी कि, कोई बढ़िया नौकर ले आओ । मैं तो उसकी बातों को सुन के परेशान हो गया था , कि मैं नौकर कहाँ से लाऊँ ।


अचानक मैं यही सोचते हुए बस से ऑफिस जा रहा था कि इन्हीं ख्यालों का पुल एक झटके से टुट गया जब मैंने जब सामने देखा तो एक दस वर्ष का प्यारा बच्चा जिसके बाल थोड़े बड़े व बिखरे हुये थे ।


और शरीर पर एक मटमैले रंग की फटी टी शर्ट व मटमैली नेकर थी वह हाथ फैलाये एक यात्री से कह रहा था- बाबू जी ५० पैसे दे दो । वे यात्री साहब बोले- पहले नाचों तब पैसे मिलेंगे ।


वह छोटा १० वर्ष का बच्चा बोला- बाबू जी मैं नाचना नहीं जानता बाबूजी।
फिर वह बच्चा उन साहब के पैर पकड़ने के लिए झुका तो उन्होंने लात मारते हुए कहा- परे हट मेरे को मत छू तेरे जिस्म से बदबू आ रही है ।


वह बच्चा मुँह के बल गिर कर रोने लगा । उसके माथे से खून बहने लगा । मेरा हृदय उस बच्चे की हालत देख दया से भर गया ।


मैने अपनी जगह से उठकर, लपक कर उसे उठाया और अपनी रूमाल से उसके माथे से बह रहे खून को साफ करते हुये बोला - साहब आपके दिल में थोड़ी भी दया नहीं है क्या जो छोटे बच्चे के साथ ऐसा सलूक कर रहे है , इसकी रगों में भी वही लहू बह रहा है जो आपके जिस्म में बह रहा है , तो ये भेदभाव क्यूँ ।


वे साहब ताव खाकर बोले- देखिए आप बीच में न बोले वरना बहुत बुरा होगा ।
मेरे को भी गुस्सा आ गया मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वह जनाब ने मेरे ऊपर हमला कर दिया ।


मैंने उनकी कालर पकड़ कर दूर किया और अपनी जेब से मोबाइल निकाल के थाने का नम्बर मिलाया ।
थाने के दरोगा अजीत सिंह मुझे पहचानते थे सो उन्हें सारी बाते संक्षेप में बताई तो वे बोले- मैं अभी ही अगले बस स्टाप पर पहुंच रहा हूँ ।


फिर मैंने मोबाइल को बन्द करके जेब में डाला और उस बच्चे को मैने सीने से लगा लिया । पता नहीं क्यूं मुझे उस बच्चे से इतनी मोहब्बत कहू या आत्मियता कहू पनप रही थी ।


तभी अगला बस स्टाप आ गया और बस के रुकते ही उस पर अजीत सिंह अपने दल बल के साथ आ गये।
और फिर मेरे बताने पर उस अकडू साहब को गिरफ्तार कर अजित बोले- इस बच्चे को क्या करू , सन्दीप जी ।
मैंने झटके से कहा- इस बच्चे को आप नहीं मैं ले जाउंगा । और फिर अजित ने कहा- अच्छा तो अब मैं चलता हूँ नमस्ते ।


मैने कहा- थैंक्यू अजित जी।
फिर वे उस व्यक्ति को ले कर चले गये । मैं उसे बच्चे को ले जा कर बस से उतरा और फिर उसके साथ मैं आफिस पहुंचा । वहाँ और मुझे उस बच्चे के साथ देखकर सभी हंसी उड़ाने लगे। किंतु जब उन्होंने सारी बातें सुनी तो वे माफी माँगने लगे ।


मैंने आफिस के कार्यों को जल्दी से ही निपटा कर उस बच्चे के साथ बाहर निकला तो अब मुझे उससे बात करने का मौका मिला ।


मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है । उसने बताया ' आशू ' है । और मां बाप के बारे में बताया की वे मर गये थे जब वह छोटा था । मेरी अभी नयी नवेली शादी हुयी थी अभी बच्चे नहीं हुये थे।


