अजनबी रिश्ते DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • माटी की कसम

    माटी की कसमहिमालय की गोद में बसा एक छोटा लेकिन स्वाभिमानी दे...

  • अधुरी खिताब - 54

    --- एपिसोड 54 — “किस्मत की दबी हुई आवाज़ें”हवा में कुछ अनकहा...

  • बेजुबान इश्क -6

    (शादी — खामोशी का सबसे सुंदर इज़हार)सुबह की हल्की धूपघर की ख...

  • Operation Mirror - 8

    चेहरे मरे नहीं… मिटाए गए हैं। ताकि असली बच सके।”Location  मु...

  • नेहरू फाइल्स - भूल-90

    भूल-90 इतिहास से की गई छेड़छाड़ को दूर करने की दिशा में कुछ न...

श्रेणी
शेयर करे

अजनबी रिश्ते

1. मदन और उसके बेटे के दोस्त

एक गांँव में एक व्यापारी रहता था, जिसका नाम मदन था। मदन बहुत ही लालची था और सबसे ज्यादा पैसे कमाने की लालसा रखता था। उसका मानना था कि केवल पैसे ही सब कुछ है। बिना पैसों के संसार में कोई किसी का नहीं होता। अपनी इस मानसिकता के कारण वह गरीब लोगों से अच्छा व्यवहार भी नहीं करता था। धनी लोगों के आगे - पीछे घूमने में अपना सौभाग्य समझता था।
एक दिन अपने साथी व्यापारियों के साथ मदन व्यापार के लिए शहर जा रहा था। रास्ते में मदन ने देखा कि उसी के गाँव की गरीब बस्ती में रहने वाले कुछ लड़के नदी में नहा रहे थे। अचानक उन लड़कों ने चिल्लाना शुरू कर दिया। मदन ने देखा कि शायद कोई लड़का नदी में डूब रहा है, तभी उसने देखा कि उसके साथी लड़के शोर मचा रहे हैं। मदन और उसके साथी व्यापारियों ने यह सब देखकर भी अनदेखा किया और अपने रास्ते चले गये।
शाम को जब मदन वापस घर आया तो उसे पता चला कि उसका खुद का बेटा आज नदी में डूबते - डूबते बचा है। अगर गाँव के वे सभी लड़के उसे न बचाते तो शायद आज वह अपने बेटे को खो चुका होता। उसके बेटे की मित्रता गांँव की गरीब बस्ती में रहने वाले नीशू और निकू आदि लड़कों के साथ थी। ये सभी बच्चे एक ही विद्यालय में साथ पढ़ते थे और इतवार की छुट्टी के दिन सब नदी में तैरने के लिए जाते थे। चूंँकि मदन को गरीबों से नफ़रत थी, इसलिए वह अपने बेटे को उन लड़कों से मिलने और खेलने को मना करता था। विपत्ति के समय सच्चा मित्र ही काम आता है, फिर चाहे वह गरीब हो या अमीर। ये बात आज मदन को उसके बेटे और उसके साथियों ने बिना कुछ कहे ही समझा दी थी।

संस्कार सन्देश :- सच्ची मित्रता अमीरी - गरीबी नहीं देखती। हमें सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

2. शालिनी व उसकी माँ

एक बडे़ पेड पर चील का घोंसला था। घोंसले में उसका एक छोटा सा बच्चा था। एक दिन चील कहीं जा रखी थी। उसका बच्चा नीचे गिर गया। पेड़ के पास ही शालिनी की माँ घास काट रही थी। उसने चील के बच्चे को उठाया और उसे अच्छी तरह से बिठा दिया। जब चील घोंसले में वापस आयी तो घोंसले में बच्चे को न पाकर वह परेशान होकर रोने लगी। वह बच्चे को इधर - उधर ढूँढ़ने लगी। तभी उसे शालिनी की माँ के पास अपना बच्चा दिखाई दिया। चील ने गुस्से में शालिनी की माँ से कहा कि - "मैं इतनी देर से अपने बच्चे को ढूँढ रही हूँ। तुमने मेरे बच्चे को छिपा रखा है।"
तब शालिनी की माँ ने कहा - "तुम्हारा बच्चा नीचे गिर गया था, मैंने उसको अच्छी तरह से अपने पास बिठाया है और तुम मुझ पर गुस्सा कर रही हो।" ऐसा सुनकर चील को बहुत बुरा लगा कि जिसने मेरे बच्चे की रक्षा की, मैं उसी पर गुस्सा कर रही हूँ। चील ने शालिनी की माँ से कहा - "मुझे माफ कर दो! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है।" शालिनी की माँ ने कहा - "कोई बात नहीं। अब तुम अपने बच्चे को ले जा सकती हो।" बच्चे ने अपनी माँ को देखा तो वह बहुत खुश होकर अपनी माँ के सीने पर चिपक गया।
करे मुसीबत में मदद, जब कोई इन्सान।
तो समझो उस रूप में, आये हैं भगवान।।

संस्कार सन्देश :- जो दूसरों की मदद करते हैं तो भगवान उनकी मदद करता है।