प्रेम गली अति साँकरी - 146 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्रेम गली अति साँकरी - 146

146-===

===============

सच कहा जाए तो सबसे प्यारी सपनों की नगरी और देखा जाए तो स्वप्न ही स्वप्न!इन दिनों जीवन को स्वप्न के अलावा कुछ भी नहीं समझ पा रही थी | मैं ही नहीं, कोई और भी होता वह भी इस उलझन से बाहर नहीं निकल पाता क्योंकि जीवन भी तो स्वप्न ही है बेशक हम किसी भी खुमार में उसे बिता दें | कल भाई और पापा से दो अलग-अलग प्रकार की बातें जिनका कोई भी छोर कहीं से बांधा जा सकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था | फिर भी मनुष्य अपने जीवन में होने वाली बातों को समझ कहाँ पाता है?यदि समझ भी पाता है तो उतना ही जितना वह समझना चाहता है या फिर जो उसके अपने काम की होती है, स्वार्थी बंद !

पापा की बातों से जितना मैं समझ पाई, उनका मन नहीं था कि अब उस सबको आगे बढ़ाया जाए | “जो हो चुका है, उसमें कुछ बदलाव लाया जा सकना कठिन है अगर तुम्हें उस कैद से छूटने में कोई भी इशारा मिले, चूकना मत और धागा झटककर तोड़ ही डालना | होने दो अमी जो हो रहा है, मैं सब चीजें समझ रहा हूँ, शरीर की कमजोरी ठीक होने में कुछ ज़्यादा समय लग सकता है पर बेटा, मैं बिलकुल ठीक होकर वहीं वापिस आऊँगा | ”कितने आश्वस्त थे पापा | कई महान डॉक्टर्स की टीम से घिरे हुए भी वे बहुत रिलेक्स लग रहे थे | वे जैसे स्वयं के तन-मन के मरीज और डॉक्टर दोनों बन गए थे | यह बात सोलह आने सच है कि इंसान जितना अपनी पीड़ा, संवेदना गहराई से स्वयं समझ सकता है, उतना तो डॉक्टर भी रिसर्च करते रह जाते हैं | 

“मैं मौका देखकर बात करता रहूँगा बेटा, मुझे तुझसे और भी बहुत सी बातें करनी हैँ | तुम्हारी अम्मा न जाने चीज़ों को कैसे लेगी?वैसे तो वह भी हममें से एक ही है | वहाँ जो जैसा चल रहा है, चलने दो | अपने आप कुछ जल्दबाजी मत करो, ये चीज़ें अजब-गज़ब होती हैँ | ” झटोकों की स्थिति में उनकी सारी बातें मुझ तक पहुँच रही थीं | 

“पर---पापा--?”मैं उन्हें समझाना चाहती थी कि वे पूरी परिस्थिति से वकिफ़ नहीं हैं और अगर उनके पीछे कुछ ऐसा-वैसा हो गया तो??”

“कुछ नहीं होगा---सब ठीक ही रहेगा | ”पापा ने कहा और फिर चुप्पी पसर गई

“बेटा ! हमने तो बचपन से तुम्हारी दादी से यही सीखा है, अपने जीवन में दो लक्ष्यों को अवश्य लेकर चलना चाहिए | एक तो जो चाहते हो उसे प्राप्त करना, दूसरा जो प्राप्त किया है उसका आनंद प्राप्त करना | ”पापा और भाई इशारों इशारों में मुझे क्या-क्या सीखा रहे थे, वो भी हजारों मील की दूरी से ! मुझे बार-बार लगने लगा था मैं अपने जीवन के लक्ष्य को क्यों नहीं समझ पाई?या जो समझा वह एक मूर्ख की भाँति ही ???

एक बात जो मुश्किल भी थी और दूसरे सबके मन में दुविधा डालने वाली भी कि पापा बिलकुल नहीं चाहते थे कि मैं उनकी बातों का जिक्र किसी से करूँ और भाई भी जो बातें कर रहा था, उसका भी मतलब तो यही था कि इंवेस्टिगेशन-टीम से इन बातों का जिक्र न किया जाए | वह जितनी बार भी मुझसे बात करता उसमें जाने कितनी बार उत्पल का नाम चिपका देता और मेरे मन के कोने में जो शांत तरंगें होतीं वे हिलोरें मारने लगतीं | कई बार सोचती रह जाती कि मैं कितनी बड़ी मूर्ख थी!उत्पल के वहाँ से गायब होने के बाद मुझे समझ में तो आने लगा था कि मैं अपनी ओर से उसका मोह का धागा कच्चा करने में कुछ हद तक तो सफ़ल हो ही चुकी थी अन्यथा वह इतने लंबे समय तक मुझसे अलग नहीं रह सकता था | मैंने तो स्वयं को महान बनाने का बीड़ा उठा लिया था न ! देख, अब परिणाम---और जहाँ मुझे मौका मिलता मैं फूट-फूटकर रोती और खुद को हल्का करने की कोशिश करती | 