सो मेरा मन उसे अपनाने को हो गया था । मेरी पत्नी तो सहर्ष तैयार हो जायेगी फिर मैं उसे ले जाकर एक नाई की दूकान पर ले कर उसके बाल कटवाये ।


जब बह बाहर निकला तो उसका गोरा चेहरा दमक रहा था । पर आखे सूनी थी । वो शायद संकोच कर रहा था ।
खैर फिर मैंने उसे लेकर एक कपड़े की दूकान पर गया और दो जोड़ी पैन्ट और शर्ट ली व दो अंडरवियर ली और बिल जमा करके मैं उसे एक सेट पैन्ट शर्ट बनियान व अंडरवियर पहनने को दी पहले तो उसने संकोच करते हुए न - नु की पर मेरे कहने पर वह एकान्त में कपड़े बदल कर आ गया ।


सच इस वक्त वह एकदम हीरो लग रहा था । उसका गोरा रंग व कपड़े उसके व्यक्तित्व को और भी चमका रहा था । पर उसकी आँखों में अब भी संकोच था ।


मैं उसे लेकर सीधे घर पहूँचा और फिर दरवाजे पर लगी काल बेल बजाई । मेरी पत्नी ने तुरन्त दरवाजा खोला और आश्चर्य से आशू की तरफ देखने लगी । मानो उसकी नजरे पूछ रही हो कि ये अंजान बच्चा कौन है ।


मेरे मुँह से अचानक निकल गया- ये हमारा बेटा है ।
फिर अन्दर जा कर अपनी पत्नी से सारी बातें बताई। और कहा अब हम आशू को अपने बेटे की तरह प्यार करेंगे जैसे वो हमारा सगा बेटा हो । यह सुन मेरी पत्नी और मेरी भी आखों में खुशी के आंसू बह चले, हमने ' आशू ' को भींच के बाहों में भर लिया ।


दो तीन दिन तक तो वह संकोच करता रहा पर उसके बाद वह हिल मिल गया । मुझे खुशी तो उस पल हुयी जब आशू ने मुझे ' डैडी ' और मेरी पत्नी को ' मम्मी ' कहा ।
मैने खुशी से उसके कपोलों को चूम लिया ।


खुशी से रो पड़ी वह थोड़ा संकोच फिर वह समय भी आया जब मैंने उसका एडमिशन कर अंग्रेजी के स्कूल में करा दिया । वह बड़ा खुश था , पढ़ने में उसकी रूची अधिक थी । वह स्कूल जाते वक्त मुझे और मेरी पत्नी के पैरों को छू के जाता है । कुछ दिनों तक तो मुझे मेरे पड़ोसी ताने देते वो देखो ' भिखारी का बाप ' जा रहा है ।


पर मैंने कभी भी बुरा नहीं माना मुझे गर्व होता है कि मैंने एक लड़के कि जिन्दगी बचाई है । मेरी पत्नी ने अब नौकर की रट भुला दी थी क्यों कि अब उसे हंसाने बहलाने वाला अपना मिल गया था ।


आशू के सदकार्यों से अब पड़ोसी भी प्रसन्न थे , वह बड़ा दयालु है । परीक्षा का समय आ गया था आशू दिन रात मेहनत ( पढ़ाई ) करने लगा ।


और ... और उस दिन मेरे सिर को गर्व से उँचाकर दिया । जब उसका रिजल्ट निकला तो वह अपने स्कूल में सबसे टॉप कर गया था । वह बड़ा खुश था ।आते ही मेरे और अपनी मम्मी के सीने से लग गया था ।


मैं सोचता हूँ कि बच्चे मन के सच्चे होते है , उन्हें प्यार की भूख होती है , दुत्कार की नही ।
हर बच्चे से प्यार करो चाहे वह गरीब हो या भिखारी ।


✍🏻संदीप सिंह "ईशू"

©सर्वाधिकार लेखकाधीन

(उपरोक्त रचना भी मेरे लेखन आरंभ के दिनों की रचना है, जिसे मैंने दसवीं कक्षा मे लिखा था, और इसे "ज्ञानदा" मे वर्ष 2003 - 04 मे प्रकाशित किया गया था। इसे पुनः प्रकाशित करने का उद्देश्य महज रचना को सुरक्षित और संरक्षित करना ही है।)