प्रेम गली अति साँकरी - 147 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्रेम गली अति साँकरी - 147

147====

===============

आदमी की ज़िंदगी कहानियों से किस तरह अटी पड़ी है, इस बारे में न जाने कितने-कितने उत्तरविहीन प्रश्न और कुछ अलग सी बातें मेरे दिमाग के गलियारे में टहलने लगीं थीं और पापा का तो कमाल ही था| अब हर दिन मुझसे बात करना उनका शगल बन गया था| बात ही कुछ ऐसी थी कि कौन भरोसा करता? इसीलिए मैंने किसी को बताना ठीक नहीं समझा था| 

यह बात बिलकुल सही थी कि भाई और एमिली की उम्र के फ़र्क को देखते हुए हम सब परिवार वाले एक बार को चौंक गए थे लेकिन उतनी ही जल्दी हम सब सहज भी हो गए थे जैसे कोई खास बात नहीं थी| फिर मैं अपने बारे में किसी से खुलकर क्यों नहीं कह पाई थी? लड़की थी? समाज से डरती थी? हाँ, वही लोग क्या कहेंगे? बाद में धीरे-धीरे महसूस होने लगा था कि भई, अपना देखो न, दुनिया का देखोगे तो बस, जी जिया जीवन तुमने!

“अमी! अमी! गहरी सो गई क्या अमी? ” पापा दूर से बोल रहे थे, बिलकुल स्पष्ट!

हाँ, सो तो चुकी थी मैं, खासी गहरी नींद लेकिन बोली;

“नहीं पापा, आप कैसे हैं, कहिए न---”

“चल, सो जा तू, बाद में करता हूँ बात---”

“नहीं पापा, कहिए न जो कहना है| अपनी तबियत बताइए पहले---”

“अरे! मैं बिलकुल ठीक हूँ | वास्तव में तुम ही नहीं सबको अजीब लगेगा कि मैं इतना बीमार था और तुमसे इतनी नॉर्मल बातें कैसे कर रहा हूँ ? तुम्हें मालूम है बेटा, हमारे यहाँ योग की थ्योरी कितनी पुरातन है ? ”

“हाँ, पापा, अम्मा और आप दादी के साथ उसकी प्रेक्टिस करते थे, हमने बचपन में देखा है| ”

पापा बड़े प्यार से मुस्कुराए फिर बोले ;

“फिर भूल कैसे गई? योग इतना पॉवरफुल है कि कोई भी उसके सामने टिक नहीं सकता | 

“देखो, हम लोगों की चिंता मत करो, मैं, अम्मा, भाई सब मजे में हैं | एमिली के पेरेंट्स  को गिल्ट फ़ील हो रहा है जबकि उनके कारण कुछ भी नहीं हुआ | हमारे यहाँ भारतीय योग का प्रचलन हजारों वर्षों से है जिसका लाभ हम लेते रहे हैं| इसको न केवल भारतीय पद्धति में किन्तु विदेशों में भी प्रयुक्त करके सब लाभान्वित हो रहे हैं| हम सब जानते हैं कि हमारे पास इलाज के तीन विशेष मार्ग हैं जिनकी सबकी अपनी अलग थ्योरी है और अपने विभिन्न नियम व मार्ग ! आज एलोपैथी का बहुत प्रचलन है जिसमें सर्जरी विशेष भाग है| यह पहले भी था लेकिन इसका रूप व प्रकार अलग था | आज हमारे भारत में भी एलोपैथी व सर्जरी का प्रचलन बहुत हो चुका है जिसका सीधा सा कारण है जल्दबाज़ी और घबराहट ! इसलिए हम सब अपनी आयुरवैदिक दवाइयों पर निर्भर न रहकर, दूसरे उपायों को छोड़कर एलोपैथी की ओर भागते हैं जिससे बीमारी ठीक हुई लगती है पर उसके साथ ही कई ऐसे 'साइड इफ़ेक्ट्स' छोड़ जाती हैं जिनका प्रभाव लंबे समय तक शरीर को परेशान कर सकता है| हम एक बीमारी से हटकर दूसरी चार बीमारियों को पाल लेते हैं| इसलिए देखा जाए तो भारतीय योगिक पद्यति के अनुसार बनस्पतियों द्वारा किया गया इलाज बेहतर है किन्तु जहाँ शरीर को सर्जरी आदि की आवश्यकता होती है वहाँ सीधे एलोपैथिक इलाज शुरू करवा दिया जाता है| मैं अस्पताल में लेटे लेटे भी अपनी योग की क्रिया करता हूँ और अंदर से बिलकुल स्वस्थ हूँ| ये लोग अपनी संतुष्टि के लिए मुझे अस्पताल में रखे हुए हैं| शायद दो/एक दिन में छुट्टी मिल जाएगी क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं भीतर से बिलकुल स्वस्थ हूँ| ”पापा बोलने से वाकई बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे और मुझे उनकी बातों पर विश्वास हो रहा था| 