अगले दिन जब मेरे चैंबर में सब लोग आए, मैं कुछ अलग ही मूड में थी, स्वाभाविक ही था, पूरी रात भर मैं अजीब मानसिक स्थिति से जूझती रही थी और उस पर यह बंधन कि किसी से कुछ साझा करना नहीं है | मन भरा हुआ, उपद्रवी !और उपद्रव जैसे किसी थैली में `डालकर उसका मुख कसकर किसी पक्की डोरी से बंद कर दिया गया हो | अब उपद्रव का भी दम घुटना तो होगा ही | मुझे अपने उपमानों पर खूब हँसी आती थी | उत्पल होता तो----!! उसकी अनुपस्थिति में भी मैं ही नहीं सब ही उसकी उपस्थति महसूस करते थे |  

आज मीटिंग में मैंने कह दिया ;

“दोस्तों ! अब बहुत हो गया, हमने जिन्हें हायर किया है वे केस पर काम करें, हम सब इसमें कैसे और कब तक लगे रह सकते हैं?क्या कहते हैं प्रमोद जी?”

“दीदी !बात तो आप बिलकुल ठीक कह रही हैं और  एजेंसी को पेमेंट दिया जा रहा है |  हमें चौक्कने रहना है | ” प्रमोद जी ही सब संभालते थे, उनकी बात का वज़न स्वभविक था | 

“अमोल भाई जी से बात हो गई क्या आपकी?”शीला दीदी ने पूछा | 

“हाँ, शीला दीदी, पापा बेहतर हैं और अम्मा और भाई चाहते हैं कि पिछले वर्ष जो स्पेन में संस्थान की फ्रैंचाई ली गई थी, उसका वार्षिक कार्यक्रम करने में भारत से यदि संस्थान से एक ट्रिप आए तो अच्छा होगा | ”

“अच्छा !क्या अम्मा मैंटली बिलकुल फिट हैं ?”शीला दीदी के चेहरे के साथ सबका चेहरे भी खिल गए | 

“अम्मा अब काफ़ी स्वस्थ हैं उनका कहना है वे जल्दी ही सबसे बात करेंगी | ”मैंने सबको बताया | 

ट्रिप भेजने की तैयारी के लिए तो कई माह और बहुत ‘मैनपॉवर’ लगनी थी | अगर यह सब करना था तो हमें इस सबके लिए दूसरी ओर से तैयारी करनी होगी | मेरे अलावा यहाँ किसी को कुछ इस बदलाव के बारे में कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वहाँ अपनी तरह पापा को और भाई को |  अब हम सबको ही लगने लगा था कि हम इतने समय से व्यर्थ ही जूझते रहे है | 

सबने यही निर्णय लिया कि एजेंसी अपने अनुसार काम करती रहेगी और हम अपने अनुसार अपने काम में संलग्न रहेंगे | सब एक बार ठठाकर हँस भी पड़े;कि लौटके बुद्धू घर को आए;अब पता चलेगा कि बुद्धू आखिर बना कौन?यूँ तो सभी बने थे लेकिन वह एक गंभीर स्थिति थी जो क्रमश:अब कमजोर पड़ती जा रही थी | हाँ पापा के लिए ज़रूर दुख होता था बेचारे अच्छे-खासे, खेलते-इन्जॉय करते पापा वहाँ कैद होकर रह गए थे | लेकिन अब जो भी इस सबमें से निकलने की बात सोच भी सके थे, वह पापा के ही तो कारण !, 

सबके चेहरे कुछ ऐसे रिलैक्स दिखाई दे रहे थे जैसे किसी जेल से छूटने के ऑर्डर्स आ गए हों और सबको वो पंख मिलने वाले हों जो मोटे ताले में बंद हों | प्रत्येक प्राणी स्वतंत्रता चाहता है चाहे बच्चा हो, बड़ा हो अथवा किसी आयु का !

अमोल जब भी बात करता उत्पल का नाम लिए बिना उसका संवाद पूरा ही कहाँ होता, सच तो यह था कि वह शायद जानता ही नहीं था कि उसके बिना कैसे बात शुरू करके, कैसे पूरी कर सकता है ??