राज को कुमार गौरव से जलन हो रही थी। जलन क्या? उसे तो उस पर बेतहाशा गुस्सा आ रहा था। गुस्सा निकालने का बड़ा अजीब तरीका निकाला उसने। पुराने अखबारों के ढेर में तीन घंटे सिर खपाकर रविवार के अंक में से उसने कुमार गौरव की तस्वीर ढूंढ निकाली और उसे काटकर अलग रख लिया। वह उस तस्वीर को जलाकर अपने दिल में सुलग रही जलन की आग को बुझाना चाहता था।
मगर जाने क्या हुआ कि वह उस तस्वीर को जलाने के पहले आईने के सामने खड़ा हो गया और तस्वीर में दिख रहे कुमार गौरव से ख़ुद की तुलना करने लगा। तस्वीर देखते देखते उसे यूं लगा कि वो ज़रा-ज़रा कुमार गौरव जैसा ही लगता है। वो भी गोरा था, लंबा था और हेयर स्टाइल भी काफ़ी कुछ कुमार गौरव सरीखी ही थी।
दिल कह उठा - "राज! तू तो कुमार गौरव ही लगता है। इसका मतलब ये हुआ कि वो तुझे पसंद कर लेगी।"
इस ख़याल से वह ख़ुशी से झूम उठा। उस पल उसे पहली बार अहसास हुआ कि बात अब दोस्ती से आगे बढ़ चुकी है। एक अनदेखी लड़की से वह प्यार करने लगा है।
जब ख़त का जवाब देने की बारी आई, तो उसने लिखा -
‘बेला! तुमने मुझसे तो नहीं पूछा। मगर फिर भी तुम्हें बताये दे रहा हूँ कि मेरी पसंदीदा अभिनेत्री विजयिता पंडित है और मैंने ‘लव स्टोरी’ पंद्रह बार देखी है।‘
जब वह ख़ुद जला था, तो बेला को भी जलाने का उसे हक़ था। वैसे वह जान नहीं पाता कि बेला जली या नहीं और अगर जलती भी, तब भी कौन सा उसे बताती। उसने कौन सा बेला को बताया था कि वो जलकर राख हो गया था।
कुछ दिनों बाद बेला का जवाब आ गया। दूसरी कई बातों के साथ उसने लिखा था -
'ओह! हमारी पसंद तो एक निकली। वैसे क्या आपको लव...मेरा मतलब है प्यार पर यक़ीन है?'
ख़त की इन दो पंक्तियों को राज ने जाने कितने बार पढ़ा। पहली बार किसी लड़की से प्यार की बातें शुरू होने वाली थी। बातें ख़तों के ज़रिये ही होती, पर बातें तो होती। वैसे उन बातों को प्यार की बातें न कहकर प्यार के बारे में बातें कहना ज्यादा सही होगा। मगर वह उन प्यार के बारे में बातों को प्यार की बातें बना लेने का पूरा इरादा रखता था। उसने बेला के सवाल का जवाब दिया :
'बिल्कुल यक़ीन है। यक़ीन न होता, तो मैं ‘लव स्टोरी’ पंद्रह बार न देखता। प्यार एक ख़ूबसूरत एहसास है और वो ख़ूबसूरत एहसास दिल में कौन न बसाना चाहे? वैसे तुम भी प्यार में यक़ीन रखती हो, ऐसा मुझे लगता है। क्यों?'
ख़त भेजने के बाद राज बेसब्री से जवाब का इंतज़ार करने लगा। उसकी बेताबी बढ़ती जा रही थी। हाल यूं था कि इंतज़ार न होता था। पर क्या करता? मजबूरी थी। वो आज का दौर जो नहीं था। उन इंतज़ार के लम्हों में वह बेला के पुराने ख़त कई मर्तबा पढ़ता। अजीब बात ये थी कि हर मर्तबा उसके दिल के समंदर में अहसासों का एक नया भंवर उठता।
जब बेला का ख़त आया, तो जवाब कुछ यूं था -
'हाँ राज! मैं भी प्यार पर यक़ीन रखती हूँ। न रखती, तो ‘लव स्टोरी’ दस बार क्यों देखती?'
उसने राज के अंदाज़ में ही जवाब दिया, जिसे पढ़कर राज का दिल गुदगुदा सा गया। आगे लिखा था -
'मैं सोचती हूँ कि प्यार का अहसास सारे एहसासों में सबसे ख़ूबसूरत है और अपनी ख़ूबसूरती से सबको बांध लेता है। ये एहसास पूरी दुनिया को एक धागे में पिरो सकता है। काश दुनिया में बस प्यार रहे, मोहब्बत रहे। कोई अलग न रहे, सब एक रहें। तब दुनिया और भी ख़ूबसूरत हो जायेगी। वैसे ऐसा क्यों होता है कि इस एहसास को दिल में छुपाकर रखने का भी जी चाहता है और बयां करने का भी। आपका क्या ख़याल है?'
ख़त पढ़ते-पढ़ते राज सोच रहा था – ‘मेरा ख़याल बड़ा नेक है। मैं अपना प्यार दिल में छुपाना नहीं चाहता, जता देना चाहता हूँ।‘
ख़त में आगे लिखा था :
'वैसे अगर आप प्यार को अहमियत देते हैं, तो क्या इतनी हिम्मत भी रखते हैं कि प्यार के लिए दुनिया से या परिवार से बग़ावत कर सकें। आप क्या करेंगे, अगर आपको किसी ऐसी लड़की से प्यार हो जाये, जिससे आपका परिवार शादी के लिए राज़ी न हो। फ़र्ज़ कीजिए, आपको किसी ऐसी लड़की से प्यार हो जाये...जिसका धर्म आपके धर्म से अलग हो। चलिए समझ लीजिए कि आपको मुझसे ही प्यार हो जाये और मेरा नाम ‘बेला’ न होकर ‘इसाबेला’ हो, तब क्या हमारे बीच की धर्म की दीवार आप तोड़ पायेंगे? बताइए, तब क्या करेंगे आप?'
"इसाबेला!" उस दिन ख़त में ये नाम पढ़कर राज मुस्कुराया था, पर आज नहीं।
इसाबेला डिसूज़ा
जन्म - ७ जून १९६७
मृत्यु - २ फरवरी १९८६
वह कब्रिस्तान में खड़ा था और उसकी आँखें कब्र पर खुदे इस नाम को हैरानी से पढ़ रही थीं।
क्रमश:
कौन है इसाबेला? बेला ने राज को कब्रिस्तान में क्यों बुलाया है? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।