तो यह सब बबाल बेकार ही ? मन में उभरते प्रश्न और किसी के साथ साझा भी नहीं करना है तो शांति से बैठ, अमी ! मन बार-बार समझा रहा था लेकिन मन कहाँ इतनी आसानी से संभल सकता है? न जाने कितनी बातें मन को मथ रही थीं और मेरे पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था| 

पापा का मन न जाने क्यों बार-बार यही कह रहा था कि हम सब कुछ छोड़कर अपने काम में लगे रहें और जिन लोगों को केस सौंपा गया है उन्हें अपना काम करने दें| 

“वैसे प्रमेश बाबू के हाल-चाल क्या हैं? ”पापा ने आज पूछा और हँसकर बोले;

“वो और उनकी महान आत्मा दीदी कभी घर ले जाने की बात नहीं करते क्या? ”

“वो महान पुरुष मुझसे मिले तो सही, आता है और कक्षा लेकर न जाने कब निकल जाता है| ”मैंने कुढ़कर कहा| 

“तो तुम ही क्यों नहीं मिल लेतीं उसको जाकर कभी---”आज पापा बड़े ही लाइट मूड में थे| 

“एक तरफ़ कह रहे हैं कि कैसे भी उस बंधन से निकल जाऊँ, दूसरी तरफ़ मुझे चिढ़ा रहे हैँ| पापा –आप भी न!”मैंने उनसे रूठने का नाटक किया| मुझे अचानक महसूस होने लगा कि मैं एक बच्ची सी बन गई हूँ, मुझे पापा की सारी बातें ऐसी लग थीं जैसे एक गोद में बैठी हुई लाड़ली बिटिया को सहला रहे हों| 

“देखो बेटा, हम जो भी करें अंत में हमारा प्रारब्ध हमारे साथ रहता है| वह बहुत पॉवरफुल होता है और हमारे कर्मों के अनुसार फल देता ही है| ”पापा ने बड़े लाड़ से समझाया| 

“यह बहुत ही सीधी सी बात है जो दादी अक्सर कहा करती थीं कि बेटा खेत में जो बोया जाएगा, वैसी ही तो फ़सल उगेगी| वे अक्सर यह भी कहती थीं ‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाए? ’कर्म के अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं न। फिर इसमें हम दूसरों के कर्मों की चिंता करके अपने कर्मों को कैसे अनदेखा कर सकते हैं? सबके अपने कर्म और उसके परिणाम भी उनके ही अपने| आज के युवाओं को और युवाओं को क्या जिसके मन में भी चोर या बेईमानी हो, उनके यह बात गले के नीचे नहीं उतरती लेकिन जीवन की वास्तविकता तो यही है| दुनिया के डर से तुमने जो कुछ हम सबसे साझा नहीं किया, उसका कोई परिणाम विशेष तो निकला नहीं, बस ऐसा ही होता है जीवन! मुझे या हम सबको यहाँ पर आकर जीवन का यह अनुभव लेना होगा तो लिया| इस दुनिया में कोई भी चीज़ स्थिर कहाँ है? न हम और न ये दुनिया, इसकी थ्योरी पर भी कभी बात करेंगे-